एस.के. सिंह/स्कंद विवेक धर, नई दिल्ली। देश में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए हाल के वर्षों में कई कदम उठाए गए हैं। लेकिन इंडस्ट्री के अनुसार ग्लोबल सप्लाई चेन में तेजी से हो रहे बदलाव का फायदा उठाने के लिए कुछ और बाधाएं दूर करने की जरूरत है। मसलन, भारत में बिकने वाले 99.2% मोबाइल फोन यहीं बनते हैं। देश में होने वाला उत्पादन घरेलू मांग से अधिक है। ज्यादा महंगी कैटेगरी को छोड़ दें तो घरेलू मांग की दर अब कम हो रही है। भविष्य में ग्रोथ के लिए निर्यात मुख्य आधार होगा। लेकिन फोन के पार्ट्स पर टैरिफ का ढांचा ऐसा है कि इस वित्त वर्ष के बाद निर्यात की गति भी धीमी होने की आशंका है।

इसी तरह, मेडिकल डिवाइस के मामले में भारत 80% आयात पर निर्भर है और आयात 60,000 करोड़ के ऊपर पहुंच गया है। इंडस्ट्री के मुताबिक आयात कम करने के लिए जरूरी है कि जिन डिवाइस में घरेलू मैन्युफैक्चरिंग क्षमता है, उन पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 0-7.5% से बढ़ाकर 10-15% की जाए। एक्टिव फार्मा इनग्रेडिएंट (एपीआई) की कीमतों में तेज बढ़ोतरी से दवा बनाने लागत बढ़ी है। घरेलू एपीआई निर्माताओं को इन्सेंटिव देकर तथा एपीआई पर जीएसटी और आयात शुल्क कम करके इंडस्ट्री की सस्टेनेबिलिटी बढ़ाई जा सकती है। सर्विसेज की बात करें तो पर्यटन क्षेत्र की मांग नए एयरपोर्ट बनाने के साथ रेल, सड़क और जलमार्गों का भी तेजी से विकास करने की है। इसने टैक्स ढांचे में भी बदलाव के सुझाव दिए हैं। इंडस्ट्री की एक और प्रमुख मांग जीएसटी के स्लैब घटाकर तीन करने और पेट्रोलियम, बिजली और रियल एस्टेट को जीएसटी में शामिल करने की है।

कर ढांचे को सरल बनाना जरूरीः सीआईआई

उद्योग चैंबर सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी के अनुसार, “राजस्व वृद्धि के लिए कर ढांचे को सरल और तर्कसंगत बनाना जरूरी है। जीएसटी सुधारों का अगला चरण लागू करने की जरूरत है, जिसमें जीएसटी के स्लैब घटाकर तीन करना और पेट्रोलियम, बिजली और रियल एस्टेट को जीएसटी में शामिल करना शामिल हैं।”

उन्होंने कहा कि ग्लोबल सप्लाई चेन में बड़ा बदलाव आ रहा है। भारत को इसका फायदा उठाने के लिए अपने मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए राज्यों को नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम (एनएसडब्ल्यूएस) के माध्यम से सभी रेगुलेटरी अनुमति प्रदान करने, व्यापार संबंधी कानूनों को गैर-आपराधिक करने और पर्यावरण, वन, जैव विविधता, वायु से संबंधित सभी अनुपालनों को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि सीआईआई ने एक समर्पित निवेश मंत्रालय स्थापित करने का सुझाव दिया है, जो भारत में निवेश के अवसरों के साथ भारतीय निवेशकों के लिए विदेश में निवेश के अवसरों को सुविधाजनक बनाने की दिशा में सिंगल विंडो का काम करे। इसके अलावा धारा 115बीएबी के तहत पात्र विनिर्माण इकाइयों के लिए 15% कर की रियायती दर की समाप्ति तिथि को 31 मार्च 2025 तक बढ़ाया जाना चाहिए।

व्यापार के मोर्चे पर सीआईआई ने कच्चे माल और मध्यवर्ती वस्तुओं पर आयात शुल्क को तर्कसंगत बनाने और विदेशी कार्यालयों के साथ एक समर्पित व्यापार संवर्धन निकाय की स्थापना का सुझाव दिया है। प्रस्तावित निकाय को निर्यातकों, विशेषकर एमएसएमई के बीच ब्रांडिंग और प्रचार, व्यापार सुविधा, क्षमता निर्माण और जागरूकता पैदा करने पर काम करना चाहिए।

मोबाइल फोन इनपुट पर सबसे ज्यादा टैरिफ भारत मेंः ICEA

इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) ने स्मार्टफोन बनाने में इस्तेमाल होने वाले कंपोनेंट और सब-अलेंबली की दूसरे देशों के टैरिफ की तुलना की है। इसका कहना है कि इनपुट पर टैरिफ सबसे ज्यादा भारत में है। इससे लागत बढ़ती है जिससे ग्लोबल वैल्यू चेन कंपनियां भारत में बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू करने से कतराती हैं। बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू करने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता होना जरूरी है।

भारत में बिकने वाले 99.2% मोबाइल फोन यहीं बनते हैं। देश में होने वाला उत्पादन घरेलू मांग से अधिक है। ज्यादा महंगी कैटेगरी को छोड़ दें तो घरेलू मांग में कमी आ रही है। भविष्य में ग्रोथ और जॉब के लिए निर्यात मुख्य आधार होगा। भारत से 2022-23 में 11.1 अरब डॉलर के स्मार्टफोन का निर्यात हुआ, जो इससे पिछले साल का दोगुना है। इस साल 15 अरब डॉलर के निर्यात की उम्मीद है। इस साल लगभग 50 अरब डॉलर के उत्पादन का 30% निर्यात होने के आसार हैं।

आगे निर्यात बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धी क्षमता होना जरूरी है। इसके लिए ग्लोबल वैल्यू चेन कंपनियों को भारत में उत्पादन करना पड़ेगा और भारतीय कंपनियों को भी इस वैल्यू चेन में शामिल करना होगा। अगर भारत का टैरिफ तथा अन्य कारक चीन और वियतनाम के बराबर नहीं हुए तो इस वित्त वर्ष के बाद निर्यात की गति भी कम होने लगेगी।

आईसीईए चेयरमैन पंकज मोहिंद्रू के अनुसार, “ज्यादा निर्यात का लक्ष्य हासिल करने के लिए सिर्फ महत्वाकांक्षा पर्याप्त नहीं, दुनिया की बड़ी प्रोडक्शन लाइन को भारत लाना और भारतीय कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन से जोड़ना जरूरी है।”

भारत में मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा प्राप्त देशों से आयात पर औसत शुल्क 8.5%, जबकि चीन का 3.7% है। वास्तव में चीन का टैरिफ शून्य के आसपास है, क्योंकि ज्यादातर मोबाइल उत्पादन ‘बॉन्डेड जोन’ में होता है जहां सभी इनपुट शून्य टैरिफ पर आयात किए जाते हैं। वियतनाम भी 80% इनपुट आयात मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) वाले देशों से करता है। एफटीए वाले देशों से भारत का औसत आयात शुल्क 6.8% है जबकि वियतनाम औसतन 0.7% शुल्क पर इनपुट आयात करता है। यही नहीं, चीन लगभग 60% और वियतनाम 97% कंपोनेट का आयात 0-5% पर करता है।

ज्यादा टैरिफ के कारण भारत की प्रतिस्पर्धी क्षमता चीन और वियतनाम की तुलना में 6-7% कम हो जाती है। मोहिंद्रू के अनुसार, इस अवसर को भुनाने के लिए भारत को टैरिफ में अंतर का समाधान करना चाहिए। एसोसिएशन ने महंगे कंपोनेंट पर टैरिफ खत्म करने और जटिल टैरिफ ढांचे को आसान करते हुए वर्ष 2025 तक सिर्फ तीन स्लैब- 0%, 5% और 10% करने का सुझाव दिया है।

मेडिकल डिवाइस आयात पर निर्भरता खत्म करना जरूरी

एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री (AiMeD) का कहना है कि मेडिकल डिवाइस के मामले में भारत 80% आयात पर निर्भर है और आयात 60,000 करोड़ रुपये के ऊपर पहुंच गया है। इस साल इसमें 20% बढ़ोतरी के आसार हैं। नवंबर 2021 से अक्टूबर 2022 तक 50,641 करोड़ रुपये के मेडिकल डिवाइस का आयात हुआ था। यह नवंबर-अक्टूबर 2022-23 में 21% बढ़कर 61,263 करोड़ हो गया। आयात कम करने के लिए जरूरी है कि जिन डिवाइस में घरेलू मैन्युफैक्चरिंग क्षमता है, उनपर बेसिक कस्टम ड्यूटी 0-7.5% से बढ़ाकर 10-15% की जाए।

एसोसिएशन के संयोजक और हिंदुस्तान सिरिंजेज एंड मेडिकल डिवाइसेज लि. के एमडी राजीव नाथ के अनुसार, “जब तक मेडिकल डिवाइस आयात पर 0-7.5% ड्यूटी रहेगी तब तक हम आयात पर आश्रित रहेंगे। ऐसा नहीं कि हममें क्षमता नहीं। अनेक प्रोडक्ट में हम विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी हैं लेकिन अपने ही देश में नहीं।”

इंडस्ट्री का तर्क है कि घरेलू ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को 100% से ज्यादा और ऑटो कंपोनेंट इंडस्ट्री को 40% इंपोर्ट ड्यूटी की सुरक्षा मिली हुई है। मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री सिर्फ 15% इंपोर्ट ड्यूटी की मांग कर रही है क्योंकि भारत में इन्हें बनाने में 15% डिसेबिलिटी फैक्टर है।

अगस्त 2023 में जारी ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री 2030 तक 50 अरब डॉलर की हो सकती है, जो अभी 12 अरब डॉलर की है। तब आयात पर निर्भरता घटकर 35% रह जाएगी और भारत 18 अरब डॉलर की डिवाइस का निर्यात भी कर रहा होगा। इससे 15 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। जीटीआरआई ने इसके लिए बेसिक कस्टम ड्यूटी 7.5% से बढ़ाकर 15-20% करने, शून्य आयात शुल्क वाली वस्तुओं के आईजीएसटी पर इनपुट टैक्स क्रेडिट खत्म करने, सेकंड हैंड डिवाइस के आयात पर रोक लगाने, ज्यादा आयात वाली डिवाइस के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पीएलआई शुरू करने और स्थानीय उत्पादों की खरीद को बढ़ावा देने का सुझाव दिया है।

हेल्थकेयर में एंटीबायोटिक रिसर्च को प्राथमिकता देने की जरूरत

ग्लोबल क्रिटिकल केयर तथा वीनस रेमेडीज लिमिटेड के प्रेसिडेंट और वीनस मेडिसिन रिसर्च सेंटर के सीईओ सारांश चौधरी को उम्मीद है, भारत ने दुनिया की फार्मेसी बनने का जो लक्ष्य तय किया है, बजट उसकी दिशा तय करेगा। सरकार को रिसर्च और डेवलपमेंट के साथ मैन्युफैक्चरिंग को इन्सेंटिव जारी रखना चाहिए ताकि इंडस्ट्री में ग्रोथ के साथ इनोवेशन भी होता रहे। पिछले बजट में प्रमोशन ऑफ रिसर्च एंड इनोवेशन इन फार्मा मेड-टेक सेक्टर (PRIP) स्कीम इसी उद्देश्य से लाई गई थी।

सारांश चौधरी कहते हैं, “इस स्कीम में फार्मा सेक्टर में रिसर्च के लिए 4250 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इसमें प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में एंटी माइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस (एएमआर) भी शामिल है। एएमआर की बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए एंटीबायोटिक रिसर्च को प्राथमिकता देना जरूरी है। हमारा सुझाव है कि इसे इन्सेंटिव देने के नए मॉडल विकसित किए जाने चाहिए।”

एक्टिव फार्मा इनग्रेडिएंट (एपीआई) की कीमतों में तेज बढ़ोतरी से लागत बढ़ी है। घरेलू एपीआई निर्माताओं को इन्सेंटिव देने तथा एपीआई पर जीएसटी और आयात शुल्क काम करने से इंडस्ट्री की सस्टेनेबिलिटी बढ़ेगी। रिसर्च लिंक्ड इन्सेंटिव स्कीम जारी रखना और आरएंडडी के लिए खरीदे गए सामान पर टैक्स से छूट देना इस सेक्टर में अनुसंधान एवं विकास का इकोसिस्टम बनाने के लिए जरूरी है। सरकार को फार्मा सप्लाई चेन में डिजिटल इंटीग्रेशन करना चाहिए ताकि रियल टाइम में बिना किसी बाधा के डिलीवरी सुनिश्चित हो सके।

इलेक्ट्रिक वाहनः इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग तेजी से बढ़ रही है। दोपहिया ईवी की बिक्री 2024 में दस लाख का आंकड़ा पार करने की उम्मीद है। एपॉनिक्स इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के सह-संस्थापक और निदेशक मनीष चुघ का कहना है कि बढ़ती मांग को देखते हुए लिथियम-आयन बैटरी पैक और सेल पर जीएसटी को मौजूदा 18% से घटाकर 5% किया जाना चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि मार्च 2024 में खत्म होने वाली FAME II सब्सिडी योजना को सरकार आगे बढ़ाएगी।

टूरिज्म के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास आवश्यक

ट्रैवल और टूरिज्म सेक्टर इकोनॉमी में बड़ा योगदान करता है। 2022 में जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 5.8% थी। सरकार का लक्ष्य 2047 तक इसे एक लाख करोड़ डॉलर करने का है। यह सेक्टर रोजगार पैदा करने के साथ विदेशी मुद्रा आय का भी बड़ा साधन है।

थॉमस कुक इंडिया लिमिटेड के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन माधवन मेनन कहते हैं, बजट में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर फोकस जारी रखते हुए निजी क्षेत्र के सहयोग से नए एयरपोर्ट बनाने को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके साथ रेल, सड़क और जलमार्गों (समुद्र एवं नदी क्रूज) का भी तेजी से विकास होना चाहिए। धार्मिक सर्किट और लक्षद्वीप जैसे कम परिचत लेकिन बेहतरीन जगहों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर बहुत जरूरी है। इनबाउंड टूरिज्म में चुनिंदा जगहों के लिए इन्सेंटिव स्कीम को फिर से शुरू किया जा सकता है।

मेनन ने टैक्स ढांचे में भी बदलाव के सुझाव दिए हैं। उनका कहना है कि इनकम टैक्स की दरों में कमी लाई जानी चाहिए, इससे लोगों के हाथ में डिस्पोजेबल इनकम बढ़ेगी और वे ट्रैवल-टूरिज्म पर ज्यादा खर्च कर सकेंगे। एलटीए की सुविधा हर साल दी जानी चाहिए, जो अभी चार साल में दो बार है। विदेशी ट्रैवल पैकेज पर 5% टीसीएस की स्टैंडर्ड दर हो। अभी 5% और 20% का स्लैब है।

एसओटीसी ट्रैवल के एमडी विशाल सूरी के अनुसार, “यह बजट अंतरिम होने के बावजूद ट्रैवल और टूरिज्म सेक्टर के ग्रोथ की गति बढ़ाने का अच्छा अवसर देता है। उनका सुझाव है, आउटबाउंड टूरिज्म पर 5% टीसीएस का एक स्लैब हो, इससे विदेशी टूर ऑपरेटर्स को मिलने वाला एडवांटेज खत्म हो जाएगा।”

सूरी के अनुसार, उम्मीद है कि सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर फोकस जारी रखेगी। उड़ान योजना और वंदे भारत से कम खर्चे में विभिन्न इलाकों तक पहुंच आसान हुई है। दूर के इलाकों तक कनेक्टिविटी होने से पर्यटन के नए सर्किट बनते हैं, लोगों को रोजगार मिलता है और पूरा इकोसिस्टम डेवलप होता है। उनका यह सुझाव भी है कि सस्टेनेबल ट्रैवल-टूरिज्म को प्रमोट करने के लिए इन्सेंटिव दिए जाने चाहिए ताकि हम अपनी धरती को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकें।