प्राइम टीम, नई दिल्ली। सरकार ने लैपटॉप, टैबलेट, ऑल इन वन पर्सनल कंप्यूटर और सर्वर के आयात को प्रतिबंधित श्रेणी में डालने का जो फैसला किया है, उसका मकसद देश में इनके उत्पादन को बढ़ावा देना है। (नई अधिसूचना के अनुसार यह फैसला 1 नवंबर से लागू होगा) डेल, एसर, सैमसंग, एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स, एपल, लेनोवो और एचपी जैसी कंपनियां भारत में लैपटॉप बेचती हैं, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा चीन तथा अन्य देशों से आयात किया जाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के कुल आयात में लैपटॉप, टैबलेट और पर्सनल कंप्यूटर का हिस्सा 1.5% के आसपास है। इनमें से लगभग आधा चीन से आयात होता है। अभी प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों में डेल और एचपी के ही भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं। सरकार चाहती है कि अन्य ब्रांड भी भारत में मैन्युफैक्चरिंग शुरू करें और देश को इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाया जाए। सोमवार, 31 जुलाई 2023 को सरकार ने आईटी हार्डवेयर के लिए पीएलआई स्कीम के तहत आवेदन करने की अंतिम तारीख बढ़ाकर 30 अगस्त 2023 की थी। उसी दिन (31 जुलाई) रिलायंस ने नया ‘जियो बुक’ लांच किया, जिसकी बिक्री 5 अगस्त से शुरू होगी।

इस फैसले से भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की कांट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग करने वाली कंपनियों को बड़ा फायदा होगा। इंडस्ट्री सूत्रों का कहना है कि निकट भविष्य में आईटी हार्डवेयर मैन्युफैक्चरिंग 60% से 70% तक हो सकती है और 2 वर्षों के दौरान यह 90% तक पहुंच सकती है।

फैसले पर टिप्पणी करते हुए इंडियन सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीईए) के चेयरमैन पंकज मोहिंद्रू ने कहा, “यह नीतिगत घोषणा देश में बढ़ते डिजिटल नागरिकों को सुरक्षित डिजिटल एक्सेस मुहैया करने के मकसद से की गई है। हमें विश्वास है कि भरोसेमंद इंडस्ट्री पार्टनर्स को वैलिड लाइसेंस दिए जाएंगे, जिससे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस बेहतर होगा तथा डिजिटल उपभोक्ताओं को उनके भरोसेमंद ब्रांड के उत्पादों की निर्बाध आपूर्ति हो सकेगी।”

फैसला लागू होने की तारीख बदली

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के विदेश व्यापार महानिदेशालय की तरफ से 4 अगस्त को जारी अधिसूचना के अनुसार यह फैसला 1 नवंबर से लागू होगा। हालांकि एक दिन पहले, 3 अगस्त को जारी अधिसूचना में फैसला तत्काल लागू होने की बात कही गई थी। अभी लैपटॉप, टैबलेट, ऑल इन वन पर्सनल कंप्यूटर और सर्वर का आयात ‘मुक्त’ श्रेणी में है, जिसे ‘प्रतिबंधित’ श्रेणी में डाला गया है। यानी 1 नवंबर से इनका आयात करने के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ेगी। कुछ मामलों में रियायत भी दी गई है। बैगेज नियमों के तहत आयात में छूट है। अर्थात, अगर आप विदेश से लौटते समय एक लैपटॉप खरीद कर ला रहे हैं तो आपको लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ेगी। वेबसाइट से पोस्ट या कोरियर के जरिए लैपटॉप, टैबलेट, ऑल इन वन पर्सनल कंप्यूटर अथवा अल्ट्रा स्मॉल फॉर्म फैक्टर कंप्यूटर मंगवाने पर भी लाइसेंस से छूट रहेगी, हालांकि उस पर ड्यूटी चुकानी पड़ेगी।

सप्लाई में आ सकती है दिक्कत

भारत कच्चे तेल के बाद सबसे अधिक इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं का ही आयात करता है। अप्रैल-जून के दौरान 19.7 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात हुआ था। पिछले साल की तुलना में इसमें 6.25% की वृद्धि हुई। भारत के कुल मर्चेंडाइज आयात में इलेक्ट्रॉनिक्स आयात का हिस्सा 7% से 10% होता है। मार्केट रिसर्च फर्म काउंटरप्वाइंट का आकलन है कि भारत में बिकने वाले 30% से 35% लैपटॉप और 30% टेबलेट देश में बनते हैं। यानी बाकी का आयात करना पड़ता है। एक अन्य आकलन के अनुसार, भारत में हर तिमाही लगभग 20 लाख नोटबुक की बिक्री होती है। इनमें से तीन-चौथाई आयातित होते हैं। प्रीमियम नोटबुक की बात करें तो वह सब के सब आयात ही किए जाते हैं। 

इंडस्ट्री सूत्रों के अनुसार, मुक्त श्रेणी में होने के कारण कोई भी नया मॉडल अन्य देशों में लांच होने पर उसे तत्काल भारत आयात कर बेचा जा सकता था। आगे चल कर ऐसा नहीं हो सकेगा। कंपनियों को उसके लिए पहले मंजूरी लेनी पड़ेगी जिसमें वक्त लग सकता है। 

घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा

हालांकि इस फैसले से आने वाले समय में देश में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी। अखिल भारतीय व्यापारी महासंघ (कैट) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, "अभी तक भारतीय बाजार पर विदेशी सामान का कब्जा हो रहा था। इसका नुकसान घरेलू उपभोक्ताओं और ट्रेडर्स, दोनों को था। सरकार के इस कदम से अच्छी क्वालिटी के भारतीय प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ेगी।" इससे रिफरबिश्ड और दोयम दर्जे के प्रोडक्ट का आयात भी रुकेगा। भारत को बड़े बाजार के रूप में देखने वाली विदेशी कंपनियां यहां अपने मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने पर मजबूर होंगी।

इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ELCINA) के चेयरमैन (आईटी प्रोडक्ट्स ) तथा एचएलबीएस टेक प्रा.लि. के एमडी मितेश लोकवानी ने कहा, यह कदम भारत में लैपटॉप, सर्वर, टैबलेट, माइक्रो पीसी जैसे हार्डवेयर प्रोडक्ट की मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने के लिए है। इससे रिसर्च एवं डेवलपमेंट, टेक्नोलॉजी और डिजाइन डेवलपमेंट में फोकस बढ़ेगा। इससे भारत को आईटी हार्डवेयर सप्लाई चेन नेटवर्क में आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी।

आईटी हार्डवेयर के लिए पीएलआई

कैबिनेट ने इसी साल 17 मई को आईटी हार्डवेयर के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड स्कीम (पीएलआई) स्कीम-2 को मंजूरी दी थी। इस स्कीम में 17,000 करोड़ रुपये के इन्सेंटिव की घोषणा की गई है। यह स्कीम लैपटॉप, टैबलेट, ऑल इन वन पर्सनल कंप्यूटर, सर्वर और अल्ट्रा स्मॉल फॉर्म फैक्टर डिवाइस के लिए है। यह स्कीम 6 साल के लिए मान्य है। उम्मीद है कि इससे इन वस्तुओं के उत्पादन में 3.35 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी और कम से कम 75,000 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। इस स्कीम में कंपनियों को 5% इन्सेंटिव मिलेगा, इसके अलावा अगर वे देश में तैयार कंपोनेंट का इस्तेमाल करती हैं, तो उन्हें 4% अतिरिक्त इन्सेंटिव दिया जाएगा।

भारत ग्लोबल इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में धीरे-धीरे अपनी दखल बढ़ा रहा है। बीते 8 वर्षों के दौरान देश में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग सालाना लगभग 17% की दर से बढ़ी है। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री 2019-20 में 118 अरब डॉलर (लगभग 9 लाख करोड़ रुपये) की थी। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (आईबीईएफ) के मुताबिक 2020 में ग्लोबल इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री 2.9 लाख करोड़ डॉलर की थी। ग्लोबल इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में भारत का हिस्सा उस वर्ष 3.6% था। यह 2012 में सिर्फ 1.3% था।

हाल के समय में भारत कमोबेश सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक भरोसेमंद सप्लाई चेन पार्टनर के तौर पर उभरा है। ये कंपनियां भारत में अपने मैन्युफैक्चरिंग प्लांट स्थापित कर रही हैं। सरकार ने वर्ष 2026 तक 300 अरब डॉलर सालाना इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन का लक्ष्य रखा है।

6.4 लाख करोड़ रुपये का घरेलू उत्पादन

सरकार ने पिछले साल दिसंबर में संसद में बताया था कि देश में 2021-22 में 6,40,810 करोड़ रुपये (लगभग 80 अरब डॉलर) के इलेक्ट्रॉनिक्स सामान का उत्पादन हुआ। इसके अलावा 2021-22 में 3.56 लाख करोड़ रुपये के फिनिश्ड इलेक्ट्रॉनिक्स गुड्स तथा 1.93 लाख करोड़ रुपये के कंपोनेंट का आयात किया गया।

भारत हाल के वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक्स के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है। इसी का नतीजा है कि देश में बड़ी संख्या में स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग होने लगी है। यहां बिकने वाले 90% से ज्यादा फोन अब देश में ही बनते हैं। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है। वित्त वर्ष 2022-23 में करीब 90 हजार करोड़ रुपये के मोबाइल फोन का निर्यात भी किया गया।

इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के लिए स्कीमें

देश में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 25 फरवरी 2019 को नेशनल पॉलिसी ऑन इलेक्ट्रॉनिक्स की घोषणा की थी। इसका मकसद इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग में भारत को ग्लोबल हब बनाना था। इस पॉलिसी के तहत कई स्कीमें घोषित की गईं। 1 अप्रैल 2020 को घोषित लार्ज स्केल इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के लिए पीएलआई स्कीम में इंक्रीमेंटल बिक्री पर 4% से 6% इन्सेंटिव देने की घोषणा की गई। इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट को बढ़ावा देने के लिए 11 मार्च 2021 को पीएलआई स्कीम के दूसरे राउंड का ऐलान किया गया। 3 मार्च 2021 को आईटी हार्डवेयर के लिए पीएलआई स्कीम घोषित की गई। यह विशेष तौर से लैपटॉप, टैबलेट, ऑल इन वन पर्सनल कंप्यूटर और सर्वर के लिए था। इनके अलावा मॉडिफाइड स्पेशल इन्सेंटिव पैकेज इन इलेक्ट्रॉनिक्स, मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर स्कीम, इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट फंड, फेज्ड मैन्युफैक्चरिंग प्रोग्राम जैसी योजनाएं भी लागू की गई हैं।