नई दिल्ली, विवेक तिवारी । गर्मियों का मौसम शुरू होने को है। गर्मियों में डेंगू और चिकनगुनिया का प्रकोप देश के कई शहरों में देखा जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और अलनीनो के प्रभाव के चलते मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों के मामलों में बढ़ोतरी देखी जाएगी। इस बात की तस्दीक हाल ही में लांसेट में प्रकाशित एक शोध पत्र में भी की गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से भी अलनीनो के चलते मौसम में आए बदलाव से जुड़े डेंगू, जीका और चिकनगुनिया जैसी वायरल बीमारियों के बढ़ने की बात कही गई है। साथ ही इन बीमारियों से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत में भी लोगों को मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों से जूझना पड़ेगा। पहाड़ी राज्य या ऐसे इलाके जहां सामान्य तौर पर मच्छर जनित बीमारियों के मामले कम देखे जाते हैं, वहां भी इनके बढ़ने का खतरा है।

लांसेट में हाल ही में छपे एक शोध के मुताबिक अलनीनो के असर के चलते मौसम में बदलाव के पैटर्न पर असर पड़ता है जो कई तरह की बीमारियों को बढ़ाने के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना देता है। 2015-2016 में अलनीनो की घटना पर अध्ययन करने पर पाया गया कि इससे दुनिया भर में बीमारियां बढ़ीं। बारिश और बढ़ते तापमान के चलते मच्छर जैसे रोग वाहकों के फलने-फूलने के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनीं। इससे भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया, तंजानिया, पश्चिमी अमेरिका और ब्राजील जैसे इलाकों में बड़े पैमाने पर चिकनगुनिया, हंतावायरस, रिफ्ट वैली बुखार, हैजा, प्लेग और जीका का प्रकोप देखा गया। ज्यादा बारिश वाले इलाकों में डेंगू, मलेरिया और जीका जैसी वेक्टर जनित बीमारियों के साथ-साथ डायरिया संबंधी बीमारियां भी बढ़ीं। 2023 में भी अलनीनो के प्रभाव के चलते दुनियाभर में मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों में इजाफा देखा गया।

यूनाइटेड नेशन एनवायरमेंट प्रोग्राम के पूर्व निदेशक राजेंद्र माधवराव शेंडे कहते हैं कि अलनीनो के प्रभाव के चलते मौसम में कई तरह के बदलाव देखे जाते हैं। जिन इलाकों में कम बारिश होती है वहां ज्यादा बारिश होगी, जहां ज्यादा बारिश होती है वहां कम हो सकती है। कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे भी घटनाएं देखी जा सकती हैं। अलनीनो के प्रभाव के चलते तापमान सामान्य से ज्यादा रहता है। वहीं हवा में आर्द्रता अधिक होने पर मच्छरों के लिए अनुकूल माहौल बन जाता है। उनको प्रजनन करने के लिए सामान्य से ज्यादा समय मिलता है। ऐसे में मच्छरों की संख्या बढ़ने से उनसे फैलने वाली बीमारियां जैसे डेंगू, चिकनगुनिया का खतरा भी बढ़ता है। निश्चित तौर पर अलनीनो और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते हमें इस साल अधिक सचेत रहने की जरूरत है। हमें मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों के मामले में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।

ICMR सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर क्लाइमेट चेंज एंड वेक्टर बॉर्न डिजीज के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर रहे डॉक्टर रमेश धीमान कहते हैं कि जल जनित और वेक्टर जनित रोग पैदा करने वाले जीवाणु या मच्छर जलवायु के प्रति संवेदनशील होते हैं। भारत में भौगोलिक परिस्थितियों में काफी भिन्नता है। ऐसे में अलनीनो के प्रभाव के चलते ये देखा जा सकता है कि सामान्य तौर पर जिन इलाकों में मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां ज्यादा देखी जाती हैं वहां इनका प्रभाव कम हो जाए, वहीं जिन इलाकों में डेंगू और चिकनगुनिया के मामले न मिलते हों या बहुत कम मिलते हों वहां ये बीमारियां काफी तेजी से बढ़ जाएं। इसका सबसे ज्यादा असर पहाड़ी इलाकों या हिमालयी क्षेत्र में देखने को मिल सकता है। अलनीनो के प्रभाव के चलते इन राज्यों में तापमान में वृद्धि और आर्द्रता के कारण मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया के मामले तेजी से बढ़ सकते हैं। मच्छर, सैंड फ्लाई, खटमल जैसे बीमारी फैलाने वाले कीटों का विकास और अस्तित्व तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करता है। ये रोग वाहक मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी एन्सेफलाइटिस, कालाजार जैसी बीमारी बहुत तेजी से फैला सकते हैं। बदलते मौसम के चलते पूरी दुनिया में मच्छरों के प्रजनन के लिए एक बेहतर माहौल बना है। अब मच्छर ऐसे इलाकों में भी पाए जाने लगे हैं जहां पहले ये नहीं थे।

इस साल सामान्य से ज्यादा रहेगी गर्मी

भारत मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक इस साल गर्मी के मौसम की शुरूआत ज्यादा गर्म होगी। मार्च और मई के बीच देश के अधिकांश हिस्सों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। पश्चिमी हिमालय क्षेत्र, पूर्वोत्तर भारत, दक्षिण-पश्चिम प्रायद्वीप और पश्चिमी तट को छोड़कर देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक गर्मी वाले दिन होने की संभावना है। महाराष्ट्र और ओडिशा के कुछ इलाकों और पूर्वोत्तर प्रायद्वीपीय भारत - तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उत्तरी आंतरिक कर्नाटक में सामान्य से अधिक गर्मी वाले दिन देखे जा सकते हैं। वहीं देश में मार्च के महीने में सामान्य से ज्यादा बारिश दर्ज किए जाने की संभावना जताई गई है।

घरों में पेंट कर मच्छरों को रोकने की कोशिश

फ्रंटियर्स इन ट्रॉपिकल डिजीज नाम के जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के मुताबिक वैज्ञानिकों ने कीटनाशक मिले हुए पेंट को घरों की दीवारों पर लगा कर रोकने का प्रयास किया। अफ्रीका के काबो वर्डे में 200 से ज्यादा घरों पर इस कीटनाशक पेंट का इस्तेमाल किया गया। अध्ययन में पाया गया कि ये पेंट एडीज एजिप्टी मच्छरों की स्थानीय आबादी को कम से कम 1 साल तक नियंत्रित करने में सक्षम था। ट्रांसफ्लूथरिन-आधारित कीटनाशक पेंट से रंगे घरों वाले 98 प्रतिशत निवासियों ने पूरे साल एडीज मच्छरों में उल्लेखनीय कमी दर्ज की, जो आमतौर पर येलो फीवर, मलेरिया, जीका और डेंगू फैलाते हैं। ये कीटनाशक पेंट विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल वेक्टर कंट्रोल रिस्पांस 2017-2030 के तहत इस्तेमाल की जा रही नई तकनीकों में से एक है। इसका उद्देश्य वेक्टर-जनित बीमारियों को नियंत्रित करना है।

पेंट के हैं साइड इफेक्ट

कीटनाशक युक्त पेंट के इस्तेमाल से मच्छरों में तो कमी आई लेकिन इन घरों में रहने वाले लोगों ने इस पेंट के कई साइड इफेक्ट भी महसूस किए। अध्ययन के मुताबिक इन कीटनाशक पेंट वाले घरों में रहने वाले लगभग 16.7 फीसदी निवासियों ने साइड इफेक्ट की बात कही। ज्यादातर लोगों ने मामूली साइड इफेक्ट की बात कही। इनमें से ने लगभग 10 फीसदी ने आंख और नाक में जलन की बात कही वहीं 4 फीसदी ने सुस्ती की बात कही। 4 फीसदी लोगों ने सिरदर्द की शिकायत दर्ज कराई। अध्ययन में शामिल डॉक्टर लारा फेरेरो गोमेज़ कहती हैं कि वेस्टा कीटनाशक पेंट शहर में यलो फीवर के मच्छर एडीज एजिप्टी को कम से कम एक साल तक मारने में प्रभावी है।" "पेंट लंबी अवधि में बहुत कम मात्रा में कीटनाशक छोड़ता है, जो इसे अधिक टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल बनाता है।"

लार्वा को मारना है समाधान

ICMR की संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के वैज्ञानिक हिम्मत सिंह कहते हैं कि अन्य मच्छरों की तुलना में टाइगर या एडीज मच्छर में प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा बढ़ी है। ये मच्छर अन्य मच्छरों की तुलना में घातक भी हैं। सामान्य तौर पर किसी मच्छर को मारने के लिए 4 से 5 साल तक कोई एक केमिकल इस्तेमाल किया जाए तो वो इसके लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। ऐसे में हमें मच्छरों के लिए दो अलग तकनीकों का इस्तेमाल करना चाहिए। पहली तकनीक में लम्बे समय तक एक केमिकल का छिड़काव नहीं किया जाता है। कुछ समय के अंतराल पर मच्छर मारने के लिए केमिकल बदल दिए जाते हैं। वहीं दूसरी तकनीक को मोजैक तकनीक कहते हैं जिसमें मच्छरों को मारने के लिए किसी एक केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि कई केमिकलों को मिला कर छिड़काव किया जाता है। इस तरह से मच्छरों पर नियंत्रण लगाया जा सकता है। वयस्क एडीज या टाइगर मच्छर को नियंत्रित करना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में सबसे बेहतर होता है कि इस मच्छर के लार्वा को ही खत्म कर दिया जाए।