भुरभुरी मिट्टी, खराब ड्रेनेज सिस्टम और अनियंत्रित निर्माण से हुआ भू-धंसाव, पहाड़ के अन्य शहर भी इसकी चपेट में
जोशीमठ धीरे-धीरे अपना सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अस्तित्व खो रहा है। जोशीमठ की तरह ही उत्तराखंड के कई पहाड़ी शहर हैं जो सालों से दरारों और भूधंसाव की चपेट में हैं। उत्तरकाशी टिहरी और रुद्रप्रयाग में भी सैकड़ों भवन और होटलों में दरारें दिख रही हैं।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। आदि गुरु शंकराचार्य की तपोभूमि ज्योर्तिमठ पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। सर्दी के छह महीनों के दौरान जब बद्रीनाथ मंदिर बर्फ से ढंका होता है तब भगवान विष्णु की पूजा जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में ही होती है। बद्रीनाथ के रावल (पुजारी) मंदिर के कर्मचारियों के साथ जोशीमठ में तब तक रहते हैं जब तक मंदिर का कपाट जाड़े के बाद नहीं खुल जाता। लेकिन जोशीमठ धीरे-धीरे अपना सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अस्तित्व खो रहा है। जोशीमठ की तरह ही उत्तराखंड के कई पहाड़ी शहर हैं जो सालों से दरारों और भूधंसाव की चपेट में हैं। उत्तरकाशी, टिहरी और रुद्रप्रयाग में भी सैकड़ों भवन और होटलों में दरारें दिख रही हैं।