महंगे क्रूड से रुपये की वैल्यू घटने का अंदेशा, इससे इलेक्ट्रॉनिक गुड्स, खाद्य तेल, दाल सबका आयात महंगा होगा
जून तिमाही में रूस से आयात होने वाले कच्चे तेल की औसत कीमत 66 डॉलर प्रति बैरल थी जो अब 80 डॉलर तक पहुंच गई है। बार्कलेज रिसर्च का आकलन है कि कच्चा तेल 10 डॉलर महंगा होता है तो चालू खाते का घाटा 0.35% बढ़ने की आशंका रहती है। इसके अलावा जीडीपी विकास दर में भी 0.10-0.15% गिरावट आ सकती है।
प्राइम टीम, नई दिल्ली। कच्चे तेल का दाम धीरे-धीरे बढ़ते हुए 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गया है। इसकी अलग-अलग किस्मों को मिलाकर बनने वाला भारतीय बास्केट क्रूड पिछले महीने 97 डॉलर को पार कर गया। दूसरी तरफ, चालू खाते के घाटे (Current Account Deficit) में दो तिमाही में सात गुना की वृद्धि हुई है। इसका एक बड़ा कारण महंगा कच्चा तेल है क्योंकि कुल आयात में लगभग एक-चौथाई हिस्सा इसी का होता है। हाल के महीनों में क्रूड आयात की मात्रा कम हुई है, लेकिन दाम अधिक होने के कारण भुगतान ज्यादा करना पड़ा है। सोने के आयात में भी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन यूरोप और चीन में आर्थिक सुस्ती के कारण फैक्टरी में बनी वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आई है। इससे भी चालू खाते का घाटा बढ़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति में रुपये पर दबाव बढ़ेगा और डॉलर की तुलना में इसकी कीमत 84 तक जा सकती है। इस दुष्चक्र के कारण कच्चे तेल के अलावा इलेक्ट्रॉनिक गुड्स, सेमीकंडक्टर, खाद्य तेल, दाल समेत सभी चीजों का आयात और महंगा हो सकता है।