बदलती जलवायु और शहरों में बढ़ती कंक्रीट की इमारतों ने गर्मी को बनाया असहनीय, रात में भी राहत नहीं
दिल्ली के मुंगेशपुर में रविवार को अधिकतम तापमान 48.3 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। वहीं नजफगढ़ का अधिकतम तापमान सामान्य से 7 डिग्री अधिक 48.1 डिग्री और नरेला का अधिकतम तापमान सामान्य से सात डिग्री अधिक 47.8 डिग्री दर्ज किया गया। मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं कि इन इलाकों में भीषण गर्मी की दो बड़ी वजहें हैं। ये इलाके गुड़गांव से लगने वाली अरावली की पहाड़ियों से लगे हुए हैं।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी।
लगातार गर्मी बढ़ रही है और ग्रीष्म ऋतु अब कोमल न होकर जलने-झुलसने वाली हो गई है। दिल्ली में तापमान 47 डिग्री को पार कर चुका है। प्रमुख बात यह है कि दिल्ली के हर इलाके में तापमान अलग-अलग दर्ज किया जा रहा है। मौसम विभाग की बेवसाइट के अनुसार 27 मई को शाम पांच बजे नजफगढ़ में तापमान 48.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया तो लोधी रोड में तापमान 36.7 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। वहीं दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों जफरपुर, पूसा रोड, आयानगर, नई दिल्ली, नरेला और पीतमपुरा आदि में तापमान में अंतर दिख रहा था। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन, अर्बन हीट आईलैंड और हीट स्ट्रैस की वजह से दिल्ली के क्षेत्रों में तापमान में अंतर बढ़ रहा है और दिल्ली आग की भठ्ठी बनती जा रही है।
सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट के अनुसार भले ही जलवायु क्षेत्रों में हवा के तापमान में भिन्नता हो और कुछ भागों में गिरावट भी दर्ज की गई हो, लेकिन अन्य दो कारक - सापेक्ष आर्द्रता और भूमि की सतह का तापमान मिलकर असुविधा और गर्मी से संबंधित बीमारियों का बोझ बढ़ा रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रीय मौसम सेवा के अनुसार, हीट इंडेक्स एक माप है कि वास्तविक तापमान के साथ आर्द्रता को जोड़ने पर वास्तव में कितनी गर्मी महसूस होती है। ऐसा माना जाता है कि 41 डिग्री सेल्सियस का हीट इंडेक्स मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु और चेन्नई में परिवेशी हवा गर्म हो गई है, जबकि दिल्ली और हैदराबाद में यह रुझान उलटा दिख रहा है: मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई में दशकीय गर्मियों के औसत परिवेशी तापमान में 2001-10 की तुलना में लगभग 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। कोलकाता का दशकीय औसत भी 0.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। दिल्ली और हैदराबाद, दो महानगर जो मिश्रित जलवायु क्षेत्रों में स्थित हैं, जिन्हें सबसे शुष्क और कठोर गर्मियों के लिए जाना जाता है, ने 2001-10 की तुलना में कम दशकीय औसत दर्ज किया है। 2001-10 की तुलना में दिल्ली के लिए दशकीय गर्मियों का औसत 0.6 डिग्री सेल्सियस और हैदराबाद के लिए 0.9 डिग्री सेल्सियस कम है।
तापमान में अंतर की वजह राजस्थान से आने वाली हवाएं भी
दिल्ली के मुंगेशपुर में रविवार को अधिकतम तापमान 48.3 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। वहीं नजफगढ़ का अधिकतम तापमान सामान्य से 7 डिग्री अधिक 48.1 डिग्री और नरेला का अधिकतम तापमान सामान्य से सात डिग्री अधिक 47.8 डिग्री दर्ज किया गया। मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं कि इन इलाकों में भीषण गर्मी की दो बड़ी वजहें हैं। ये इलाके गुड़गांव से लगने वाली अरावली की पहाड़ियों से लगे हुए हैं। इन पहाड़ियों में मौजूद पत्थरों के चलते यहां तापमान सामान्य से ज्यादा किया जाता है। वहीं इन दिनों राजस्थान की ओर से आने वाली गर्म हवाएं गुरुग्राम से लगने वाली अरावली की पहाड़ियों तक आ रही हैं। ऐसे इन पहाड़ियों से लगे हुए दिल्ली के हिस्सों में भी तापमान सामान्य से ज्यादा बना हुआ है। अगले तीन दिन के बाद हवाओं के रुख में बदलाव होने की संभावना है। अगले तीन दिनों में हवाओं का रुख दक्षिण पश्चिम होने की संभावना है। ऐसे में तापमान में कुछ कमी देखी जा सकती है।
दस सालों में गर्मी के स्तर में बढ़ोतरी
सीएसई के आंकड़ों के अनुसार पिछले 10 गर्मियों में औसत सापेक्ष आर्द्रता (आरएच) (सरल शब्दों में कहें तो सापेक्ष आर्द्रता (आरएच) हवा में जल वाष्प की मात्रा का माप है।) 2001-10 के औसत की तुलना में काफी बढ़ गई है। बेंगलुरू को छोड़कर, बाकी पांच बड़े शहरों में दशकीय गर्मियों के औसत आरएच में 5-10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हैदराबाद में पिछले 10 गर्मियों में 2001-10 की तुलना में औसतन 10 प्रतिशत अधिक आर्द्रता रही है। इसी तरह, दिल्ली में पिछले 10 गर्मियों में 8 प्रतिशत अधिक आर्द्रता रही है। मुंबई की सापेक्ष आर्द्रता 7 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि कोलकाता और चेन्नई में गर्मियों में औसतन 5 प्रतिशत अधिक आर्द्रता रही है। बेंगलुरू में गर्मियों के दौरान आर्द्रता के स्तर में कोई बदलाव नहीं देखा गया है।
दिल्ली और हैदराबाद दोनों ने आरएच स्तरों में सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की हो सकती है, हालांकि वे सबसे शुष्क जलवायु क्षेत्रों में से एक में स्थित हैं। दशकीय आरएच में यह उछाल अभी भी उनके समग्र आर्द्रता स्तरों को अन्य मेगा शहरों के बराबर नहीं लाता है जो अधिक आर्द्र जलवायु में स्थित हैं। मुंबई, कोलकाता और चेन्नई अभी भी दिल्ली और हैदराबाद की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक आर्द्र हैं। दिल्ली और हैदराबाद में बढ़ी हुई आर्द्रता कुछ हद तक उनके परिवेशी वायु तापमान में मामूली गिरावट को खत्म कर देती है; अन्य चार शहरों में, यह गर्मी के तनाव को बढ़ाता है।
सभी शहरों में परिवेश के तापमान की तुलना में ताप सूचकांक तेजी से बढ़ रहा है
गर्मियों के दौरान सापेक्षिक आर्द्रता में वृद्धि को देखते हुए, बड़े शहरों में ताप सूचकांक (HI) बढ़ गया है। चेन्नई का ग्रीष्मकालीन औसत ताप सूचकांक 37.4°C (आर्द्रता का प्रभाव: 6.9°C) रहा, जो इसे बड़े शहरों में सबसे गर्म बनाता है। कोलकाता का ग्रीष्मकालीन HI औसत 36.5°C (आर्द्रता का प्रभाव: 6.4°C) और मुंबई 34.3°C (आर्द्रता का प्रभाव: 5°C) के साथ लगभग समान रूप से गर्म रहे। दिल्ली का ग्रीष्मकालीन HI औसत 32.2°C (आर्द्रता का प्रभाव: 3.3°C) और हैदराबाद का 29.3°C (आर्द्रता का प्रभाव: 1.2°C) रहा।
गर्मी की प्रवृत्ति में बदलाव
सीएसई के शोधकर्ताओं के अनुसार 2001-10 के दौरान, दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में प्री-मानसून और मानसून के बीच तापमान बढ़ता था, जबकि हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे दक्षिणी महानगरों में यह गिरता था। यह प्रवृत्ति बदल गई है और पिछले 10 गर्मियों में, दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में मानसून और भी गर्म हो गया है, जबकि चेन्नई में मानसून के साथ देखी जाने वाली मामूली ठंड गायब हो गई है। बेंगलुरु और हैदराबाद के लिए मानसून अभी भी प्री-मानसून की तुलना में थोड़ा ठंडा है, लेकिन ठंड की तीव्रता कम हो गई है। कुल मिलाकर, 2001-10 की तुलना में मानसून औसतन 1 डिग्री सेल्सियस गर्म हो गया है जबकि प्री-मानसून हीट इंडेक्स पर 0.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है।
सीएसई के अर्बन लैब के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक अविकल सोमवंशी कहते हैं कि "गर्म रातें दोपहर के अधिकतम तापमान जितनी ही खतरनाक होती हैं। अगर रात भर तापमान अधिक रहता है तो लोगों को दिन की गर्मी से उबरने का बहुत कम मौका मिलता है। लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि अत्यधिक गर्म रातों से मृत्यु का जोखिम भविष्य में लगभग छह गुना बढ़ जाएगा। यह पूर्वानुमान जलवायु परिवर्तन मॉडल द्वारा सुझाए गए दैनिक औसत वार्मिंग से मृत्यु दर के जोखिम से कहीं अधिक है।”
भट्ठी बन रहे शहर
अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव के चलते सूरज ढलने के बाद भी शहर का तापमान कम नहीं होता है। बल्कि इमारतों के बीच फंसा उत्सर्जन वातावरण में घुलकर तापमान को और अधिक बढ़ाता है। ऐसे में दिन में तो शहरों में गर्मी का प्रकोप रहता ही है, रात को भी यह शहर भट्ठी की तरह तपते हैं।भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भुवनेश्वर से जुड़े शोधकर्ता सौम्या सत्यकांत सेठी और वी विनोज द्वारा किए गए अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सिटीज में प्रकाशित हुए हैं। शोध के अनुसार जिस तरह से शहरों में पेड़ों, हरित क्षेत्रों, झीलों को पाट कर कंक्रीट का जंगल बढ़ रहा है। उसका खामियाजा शहरों में आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। इतना ही नहीं पेड़ों की ठंडी छांव की जगह जिस तरह एयर कंडीशन जैसी मशीनों पर निर्भरता बढ़ रही है, वो भी भारतीय शहरों में बढ़ती गर्मी की वजह बन रही है।
सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार निर्मित क्षेत्र में वृद्धि और शहरी ताप तनाव में वृद्धि के बीच सीधा सह-संबंध है।पिछले दो दशकों में सभी महानगरों में कंक्रीट का स्तर और बढ़ गया है; इसने ताप तनाव में वृद्धि में योगदान दिया है; हरित आवरण में वृद्धि दिन के समय की गर्मी को कम कर सकती है, लेकिन रात के समय की गर्मी को रोकने में अप्रभावी नहीं है। 2023 में, महानगरों में कोलकाता में कंक्रीट के अंतर्गत आने वाली भूमि का उच्चतम प्रतिशत और हरित आवरण सबसे कम था; दिल्ली में कंक्रीट के अंतर्गत आने वाला सबसे कम क्षेत्र और हरित आवरण सबसे अधिक है। पिछले दो दशकों में चेन्नई में निर्मित क्षेत्रफल दोगुना हो गया है। कोलकाता ने अपने निर्मित क्षेत्रफल में केवल 10 प्रतिशत अंकों की वृद्धि दर्ज की है, जहां तक कंक्रीटीकरण का संबंध है, यह सबसे धीमा है। हैदराबाद ने पिछले दो दशकों में अपने हरित आवरण को दोगुना कर दिया है - जो कि महानगरों में सबसे तेज है। मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में हरित आवरण में गिरावट आई है।
एनआरडीसी इंडिया के लीड, क्लाइमेट रेजिलिएंस एंड हेल्थ अभियंत तिवारी कहते हैं कि दिल्ली सहित कई शहरों में ग्रीन एरिया कम हुए है। वहीं कंक्रीट के स्ट्रक्चर बढ़े हैं। कंक्रीट गर्मी को सोखता है जिससे उस इलाके का तापमान बढ़ता है और अर्बन हीटलैंड जैसी स्थिति बनती है। गर्मी को कम करने मे वॉटर बॉडीज और भी अहम भूमिका निभाती हैं। इनकी भी संख्या काफी कम होती जा रही है। वहीं शहरों में बढ़ती गाड़ियां, एसी से निकलने वाली गर्मी और अन्य मानव जनित गर्मी पर्यावरण को और गर्म बना रही है।
कंकरीट और डामर की सड़कों का भी तापमान पर असर
शहरों में ज्यादा पाई जाने वाली सड़कों और इमारतों में डमर और कंक्रीट का उपयोग होता है। इनकी काली सतह और थर्मल जैसे लक्षण के कारण, ये इन्फ्रास्ट्रक्चर, ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में ज्यादा गर्मी सोखते हैं। आमतौर पर शहरों और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में तापमान का अंतर दिन की तुलना में रात में अधिक होता है। इसके कारण शहरों में बड़े पैमाने में उपयोग किए जाने वाले कंक्रीट में ज्यादा गर्मी सहन करने की क्षमता होती है और वह गर्मी का भंडार के रूप में काम करती है। इसके अतिरिक्त शहर के ऊपर के वायुमंडलीय स्थिति के कारण, अक्सर शहर में चलने वाली हवा जमीनी सतह पर फंस जाती है।
मानव जनित गर्मी
मानव जनित गर्मी और वायु प्रदूषण शहरों में गर्मी ज्यादा होने का भी एक कारण है। मानव जनित गर्मी गाड़ियों और इमारतों (पंखा, कंप्यूटर, फ्रिज और एयर कंडीशन) द्वारा पैदा होती है। हालांकि पहले उल्लेख किये गये कारणो की तुलना में चौथे कारण को व्यापारिक और रिहायशी क्षेत्र में कम महत्व दिया जाता है। शहरों में अधिक प्रदूषक गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और ओज़ोन ग्रीनहाउस गैस पाए जाते हैं और माना जाता है कि अर्बन हीट आईलैंड बनाने में इसकी भूमिका होती है।
शहरीकरण से 60 फीसद तक गर्म हुए शहर
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भुवनेश्वर से जुड़े शोधकर्ताओं का दावा है कि अकेले शहरीकरण ने भारतीय शहरों में गर्मी को 60 फीसदी तक बढ़ा दिया है। उनके मुताबिक पूर्वी भारत के टियर-2 शहर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। शहरों में बढ़ते तापमान के लिए जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण दोनों ही जिम्मेवार हैं। इसका मतलब है कि शहरों में बढ़ता कंक्रीट और भूमि उपयोग में आता बदलाव अतिरिक्त गर्मी पैदा कर रहा है। अध्ययन किए गए भारतीय शहरों में शहरीकरण ने बढ़ते तापमान में औसतन 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक का योगदान दिया है। इसका मतलब है कि शहरों में बढ़ती गर्मी के कुल 37.7 फीसदी हिस्से के लिए शहरीकरण जिम्मेवार है। वहीं यदि आसपास के गैर शहरी क्षेत्रों से तुलना करें तो शहरों की गर्मी में 60 फीसदी इजाफे के लिए शहरीकरण जिम्मेवार था। सीएसई के विश्लेषण से पता चलता है कि गर्मी का तनाव सिर्फ़ बढ़ते तापमान के कारण नहीं है। यह हवा के तापमान, ज़मीन की सतह के तापमान और सापेक्षिक आर्द्रता का एक घातक संयोजन है जो शहरों में तीव्र तापीय असुविधा और गर्मी के तनाव का कारण बनता है।
शहर ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक गर्म क्यों होते हैं?
शहरों में आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में वन, खेत और पेड़ों के रूप में अपेक्षाकृत कम हरियाली होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में हरियाली उन्हें जमीन पर गर्मी को नियंत्रित करने में मदद करती है। पेड़ वाष्पोत्सर्जन नामक प्रक्रिया के माध्यम से गर्मी को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। जड़ें मिट्टी से पानी को अवशोषित करती हैं, इसे पौधों की पत्तियों और तनों में संग्रहीत करती हैं और फिर इसे संसाधित करके जल वाष्प के रूप में छोड़ती हैं। अभियंत तिवारी कहते हैं कि कंकरीट के बने पुल, सड़क व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर दिन में गर्मी को सोखते हैं और रात को इसे रिलीज करते हैं जिससे रातों को भी तापमान काफी बढ़ा हुआ रहता है। गर्मियों में रात को तापमान में कमी आने से हमारे शरीर का हीट स्ट्रेस कम होता है। लेकिन कंक्रीट से निकलने वाली गर्मी से तापमान में कमी नहीं आ पाती है जिससे हमारे शरीर का हीट स्ट्रेस कम नहीं हो पाता है। ऐसे में शहरों में रहने वाले लोगों के लिए बढ़ती गर्मी बड़ी चुनौती बन रही है।
दिल्ली में बढ़ रहा हीट स्ट्रैस
दिल्ली, मुंबई समेत भारत के नौ शहर तेजी से हीट स्ट्रेस की जद में आ रहे हैं। नेशनल अकादमी ऑफ साइंस की यह रिपोर्ट एक अमेरिकी जनरल में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में इन शहरों में गर्मी और तेजी से बढ़ेगी। रिपोर्ट के अनुसार कोलकाता सहित चार शहरो में हीट स्ट्रेस का प्रभाव सबसे अधिक होगा।
अमेरिकी जनरल की रिपोर्ट में 44 शहरों का अध्ययन किया गया। जिसमें मैट्रो शहरों के तौर पर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, अहमदबाद, हैदराबाद, पुणे और सूरत शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 44 शहरों में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और अहमदाबाद सबसे अधिक प्रभावित है। अध्ययन के प्रमुख लीवरपूल जॉन मूर यूनिवर्सिटी के प्रमुख टॉम मैथ्यू का कहना है कि आने वाले समय में हीट स्ट्रेस का प्रकोप तेजी से बढ़ेगा। इसकी दो प्रमुख वजह होगी-हवा के तापमान में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो रही सतत बढ़ोतरी और जनसंख्या। उन्होंने कहा कि कोलकाता और दिल्ली के बारे में यह परिभाषा सटीक बैठ रही है। कोलकाता में जहां 21 वीं सदी तक जनसंख्या तीन गुना बढ़ जाएगी तो दिल्ली में जनसंख्या में दोगुनी से अधिक बढ़ोतरी हो जाएगी जिसकी वजह से हीट स्ट्रेस तेजी से बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर वैश्विक स्तर पर तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की रफ्तार से बढ़ता रहा तो मुंबई इस सूची में दिल्ली के मुकाबले पहुंच जाएगा।
"पिछले 70 वर्षों (1951-2020) में भारत में स्थानिक रूप से हीट स्ट्रेस का अनुभव करने वाले स्थानों की संख्या में लगभग 30-40% की वृद्धि देखी गई है। विशेष रूप से, पश्चिमी तट, महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों, दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत और राजस्थान और गुजरात सहित उत्तर-पश्चिम भारत में 1950 के बाद से हीट स्ट्रेस में मजबूत वृद्धि देखी गई है।
हीट स्ट्रेस : हीट स्ट्रेस से आशय उस तापमान है जिससे ऊपर शरीर तापमान गर्मी का सामना नहीं कर सकता। इसका आकलन हवा के तापमान और आर्द्रता के आधार पर किया जाता है।
तापमान बढ़ने का मतलब
डीयू के पूर्व प्रोफेसर डा.चंद्र शेखर दुबे कहते हैं कि मोटे तौर पर ऐसा कहा जा रहा है कि जो 1951 के बाद धरती के तापमान में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इसकी सबसे बड़ी वजह औद्योगिकीकरण और शहरी विकास है। अगर आंकड़ों की मानें तो 1951 से 2000 के बीच धरती के तापमान में जितनी बढ़ोतरी हुई वह साल 2000 से 2020 तक दोगुनी हो गई है। आने वाले बीस सालों में यह उसकी दोगुनी हो जाएगी। क्योटो प्रोटोकॉल के आधार पर तापमान में बढ़ोतरी की सीमा दो डिग्री अधिकतम मानी गई है। यह खतरनाक स्तर का अधिकतम बिंदु है। ऐसे में आने वाले समय में ऐसे ही हालात रहे तो यह यह अधिकतम सीमा तक पहुंच जाएगा और हमें तमाम तरह की आपदाएं झेलनी पड़ सकती है। 1990 के बाद वार्मर पीरिएड यानी गर्म काल में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 1998, 2005, 2010, 2011, 2013, 2016, 2017 में बढ़े गर्म काल खंड। इतनी जल्दी में गर्म काल खंडों का आना आपदाओं और रोगों को बढ़ावा देना है।
आईएमडी के अनुसार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में रात की गर्म परिस्थितियां गर्मी से संबंधित तनाव को और बढ़ा सकती हैं। रात का उच्च तापमान विशेष रूप से खतरनाक होता है क्योंकि शरीर को ठंडा होने का मौका नहीं मिलता। शहरी गर्मी द्वीप प्रभाव के कारण शहरों में रात की गर्मी में वृद्धि अधिक आम है, जहाँ मेट्रो क्षेत्र अपने आसपास के क्षेत्रों की तुलना में काफी गर्म हैं।
क्या है अर्बन हीट आइलैंड?
जब किसी शहर में आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले तापमान में अधिक बढ़ोतरी हो जाती है, उसे अर्बन हीट आइलैंड कहते है। इसकी बड़ी वजह है इंसानी गतिविधियां। किसी भी शहर को हीट आइलैंड बनने में सबसे अहम रोल होता है उसकी बसावट का। वो शहर किस तरह का है, वहां इमारते कैसी हैं और उसे किस तरह से डिजाइन किया गया है. यही बातें सबसे बहम होती हैं। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में तापमान बढ़ने और इनके हीट आइलैंड में तब्दील होने में भी यही फैक्टर जिम्मेदार हैं।
कोई शहर हीट आइलैंड क्यों बन जाता है?
शहरों के हीट आइलैंड बनने की दो सबसे बड़ी वजह हैं. पहली, वहां की इमारतों की बनावट। दूसरी, हरियाली का कम होना और जलाशयों का दायरा घटना। कंक्रीट की ऊंची बिल्डिंग, इनमें लगे एयरकंडीशनर से निकलने वाली गर्मी, शहरों में ट्रैफिक के कारण बढ़ती गर्मी। सिर्फ यही नहीं बिल्डिंग में ईंट की जगह शीशे और स्टील का बढ़ता इस्तेमाल भी गर्मी के असर को बढ़ाने में मदद करता है। यह सब चीजें मिलकर एक शहर को हीट आइलैंड में तब्दील कर देती हैं।
गर्म क्षेत्र से पानी की गुणवत्ता भी हो रही प्रभावित
गर्म क्षेत्र, शहर और उसके आसपास के क्षेत्र के पानी की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं। अर्बन हीट आईलैंड के प्रभाव के कारण शहर के स्टोर्म ड्रेन (बहुत ज्यादा बारिश होने पर अतिरिक्त पानी को ले जाने के लिए बनाये गए नाले) का पानी आसपास के पानी के स्रोतों की तुलना में कई डिग्री ज्यादा गरम हो सकता है। शहरों की नालियों से बहने वाला, तुलनात्मक रूप से ज्यादा गरम पानी, आसपास के झील, पोखर, झरने के तापमान को बढ़ा सकता है और इसके कारण जलीय जैव विविधता को नुकसान हो सकता है।
हीट आईलैंड इफेक्ट का असर बारिश और प्रदूषण पर
हीट आइलैंड इफेक्ट के चलते शहर और गर्म होते जाते हैं। इसका असर बारिश और प्रदूषण पर भी पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ शहरों में बढ़ती इंसानी गतिविधियां बढ़ते उत्सर्जन की वजह बनती हैं। जो जलवायु में आते बदलावों में योगदान देता है। इसके साथ ही शहरी क्षेत्रों में घनी आबादी और बुनियादी ढांचे के कारण, वे लू, बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं और जलवायु-परिवर्तन के प्रभावों के प्रति भी अग्रिम पंक्ति में हैं।
गर्मी से सब्जियों और दालों की कीमत में ईजाफा
देश के कुछ इलाकों में चल रही लू के कारण सब्जियों और दालों की कीमतों पर दबाव बना हुआ है, जिसमें बीते कुच समय से काफी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। बता दें कि देश की कई शहरों में तापमान 45 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर दर्ज किया जा रहा है। वहीं, स्थानीय बाजार में दाल की डिमांड काफी हद तक बढ़ गई,जबकि इसकी तुलना सप्लाई बेहद कम हो रहा है। जिसकी वजह से दलहन की कीमतों में आगमी अक्तूबर तक कमी नहीं आने की आशंका है। अप्रैल में दालों में मुद्रास्फीति 16.8% थी, तुअर में 31.4%, चने में 14.6% और उड़द में 14.3% थी।
इन शहरों में बड़ा खतरा
मिस्र का काहिरा, भारत का मुंबई, दक्षिण अफ्रीका का जोहानिसबर्ग, अमेरिका का मेक्सिको सिटी और चीन का नानजिंग शहर खतरे के निशान पर हैं। यहां हीट आइलैंड प्रभाव के चलते रात के तापमान में तकरीबन 5.5 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हो सकता है।
जर्नल कम्युनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार छोटे शहरों में दिन के दौरान सतह का तापमान 0.41 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से बढ़ रहा है, वहीं मेगसिटीज यानी बड़े शहरों में तापमान बढ़ने की यह दर औसतन 0.69 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक दर्ज की गई है।
इसी तरह महाद्वीपों के बीच भी शहरी तापमान में होती वृद्धि में अंतर देखा गया है। यदि एशिया को देखें जहां सबसे ज्यादा मेगासिटी हैं वहां शहरों में दिन और रात का तापमान दुनिया में सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। वहीं यूरोपियन शहरों में दिन के समय सबसे कम गर्मी पाई गई है, जबकि ओशिनिया के शहर रात में सबसे कम गर्म हो रहे हैं।
चूंकि शहरों में पर्याप्त हरियाली या उद्यान नहीं हैं, और इसके अलावा ऐसे पदार्थों का उपयोग किया जाता है जो लंबे समय तक गर्मी को रोकते और संग्रहीत करते हैं। नतीजतन, शहरों में या तो पूरी तरह से गर्मी विनियमन नहीं है या बहुत खराब है।
धातु, कांच, सीमेंट और कंक्रीट ऐसी सामग्रियां हैं जो अधिक ऊष्मा अवशोषित करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप आसपास के तापमान में वृद्धि होती है।
व्यापक प्रबंधन योजना बनाने की आवश्यकता
सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि, "दिन और रात के तापमान के साथ-साथ गर्मी, सापेक्ष आर्द्रता और भूमि की सतह के तापमान में बदलती प्रवृत्ति का आकलन करना शहरी केंद्रों के लिए एक व्यापक गर्मी प्रबंधन योजना विकसित करने के लिए आवश्यक है। सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए हीटवेव के दौरान आपातकालीन उपायों को लागू करने और हरित क्षेत्रों और जल निकायों को बढ़ाकर, इमारतों में थर्मल आराम में सुधार करके और वाहनों, एयर कंडीशनर और उद्योगों से निकलने वाली गर्मी के लिए दीर्घकालिक रणनीति विकसित करने के लिए यह आवश्यक है।"
सीएसई के अर्बन लैब के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक अविकल सोमवंशी कहते हैं कि उच्च गर्मी और आर्द्रता के संयोजन से शरीर में पसीन के स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। त्वचा से पसीने का वाष्पीकरण हमारे शरीर को ठंडा करता है, लेकिन उच्च आर्द्रता का स्तर इस प्राकृतिक शीतलन को सीमित करता है। नतीजतन, लोग गर्मी के तनाव और बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं, और बहुत कम परिवेश के तापमान पर भी इसके परिणाम घातक हो सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि शहरों में रात का तापमान ऊंचा बना हुआ है।
हीट आइलैंड प्रभाव से ऐसे निपट रहे शहर
फीनिक्स : यहां सरकारी अफसर हजारों की संख्या में पेड़ लगा रहे हैं और सार्वजनिक स्थानों को ठंडा रखने के लिए बारिश का पानी एकत्र कर रहे हैं।
लुइसविले: अमेरिका के केंचुकी में लुइसविले शहर में बीते तीन वर्षों में 10 हजार से अधिक पेड़ लगाए गए हैं।
शिकागो : यहां तकरीबन पांच लाख पेड़ हैं जिनकी देखरेख होती है, जिससे बढ़ते तापमान को कम किया जा सके। यह उन शहरों में अग्रणी है जहां छतों पर हरियाली उगाई गई है।
लॉस एंजेल्स : 2014 में एक नियम लागू किया जिसके तहत नए घरों को परावर्तन करने वाली ठंडी छतें लगाना जरूरी था। सिएटल शहर अपने जंगलों को फिर से हरा-भरा बनाने का काम कर रहा है।
ये कदम जरूरी
- शहरों में ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा दिया जाए। ऊर्जा की कम खपत और कम उत्सर्जन करने वाले उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ाया जाए।
- अधिक से अधिक पौधरोपण किया जाना चाहिए। अगर खाली जगह न हो, तो घरों की छतों और बालकनी में पौधे लगाए जा सकते हैं।
- छतों पर सूरज की गर्मी को परावर्तित करने वाली तकनीक लगाई जा सकती हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने से भरपूर बारिश होगी जिससे यह प्रभाव कम होता है।
शहरवार तापमान की स्थिति
दिल्ली
पिछले औसत से ठंडा, लेकिन उच्च आर्द्रता गर्मी के तनाव को बढ़ा रही है: 2024 का मार्च-अप्रैल 2014-23 के औसत से 3 डिग्री सेल्सियस ठंडा था। दिल्ली के गर्मियों के मौसम में दशकीय औसत परिवेशी वायु तापमान में 0.6 डिग्री सेल्सियस की कमी दर्ज की गई है, लेकिन 2001-10 और 2014-23 के बीच सापेक्ष आर्द्रता में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
उच्च आर्द्रता ताप तनाव में वृद्धि के लिए जिम्मेदार है : औसतन 3.3°C ताप तनाव बढ़ रहा है।
शहर में रात में ठंडक नहीं: दिन और रात के बीच भूमि की सतह के तापमान में दैनिक गिरावट 9 प्रतिशत कम हुई है।
शहरी ऊष्मा द्वीप की घटनाएं रात में अधिक प्रबल होती हैं: रात में, शहरी क्षेत्र के समीपवर्ती क्षेत्र में 12.2°C तक ठंडक पहुंचती है, जबकि शहर का केन्द्र केवल 8.5°C तक ठंडा होता है - इस प्रकार शहरी केन्द्र के समीपवर्ती क्षेत्रों की तुलना में शहर का केन्द्र 3.8°C कम ठंडा होता है।
निर्मित क्षेत्र में वृद्धि और शहरी ताप तनाव में वृद्धि के बीच सीधा संबंध : निर्मित क्षेत्र 2003 में 31.4 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 38.2 प्रतिशत हो गया है। हरित आवरण 2003 में 32.6 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 44.2 प्रतिशत हो गया है। हरित आवरण में वृद्धि से दिन के तापमान पर प्रभाव दिखता है, लेकिन इसका रात के तापमान और बढ़ते ताप सूचकांक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
मानसून पूर्व की तुलना में तापीय दृष्टि से अधिक असंगत हो रहा है: मानसून के दौरान औसत ताप सूचकांक पूर्व मानसून की तुलना में 9.4°C अधिक है।
मुंबई
हवा का तापमान और आर्द्रता दोनों बढ़ गए हैं, जिससे गर्मी का तनाव और बढ़ गया है : मुंबई में गर्मियों के मौसम में दशकीय औसत परिवेशी वायु तापमान में 0.6°C की वृद्धि दर्ज की गई है; 2001-10 और 2014-23 के बीच सापेक्ष आर्द्रता में 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
उच्च आर्द्रता गर्मी के तनाव को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है: यह शहर में औसतन 5 डिग्री सेल्सियस गर्मी का तनाव बढ़ा रहा है। शहर के ताप सूचकांक में 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मार्च-अप्रैल 2024 थर्मली औसत 2014-23 के समान था।
प्री-मानसून और मानसून दोनों में तापमान 2°C से अधिक हो गया है : मानसून और प्री-मानसून के बीच तापीय अंतर समाप्त हो गया है।
2001-10 की तरह रात में ठंडक नहीं हो रही है : दिन और रात के बीच भूमि सतह के तापमान में दैनिक गिरावट 24 प्रतिशत कम हुई है।
शहरी गर्मी द्वीप की घटनाएं रात में अधिक प्रबल होती हैं: दिन के समय, मुंबई का केंद्र इसके बाहरी और शहरी क्षेत्रों की तुलना में 3.5 डिग्री सेल्सियस ठंडा रहता है। लेकिन रात में, केंद्र 0.4 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहता है।
निर्मित क्षेत्र में वृद्धि और शहरी ताप तनाव में वृद्धि के बीच सीधा संबंध: मुंबई का निर्मित क्षेत्र 2003 में 38.4 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 52.1 प्रतिशत हो गया है। हरित आवरण 2003 में 35.8 प्रतिशत से घटकर 2023 में 30.2 प्रतिशत हो गया है।
कोलकाता
दशकीय वायु तापमान में सामान्य परिवर्तन, लेकिन उच्च आर्द्रता से गर्मी का तनाव बढ़ रहा है: कोलकाता में गर्मियों के दौरान दशकीय औसत परिवेशी वायु तापमान में नगण्य परिवर्तन दर्ज किया गया है, लेकिन सापेक्ष आर्द्रता में 2001-10 और 2014-23 के बीच 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
उच्च आर्द्रता औसतन 6.6°C ताप तनाव के लिए जिम्मेदार है: दशकीय ताप सूचकांक में औसतन 3.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
2001-10 की तुलना में 41°C (खतरे के निशान) से अधिक दैनिक ताप सूचकांक वाले दिनों की संख्या तीन गुनी हो गई है। मानसून पूर्व की तुलना में तापीय दृष्टि से अधिक असंगत हो रहा है: मानसून के दौरान औसत ताप सूचकांक मानसून पूर्व की तुलना में 3.5°C अधिक है।
अन्य महानगरों के विपरीत, कोलकाता में रात में तापमान 2001-10 की दर से ही ठंडा होता है।लेकिन भूमि सतह के तापमान में दिन और रात के बीच दैनिक गिरावट के कारण औसतन 6°C का अंतर होता है।
दिन के समय कोलकाता का मुख्य भाग अपने बाहरी इलाकों और शहरी क्षेत्रों की तुलना में 1.8 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहता है; रात में यह अंतर 1.2 डिग्री सेल्सियस का होता है। यह शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव का प्रमाण है।
निर्मित क्षेत्र में वृद्धि और शहरी ताप तनाव में वृद्धि के बीच सीधा संबंध: निर्मित क्षेत्र 2001 में 70 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 80.1 प्रतिशत हो गया है। हरित आवरण 2001 में 15.2 प्रतिशत से घटकर 2023 में 14.5 प्रतिशत हो गया है।
हैदराबाद
हवा के तापमान में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है, लेकिन आर्द्रता बढ़ गई है, जिससे गर्मी का तनाव और बढ़ गया है: हैदराबाद की गर्मियों में दशकीय औसत परिवेशी वायु तापमान में 0.9°C की गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन 2001-10 और 2014-23 के बीच सापेक्ष आर्द्रता में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
उच्च आर्द्रता औसतन 1.5°C ताप तनाव बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है
उच्च तापमान वाले ग्रीष्म दिनों की अधिक संख्या: हैदराबाद में ग्रीष्म ऋतु में 30-90 दिन ऐसे होते हैं जब दैनिक परिवेश का तापमान 37°C से अधिक हो जाता है।
मानसून पूर्व तापक्रम मानसून की तुलना में अधिक प्रतिकूल होता है : मानसून के दौरान औसत ताप सूचकांक मानसून पूर्व की तुलना में लगभग 3°C कम होता है।
2001-10 की तरह रात में ठंडक नहीं हो रही है: दिन और रात के बीच भूमि की सतह के तापमान में दैनिक गिरावट 13 प्रतिशत कम हुई है।
शहरी ऊष्मा द्वीप की घटनाएं रात में अधिक प्रबल होती हैं: गर्मियों में दिन के समय, शहर का केंद्र इसके बाहरी क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों की तुलना में 0.7°C ठंडा रहता है। रात में, केंद्र 1.9°C गर्म हो जाता है।
निर्मित क्षेत्र में वृद्धि और शहरी ताप तनाव में वृद्धि के बीच सीधा संबंध: निर्मित क्षेत्र 2003 में 20.6 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 44 प्रतिशत हो गया है। हरित आवरण भी 2003 में 8.9 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 26.5 प्रतिशत हो गया है। हरित आवरण में यह वृद्धि दिन के तापमान पर प्रभाव दर्शाती है, लेकिन रात के तापमान और शहर में बढ़ते ताप सूचकांक पर कोई प्रभाव नहीं दर्शाती है।
बेंगलुरु
गर्मियों के मौसम में तापमान में वृद्धि, लेकिन सापेक्ष आर्द्रता स्थिर: बेंगलुरू में गर्मियों में दशकीय औसत परिवेशी वायु तापमान में 0.5°C की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि सापेक्ष आर्द्रता पिछले दो दशकों से स्थिर बनी हुई है। मार्च-अप्रैल 2024 2014-23 के औसत की तुलना में काफी गर्म (लगभग 3°C) था।
आर्द्रता के कारण औसतन 0.6°C ताप तनाव बढ़ा : शहर के ताप सूचकांक में 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
मानसून की तुलना में प्री-मानसून तापीय दृष्टि से अधिक असंगत है: मानसून की तुलना में प्री-मानसून के दौरान औसत ताप सूचकांक 3°C अधिक होता है।
शहर में रात में ठंडक नहीं: दिन और रात के बीच भूमि की सतह के तापमान में दैनिक गिरावट 15 प्रतिशत कम हुई है।
शहरी क्षेत्रों में गर्मी की घटनाएं रात में अधिक होती हैं: गर्मियों में दिन के समय, बेंगलुरु का केंद्र इसके बाहरी इलाकों और शहरी क्षेत्रों की तुलना में 0.6 डिग्री सेल्सियस ठंडा रहता है। लेकिन रात में, केंद्र 2.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहता है।
निर्मित क्षेत्र में वृद्धि और शहरी ताप तनाव में वृद्धि के बीच सीधा संबंध: निर्मित क्षेत्र 2003 में 37.5 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 71.5 प्रतिशत हो गया है। हरित आवरण भी 2003 में 18.8 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 26.4 प्रतिशत हो गया है। हरित आवरण में वृद्धि का दिन के तापमान पर प्रभाव पड़ा है, लेकिन रात के तापमान और शहर में बढ़ते ताप सूचकांक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
चेन्नई
हवा का तापमान और सापेक्ष आर्द्रता दोनों में वृद्धि हुई है, जिससे गर्मी का तनाव और बढ़ गया है: गर्मियों के समय दशकीय औसत परिवेशी वायु तापमान में 0.4°C की वृद्धि हुई है; 2001-10 और 2014-23 के बीच सापेक्ष आर्द्रता में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मार्च-अप्रैल 2024 2014-23 के औसत की तुलना में 1°C अधिक गर्म था।
उच्च आर्द्रता के कारण औसतन 6.3°C ताप तनाव बढ़ा: शहर का ताप सूचकांक 5 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया है।
उच्च ताप सूचकांक वाले दिनों की संख्या में वृद्धि: दैनिक ताप सूचकांक 41°C (खतरे के निशान) से अधिक होने वाले दिनों की संख्या 2001-10 की तुलना में तीन गुनी हो गई है।
प्री-मानसून और मानसून दोनों ही तापीय दृष्टि से अधिक असुविधाजनक हो गए हैं: ताप सूचकांक में लगभग 2°C की वृद्धि के साथ, प्री-मानसून और मानसून के बीच तापीय अंतर लगभग समाप्त हो गया है - दोनों ही अवधियाँ अब समान रूप से गर्म और उमस भरी हैं।
शहर में रात में ठंडक नहीं: दिन और रात के बीच भूमि की सतह के तापमान में दैनिक गिरावट 5 प्रतिशत कम हुई है।
शहरी ऊष्मा द्वीप की परिघटना प्रबल है: गर्मियों में दिन के समय चेन्नई का केंद्र इसके बाहरी क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों की तुलना में 0.8°C अधिक गर्म होता है। रात में, केंद्र 0.9°C अधिक गर्म होता है।
निर्मित क्षेत्र में वृद्धि और शहरी ताप तनाव में वृद्धि के बीच सीधा संबंध: निर्मित क्षेत्र 2003 में 30.7 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 73.5 प्रतिशत हो गया है। हरित आवरण 2003 में 34 प्रतिशत से घटकर 2023 में 20.3 प्रतिशत हो गया है।