वर्ष 2022-23 इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर के लिए काफी अच्छा रहा। इस वर्ष इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 63% बढ़कर 1.90 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इसमें मोबाइल फोन का हिस्सा करीब 90 हजार करोड़ रुपये का था। अहम बात यह है कि भारत ने 24% इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात अमेरिका को तथा 28% निर्यात यूरोप के विकसित देशों को किया। अगले 10 वर्षों के बाद भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार कहां होगा और निर्यात में भारत की हिस्सेदारी क्या होगी, इस सेक्टर को गति देने के लिए बनाई गई नीतियों का क्या असर हुआ है? जागरण प्राइम के एस.के. सिंह ने इन सवालों के साथ देश के प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं के संगठन इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के चेयरमैन पंकज मोहिंद्रू से बात की। उनका कहना है कि 10 साल में भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग एक ट्रिलियन डॉलर और निर्यात 700 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। बातचीत के मुख्य अंश-

2022-23 में इलेक्ट्रॉनिक्स का रिकॉर्ड निर्यात हुआ। मोबाइल फोन निर्यात करीब 90 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया। क्या हम 2025-26 तक 300 अरब डॉलर के उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर लेंगे?

नहीं, मेरे विचार से कोविड-19 के कारण इसमें देरी होगी। हमने हर कैटेगरी का विश्लेषण किया है। दो-तीन कैटेगरी पर काम नहीं हो पाया था। जैसे, आईटी हार्डवेयर पर प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई 2.0) अभी आई है। इसको पूरी तरह अमल में आने में तीन-चार महीने और लगेंगे। फिर भी, मुझे लगता है कि 2027-28 तक हम 300 अरब डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। हालांकि हमारी कोशिश पूरी रहेगी। हम मासिक आधार पर विश्लेषण करते हैं कि कमियां कहां हैं और उन्हें दूर करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं।

आईटी हार्डवेयर (लैपटॉप, टैबलेट, पीसी, सर्वर आदि) के लिए पीएलआई 2.0 स्कीम में आवेदन मंगवाए हैं। स्कीम 29 मई को नोटिफाई हुई और 1 जून से इसका विंडो ओपन है। इसे लेकर इंडस्ट्री का क्या रुख है?

अभी स्थिति बहुत कठिन है। कोविड-19 के दौरान बिक्री अचानक काफी बढ़ गई थी। उस समय लोगों के सामने इलेक्ट्रॉनिक्स सामान खरीदने की मजबूरी थी। परिवार में कई लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे, तो उन्हें मल्टीपल यूनिट की भी जरूरत पड़ती थी। कुछ लोगों को अपनी चीजें अपग्रेड भी करनी पड़ीं। उसके बाद डिमांड घटी है। वॉल्यूम के लिहाज से देखें तो 2022-23 के दौरान दुनिया भर में बिक्री में 25 से 30 प्रतिशत की गिरावट आई है। अभी डिमांड बढ़ाने की चुनौती है।

मेरे विचार से इस स्कीम के उद्देश्य तो पूरे हो जाएंगे, हो सकता है कि हम उससे बेहतर कर लें, लेकिन सभी कंपनियां इसमें शामिल होंगी या नहीं यह कहना मुश्किल है। कई ग्लोबल कंपनियों ने भारत में पहले से निवेश कर रखा है। उनकी क्षमता का पूरा इस्तेमाल अभी नहीं हो रहा है। जैसे डेल, एचपी, लेनोवो आदि। इसलिए हो सकता है कि सभी कंपनियां इस स्कीम में अभी हिस्सा न लें। इस स्कीम में हिस्सा लेने के लिए कंपनियों के पास दो साल से ज्यादा का समय है। तब तक बाजार परिस्थितियों को देखकर वे फैसला ले सकती हैं।

अभी ग्लोबल इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात का बाजार कितना बड़ा है और उसमें भारत का हिस्सा कितना है?

फाइनल प्रोडक्ट एक्सपोर्ट (री एक्सपोर्ट को छोड़कर) करीब 1300 अरब डॉलर का है। अभी इसमें भारत का हिस्सा 2% से भी कम है।

अगले 10 वर्षों में भारत के लिए क्या संभावनाएं हैं?

10 साल में एक ट्रिलियन डॉलर की मैन्युफैक्चरिंग का लक्ष्य है, इसमें आधा से ज्यादा निर्यात होगा। हम उसके लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स सामान का घरेलू बाजार हमेशा जीडीपी से जुड़ा होता है। अगर इसे जीडीपी का तीन से चार प्रतिशत भी मानें तो 10 साल बाद यह 300 अरब डॉलर का होगा क्योंकि तब तक हमारी जीडीपी आठ से 10 ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी।

पीएलआई स्कीम में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेट की घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहित करने की बात है। अभी स्मार्टफोन में लोकलाइजेशन का लेवल क्या है? इसे बढ़ाने के लिए इंडस्ट्री क्या कर रही है?

अभी लोकलाइजेशन का स्तर लगभग 20% है। लेकिन हमें इसे दूसरे तरीके से देखना चाहिए। मोबाइल में असेंबलिंग और सब-असेंबलिंग होती है। चार्जर, बैटरी पैक, हेडसेट, यूएसबी केबल, पीसीबीए, कनेक्टर, स्पीकर माइक्रोफोन इन सब चीजों में काफी लोकलाइजेशन हो गया है। लेकिन बिल ऑफ मटेरियल का 50 से 60 प्रतिशत सेमीकंडक्टर का होता है। उसे बनाने के लिए बहुत ज्यादा निवेश की जरूरत पड़ती है। उस दिशा में भारत में अभी काम शुरू हुआ है।

कौन से कंपोनेंट हैं, जिनका भारत में जल्दी उत्पादन किया जा सकता है? कौन से कंपोनेंट में भारत में ग्लोबल हब बनने की क्षमता है?

अभी हमें ग्लोबल हब की सोचने के बजाय इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि असेंबलिंग और सब-असेंबलिंग कितने बड़े पैमाने पर कर सकते हैं। चीन और वियतनाम ने भी पहले स्केल हासिल करने की नीति अपनाई थी। वैसे भी, भारत जैसे देश में लोगों को ज्यादा रोजगार चाहिए। यह अधिक ज्यादा महत्वपूर्ण है।

मोबाइल एसेसरीज के मामले में हम कितने आत्मनिर्भर हैं?

चार्जर, बैटरी, वियरेबल, हियरेबल, हेडसेट जैसी एसेसरीज के क्षेत्र में भारत ने काफी तरक्की की है। चार्जर तो 100% भारत में ही बनते हैं। हम चीन तथा दूसरे देशों को इसका निर्यात भी करते हैं। बैटरी पैक भी यही बनते हैं, बाहर से सिर्फ सेल आते हैं। अब यहां सेल की इंडस्ट्री भी लगनी शुरू हो गई है। लेकिन स्क्रीन प्रोटेक्टर जैसे नॉन एक्टिव एसेसरीज अभी काफी आयात किए जाते हैं। उस पर भी काम चल रहा है ताकि घरेलू बाजार की जरूरतें भी पूरी हों और हम उनका निर्यात भी कर सकें।

पीएलआई स्कीम आने के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में कितने नए जॉब मिले हैं?

2015 से मोबाइल फोन सेगमेंट में करीब 10 लाख लोगों को नौकरियां मिली हैं। पीएलआई के बाद प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से चार लाख नौकरियां मिली हैं।

ICEA ने फरवरी में यूपी सरकार के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग और स्किल हब बनाने के लिए एमओयू किया था। उसमें क्या प्रगति है और ICEA की भूमिका क्या रहेगी?

इसमें हमारी भूमिका एक कैटलिस्ट के तौर पर है। हम सरकार को उचित सलाह देने, बाकी दुनिया के साथ बेंचमार्किंग करने का काम करेंगे। हम यह भी देख रहे हैं कि ग्लोबल वैल्यू चेन और भारतीय निवेशकों को कैसे जोड़ सकें। यह इतनी बड़ी छलांग है कि इसमें पुरानी कंपनियों को ही क्षमता नहीं बढ़ानी, बल्कि नई कंपनियों को भी नई क्षमता का निर्माण करना है।

भारतीय निर्माताओं का एक आरोप रहा है कि चाइनीज कंपनियां ऑनलाइन बिक्री में बहुत ज्यादा डिस्काउंट देती हैं, इसलिए समान अवसर की नीति बननी चाहिए। इस पर आपकी क्या राय है? क्या इस बारे में सरकार से आपकी चर्चा हुई है? सरकार का क्या रुख है?

यह सिर्फ चाइनीज कंपनियों तक सीमित नहीं है। इसे आप ऑफलाइन ट्रेड बनाम ऑनलाइन ट्रेड कह सकते हैं। इन दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा है और आरोप है कि हजारों दुकानें बंद हो गई हैं। यह सच है और सरकार इसे लेकर चिंतित भी है। भारत की इकोनॉमी के विकास में रिटेल का बड़ा हाथ रहा है। यह सेक्टर रोजगार के लिहाज से भी काफी बड़ा है। सवाल है कि क्या ऑफलाइन रिटेल को ज्यादा सक्षम बनने के लिए अपना मॉडल बदलना पड़ेगा, या ओएमडीसी जैसे प्लेटफॉर्म लाने होंगे। मौजूदा समय रिटेल सेक्टर के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण है क्योंकि डिजिटाइजेशन बढ़ने के साथ ऑनलाइन का इस्तेमाल भी आने वाले दिनों में बढ़ेगा।

चर्चा है कि सरकार ने चाइनीज मोबाइल फोन निर्माताओं से भारतीय इक्विटी पार्टनर लाने के लिए कहा है। इसमें कितनी सच्चाई है?

इस बारे में सीधे कुछ नहीं कह सकता। सिर्फ इतना बताना चाहूंगा कि सरकार सभी कंपनियों से वैल्यू एडिशन बढ़ाने के लिए कहती है- आप सप्लाई चेन में भारतीय कंपनी को लाइए, भारतीयों को स्किल सिखाइए, उनकी क्षमता बढ़ाइए। पिछले दिनों पांच चाइनीज कंपनियों के साथ सरकार की बैठक हुई थी। उसमें कंपनियों से कहा गया कि जो स्किल भारत में उपलब्ध है उसे आप बाहर से न लाएं। जैसे, भारत में अनेक डिस्ट्रीब्यूटर हैं, तो आप अपना डिस्ट्रीब्यूटर मत लाइए, भारतीय डिस्ट्रीब्यूटर को अपने साथ जोड़िए।

भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर के ईकोसिस्टम में क्या कमी देखते हैं और ग्लोबल स्थिति को देखते हुए इंडस्ट्री की चुनौतियां क्या हैं?

अभी हमने इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में 100 अरब डॉलर का आंकड़ा पार किया है। अभी तो कमियां बहुत सारी हैं। हम दुनिया की आबादी का 18% है, लेकिन ग्लोबल जीडीपी में हमारा योगदान 3.5% ही है। हमारे सामने अंदरूनी चुनौतियां हैं। निर्यात में हम बहुत ही शुरुआती स्तर पर हैं। लेकिन दूसरे नजरिए से देखें तो हमारे पास बहुत बड़ा अवसर है। हमें इस अवसर को भुनाना है। हमने दुनिया को दिखा दिया है कि भारत हाई क्वालिटी के इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनाने की क्षमता रखता है।