एस.के. सिंह, नई दिल्ली।

देश में 1 अप्रैल 2023 से नई विदेश व्यापार नीति लागू हो गई है। इसमें वर्ष 2030 तक सालाना निर्यात दो लाख करोड़ डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने में लघु, छोटी एवं मझोली (एमएसएमई) इकाइयों का अहम योगदान रहेगा, क्योंकि कुल निर्यात में इनका हिस्सा 50% के आसपास है। देश के 6.33 करोड़ एमएसएमई जीडीपी में 30% योगदान करते हैं तथा इन्होंने करीब 11 करोड़ लोगों को रोजगार दे रखा है। भारतीय निर्यातकों के सबसे बड़े संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस (FIEO) के प्रेसिडेंट डॉ. ए. शक्तिवेल जागरण प्राइम से कहते हैं, “नई विदेश व्यापार नीति खासकर एमएसएमई श्रेणी के निर्यातकों के लिए इन्सेंटिव आधारित व्यवस्था से एक प्रतिस्पर्धी व्यवस्था में जाने का रोड मैप है। इसमें ऑटोमेशन, टेक्नोलॉजी और प्रोसेस री-इंजीनियरिंग के माध्यम से व्यापार की सहूलियतों पर फोकस किया गया है, ताकि एमएसएमई निर्यातकों के लिए लेन-देन की लागत और समय, दोनों की बचत हो सके।” इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Elcina) के सेक्रेटरी जनरल राजू गोयल कहते हैं, “नई नीति में निर्यातकों को कई तरीके से समर्थन दिया गया है। इसकी सफलता नीति को प्रभावी तरीके से लागू करने पर निर्भर करेगी।”

विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर हम बता रहे हैं कि नई विदेश व्यापार नीति (FTP 2023) में MSME के फायदे की 10 खास बातें कौन सी हैं। साथ ही यह भी कि इस नीति के प्रावधानों का वे कैसे इस्तेमाल करें ताकि उन्हें अधिक से अधिक लाभ मिल सके। प्लांट और मशीनरी में एक करोड़ रुपये तक निवेश और सालाना पांच करोड़ रुपये टर्नओवर वाली इकाई माइक्रो, 10 करोड़ तक निवेश और 50 करोड़ तक टर्नओवर वाली इकाई स्मॉल तथा 50 करोड़ रुपये तक निवेश और 250 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाली इकाई मीडियम श्रेणी में आती है।

जिलों के निर्यात हब बनने से लाभ

शक्तिवेल कहते हैं, “यह नीति सहयोग की भावना पर आधारित है। इसमें जिलों को भी शामिल किया गया है। जिलों को निर्यात हब के रूप में विकसित करने की योजना का मकसद वहां सप्लाई की दिक्कतें दूर करना, निर्यात के लायक उत्पादों की पहचान कर उनके निर्यात को बढ़ावा देना है। यह इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि ज्यादातर टियर 2 और डियर 3 शहरों में मैन्युफैक्चरिंग एमएसएमई इकाइयां ही करती हैं।”

इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Elcina) के सेक्रेटरी जनरल राजू गोयल के अनुसार जिला स्तर पर एमएसएमई निर्यात को बढ़ावा देने से सबसे निचले स्तर पर ट्रेड ईकोसिस्टम के विकास की गति तेज होगी। जिला स्तर पर निर्यात योग्य उत्पादों और सर्विसेज की पहचान की जाएगी तथा वहां के एमएसएमई की समस्याएं भी दूर की जाएंगी। पॉलिसी में जिला विशेष निर्यात एक्शन प्लान बनाने की बात कही गई है और ऐसा हर जिले में किया जाएगा। इस तरह हर जिले से उत्पादों और सर्विसेज का निर्यात बढ़ाने के लिए विशेष रणनीति बनेगी।

ई-कॉमर्स निर्यात से फायदा

नई नीति में एमएसएमई की तरफ से ई-कॉमर्स निर्यात की संभावनाओं पर भी गौर किया गया है। शक्तिवेल के अनुसार इन इकाइयों के पास अच्छे उत्पाद और बेहतर सर्विस होती हैं, लेकिन पैसे की कमी और मार्केटिंग स्किल न होने के कारण उन्हें निर्यात में दिक्कत आती है। नीति में कूरियर के जरिए ई-कॉमर्स निर्यात की सीमा पांच लाख रुपये से बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दी गई है।

ई-कॉमर्स निर्यात अभी 25 अरब डॉलर के आसपास है जो 2030 तक 300 अरब डॉलर तक जा सकता है। निर्यातकों को जागरूक करने के लिए ‘सेन्सिटाइजेशन प्रोग्राम’, ई-कॉमर्स जोन की स्थापना, ई-कॉमर्स को सामान्य निर्यात के बराबर लाभ देना, इन सब कदमों से इस सेक्टर की संभावनाओं का अधिक से अधिक दोहन हो सकेगा। गोयल कहते हैं, ई-कॉमर्स हब की स्थापना तथा ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) से इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री को अपनी ग्रोथ बढ़ाने में आवश्यक मदद मिलेगी।

ऑथराइजेशन फीस में कटौती

शक्तिवेल के अनुसार एमएसएमई के लिए ऑथराइजेशन फीस में बड़ी कटौती की गई है। नई नीति आने से पहले एमएसएमई निर्यातक अगर ईपीसीजी (EPCG) स्कीम के तहत कैपिटल गुड्स यानी मशीनरी का आयात करता था तो एक करोड़ रुपये के ऑथराइजेशन के लिए उसे 10,000 रुपये देने पड़ते थे, अब उसे सिर्फ 100 रुपये की फीस देनी पड़ेगी। ऑथराइजेशन जारी करने की समय सीमा भी तीन दिन से घटाकर एक दिन और फॉलोअप एक्शन की समय सीमा 30 दिन से घटाकर एक दिन कर दी गई है।

गोयल कहते हैं, एमएसएमई इकाइयां इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री का आवश्यक अंग हैं तथा इसकी ग्रोथ में मदद करती हैं। एडवांस अथॉराइजेशन तथा ईपीसीजी स्कीम के तहत एमएसएमई के लिए यूजर चार्ज में कमी से इन इकाइयों का ऑपरेशनल खर्च कम होगा और वे आगे निर्यात के लिए प्रोत्साहित होंगी।

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस

गोयल के अनुसार, नई सब्सिडी की घोषणा करने के बजाय नीति में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस पर फोकस किया गया है। भारतीय छोटे और मझोले उपक्रमों को ग्लोबल वैल्यू चेन के साथ जोड़ने की बात कही गई है। विभिन्न प्रक्रियाओं के ऑटोमेशन और पेपरलेस एप्लीकेशन फाइलिंग से ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के सरकार के उद्देश्य में मदद मिलेगी, लेकिन कंपनियों को भी डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया के साथ चलने के लिए अपना सिस्टम सुधारना होगा।

स्टार हाउस का दर्जा मिलना आसान

शक्तिवेल के अनुसार 2, 3, 4 और 5 स्टार एक्सपोर्ट हाउस का दर्जा हासिल करने के लिए निर्यात की सीमा कम कर दी गई है। इससे एमएसएमई स्टार एक्सपोर्ट हाउस का दर्जा जल्दी हासिल कर सकेंगे। इसका फायदा उन्हें मार्केटिंग और ब्रांडिंग में मिलेगा।

गोयल कहते हैं, अब ज्यादा संख्या में निर्यातक 4 और 5 स्टार रेटिंग हासिल कर सकेंगे। निर्यातकों को उनके निर्यात प्रदर्शन के आधार पर स्टार स्टेटस दिया जाता है। यह स्टेटस पाने वाले निर्यातकों को कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं। जैसे, उन्हें एफटीपी के तहत किसी स्कीम का फायदा लेने के लिए बैंक गारंटी की जरूरत नहीं पड़ती, कस्टम क्लीयरेंस में भी उनमें प्राथमिकता दी जाती है।

मार्केट एक्सेस इनीशिएटिव

गोयल के अनुसार मार्केट एक्सेस इनीशिएटिव (MAI) स्कीम का ज्यादा फायदा एमएसएमई को ही मिलेगा। हालांकि यह तब और अधिक फायदेमंद होगा अगर निर्धारित फंड का एक निश्चित हिस्सा एमएसएमई के लिए तय कर दिया जाए। गौरतलब है कि पॉलिसी में फरीदाबाद, मिर्जापुर, मुरादाबाद और वाराणसी को टाउन ऑफ एक्सपोर्ट एक्सीलेंस (TEE) का दर्जा दिया गया है। इससे हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट और कार्पेट आदि का निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी। 39 शहरों को पहले ही यह दर्जा मिल चुका है। एमएआई स्कीम के तहत इन शहरों को प्राथमिकता के साथ एक्सपोर्ट प्रमोशन फंड मुहैया कराया जाएगा। ये शहर ईपीसीजी स्कीम के तहत कॉमन सर्विस प्रोवाइडर का लाभ भी ले सकते हैं। अगर कॉमन सर्विस प्रोवाइडर कोई मशीन लगाना चाहता है तो उसे ड्यूटी में छूट मिलेगी। इन शहरों की एसोसिएशन को प्रोडक्ट मार्केटिंग में सरकार मदद करेगी।

निर्यात ऑब्लिगेशन में राहत

गोयल के मुताबिक एडवांस ऑथराइजेशन और ईपीसीजी स्कीम के तहत निर्यात ऑब्लिगेशन पूरा न करने वाले आयातकों को एक बार के लिए विशेष एमनेस्टी स्कीम से काफी काफी राहत मिलेगी। ड्यूटी और ब्याज भुगतान में कमी की जाती तो ऑथराइजेशन धारकों को और सहूलियत मिलती।

विशेष एमनेस्टी स्कीम ‘विवाद से विश्वास’ पहल के तहत लाई गई है। यह उन निर्यातकों के लिए है जो ईपीसीजी और एडवांस ऑथराइजेशन के तहत जरूरी निर्यात नहीं कर सके। डिफॉल्ट करने वाले निर्यातक को निर्यात ऑब्लिगेशन के तहत कस्टम ड्यूटी मिली छूट लौटानी होगी। इस पर अधिकतम 100% ब्याज लगेगा। एडिशनल कस्टम ड्यूटी और स्पेशल एडिशनल कस्टम ड्यूटी पर कोई ब्याज नहीं देना पड़ेगा।

टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए विशेष

शक्तिवेल के अनुसार, गारमेंट सेक्टर के लिए डीजीएफटी ने स्पेशल एडवांस अथॉराइजेशन स्कीम में संशोधन किया है। इससे उन गारमेंट का निर्यात भी संभव हो सकेगा जिनके इनपुट-आउटपुट के मानक अभी तय नहीं हैं। फैशन जगत में तेजी से होने वाले बदलावों को देखते हुए यह कदम महत्वपूर्ण है। स्टार स्टेटस के पैमाने में बदलाव से भी टेक्सटाइल इंडस्ट्री को काफी फायदा मिलेगा। यह इंडस्ट्री स्किल्ड मैनपावर की तलाश में है ताकि 2027 तक 100 अरब डॉलर के टेक्सटाइल निर्यात का लक्ष्य हासिल किया जा सके।

उन्होंने सुझाव दिया कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री को वैल्यू ऐडेड सेगमेंट की तरफ बढ़ना चाहिए। जो कंपनियां अभी यार्न का निर्यात करती हैं, उन्हें वैल्यू एड करते हुए फैब्रिक का निर्यात करना चाहिए। फैब्रिक निर्यात करने वाली कंपनियों को गारमेंट की तरफ बढ़ना चाहिए।

मर्चेंटिंग ट्रेड की अनुमति

मर्चेंटिंग ट्रेड में अभी तक नियम यह था कि कोई निर्यातक सिर्फ उन्हीं प्रोडक्ट में डील कर सकता है जिनके निर्यात और आयात की भारत में अनुमति है। नई नीति के अनुसार, स्कोमेट और लुप्तप्राय प्रजाति के जीवों को छोड़कर बाकी किसी भी प्रोडक्ट के लिए मर्चेंटिंग ट्रेड की अनुमति होगी। एमएसएमई के लिए इसे इस लिहाज से भी अच्छा कहा जा सकता है कि लगभग एक तिहाई एमएसएमई इकाइयां ट्रेडिंग बिजनेस में ही हैं।

ग्रीन एनर्जी निर्यात

गोयल ने कहा, स्कोमेट से संबंधित प्रावधान इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। ग्रीन टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट में ईपीसीजी स्कीम के तहत एक्सपोर्ट ऑब्लिगेशन की जरूरतें कम करने से ग्रीन एनर्जी निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।

गोयल कहते हैं, एफटीपी 2023 एक डायनेमिक पॉलिसी है जिसका लक्ष्य आने वाले वर्षों में निर्यात और इसकी गति को कई गुना बढ़ाना है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, टेक्नोलॉजी इंटरफेस तथा सहयोग पर जोर देने वाली यह पॉलिसी निर्यात बढ़ाने में मदद करेगी। साथ ही एमएसएमई एवं अन्य बिजनेस को निर्यात के फायदे उठाने के लिए एक बेहतर वातावरण मिल सकेगा। विदेश व्यापार नीति में जिलों को निर्यात हब के रूप में विकसित करने से पूरे देश में इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री का संतुलित विकास हो सकेगा।

उन्होंने कहा कि एफटीपी 2023 इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन एवं मैन्युफैक्चरिंग (ESDM) इंडस्ट्री के लिए काफी महत्वपूर्ण है। आयात और निर्यात के अलावा ई-कॉमर्स में इस इंडस्ट्री का बड़ा योगदान है। यह नीति मौजूदा वित्त वर्ष में भारत से 16 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात के लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद करेगी। 2026 तक देश में 300 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन के महत्वकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए 100 अरब डॉलर का निर्यात जरूरी है।

शक्तिवेल के मुताबिक विदेश व्यापार नीति को डायनेमिक रखना अच्छा कदम है। इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में होने वाले बदलावों के अनुरूप रियल टाइम में भारत में भी बदलाव किए जा सकते हैं। लेकिन इससे मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट को लेकर कुछ आशंकाएं पैदा हो रही हैं। कोई भी निर्यातक मौजूदा पॉलिसी में मिल रहे फायदों और सुविधाओं के आधार पर कॉन्ट्रैक्ट करता है। इसलिए अगर विदेश व्यापार नीति में आगे संशोधन हो तो निर्यातकों को 3 से 6 महीने का ट्रांजिशन समय मिलना चाहिए ताकि वे अपने पुराने ऑर्डर को पूरा कर सकें। हमने सरकार से इसकी मांग की है। हमें उम्मीद है कि सरकार इस मांग को स्वीकार करेगी ताकि निर्यातकों की अनिश्चितता दूर हो सके।

हालांकि लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और फियो के पूर्व प्रेसिडेंट एस.सी. रल्हन इसकी कुछ कमियां भी बताते हैं। वे कहते हैं, “एमएसएमई की दो मुख्य जरूरतें हैं और एफटीपी में उनके बारे में कुछ नहीं कहा गया है। एक तो एमएसएमई को ज्यादा फंड की जरूरत है। सरकार ने कोविड-19 संकट के दौरान जो इमरजेंसी क्रेडिटलाइन (ECLGS) की व्यवस्था की थी, उस तर्ज पर एक और क्रेडिट लाइन शुरू की जानी चाहिए, क्योंकि एमएसएमई इकाइयां अब भी फंड की कमी से जूझ रही हैं। प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (PLI) स्कीम का विस्तार भी एमएसएमई निर्यातकों के लिए किया जाना चाहिए। उनके लिए निवेश की सीमा को कम किया जाना चाहिए।” रल्हन के मुताबिक एमएसएमई की मदद इस तरह की जानी चाहिए कि वे बड़ी इंडस्ट्री बनने की ओर बढ़ सकें। केंद्र सरकार ने कई प्रावधान किए हैं, लेकिन राज्यों को भी तेजी से उन पर अमल करना चाहिए।

उन्होंने कहा, एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत अगर किसी प्रोडक्ट के लिए जिले में पार्क नहीं है तो वह स्थापित किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए पंजाब में हैंड टूल के लिए कोई पार्क नहीं है। टैक्स रिफंड में भी समस्या है। हमने हैंड टूल इंडस्ट्री के लिए आंकड़े तैयार करके दिए थे, लेकिन हमें क्लेम की तुलना में बहुत कम टैक्स रिफंड दिया गया। बड़ी इंडस्ट्री तो प्रभावित नहीं होती, लेकिन इन बातों से एमएसएमई पर बहुत असर पड़ता है।