नई दिल्ली, जागरण प्राइम। क्लाइमेट चेंज की समस्या से निपटने के अलावा किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई तरह के उपाय बीते कुछ सालों में किए गए हैं। हर राज्य अपने स्तर पर किसानों की उत्पादकता को बढ़ाने, उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने के प्रयास कर रहा है। जागरण न्यू मीडिया की एग्री पंचायत में हमने उत्तराखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी और छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रामविचार नेताम से इस बारे में विस्तार से बात की।

गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में सामने आया था कि उत्तराखंड में अनियमित वर्षा ने खेती को प्रभावित किया है। पिछले 40 वर्षों के दौरान उत्तराखंड के मौसम में व्यापक बदलाव आए हैं। लगभग 70 फीसदी आबादी वर्षा-आधारित कृषि पर निर्भर है। बीते दो दशकों में क्लाइमेट चेंज के चलते एग्रीकल्चर प्रोडक्टिविटी में काफी गिरावट आई है। इस वजह से लोगों पर राज्य से बाहर पलायन करने का दबाव बढ़ा है। इस स्थिति से निपटने के लिए बीते कुछ सालों में सरकार ने क्या कदम उठाए?

गणेश जोशी : वास्तव में जायज बात आपने कही है। सूखा, ओलावृष्टि से हमारे किसानों को नुकसान हुआ है। बीते तीन साल के आंकड़े उठाकर देखें तो हमने पलायन रोकने का प्रयास किया है। किसानों को हम प्रेरित कर रहे हैं कि आप बीमा कराएं ताकि आपको नुकसान का मुआवजा मिल सके। अभी हमें दो-तीन ब्लॉक में किसानों की शिकायतें मिली थीं कि बीमा कंपनी हमें पैसा नहीं दे रही है, हमारा प्रीमियम वापस कर रही है। हमने संबद्ध बीमा कंपनियों के अधिकारियों को बुलाया था। उनके खसरा-खतौली में अंतर आ रहा था। हमने कंपनियों से कहा कि आप एफिडेविट लेकर क्लेम दें। जानवरों से रक्षा के लिए हम फेंसिंग करवा रहे हैं। आंकड़े देखें तो बीते तीन सालों में किसान पलायन रुका है।

तेजी से बदलती जलवायु ने उत्तराखंड में फलों के उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया है। यहां सेब, नाशपाती, आड़ू, आलूबुखारा और खुबानी फलों की पैदावार बीते कुछ वर्षों में कम हो गई है।

गणेश जोशी : अभी जो नुकसान हुआ है वह सबसे अधिक ऊधमसिंह नगर में हुआ है। मैंने और मुख्यमंत्री ने वहां का दौरा किया। हमें जानकारी हुई कि पचास साल के बाद इतनी अधिक वर्षा हुई है। हम ग्राउंड सर्वे करा रहे हैं। हमारी सेबों की उत्तरकाशी की बेल्ट है। वहां से बड़े नुकसान की बात सामने आई है।

धान में पानी को लेकर क्लाइमेट चेंज से जुड़े वैज्ञानिक चिंतित हैं। धान में पानी की आवश्यकता अधिक होती है। दिन-ब-दिन पानी की अनियमितता ने कृषि के बुनियादी तंत्र पर असर डाला है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी फसलों का विकास किया जाए जो क्लाइमेट के अनुरूप हो। सरकार ने इसे दृष्टिगत रखते हुए पारंपरिक खेती के अलावा खेती के किन नए विकल्पों को अपनाया है। इसके अलावा प्राकृतिक खेती पर काफी जोर दिया जा रहा है। मौजूदा बजट में भी सरकार ने इस पर जोर दिया था। उसे लेकर किस तरह के उपाय सरकार ने किए हैं?

आपका प्रश्न वर्तमान समय में जरूरी है। सबकी चिंता यही है कि धान पर निर्भरता कैसे कम की जाए। मौजूदा समय में अर्ली वैरायटी वाली कई किस्में आ गई हैं और कम पानी में भी बेहतर उत्पादन देने वाली वैरायटी उपलब्ध है। मौजूदा समय में मिलेट्स को बढ़ावा देने पर जोर है। सरकारें भी विशेष मदद देकर मिलेट्स के उत्पादन को बढ़ा रही हैं। हम फल और सब्जियों पर भी लोगों को ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। हर साल हमारे यहां इनका रकबा बढ़ रहा है। हम नई-नई तकनीक का सहारा ले रहे हैं। हम सिर्फ धान पर आश्रित नहीं हैं। यह छत्तीसगढ़ का सौभाग्य है कि यहां बारिश पर्याप्त मात्रा में होती है जिसका हम बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं।

2016 में किसानों की आय पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिये केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय में तत्कालीन अतिरिक्त सचिव अशोक दलवई के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया था। इसकी रिपोर्ट में किसानों की आय दोगुनी करने को लेकर कई विचारणीय बातें कही गई थीं। कुछ दिनों पहले पटना में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि किसानों की आय दोगुना करने का अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू किया है। कृषि का विविधीकरण सरकार के रोडमैप में है। उन्होंने कहा था कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए 6 सूत्र हैं, जिसे लागू करने को लेकर हम कटिबद्ध हैं। आप दोनों से मेरा यह प्रश्न है कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए राज्य स्तर पर किस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं ?

गणेश जोशी : उत्तराखंड में दो प्रकार की खेती होती है। एक तराई की खेती, जिसमें हरिद्वार, नैनीताल, देहरादून आदि है। इसमें गेहूं, धान आदि की खेती होती है। एक हमारा पहाड़ी क्षेत्र जिसमें सेब, नाशपाती, आलूबुखारा, माल्टा होता है। यहां हम कीवी की भी खेती कर रहे हैं। किसान को मंडी तक लाने में दिक्कत होती है। आज हम उद्यान बाग के माध्यम से लगातार प्रयास कर रहे हैं। जगह-जगह हम छोटी ट्रॉली लगा रहे हैं ताकि उनको फसल का सही दाम मिले। मैं टिहरी के सैंस गांव गया था। वहां टमाटर बहुत होता था। मैंने वहां की लागत को सुदृढ़ किया। आज हाई डेंसिटी का एप्पल हम लगा रहे हैं। एक समय यह था कि यह पांच से छह साल में फल देता था अब एक साल में फल दे रहा है। मैं भी जब अपने गांव गया तो मेरा कजन वहां पर उसने खेती शुरू की और जब मैं एक साल बाद गया देखा तो वहां सेब लगे हुए थे। किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में यह कदम है। हमारा सबसे बड़ा फोकस ऑर्गेनिक खेती पर है। जब किसी चीज के साथ ऑर्गेनिक लग जाता है तो उसके दाम बढ़ जाते हैं। उदाहरण के लिए हमारे यहां राजमा और कुलद की दाल बहुत फेमस है। जो राजमा सौ और एक सौ बीस रुपए किलो बिकती है, वहीं ऑर्गेनिक होने पर तीन सौ रुपये किलोग्राम बिकती है। निश्चित इसके माध्यम से जो प्रधानमंत्री जी का सपना है किसानों की आय दुगनी करने का हम उस और कदम बढ़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री सबसे अधिक चिंता किसानों की करते हैं।

रामविचार नेताम :किसानों के सामने जो चुनौतियां हैं उन चुनौतियों से कैसे निपट सकें और उन चुनौतियों का सामना कर उत्पादन कैसे बढ़ाएं। अच्छे किस्म के उन्हें बीज उपलब्ध करा रहे हैं, अच्छे मार्केट की व्यवस्था करवा रहे हैं। तकनीक सहायता दे रहे हैं। जो लाभकारी उपाय हो सकता है. ऐसा खेती करने के लिए भी तमाम हमारे डिपार्टमेंट लगे हुए हैं, यूनिवर्सिटी लगी हुई है, रिसर्च सेंटर लगे हुए हैं। जितने हमारा केवीके हैं वह नॉलेज शेयर के माध्यम से उन्हें सुदृढ़ कर रहे हैं। तकनीकी तौर पर किसान आज पहले वाले किसान नहीं रहे। टेक्निकली वह बहुत साउंड है। उन्हें मालूम है कि हम कौन सा उत्पादन करें जिससे अधिक से अधिक लाभ हो, इसलिए आज जो खेती हो रही हैं वो लाभकारी हैं।

मेडिसिनल प्लांट के आधार पर उनका कैसे अधिक से अधिक उत्पादन किया जा सकें। फूलों के साथ साथ और भी जो उत्पाद है। उन उत्पादों की दुनिया में डिमांड है। किसानों को इन पहल का लाभ मिलना शुरू हुआ है।

सबसे बड़ी समस्या भंडारण की रहती है। टमाटर के सड़ने की संभावना अधिक रहती है। लहसुन के मामले कई बार सामने आए। सुबह एक पैनल के दौरान एक किसान भाई ने कहा था कि हम उस फसल को उगाते हैं जो अधिक फायदा देती है। ऐसे में डायवर्सिफिकेशन नहीं हो पाता। किसान बाजार में डिमांड और सप्लाई के फेर में भी इस चक्कर में फंस जाता है। किसान को जागरूक करने के लिए क्या करते हैं।

गणेश जोशी : सबसे पहले तो उसको उपज का सही दाम मिले। आज जगह-जगह कोल्ड स्टोरेज हमारी सरकार बना रही है। किसानों को जागरूक करने के लिए हमारे उद्यान विभाग के माध्यम से पंचायत स्तर पर क्यारी सरकार लगा रही है। हम पचास हजार से अधिक पॉलीहाऊस लगाने जा रहे हैं । पहले फेज में हम अठारह हज़ार पॉलीहाऊस लगा रहे हैं। मैं एक बार निजी फ्लाइट से दिल्ली आ रहा था। मैंने देखा कि हमारा चंबा का किसान मटर लेकर बेंगलुरु जा रहा था, तो मैंने उस पूछा कि मटर लेकर कहां जा रहे हो उसने बताया बेंगलुरू जा रहा हूं। चंबा में जो मटर पैंतीस रुपये किलो बिकता है वह बेंगलुरू में दो सौ रुपये बिकता है। मैंने इस बाबत पत्र लिखा था कि अगर कोई किसान उपज को किसी दूसरे में लेकर जाता है तो उस किसान को किराए में छूट मिलें। हमारे मसाले बहुत अच्छे होते हैं, दालचीनी, लाहौरी मिर्च,अदरक, हल्दी, मटर टमाटर की बहुत डिमांड है। हम मिलेट्स को प्रोत्साहित कर रहे हैं। हम उस पर सब्सिडी भी अधिक देते हैं।