प्याज की औसत लागत 10-12 रुपये किलो जबकि औसत मंडी भाव 7.5 रुपये, इन दिनों निर्यात की मांग भी कम
एक एकड़ प्याज की खेती और उपज की ढुलाई समेत 136500 रुपये का खर्च आता है। फसल अच्छी हुई तो प्रति एकड़ 150 क्विंटल उत्पादन हो जाता है। यानी पैदावार अच्छी होने पर लागत 9 रुपये प्रति किलो से ज्यादा आती है। औसत लागत 10 से 12 रुपये किलो है
एस.के. सिंह, नई दिल्ली। महाराष्ट्र के नासिक जिले के किसान हैं निवृत्ति न्याहरकर। उनके इलाके में पानी की समस्या रहती है, इसलिए गन्ने की नहीं बल्कि प्याज की खेती करते हैं। जागरण प्राइम से उन्होंने बताया, “कई रोज पहले मैं प्याज से भरी छोटी गाड़ी लेकर मंडी गया। उसके मुझे 700 रुपये मिले जबकि गाड़ी वाले को मैंने 800 रुपये चुकाए। परिवार की मजदूरी तो छोड़िए, उत्पादन और मंडी का खर्च भी नहीं निकला।”
यह शिकायत सिर्फ न्याहरकर की नहीं बल्कि देश का 42% प्याज उपजाने वाले महाराष्ट्र के सैकड़ों-हजारों किसानों की है। ऐसा भी नहीं कि प्याज किसानों को पहली बार लागत से कम दाम मिले हों। ऐसा तो अक्सर सुनने को मिलता है। इस बार भी जब उन्हें उत्पादन का खर्चा तक नहीं मिला तो उन्होंने मंडी में प्याज बेचने से मना कर दिया। तब जाकर सरकार सक्रिय हुई और नाफेड को प्याज खरीदने का निर्देश दिया।
नाफेड (NAFED) ने अपने ट्विटर हैंडल पर 2 मार्च को ट्वीट कर बताया कि वह अब तक नासिक में 355 किसानों से 1300 टन प्याज खरीद चुका है। उससे पहले उसने 25 फरवरी को ट्वीट किया कि उपभोक्ता मामले मंत्रालय के निर्देश पर उसने नासिक क्षेत्र में लेट खरीफ प्याज की खरीद शुरू की है। इस पेज को महाराष्ट्र से बाहर भेजा जा रहा है।
कुछ प्याज दिल्ली भी भेजा गया। दिल्ली में फल एवं सब्जी की एशिया की सबसे बड़ी आजादपुर मंडी के प्याज कारोबारी अखिल गुप्ता ने बताया, “सात-आठ दिनों से दिल्ली में नाफेड का प्याज आ रहा है। शुरुआत में एक दो ट्रक ही आए थे, लेकिन शुक्रवार को 9 ट्रक पहुंचे। यह लाल प्याज है और शुक्रवार को यह 10-11 रुपये किलो के भाव बिका।”
आमतौर पर नाफेड खरीफ की लाल प्याज की खरीद नहीं करता है, क्योंकि इसे 2 महीने से ज्यादा स्टोर कर नहीं रख सकते। नाफेड बफर स्टॉक के लिए रबी सीजन के प्याज की ही खरीद करता है। लेकिन इस बार दाम काफी गिरने के बाद सरकार के निर्देश पर उसने लाल प्याज की खरीद शुरू की है। रबी सीजन के प्याज को करीब छह महीने तक कोल्ड स्टोरेज में रखा जा सकता है।
खबरों के मुताबिक नासिक में प्याज के भाव 400 रुपये क्विंटल तक गिर गए थे, हालांकि नाफेड के हस्तक्षेप के बाद इसमें वृद्धि हुई है। नासिक में एशिया की सबसे बड़ी लासलगांव प्याज मंडी के सचिव नरेंद्र वाडवाणे ने बताया कि शुक्रवार को मंडी में अधिकतम भाव 1140 रुपये तक गया और औसत कीमत 751 रुपये क्विंटल थी। उस दिन 1040 गाड़ी प्याज की नीलामी हुई। उन्होंने बताया कि अभी रोजाना 30 से 35 हजार क्विंटल प्याज की खरीद हो रही है। लासलगांव मंडी में साल में 80 से 85 लाख क्विंटल प्याज की खरीद होती है। वाडवाणे के अनुसार अभी खरीफ के प्याज की खरीद हो रही है और यह मार्च तक चलने की उम्मीद है। अप्रैल से रबी के प्याज की खरीद शुरू होती है, लेकिन इस साल फसल थोड़ी लेट है।
देश में खरीफ के प्याज की जुलाई से अगस्त तक बुवाई होती है और उसकी हार्वेस्टिंग अक्टूबर से दिसंबर के दौरान की जाती है। लेट खरीफ की बुवाई अक्टूबर-नवंबर में और हार्वेस्टिंग जनवरी-मार्च में होती है। रबी के प्याज की बुवाई दिसंबर से जनवरी तक की जाती है। इसकी हार्वेस्टिंग अप्रैल-मई में होती है।
एफपीओ से हो रही खरीद
वाडवाणे ने बताया कि नाफेड मंडियों में प्याज नहीं खरीद रहा, वह एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन) के माध्यम से खरीद रहा है। नासिक के ही एक और किसान दीपक पगार का कहना है कि एफपीओ (FPO) के माध्यम से खरीद होने पर पूरा पैसा किसानों को नहीं मिलता है। न्याहरकर का आरोप है कि व्यापारियों से भी काफी प्याज खरीदा जा रहा है। इस बारे में नाफेड अधिकारियों से बात करने की कई बार कोशिश की गई, पर उनसे संपर्क नहीं हो सका।
पगार का कहना है कि प्याज किसानों के लिए मध्य प्रदेश की तरह भावांतर स्कीम लानी चाहिए। सरकार एक रेट तय करे, किसान को अगर उससे कम भाव मिलता है तो उस अंतर का भुगतान सरकार किसान को करे। न्याहरकर के अनुसार सरकार को सीधे किसानों को मदद देनी चाहिए। नाफेड या किसी अन्य एजेंसी के जरिए खरीदने का कोई फायदा नहीं क्योंकि इससे न तो किसानों को लाभ मिलता है न ग्राहक को।
औसत लागत 10 से 12 रुपये किलो
पगार के मुताबिक सरकार को प्याज का दाम कम से कम 1500 रुपये क्विंटल रखना चाहिए। इसके साथ वे लागत का पूरा हिसाब भी बताते हैं। वे कहते हैं, एक एकड़ प्याज की खेती और उपज की ढुलाई समेत कुल 1,36,500 रुपये का खर्च आता है। फसल अच्छी हुई तो प्रति एकड़ 150 क्विंटल उत्पादन हो जाता है। यानी पैदावार अच्छी होने पर लागत 9 रुपये प्रति किलो से ज्यादा आती है। औसत लागत 10 से 12 रुपये किलो होती है। नाफेड की खरीद के बाद दाम बढ़े हैं, लेकिन इसके बाद भी 8-9 रुपये किलो का भाव मिल रहा है जो लागत से कम है।
पगार के अनुसार नासिक की मंडियों में फरवरी 2021 में प्याज की औसत कीमत 3,400 रुपये और फरवरी 2022 में 2000 रुपये क्विंटल थी, लेकिन इस साल यह 800 रुपये रह गई। जनवरी में भी औसत भाव 1200 रुपये क्विंटल था, जबकि जनवरी 2021 में यह 2000 रुपये और जनवरी 2022 में 1900 रुपये था।
उत्पादन जो भी हो, खर्च तो उतना ही
न्याहरकर कहते हैं, मौसम के हिसाब से उत्पादन कम या अधिक होता रहता है, लेकिन लागत तो उतनी आती ही है। “मैंने छोटे साइज का 15 क्विंटल प्याज बेचा, वह 200 रुपये के भाव बिका जबकि उसे भी पैदा करने में भी उतनी ही लागत आई।”
किसानों की बढ़ती लागत पर उनका कहना है कि सरकार बीज-बिजली आदि किसान को वाजिब दाम पर उपलब्ध कराए तभी उसकी लागत कम होगी। पिछले साल 15-17 रुपये किलो के भाव प्याज बेचने वाले न्याहरकर कहते हैं, “इस साल समस्या ज्यादा है। हमारा पूरा परिवार खेत में काम करता है और हम मजदूरी बचाते हैं। हमारी लागत लगभग 10 रुपये प्रति किलो बैठती है। इससे ऊपर जो मिला वही हम परिवार की मजदूरी या मुनाफा मान लेते हैं।” वे कहते हैं, “दाम जब बढ़ते हैं तब हर जगह हंगामा होता है, लेकिन जब किसानों को लागत नहीं मिलती है तब कोई नहीं रोता है।”
पगार कहते हैं, “नासिक में किसान परिवार के गहने गिरवी रखकर खेती कर रहे हैं। कोई भी बैंक किसानों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है। कोरोना के समय किसानों को लागत के बराबर पैसे मिल गए थे। तब किसानों ने यह सोचकर संतोष कर लिया कि आगे अच्छे दाम मिल जाएंगे। इस साल भी अगर किसानों को पैसे नहीं मिले तो वह पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा।”
आगे दाम कुछ बढ़ने का अनुमान
दिल्ली आजादपुर मंडी के प्याज कारोबारी अखिल गुप्ता के अनुसार, अभी कई रोज तक लाल प्याज आएगी, उसके बाद दाम बढ़ सकते हैं। “किसान अगली फसल को मौजूदा भाव पर नहीं बेचेगा। फिर भी दाम बहुत ज्यादा नहीं बढ़ेंगे। मेरा अनुमान है कि नासिक की मंडियों में भाव 10 रुपये किलो के आसपास रहेंगे। दिल्ली पहुंचकर भाव 15 रुपये के आसपास होगा।”
उन्होंने बताया कि लासलगांव में औसत कीमत 7.5 रुपये किलो है। यह लूज माल होता है। उसके ऊपर पैकिंग का खर्च, लोडिंग-अनलोडिंग का खर्च, लेबर का खर्च करीब 1.5 रुपये आता है। नासिक से दिल्ली प्याज लाने का खर्च करीब 4.5 रुपये प्रति किलो है। इस तरह नासिक से यहां आने के बाद खर्च 6 रुपये किलो बढ़ जाता है।
निर्यात के लिए अभी मांग कम
अखिल गुप्ता के अनुसार अभी निर्यात के लिए प्याज की डिमांड बहुत कम है। जनवरी तक कुछ डिमांड थी लेकिन अब वह खत्म हो चुकी है। उन्होंने बताया कि इस समय ज्यादातर देशों में अपनी प्याज की फसल आती है, इसलिए निर्यात की मांग नहीं है। दाम में गिरावट की यह बड़ी वजह है। जनवरी में निर्यात मांग अच्छी थी तो दाम भी ऊंचे थे। औसत कीमत 15-16 रुपये थी। निर्यात बंद होने से बाजार एकदम से क्रैश हुआ है।
भारत में किसानों को उत्पादन की लागत नहीं मिल रही है तो अनेक देशों में प्याज की किल्लत से हाल में दाम आसमान पर पहुंच गए थे। फिलीपींस में तो पिछले महीने प्याज की कीमत चिकन-मटन से भी ज्यादा हो गई। नौबत यहां तक आ गई कि वहां लोग प्याज की स्मगलिंग करने लगे। वहां एक किलो प्याज 3500 रुपये का हो गया था।
भारतीय किसान और कारोबारी इस हाल के लिए निर्यात नीति में अस्थिरता को भी जिम्मेदार मानते हैं। गुप्ता कहते हैं, बांग्लादेश प्याज आयात के लिए पूरी तरह हमारे ऊपर निर्भर था। लेकिन दो साल पहले जब उसे प्याज की जरूरत थी तब हमने निर्यात पर रोक लगा दी। 2019 में भारत में प्याज का संकट हुआ था तो करीब 6 महीने तक यहां से निर्यात पर रोक थी। उस समय बांग्लादेश ने चीन, म्यांमार तथा अन्य देशों से प्याज खरीदा। अब बांग्लादेश ने भारत के प्याज पर अतिरिक्त ड्यूटी लगा दी है। इससे बांग्लादेश में भारत के प्याज के डिमांड कम हुई है।
नवी मुंबई स्थित एक बड़े प्याज निर्यातक ने नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर बताया, “निर्यात पर पाबंदी लगाने या न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) बढ़ाने का सीधा असर होता है। जब किसी देश को भारत से प्याज नहीं मिलता है तब वह दूसरे देशों से आयात करने लगता है। पहले भी कई बार हुआ कि आयातक देशों ने चीन-पाकिस्तान का रुख कर लिया।” उन्होंने कहा कि भारत में दाम गिरने के बावजूद यहां से निर्यात की मांग नहीं बढ़ी है। यह निर्यातक फार ईस्ट देशों और यूरोप को ज्यादा निर्यात करता है जहां गुलाबी और सफेद प्याज की मांग अधिक है।
कई देशों में प्याज का संकट
यूरोपियन यूनियन के देशों में पिछले साल बारिश कम होने से प्याज की फसल को काफी नुकसान हुआ था। प्याज के सबसे बड़े निर्यातक नीदरलैंड में भी पैदावार बहुत कम हुई। इसके अलावा उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाखस्तान और किर्गिज़स्तान में भी प्याज को नुकसान हुआ। इन देशों ने अपने यहां प्याज की कमी को देखते हुए निर्यात पर रोक लगा दी। दुनिया के अन्य इलाकों की बात करें तो मोरक्को में बाढ़ और तूफान से प्याज समेत कई फसलों को नुकसान हुआ। पाकिस्तान में पिछले साल बाढ़ से फसल बर्बाद हो गई थी। आमतौर पर निर्यात करने वाले पाकिस्तान को ईरान, उज्बेकिस्तान और तुर्की से प्याज आयात करना पड़ा। हाल के भूकंप के बाद तुर्की में इसकी किल्लत हुई तो वहां की सरकार ने भी निर्यात रोक दिया। उत्तर अफ्रीका में किसान सूखे के साथ महंगे बीज और महंगी फर्टिलाइजर का सामना कर रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में फर्टिलाइजर के दाम बढ़े हैं। युद्ध के कारण यूक्रेन में भी इसकी खेती कम हो रही है और उसे भी आयात करना पड़ रहा है। इन कारणों से ग्लोबल मार्केट में प्याज की मांग काफी बढ़ गई।
भारत मुख्य रूप से बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया जैसे पड़ोसी देशों को प्याज का अधिक निर्यात करता रहा है। पिछले साल श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण वहां से मांग कम हो गई। बांग्लादेश ने अपने यहां प्याज की खेती को बढ़ावा देने के साथ इसके आयात पर 2.8 टका प्रति किलो की इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी। भारतीय निर्यातकों का कहना है कि भारत की तरफ से जब-तब प्याज निर्यात पर अंकुश लगाने और बांग्लादेश के बाजार में इसकी कीमतों में उछाल के कारण वहां की सरकार ने यह कदम उठाया है। उससे पहले बांग्लादेश हर साल करीब 10 लाख टन प्याज का आयात करता था और इसका ज्यादातर हिस्सा वह भारत से ही खरीदता था। निर्यातकों के अनुसार म्यांमार और अफगानिस्तान जैसे देशों ने इस स्थिति का फायदा उठाया। अब भारत के लिए उन बाजारों में दोबारा पैठ बनाना मुश्किल हो रहा है।
आगे रमजान के महीने में बांग्लादेश में प्याज की कीमतें बढ़ने का अनुमान है। इसलिए पिछले हफ्ते म्यांमार में बांग्लादेश के राजदूत ने अपने देश की सरकार को म्यांमार से प्याज खरीदने की सलाह दी है। म्यांमार में प्याज का सरप्लस उत्पादन हुआ है और वहां की सरकार ने 2023-24 में एक लाख टन प्याज निर्यात करने का फैसला किया है। बांग्लादेश में हर महीने लगभग दो लाख टन प्याज की खपत होती है, लेकिन रमजान के दौरान यह चार लाख टन हो जाती है।
भारतीय कारोबारियों का कहना है कि सरकार आगे निर्यात नीति में स्थिरता लाए तभी निर्यात बाजार में भारत अपनी पैठ बना सकता है। तब किसानों को भी उनकी उपज की अच्छी कीमत मिलेगी।