एस.के. सिंह, नई दिल्ली। शुक्रवार, 8 सितंबर 2023 को संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसी) ने ‘ग्लोबल स्टॉकटेक सिंथेसिस रिपोर्ट’ जारी की। इसमें कहा गया है कि कार्बन उत्सर्जन अब भी बढ़ रहा है, विकासशील देशों को आर्थिक मदद मुहैया कराने की अपनी प्रतिबद्धता से विकसित देश काफी पीछे हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए मदद भी लक्ष्य से काफी दूर है। विभिन्न देश रिन्यूएबल एनर्जी और इलेक्ट्रिक वाहनों की दिशा में हाल के वर्षों में तेजी से आगे बढ़े हैं, अनेक देशों ने नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को पाने के प्रावधान भी किए हैं लेकिन इस दिशा में हुई प्रगति बहुत कम है। ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक सीमित रखने की दिशा में जो कदम उठाए जाने थे, तमाम देश उससे काफी पीछे चल रहे हैं। छोटे द्वीप वाले विकासशील देशों को बड़े देशों की तुलना में इसकी अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी।

यूएन की यह रिपोर्ट जी-20 के शोर में कहीं दब गई, लेकिन यह जलवायु परिवर्तन से निपटने में अब तक के प्रयासों की हकीकत को उजागर करती है। पिछले साल यूएनएफसीसी की बैठक (कॉप 27) में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस चेतावनी देते हुए कहा था, “मानवता नारकीय जलवायु के हाईवे पर है, और हमारा एक पैर एक्सीलेटर पर है।”

अच्छी बात यह है कि नई दिल्ली में हुई जी-20 की 18वीं बैठक में विभिन्न देशों ने ठोस प्रतिबद्धताएं दिखाईं और जलवायु संकट से निपटने में अपने प्रयासों को तत्काल गति देने की बात कही। जी-20 घोषणापत्र में पहली बार रिन्यूएबल एनर्जी आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए फाइनेंस की जरूरत पर फोकस किया गया है। घोषणापत्र में नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन (एनडीसी) पर दस्तखत नहीं करने वाले देशों से आग्रह किया गया है कि वे 2023 के अंत तक अपने एनडीसी के मजबूत लक्ष्य निर्धारित करें। इसमें कहा गया है कि विकासशील देशों को अपने एनडीसी लागू करने के लिए 2030 से पहले 5.8 से 5.9 लाख करोड़ डॉलर की जरूरत पड़ेगी। इसके अलावा 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 2030 तक हर साल क्लीन टेक्नोलॉजी पर चार लाख करोड़ डॉलर खर्च करने पड़ेंगे।

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विकासशील देशों को फाइनेंस की जरूरत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में कहा था कि भारत 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर लेगा, लेकिन इसके साथ उन्होंने लाखों करोड़ डॉलर की जरूरत भी बताई थी। दरअसल, विकसित और विकासशील देशों के बीच ग्लोबल वार्मिंग नियंत्रित करने के लिए लंबे समय से विवाद रहा है। विकसित देशों की तरफ से विकासशील देशों को इसके लिए आर्थिक मदद दी जानी है। 2010 में सहमति बनी थी कि वर्ष 2020 तक हर साल विकसित देश 100 अरब डॉलर देंगे। लेकिन विकसित देशों ने अभी तक इतनी राशि नहीं दी है। घोषणापत्र में कहा गया है कि ये देश संभवतः पहली बार 2023 में इस लक्ष्य को प्राप्त करेंगे।

जी-20 देशों में अब भी कोयला ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। घोषणापत्र में इसे कम करने की कोई रूपरेखा नहीं बताई गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि रिन्यूएबल एनर्जी की क्षमता तीन गुना करने और हर साल 4 लाख करोड़ डॉलर का सस्ता कर्ज उपलब्ध कराने को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई गई है। इस दिशा में प्रगति अच्छी है लेकिन अगर इसकी समय सीमा होती तो बेहतर होता। नेट-जीरो उत्सर्जन के लिए काफी अधिक निवेश की जरूरत है। अगर निवेश राशि नहीं बढ़ाई गई तो विकासशील देशों के लिए जलवायु से संबंधित लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल होगा।

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के प्रेसिडेंट और सीईओ अणि दासगुप्ता ने कहा, “दुनिया जल रही है, लोग भूखों मर रहे हैं, फिर भी तमाम देश जलवायु से संबंधित लक्ष्य को प्राप्त करने की राह से दूर हैं। जी-20 देश दुनिया के सबसे संपन्न देश होने के साथ-साथ सबसे अधिक उत्सर्जन करने वाले देश भी हैं। पिछले दिनों हमने गर्मियों का रिकॉर्ड देखा। विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के कार्यों और उन्हें जो करना चाहिए, दोनों के बीच काफी अंतर है।”

विभिन्न देशों ने वर्ष 2030 तक सतत विकास के लक्ष्य (एसडीजी) को पूरी तरह लागू करने, कार्बन उत्सर्जन घटाने, जलवायु-रोधी विकास, सस्टेनेबल खाद्य प्रणाली, बिगड़े इकोसिस्टम को दोबारा ठीक करने, वनों और समुद्र के संरक्षण पर प्रतिबद्धता जताई है। उत्सर्जन कम करने के लिए उन्होंने सतत उत्पादन और खपत की दिशा में बढ़ने की बात कही है, खासकर भारत के नेतृत्व में लाइफस्टाइल फॉर द इन्वायरमेंट (LiFE) के जरिए। जी-20 देशों ने ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में तेजी लाने पर जोर दिया। यह विभिन्न महत्वपूर्ण सेक्टर को डिकार्बोनाइज करने के लिए महत्वपूर्ण है। दासगुप्ता कहते हैं, “तमाम देशों को यह सुनिश्चित करना है कि हाइड्रोजन का उत्पादन जीवाश्म ईंधन से न हो। जलवायु संकट से निपटने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना और उन्हें फैसले लेने का अधिकार देना भी स्वागतयोग्य कदम हैं।”

द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (TERI) की डायरेक्टर जनरल डॉ. विभा धवन ने कहा, "यह देखना उत्साहजनक है कि घोषणापत्र में क्लाइमेट और सस्टेनेबल फाइनेंस के लिए जरूरत की राशि बिलयन डॉलर से बढ़ाकर ट्रिलियन डॉलर हो गई है। हरित विकास समझौते से पर्यावरण, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन पर कार्यों में तेजी आएगी।"

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इंग्लैंड का दो अरब डॉलर का योगदान

इंग्लैंड ने रविवार को ग्रीन क्लाइमेट फंड के लिए दो अरब डॉलर के योगदान की घोषणा की। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने पिछले साल कॉप 27 में भी घोषणा की थी कि उनका देश क्लाइमेट एडॉप्शन के लिए फंडिंग तीन गुना करेगा। जी-20 में सुनक ने कहा कि उनका देश क्लाइमेट कमिटमेंट पर अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा कर रहा है। इसके लिए वह अपनी अर्थव्यवस्था को डि-कार्बोनाइज करने के साथ जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देशों की मदद भी कर रहा है।

जलवायु संकट पर दिसंबर में दुबई में अगली बैठक (कॉप 28) होनी है। ऋषि सुनक ने विभिन्न देशों के नेताओं से कहा कि वे इस सम्मेलन से पहले अपने यहां कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में कार्य करें। उन्होंने दावा किया कि इंग्लैंड ने अन्य जी-7 देशों की तुलना में अधिक तेजी से उत्सर्जन घटाया है। उन्होंने कहा कि 2011 से अब तक जलवायु को लेकर इंग्लैंड ने जो आर्थिक मदद की है उससे 9.5 करोड़ लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद मिली है। इसके अलावा 6.5 करोड़ टन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम हुआ है।

43% कम होगा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन

जी-20 देश दुनिया में कुल उत्सर्जन के 80% के लिए जिम्मेदार हैं। पेरिस समझौते में तय हुआ था कि प्री-इंडस्ट्रियल समय की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखा जाएगा। कोशिश होगी कि इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोका जाए। घोषणापत्र में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री पर रोकने के लिए तत्काल और प्रयासों की जरूरत है। इसके लिए आवश्यक है कि 2019 की तुलना में 2030 में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 43% कम किया जाए।

दासगुप्ता के अनुसार, “जलवायु संकट का सामना कर रहे देशों को फाइनेंस की कमी के साथ कर्ज संकट से भी जूझना पड़ रहा है। जी-20 को इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। विभिन्न देशों को तेजी से जीवाश्म ईंधन को छोड़कर रिन्यूएबल एनर्जी को अपनाना चाहिए।”

2050 तक नेट जीरो एमिशन लक्ष्य के लिए सस्टेनेबल बायोफ्यूल महत्वपूर्ण है। इसे देखते हुए ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस (जीबीए) लॉन्च किया गया। भारत, ब्राजील, इटली, कनाडा, अर्जेंटीना और दक्षिण अफ्रीका इसके संस्थापक सदस्य हैं। जीबीए लॉन्च किए जाने के वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन भी मौजूद थे। यह एलायंस सस्ते सस्टेनेबल बायोफ्यूल के लिए विभिन्न देशों को साथ लाएगा।

भावी पीढ़ियों की समृद्धि के लिए अभी कदम जरूरी

जी-20 में हुए हुए ‘ग्रीन डेवलपमेंट पैक्ट फॉर ए सस्टेनेबल फ्यूचर’ (सतत भविष्य के लिए हरित विकास समझौता) में इस बात को स्वीकार किया गया कि मौजूदा और भावी पीढ़ियां तभी समृद्ध हो सकती हैं, जब मौजूदा विकास और अन्य नीतियों में पर्यावरण की दृष्टि से सस्टेनेबल तरीका और समावेशी आर्थिक विकास को अपनाया जाए। समझौते में यह भी कहा गया है कि दुनिया के सभी देश पेरिस एग्रीमेंट के तहत उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य पर आगे नहीं बढ़े हैं, इसलिए आवश्यक है कि सभी देश इस मुद्दे पर आगे आएं।

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काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के सीईओ डॉ. अरुणाभ घोष इस समझौते के पांच महत्वपूर्ण घटक मानते हैं। उनके मुताबिक, महत्वपूर्ण घटक संसाधनों के कुशल और सतत उपभोग के महत्व पर ध्यान केंद्रित करना है। दूसरा प्रमुख घटक स्वच्छ, सतत, न्यायसंगत, किफायती और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करना है। इस दिशा में ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस की घोषणा, ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम का विकास और हरित हाइड्रोजन इनोवेशन केंद्र का निर्माण तथा पूरी दुनिया में 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना अत्यंत महत्वपूर्ण कदम बन जाता है। तीसरा महत्वपूर्ण घटक जलवायु और सस्टेनेबल फाइनेंस है। चौथा घटक महासागर आधारित ब्लू इकोनॉमी के सिद्धांत हैं। यह जलवायु प्रणाली को संचालित करने में महासागरों की भूमिका को स्वीकार करता है। पांचवां और अंतिम महत्वपूर्ण घटक आपदा का सामना करने में सक्षम बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है।

घोष कहते हैं, इस साल हमने उत्तरी अमेरिका से लेकर यूरोप और एशिया तक जलवायु से जुड़ी आपदाओं को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में झकझोरते हुए देखा है। यह साल सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने की 2030 तक की कार्ययोजना का मध्य बिंदु है। ऐसे में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोविड महामारी से उबरते हुए विकास का हमारा जो भी रास्ता हो, उसमें हरित और साझेदारीपूर्ण रास्ते शामिल हों। यही कारण है कि यह हरित विकास समझौता अत्यंत महत्वपूर्ण है।

दासगुप्ता मानते हैं कि दिसंबर में होने वाला कॉर्प 28 सम्मेलन इन देशों को आगे बढ़ने का मौका देता है। संयुक्त राष्ट्र की ग्लोबल स्टॉकटेक रिपोर्ट विभिन्न देशों को आगे बढ़ने का ब्लूप्रिंट मुहैया कराती है। उन्हें रिन्यूएबल एनर्जी का उत्पादन तीन गुना करने के साथ जीवाश्म ईंधन मुक्त परिवहन और खाद्य प्रणाली को बदलने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक सामना कर रहे देशों को फाइनेंस उपलब्ध कराने की भी जरूरत है। इन देशों की तरफ से की जाने वाली कार्रवाई हमारा भविष्य तय करेगी। जी-20 की अगली अध्यक्षता ब्राजील के पास है। ऐसे में इन देशों को बदलाव की गति बढ़ाने, क्लाइमेट एक्शन, समानता और खाद्य सुरक्षा पर बड़े कदम उठाने की जरूरत है।