सरकार की योजनाओं, तकनीकी विकास और आसान फंडिंग से स्टार्टअप्स के लिए खुल रही नई संभावनाएं
देश में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स की संख्या 92505 हो गई है जो 2014 में 400 के आसपास थी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि हमारे लगभग 48 प्रतिशत स्टार्टअप टियर 2और टियर 3 शहरों से हैं। यह जमीनी स्तर पर हमारी जबरदस्त क्षमता का प्रमाण है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। 2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) से मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स ने 2022 में 64 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि के साथ 9 लाख से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां दी हैं। देश में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स की संख्या 92,505 हो गई है, जो 2014 में 400 के आसपास थी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि हमारे लगभग 48 प्रतिशत स्टार्टअप टियर 2और टियर 3 शहरों से हैं। यह जमीनी स्तर पर हमारी जबरदस्त क्षमता का प्रमाण है। सरकार की विभिन्न लक्षित पहलों से भारत दुनिया के सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम में शुमार हो गया है।
नैस्कॉम की रिपोर्ट बताती है कि भारत ने कैलेंडर वर्ष 2022 के दौरान 1,300 से अधिक एक्टिव टेक स्टार्टअप जोड़े हैं, और ऐसे स्टार्टअप की संख्या बढ़कर 25,000 से 27,000 के बीच हो गई है। भारत तीसरा सबसे बड़ा टेक स्टार्टअप वाला देश भी है।
विभिन्न स्टार्टअप के फाउंडर और सीईओ मानते हैं कि बीते एक दशक में भारत में तकनीकी उन्नयन ने कारोबारियों के लिए नए दरवाजे खोले हैं, इससे उद्यमियों को नए व्यवसायों के लिए अधिक मौके मिले हैं। स्टार्टअप बनाने के लिए उद्यमियों को वित्तीय सहायता भी आसान हुई है। इसके लिए भारत सरकार ने मुद्रा योजना, स्टार्टअप इंडिया जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं। भारत में जो विदेशी कंपनियां निवेश कर रही हैं, उससे भी स्टार्टअप के लिए नई संभावनाएं खुल रही हैं। दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्थाओं में एक, भारत में स्टार्टअप के विशाल बाजार को देखते हुए विदेशी निवेशक इनमें पैसा लगा रहे हैं। भारत की जनसंख्या के साथ उसकी अर्थव्यवस्था भी तेजी से बढ़ रही है। इससे स्टार्टअप्स के लिए बड़ा मार्केट उपलब्ध होता है जो विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर रहा है।
भारत में स्टार्टअप में नौकरियां और तरक्की
स्टार्टअप में नौकरियां की संख्या में लगातार ईजाफा हो रहा है। डीपीआईआईटी के अनुसार भारत में स्टार्टअप संस्थापकों की औसत आयु 32 वर्ष (2019 तक) बताई गई थी और 14% स्टार्टअप्स में कम से कम एक महिला संस्थापक थी। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की वॉट ड्राइव स्टार्टअप फंडरेजिंग इन इंडिया रिपोर्ट कहती है कि 2014 में स्थापित स्टार्टअप्स को सीड स्टेज से सीरीज़ ए में आने में औसतन 50 महीने लगे, जबकि 2021 में स्थापित स्टार्टअप्स को केवल 28 महीने लगे। इसी तरह, 2014 में स्थापित स्टार्टअप को सीरीज ए से बी तक पहुंचने में 36 महीने लगते थे, जबकि 2021 में यह घटकर 12 माह रह गया है।
यूनिकॉर्न
रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार पहले एक स्टॉर्टअप को यूनिकॉर्न बनने में 9.9 साल लगते थे, लेकिन अब वे 7.8 साल में यूनिकॉर्न बनने लगे हैं। भारत में अधिकांश यूनिकॉर्न फिनटेक प्लेटफॉर्म, सॉफ्टवेयर-एज-ए-सर्विस कंपनियां और ई-कॉमर्स फर्म थे। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि 2021 में यूनिकॉर्न क्लब में शामिल होने वाले कई नए लोग गैर-पारंपरिक क्षेत्रों (क्लाउड किचन, गेमिंग, डेटा मैनेजमेंट और एनालिटिक्स और कंटेंट) से थे।
बीते एक दशक में बढ़ने के कारण
शुरुआती दौर की कंपनियों में निवेश को इच्छुक निवेशक
द फ्रेगरेंस पीपुल के फाउंडर डा. दीपक जैन कहते हैं कि बीते एक दशक में स्टार्टअप की फंडिंग में बढ़ोतरी हुई है। वेंचर कैपिटल फर्म, एंजेल इंवेस्टर आदि शुरुआती दौर की कंपनियों में निवेश को इच्छुक हैं जिसने स्टार्टअप के लिए एक शानदार जमीन तैयार की है।
नई तकनीक जैसे कि क्लाउड कंप्यूटिंग, मोबाइल एप और सोशल मीडिया ने इस बात की सहूलियत दी है कि कम खर्चे में अपने ब्रांड को ऑनलाइन और ऑफलाइन लोगों तक पहुंचाया जा सके। बीते कुछ सालों में मानसिकता में आए बदलाव ने भी इंटरप्रिन्योरशिप को बढ़ावा दिया है। वहीं ग्लोबलाइजेशन ने भी स्टार्टअप के लिए बड़े अवसर पैदा किए हैं। अब स्टार्टअप भारत से बाहर भी अपना बाजार तलाश रहे हैं।
सरकार का सहयोग और अवसर
एंजेल इंवेस्टर देवांश लखानी कहते हैं कि बीते सात से आठ सालों में सरकार ने पैन इंडिया स्टार्टअप का इकोसिस्टम बनाया है। इसमें अनुदान, इनक्यूबेशन सेंटर, सरकारी स्कीम आदि शामिल है। वहीं कोरोना की आपदा के दौरान नौकरी जाने पर भी लोगों ने स्टार्टअप शुरू किए। इसके अलावा भारत में कई समस्याएं हैं जिनके हल तलाशे जाने हैं, इसने भी स्टार्टअप कल्चर को बढ़ाया है।
लखानी कहते हैं कि सरकारी नीतियों के कारण पिछले कुछ वर्षों में स्टार्टअप खोलना आसान हो गया है। भारत ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में 2014 के 142वें स्थान के मुकाबले आज 63वें स्थान पर है। सरकार ने व्यवसाय शुरू करने के लिए इसे तेज़, आसान और अधिक कुशल बनाने के लिए 39,000 अनुपालनों को हटा दिया है। सरकार ने SISFS के माध्यम से निवेश के लिए 285 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। फंड ऑफ फंड्स के जरिए स्टार्टअप्स में 1,000 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। इन सभी चीजों को मिलाकर भारत में व्यवसाय शुरू करना वास्तव में आसान हो गया है।
आवश्यकताओं को जान किए इनोवेशन
सर्राफ फर्नीचर के फाउंडर और सीईओ रघुनंदन सर्राफ कहते हैं कि बीते दशक में भारत में स्टार्टअप तेजी से बढ़े है। भारत दुनिया में स्टार्टअप के मामले में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है। भारत ने जरूरतों को समझ नए इनोवेशन किए हैं।
युवाओं में इंटरप्रिन्योर बनने की ललक
वुडन स्ट्रीट के सीईओ लोकेंद्र सिंह राणावत कहते हैं कि इनक्यूबेटर का बढ़ना, टेक्नोलॉजिकल स्तर पर तरक्की होना, सरकार का सपोर्ट, भारतीय बाजार की विविधता और युवाओं में इंटरप्रिन्योरशिप की ललक ने भारत को स्टार्टअप का बादशाह बना दिया है।
बढ़ते इनक्यूबेशन सेंटर ने तरक्की को दी नई तेजी
एडकाउंटी मीडिया के को-फाउंडर और चीफ बिजनेस ऑफिसर डेल्फाइन वर्गीज कहते हैं कि ग्राहक की मांग, डिजिटलाइजेशन, हाईस्पीड इंटरनेट और इसकी लोगों तक पहुंच और युवाओं के इंटरप्रिन्योरशिप अपनाने ने बीते एक दशक में स्टार्टअप का माहौल बना दिया है। वहीं बढ़ते इनक्यूबेशन सेंटर ने प्रगति को एक नई तेजी दी है। सरकार का 2016 में शुरू किया गया स्टार्टअप इंडिया इनीशिएटिव भी शुरुआती दौर के स्टार्टअप को पल्लवित करने में अहम योगदान दे रहा है।
फंड मैनेजमेंट के रिसोर्स स्पेशिलिस्ट सिद्धार्थ मौर्या कहते हैं कि ऑनलाइन मार्केटप्लेस, सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के उदय ने स्टार्टअप्स को ग्राहकों तक आसानी से पहुंचा दिया है। वहीं ग्लोबल इकोनॉमी में ग्रोथ ने स्टार्टअप को दुनिया भर में पहचान दी है।
संसाधनों ने बढ़ाए मौके
डा. दीपक जैन कहते हैं, मौजूदा समय में इंटरप्रिन्योर के लिए कई संसाधन उपलब्ध हैं। इनमें एक्सीलेटर्स, इनक्यूबेटर्स और स्टार्टअप कम्युनिटी शामिल हैं। ये लोगों को मेंटरशिप, नेटवर्किंग की सुविधा दिलाते हैं। कोविड की आपदा ने रिमोट वर्क की सुविधा को बढ़ाया है। जिसकी वजह से इंटरप्रिन्योर अपने बिजनेस को किसी एक लोकेशन में शुरू करने के लिए बाध्य नहीं हैं।
सर्राफ फर्नीचर के फाउंडर और सीईओ रघुनंदन सर्राफ कहते हैं कि नई तकनीक ने स्टार्टअप की प्रगति को नया आयाम दिया है। ऑफलाइन और ऑनलाइन कारोबारियों के लिए संसाधनों की सुगमता ने व्यापार को आसान बना दिया है।
आसान और किफायती प्रक्रिया
लोकेंद्र सिंह राणावत कहते हैं कि बीते कुछ सालों में स्टार्टअप खोलने की प्रक्रिया आसान होने के साथ किफायती भी हो गई है। लोगों के पास स्टार्टअप खोलने को लेकर हर तरह की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है।
देशी और विदेशी निवेशकों के लिए नियम आसान
एडकाउंटी मीडिया के को-फाउंडर और चीफ बिजनेस ऑफिसर डेल्फाइन वर्गीज कहते हैं कि सरकार के नियमों ने देशी और विदेशी निवेशकों के लिए नियम आसान किए हैं। इससे पूंजी प्रवाह बढ़ा तो स्टार्टअप भी प्रोत्साहित हुए हैं।
फंड मैनेजमेंट के रिसोर्स स्पेशिलिस्ट सिद्धार्थ मौर्या कहते हैं कि इंटरनेट की उपलब्धता ने स्टार्टअप सिस्टम को गति दी है। लोग आसानी से जानकारी हासिल करने लगे हैं। जैसे, कोई बिजनेस कैसे शुरू किया जाए, मार्केटिंग कैसी जाए, फंडिंग कैसे ली जाए। इंटरप्रिन्योर के सामने ज्ञान और संसाधन का अपार भंडार है।
टेक्नोलॉजी सेक्टर में अधिक स्टार्टअप
डा. दीपक जैन कहते हैं, यह कहना बेहद मुश्किल है कि किसी एक क्षेत्र में स्टार्टअप अधिक खुल रहे हैं। टेक्नोलॉजी सेक्टर में ज्यादा स्टार्टअप आए क्योंकि कई टेक स्टार्टअप के इंटरप्रिन्योर इन स्थापित सेक्टर से आए थे। वहीं सोशल इंटरप्राइजेज सेक्टर में भी कई लोग आए।
रघुनंदन सर्राफ कहते हैं कि ई-कॉमर्स स्टार्टअप ज्यादा आम हो चुके हैं। इस सेक्टर में आपके सामने अवसरों की भरमार है।
एडकाउंटी मीडिया के को-फाउंडर और चीफ बिजनेस ऑफिसर डेल्फाइन वर्गीज बताते हैं, अनुमान है कि फूड डिलीवरी सर्विस इंडस्ट्री 13 फीसद के कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट से 2028 तक आगे बढ़ेगी। ऐसे में इस सेक्टर में काफी स्टार्टअप आएंगे। ग्लोबल हेल्थकेयर आईटी मार्केट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी लोगों के लिए मौके हैं। एजुकेशन स्टार्टअप और फिनटेक इंडस्ट्री की ग्रोथ भी काबिलेतारीफ है। वर्गीज कहते हैं कि ग्राउंड व्यू रिसर्च ने अनुमान लगाया था कि ए़डटेक सेक्टर 19.9 फीसद के कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट से 2028 तक आगे बढ़ेगी।
स्टार्टअप की सफलता और विफलता के कारण
विफलता
मांग का कम और सर्विस का खराब होना
डा. दीपक जैन कहते हैं किसी भी स्टार्टअप के फेल होने का बड़ा कारण मांग का कम होना और सर्विस का बेहतर न होना है। वहीं कई बार स्टार्टअप अपने ऑपरेशन के लायक फंडिंग नहीं बचा पाते हैं। स्टार्टअप के संचालन के लिए बेहतर निर्णय और उम्दा प्रबंधन की दरकार होती है। इसमें विफलता स्टार्टअप के बंद होने का कारण भी बन जाती है।
रघुनंदन सर्राफ कहते हैं कि खराब वित्तीय प्रबंधन, पर्याप्त फंडिंग न होना विफलता का बड़ा कारण बनते हैं।
लोकेंद्र सिंह राणावत कहते हैं कि रिसर्च, इनोवेशन, प्रभावशाली मार्केटिंग न कर पाना और इंडस्ट्री एक्सपर्ट न होना बड़ी समस्या बनती है।
फंडिंग का कम होना
एडकाउंटी मीडिया के डेल्फाइन वर्गीज बताते हैं कि स्टार्टअप बिजनेस के असफल होने के कई कारण होते हैं। स्काईनोवा ने नवंबर 2022 में 492 स्टार्टअप पर एक रिसर्च की, जिसमें सामने आया कि 2022 में स्टार्टअप के बंद होने का बड़ा कारण फंडिंग था। स्टडी में देखने में आया कि 47 फीसद स्टार्टअप फंडिंग के अभाव में फेल हो गए जबकि 44 फीसद के पास कैश की कमी थी या उनकी वित्तीय प्रबंधन की योजना खराब थी।
सिद्धार्थ मौर्या कहते हैं कि स्टार्टअप के फेल होने का बड़ा कारण प्रोडक्ट या सर्विस की मांग कम होना है। वहीं कई स्टार्टअप पैसे के अभाव में बंद हो जाते हैं। इसकी वजह उनका सस्टेनेबल बिजनेस मॉडल न बनाना होता है।
सफलता
सफल स्टार्टअप समस्या को पहचान कर उन्हें रियलटाइम में हल करने की कोशिश करते हैं। यूनिक और रचनात्मक हल आपको प्रतिस्पर्धा में फायदा पहुंचाता है। प्रभावशाली नेतृत्व स्टार्टअप की सफलता के बड़े कारणों में से एक है। सही समय पर मार्केट में आने से भी लाभ पहुंचता है।
रघुनंदन सर्राफ बताते हैं कि सफलता के लिए जरूरी है कि आपका उत्पाद शानदार हो। आपकी बाजार की रणनीति उम्दा हो, साथ ही आपके संस्थान की संरचना मजबूत हो।
सिद्धार्थ मौर्या कहते हैं कि एक अनुभवी और काबिल टीम सफलता का बड़ा फैक्टर होती है। ऐसा उत्पाद बनाएं जो ग्राहकों की जरूरतों पर खरा उतरे। वहीं अन्य कंपनियों से पार्टनरशिप से आपको रिसोर्स, ग्राहक और विशेषज्ञता का लाभ मिल जाता है जो स्टार्टअप की तरक्की में अहम होता है।
5 टी का महत्व
लखानी कहते हैं कि स्टार्टअप की सफलता का मुख्य कारण 5T है - ट्रैक्शन, टाइमिंग, टैम, टीम और टेक्नोलॉजी। जब आपके पास इन सभी चीजों का मिश्रण होता है तो आपके स्टार्टअप के सफल होने की संभावना बहुत अधिक होती है। जब ऊपर से 2 या अधिक कम हो जाएंगे तो संभावना है कि यह विफल हो जाएगा या पिछड़ जाएगा।
स्वामित्व भारत में होना चाहिए
2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण में मंगलवार को कहा गया है कि स्टार्टअप्स का स्वामित्व भारत में होना चाहिए। दरअसल फ्लिपिंग जो एक भारतीय कंपनी के संपूर्ण स्वामित्व को एक विदेशी संस्था को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया है, जिसमें सभी आईपी और भारतीय कंपनी के स्वामित्व वाले सभी डेटा का स्थानांतरण होता है। रिवर्स फ्लिपिंग की स्थिति में इसे फिर से इस देश में लाने की बात है। इस प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कुछ उपाय संभव हैं। जैसे स्टार्टअप्स के लिए इंटर-मिनिस्ट्रियल बोर्ड (आईएमबी) सर्टिफिकेशन प्रदान करने की प्रक्रिया को सरल बनाना, कर्मचारी स्टॉक विकल्पों के टैक्सेशन को और सरल बनाना, टैक्स की कई परतों को सरल बनाना और टैक्स लिटिगेशन और पूंजी प्रवाह को और आसान बनाना आदि। आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि सरकार और अन्य हितधारकों को सर्वोत्तम प्रथाओं और अत्याधुनिक स्टार्टअप परामर्श प्लेटफार्मों को विकसित करने के लिए स्थापित निजी संस्थाओं के साथ बेहतर सहयोग और साझेदारी की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।
फंडिंग
डा. दीपक जैन कहते हैं, परंपरागत फंडिंग के तरीकों के साथ स्टार्टअप क्राउडफंडिंग, एंजेल इंवेस्टिंग और एक्सीलेटर प्रोग्राम को चुन सकते हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म सीडइंवेस्ट, एंजेललिस्ट और फंडर्सक्लब स्टार्टअप को निवेशक से जोड़ने और फंड लाने में मदद करते हैं।
रघुनंदन सर्राफ बताते हैं कि स्टार्टअप फंडिंग 108 फीसद की दर से बढ़ी है। इस मुल्क में यह ग्रोथ सबका ध्यान आकर्षित करने वाली है। स्टार्टअप को विभिन्न तरह की सहायता मंत्रालयों और विभागों द्वारा दी जाती है।
लोकेंद्र सिंह राणावत कहते हैं कि मैच्योर स्टार्टअप के सामने आने के कारण फंडिंग सुधरी है। माइक्रो मैनेजमेंट, ट्रेकिंग रिकॉर्ड और नए इनोवेशन ने भी इसे बेहतर बनाने का काम किया है।
डेल्फाइन वर्गीज बताते हैं कि बीते कुछ सालों में स्टार्टअप का इकोसिस्टम शानदार हुआ है। 2022 तक पंजीकृत स्टार्टअप ने 36 बिलियन डॉलर की फंडिंग बीते तीन साल में जुटाई थी। हमारे देश में 26 यूनिकॉर्न हैं। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि किस तरह स्टार्टअप की फंडिंग बीते कुछ सालों में शानदार हुई है।
वर्गीज कहते हैं कि भारत दुनिया भर में एंजेल इंवेस्टर और वेंचर कैपिटलिस्ट के लिए एक शानदार बाजार है। बढ़ते इनक्यूबेटर और एक्सीलेटर को सरकार का लगातार सहयोग मिल रहा है। सरकार उन्हें टेक्निकल और फंडरेजिंग सपोर्ट मुहैया करा रही है।
मौर्या कहते हैं कि वेंचर कैपिटल, एंजेल निवेश और क्राउडफंडिंग बीते कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है। इसने स्टार्टअप के सामने विकल्प बढ़ाए हैं। निवेशक शुरुआती स्तर के स्टार्टअप को समर्थन देने के लिए तैयार हैं।
ऑपरेशन
डा. दीपक जैन कहते हैं, क्लाउड बेस्ड सर्विस से स्टार्टअप अपने ऑपरेशन का प्रबंधन किफायती कीमत पर कर सकता है। नई तकनीक जैसे मशीन लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ब्लॉकचेन स्टार्टअप की प्रगति के माध्यम बनते हैं। ग्राहक की जरूरतों को पूरा करने, समस्या को हल करने वाले प्रयोगों पर अधिक जोर देना होगा। ग्राहक की संतुष्टि सबसे अहम है।