जागरण प्राइम, नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से महंगाई की काफी चर्चा हो रही है। जुलाई में खुदरा महंगाई 7.44% पर पहुंच गई, जो 15 महीने में सबसे ज्यादा है। इसकी मुख्य वजह है खाद्य महंगाई, जो 11.5% हो गई। अनाज, दाल, सब्जियां, मसाले, मिल्क प्रोडक्ट सबके दाम बढ़े हैं। इसके लिए बहुत हद तक अल नीनो जिम्मेदार है। दरअसल, महंगाई और अल नीनो के बीच सीधा रिश्ता है। भारत में बारिश अल नीनो से प्रभावित होती है। इसके कारण अगस्त में बारिश सामान्य से करीब 33% कम हुई है। इस साल अगस्त तक मानसून की पूरी बारिश भी सामान्य से लगभग 10% कम है। माना जा रहा है कि इसका असर खरीफ यानी गर्मी की फसलों पर होगा। खरीफ की मुख्य फसल धान है।

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क्या है अल नीनो

इक्वेटोरियल पैसिफिक यानी प्रशांत महासागर में समुद्र और वातावरण के बीच इंटरएक्शन से अल नीनो साउदर्न ऑसिलेशन चक्र बनता है। यह दो तरह का हो सकता है- अल नीनो और ला नीना। दोनों एक दूसरे के विपरीत होते हैं। जब समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक होता है तो उसे अल नीनो कहते हैं, और जब यह सामान्य से कम होता है तो ला नीना कहते हैं। अल नीनो से एशिया और अफ्रीका में कम बारिश और सूखे की स्थिति बन सकती है तो अमेरिका में बाढ़ आ सकती है। ला नीना में एशिया और अफ्रीका में बाढ़ के हालात बन सकते हैं तो दक्षिण अमेरिका में सूखे की नौबत आ सकती है।

अगले साल भी रहेगा असर

अमेरिका के नेशनल ओसनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार जुलाई में ओसनिक नीनो इंडेक्स (ONI) एक डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया। जब यह इंडेक्स 0.5 डिग्री होता है तब अल नीनो की स्थिति बनती है। इस लिहाज से इंडेक्स अल नीनो के स्तर से दोगुना है। यानी अल नीनो का असर गहरा हो रहा है। अमेरिकी संस्था ने अक्टूबर से दिसंबर तक ओसनिक नीनो इंडेक्स 1.5 डिग्री और मार्च-अप्रैल 2024 में एक डिग्री रहने का अंदेशा जताया है। यानी दक्षिण पश्चिम मानसून के बाद दक्षिण पूर्व मानसून पर भी इसका असर पड़ने की आशंका है।

जलाशयों में भी पानी कम

दक्षिण पश्चिम मानसून जलाशयों के साथ भूजल स्तर बढ़ाने के भी काम आता है। लेकिन इस बार देश के करीब 145 जलाशयों में पानी पिछले साल से 21% और दस साल के औसत से 10% कम है। इससे रबी यानी जाड़े की फसलों की सिंचाई के लिए पानी कम मिल सकता है। ऐसा हुआ तो गेहूं, चना, सरसों की फसलों पर असर होगा। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार अगस्त की शुरुआत में सेंट्रल पूल में 242 लाख 96 हजार टन चावल और 280 लाख 39 हजार टन गेहूं का स्टॉक था। यानी गेहूं और चावल का कुल स्टॉक 523 लाख 35 हजार टन है। यह 2017 के बाद सबसे कम है। उस साल अगस्त में गेहूं और चावल का 499 लाख 77 हजार टन का स्टॉक था। इसलिए अल नीनो के असर से महंगाई की चिंता और बढ़ने की आशंका है।

महंगाई रोकने के कदम

महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने पिछले साल 13 मई को गेहूं का निर्यात रोकने से लेकर इस साल स्टॉक लिमिट लगाने जैसे कई कदम उठाए हैं। चावल की तमाम किस्मों के निर्यात पर या तो रोक है या फिर निर्यात के लिए शर्तें लगा दी गई हैं। चीनी को रेस्ट्रिक्टेड कैटेगरी में डाला गया तो प्याज पर 40% एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी गई। अरहर और उड़द दालों पर भी स्टॉक लिमिट है।

एशिया में सूखे के हालात संभव

अब देखते हैं कि अल नीनो का दूसरे देशों पर क्या प्रभाव होगा। वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन का आकलन है कि 2023 की दूसरी छमाही में अल नीनो का प्रभाव बने रहने की आशंका 90% है। वैसे तो इससे कमोबेश सभी देश प्रभावित होंगे, लेकिन विकासशील देशों के लिए डर अधिक है। खास कर उन देशों के लिए जिनके यहां अपना उत्पादन कम है और महंगाई को काबू में रखने के लिए संसाधनों की कमी है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के अनुसार इस साल अल नीनो का सबसे ज्यादा असर जिन देशों पर होगा, उनमें भारत और मिस्र भी शामिल हैं। फिलीपींस, केन्या और घाना भी ज्यादा असर वाले देशों में हैं। अमेरिका, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका पर असर तो होगा, लेकिन कम।

अल नीनो हर दो से सात साल में होता है। इस बार इसका प्रभाव 18 महीने तक रह सकता है और मॉर्गन स्टैनले का कहना है कि 2024 में इसका असर अधिक देखने को मिलेगा। इससे एशिया, ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील में सूखे के हालात बनेंगे तो अमेरिका और अफ्रीका में अधिक बारिश होगी। दक्षिण एशिया और अफ्रीका के देशों में बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है। इसलिए वहां लोगों पर अल नीनो का प्रभाव भी अधिक होगा। दुनिया का 90% चावल एशिया में ही होता है। यहां फिलिपींस और थाईलैंड पर भी अल नीनो का खतरा है।

अनाज आयातक देशों के लिए चिंता

उत्पादन कम होगा तो अनाज निर्यात भी कम होने की आशंका है, इसलिए आयात पर निर्भर देशों के लिए स्थिति गंभीर होगी। वहां खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ेंगे। यूरोपियन सेंट्रल बैंक का विश्लेषण है कि अल नीनो में तापमान एक डिग्री बढ़ने पर करीब साल भर बाद ग्लोबल मार्केट में खाने-पीने की चीजों के दाम छह प्रतिशत से ज्यादा बढ़ जाते हैं। विकासशील और गरीब देशों में लोगों के खर्च का बड़ा हिस्सा खाने-पीने में जाता है। अनेक देशों की खुदरा महंगाई में फूड प्राइस की हिस्सेदारी 40% तक है। वे देश अल नीनो के कारण होने वाली महंगाई से अधिक परेशान होंगे। कुछ और बातें भी देखने को मिलेंगी। जैसे, गर्मी बढ़ने पर एयर कंडीशनिंग के लिए बिजली की मांग बढ़ेगी। दूसरी तरफ, कम बारिश से हाइड्रो प्रोजेक्ट में बिजली उत्पादन घटा तो गैस और कोयले की डिमांड बढ़ेगी। इससे इनके दाम बढ़ेंगे।

मॉर्गन स्टैनले ने एक स्टडी के हवाले से लिखा है कि अल नीनो से दुनिया के 25% इलाकों में खेती प्रभावित होती है। दुनिया का 60% खाद्य उत्पादन सिर्फ पांच देशों में होता है। ये देश हैं भारत, चीन, अमेरिका, ब्राजील और अर्जेंटीना। इन देशों में अल नीनो का मामूली असर भी हुआ तो ग्लोबल फूड सप्लाई पर बड़ा असर पड़ेगा।

इकोनॉमिक ग्रोथ पर भी असर

अल नीनो का आना और उससे महंगाई बढ़ना पहले भी होता रहा है। इस बार अंतर यह है कि रूस-यूक्रेन युद्ध और दूसरे कारणों से खाने-पीने की चीजों के दाम पहले ही बढ़े हुए हैं। इसमें और वृद्धि लोगों की मुश्किलें बढ़ाएगी। एक बात और, महंगाई बढ़ेगी तो दुनिया भर के सेंट्रल बैंक ज्यादा समय तक ब्याज दरों को ऊंचा बनाए रखेंगे। यानी कर्ज लंबे समय तक महंगा रह सकता है। इसका असर इकोनॉमिक ग्रोथ पर पड़ेगा। इंग्लैंड की कंसल्टेंसी फर्म सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च ने सोमवार को ही एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि महंगे कर्ज के कारण इंग्लैंड में अगले साल हर तिमाही 7 हजार कंपनियां, यानी पूरे 2024 में 28 हजार कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं।