स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। अगर आपको कुआलालंपुर से बाली हवाई यात्रा करनी हो तो 26 अगस्त को मलेशिया एयरलाइंस का किराया 28,200 रुपए लगेगा, लेकिन इस उड़ान से महज 20 मिनट बाद उड़ने वाली एयर एशिया की फ्लाइट आपको मात्र 10,616 रुपए में मिल सकती है। किराए में इस बड़े अंतर की वजह ये है कि मलेशिया एयरलाइंस जहां फुल सर्विस एयरलाइन है, वहीं एयर एशिया एक बजट या लो-कॉस्ट एयरलाइन है। अब बात भारत की करते हैं। 26 अगस्त को ही अगर हम दिल्ली से गोवा का किराया देखें तो सबसे सस्ता 4,017 रुपए टिकट विस्तारा एयरलाइंस का है, जो एक फुल सर्विस एयरलाइन है। इंडिगो, स्पाइसजेट और एयरएशिया जैसी बजट एयरलाइंस का किराया इससे ज्यादा है। ये मामला सिर्फ एक रूट का नहीं है। जागरण प्राइम ने देश के 10 बड़े रूट्स का ब्योरा लिया, इसमें से 7 रूट्स पर लो-कॉस्ट एयरलाइन का किराया या तो फुल सर्विस से ज्यादा या बराबर मिला।

जैसा कि नाम से पता चलता है, लो-कॉस्ट एयरलाइंस का मूल सिद्धांत कम किराए पर हवाई यात्रा उपलब्ध करवाना होता है। किराए में इस कमी की भरपाई वह अन्य सेवाओं जैसे कि फूड, एंटरटेनमेंट, लगेज आदि के लिए अतिरिक्त चार्ज लेकर करती हैं। 1970 के दशक में अमेरिका की साउथवेस्ट एयरलाइन ने इसकी शुरुआत की थी। अमेरिका के बाद यूरोप, आस्ट्रेलिया और फिर एशिया हर जगह लो-कॉस्ट एयरलाइंस ने अपने पैर जमा लिए।

भारत में साल 2003 में कैप्टन जीआर गोपीनाथ ने पहली बजट एयरलाइन एयर डेक्कन की शुरुआत की, जो 2007 में उद्योगपति विजय माल्या की एयरलाइन किंगफिशर में मर्ज हो गई। इस मर्जर से करीब एक साल पहले 2006 में देश में एक नई बजट एयरलाइन इंडिगो की शुरुआत हुई, जिसने आगे चल कर भारत के हवाई मानचित्र को बदल कर रख दिया।

देश के नागरिक उड्डयन नियामक डीजीसीए के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि आज देश में 82 फीसदी हवाई यात्री इन लो-कॉस्ट एयरलाइंस में उड़ान भर रहे हैं। लेकिन भारत की ये लो-कॉस्ट एयरलाइन क्या वास्तव में लो-कॉस्ट हैं?

देश के प्रमुख हवाई रूट्स के मौजूदा किरायों को देखें तो देश में फुल सर्विस और लो-कॉस्ट एयरलाइन के किराए में अंतर नहीं है। बल्कि कई मामलों में लो-कॉस्ट एयरलाइन का किराया फुल सर्विस एयरलाइंस से भी ज्यादा है।

नागरिक उड्डयन मामलों के विशेषज्ञ हर्षवर्धन कहते हैं, बजट एयरलाइंस में सीट डेंसिटी (सीटों की संख्या) ज्यादा होती है, इसलिए सीट पिच कम होती है। ऑन बोर्ड सर्विस पेड होती है या फिर होती ही नहीं है। इसके चलते उन्हें कम स्टाफ की जरूरत होती है। ऑन बोर्ड सर्विस कम होने से विमान में गंदगी कम होती है, इससे क्लीनिंग की जरूरत भी कम होती है। फुल सर्विस विमान को जहां एक एयरपोर्ट पर क्लीन करने में करीब 40 मिनट का समय लगता है, वहीं बजट एयरलाइंस के विमान 20 मिनट में साफ हो जाते हैं। इन सब वजहाें से बजट एयरलाइंस की लागत फुल सर्विस से कम होती है। दुनिया को देखें तो बजट एयरलाइंस और फुल सर्विस एयरलाइंस के किराए में 8 से 12 फीसदी का अंतर होता है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं हाे रहा है।

विमान एयरो सर्विसेस एलएलपी के सीईओ विशोक मानसिंह कहते हैं, भारत की बजट एयरलाइंस महंगी नहीं हैं। एयरलाइंस औसतन 5 रुपए प्रति किलोमीटर किराया वसूल रही हैं, जो ज्यादा नहीं है। हो ये रहा है कि फुल सर्विस एयरलाइन अपना मार्केट बनाए रखने के लिए मार्जिन घटाकर कम किराया ऑफर कर रही हैं।

इंडिगो के बीते जून तिमाही के नतीजों को देखें तो कंपनी का आरएएसके (रेवेन्यू प्रति उपलब्ध सीट-किलोमीटर) 5.12 रुपए, जबकि सीएएसके (कॉस्ट प्रति उपलब्ध सीट-किलोमीटर) 4.17 रुपए है। यानी कंपनी को प्रति किलोमीटर प्रति यात्री 95 पैसे का मुनाफा हो रहा है। लेकिन ठीक एक साल पहले, कंपनी को प्रति किलोमीटर प्रति यात्री 39 पैसे का नुकसान उठाना पड़ रहा था।

हर्षवर्धन कहते हैं, इंडिगो को फुल सर्विस एयरलाइंस के बराबर ही प्राथमिकता मिल रही है। उनकी ऑन टाइम परफॉर्मेंस की छवि बहुत मजबूत है और उनका नेटवर्क बहुत बड़ा है। हर 10 में छह यात्री इंडिगो में उड़ान भर रहे हैं। ऐसे में इंडिगो प्रीमियम हासिल करने में सक्षम है।

भारतीयों की कीमत के प्रति संवेदनशीलता की ओर इशारा करते हुए विशोक मानसिंह कहते हैं, ऐसे बाजार में जहां 80 फीसदी मार्केट शेयर बजट एयरलाइंस के पास है, ज्यादातर भारतीय यात्री अतिरिक्त सेवाओं के नाम पर अधिक किराया नहीं चुकाना चाहेंगे। फुल सर्विस एयरलाइंस यह बात समझती हैं। यही कारण है कि वह अपना मार्जिन घटाकर किराया कम रख रही हैं।

देश की सबसे पुरानी बजट एयरलाइन में शुमार रही एक कंपनी के अधिकारी भारत में बजट एयरलाइंस के दाम कम न होने की एक दूसरी वजह भी बताते हैं। वे कहते हैं, मलेशिया, यूरोप और अमेरिका आदि जगहों पर बजट एयरलाइंस के लिए अलग एयरपोर्ट हैं, जिन पर कम सुविधाएं होती हैं तो साथ ही खर्चे भी कम होते हैं। सरकार की ओर से उन्हें रियायत भी दी जाती है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। जिन एयरपोर्ट से विस्तारा और एयर इंडिया जैसी फुल सर्विस एयरलाइंस उड़ान भरती हैं, उन्हीं एयरपोर्ट से इंडिगो, स्पाइस जेट और एयर एशिया जैसी बजट एयरलाइंस भी सेवाएं देती हैं। डीजीसीए के जो नियम फुल सर्विस एयरलाइंस के लिए हैं, वही नियम बजट एयरलाइंस के लिए भी हैं। एयरपोर्ट जो चार्ज फुल सर्विस एयरलाइंस से लेते हैं, वही चार्ज बजट एयरलाइंस से भी लेते हैं। ऐसे में दोनों तरीकों की एयरलाइंस के किराए में बड़ा अंतर कैसे आएगा?

विशोक मानसिंह भी इससे इत्तेफाक रखते हैं। उन्होंने कहा कि यूरोप, अमेरिका में एक ही शहर में दो या दो से अधिक एयरपोर्ट होते हैं। इसमें से कुछ शहरी सीमा के अंदर तो कुछ बाहर होते हैं। फुल सर्विस एयरलाइंस शहर के अंदर मौजूद एयरपोर्ट्स का इस्तेमाल करती हैं, जिनके चार्जेस ज्यादा होते हैं। वहीं, बजट एयरलाइंस बाहरी और छोटे एयरपोर्ट इस्तेमाल करती हैं। भारत में ऐसा नहीं है।

कुछ विशेषज्ञ भारत में बजट और फुल सर्विस एयरलाइंस के किरायों में ज्यादा अंतर न होने के पीछे घरेलू फुल सर्विस एयरलाइंस को भी दोषी मानते हैं। हर्षवर्धन कहते हैं, हमारी फुल सर्विस एयरलाइंस की वह क्वालिटी नहीं है, जो दूसरे देशों में फुल सर्विस एयरलाइंस की है। ऐसे में वह किस बात के लिए प्रीमियम वसूल करेंगी। उन्हें इंडिगो से प्रतियोगिता करनी ही पड़ेगी।

इंडिगो एयरलाइन ने जागरण प्राइम के सवालों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हवाई किराये बाजार की ताकतों के अधीन हैं, जो अक्सर मांग और आपूर्ति पर निर्भर होते हैं। फिर भी, भारत में हवाई किराये दुनिया में सबसे "कम" हैं। इंडिगो ने बीते साल हुए नुकसान का हवाला देते हुए कहा कि बीते वित्त वर्ष की पहली छमाही में ईंधन की ऊंची कीमतों और रुपये के अवमूल्यन के चलते कंपनी को 26.5 अरब रुपए का नुकसान हुआ था। दूसरी छमाही में, बाहरी कारकों के स्थिर होने और परिचालन में सुधार के लिए चलते 23.4 अरब रुपए का मुनाफा हुआ। इंडिगो ने दावा किया कि हम अपने खर्चों को कड़ी मेहनत से नियंत्रण में रखने और ग्राहकों को सस्ते किराये की पेशकश करने की कोशिश करते हैं, जिससे हवाई यात्रा अधिक सुलभ हो सके।

इस मामले में नियामक का रुख जानने के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशक विक्रम देव दत्त को सवाल भेजे गए थे, लेकिन खबर लिखे जाने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया। यदि उनका जवाब आता है, तो खबर को अपडेट कर दिया जाएगा। हालांकि, डीजीसीए के सूत्रों ने कहा कि विमान के किराये पर उनकी हमेशा नजर रहती है। पहले भी किराया नियंत्रित किया गया है, जरूरत पड़ने पर आगे भी डीजीसीए ऐसा कदम उठा सकता है।