प्राइम टीम, नई दिल्ली। कच्चे तेल का दाम धीरे-धीरे बढ़ते हुए 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गया है। इसकी अलग-अलग किस्मों को मिलाकर बनने वाला भारतीय बास्केट क्रूड पिछले महीने 97 डॉलर को पार कर गया। दूसरी तरफ, चालू खाते के घाटे (Current Account Deficit) में दो तिमाही में सात गुना की वृद्धि हुई है। इसका एक बड़ा कारण महंगा कच्चा तेल है क्योंकि कुल आयात में लगभग एक-चौथाई हिस्सा इसी का होता है। हाल के महीनों में क्रूड आयात की मात्रा कम हुई है, लेकिन दाम अधिक होने के कारण भुगतान ज्यादा करना पड़ा है। सोने के आयात में भी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन यूरोप और चीन में आर्थिक सुस्ती के कारण फैक्टरी में बनी वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आई है। इससे भी चालू खाते का घाटा बढ़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति में रुपये पर दबाव बढ़ेगा और डॉलर की तुलना में इसकी कीमत 84 तक जा सकती है। इस दुष्चक्र के कारण कच्चे तेल के अलावा इलेक्ट्रॉनिक गुड्स, सेमीकंडक्टर, खाद्य तेल, दाल समेत सभी चीजों का आयात और महंगा हो सकता है।

इस खबर का वीडियो देखने के लिए क्लिक करें

पेट्रोलियम मंत्रालय के पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के अनुसार इंडियन बास्केट क्रूड की कीमत 28 सितंबर को 97.03 प्रति बैरल पहुंच गई थी। हालांकि 2 अक्टूबर को यह घटकर 93.46 डॉलर पर आ गई। अप्रैल में इसकी औसत कीमत 83.76 डॉलर, मई में 74.98 डॉलर, जून में 74.93 डॉलर, जुलाई में 80.37 डॉलर, अगस्त में 86.43 डॉलर और सितंबर में औसत कीमत 93.54 डॉलर प्रति बैरल थी। दाम बढ़ने के कारण आयात की मात्रा कम होने के बावजूद भुगतान अधिक करना पड़ा है। क्रूड आयात के बदले अप्रैल में 10.85 अरब डॉलर, मई में 10.61 अरब डॉलर, जून में 10.02 अरब डॉलर, जुलाई में 10.33 अरब डॉलर और अगस्त में 10.88 अरब डॉलर का भुगतान करना पड़ा। त्योहारों का सीजन शुरू होने के कारण अक्टूबर-दिसंबर के दौरान कच्चे तेल की मांग बढ़ने के ही आसार हैं।

दूसरी तरफ, रिजर्व बैंक के अनुसार भारत का चालू खाते का घाटा (करंट अकाउंट डेफिसिट) अप्रैल-जून तिमाही में 9.2 अरब डॉलर यानी जीडीपी के 1.1% पर पहुंच गया। उससे पहले की तिमाही में यह सिर्फ 1.3 अरब डॉलर था जो जीडीपी का 0.2% था। सितंबर तिमाही में इसके और बढ़ने के आसार हैं। चालू खाते के घाटे में बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण व्यापार घाटे का बढ़ना है। एक तरफ कच्चे तेल का भुगतान बढ़ा है तो दूसरी तरफ पश्चिमी देशों और चीन में मांग कम होने की वजह से भारत से मर्चेंडाइज निर्यात में गिरावट आई है। सरकार के निर्यात पोर्टल पर दी जानकारी के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल से अगस्त तक 171.32 अरब डॉलर का निर्यात हुआ, जबकि पिछले साल इन पांच महीने में 191.27 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था।

कच्चे तेल के अलावा सोना आयात में भी वृद्धि हुई है। अगस्त में 4.93 अरब डॉलर का सोना आयात हुआ जो एक साल पहले की तुलना में 39 प्रतिशत ज्यादा है। अप्रैल से अगस्त तक 18.13 अरब डॉलर का सोना आयात हुआ और इसमें 10.5% की वृद्धि हुई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि घाटा अधिक होने, खासकर कच्चे तेल की कीमतें ऊंचे रहने के कारण रुपये पर दबाव बढ़ेगा। कुछ विशेषज्ञ अगले दो महीने में डॉलर की तुलना में रुपया 84 तक पहुंचने का अंदेशा भी जता रहे हैं। हालांकि अभी तक रुपये का प्रदर्शन अन्य विकासशील देशों की करेंसी की तुलना में बेहतर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि आरबीआई के पास 600 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी मुद्रा भंडार है, इसलिए उसे रुपये के स्तर में गिरावट से ज्यादा चिंता नहीं होना चाहिए।

क्रूड उत्पादन में कटौती का असर दाम पर

सऊदी अरब ने जुलाई में तेल उत्पादन में 10 लाख बैरल रोजाना कटौती की घोषणा की थी। उस समय बाजार पर इसका खास असर नहीं हुआ था। उसके बाद रूस ने रोजाना तीन लाख बैरल उत्पादन घटा दिया। सितंबर के पहले हफ्ते में दोनों देशों ने उत्पादन में कटौती तीन महीने तक बढ़ाने का ऐलान किया। उसके बाद से कच्चे तेल के दाम तेजी से बढ़ने लगे। सऊदी अरब ने अक्टूबर महीने के लिए एशियाई देशों को होने वाले निर्यात की कीमतों में भी बढ़ोतरी की घोषणा की है।

अब तक ऐसा होता रहा है कि जब ओपेक देश और रूस तेल उत्पादन में कटौती की घोषणा करते थे तो दूसरे देश, खासकर अमेरिका शेल ऑयल का उत्पादन बढ़ा देता था। इससे बाजार में दाम ज्यादा नहीं बढ़ते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक में कहा है कि कच्चे तेल की मांग 2030 से पहले अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचेगी। इससे अंदाजा मिलता है कि आने वाले समय में क्रूड ऑयल की डिमांड बनी रहेगी, जिसका असर इसकी कीमतों पर भी देखने को मिलेगा। हालांकि आईईए ने यह भी कहा है कि अगर नेट जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करना है तो वर्ष 2030 तक तेल की डिमांड एक तिहाई कम करनी पड़ेगी।

रूस से फिर बढ़ा कच्चे तेल का आयात

एजेंसियों ने जल्दी ही ब्रेंट क्रूड की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने का अनुमान व्यक्त किया है। जेपी मॉर्गन ने तो दाम 150 डॉलर तक पहुंचने का अंदेशा जताया है। ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत बढ़ाने के कारण सितंबर में रूस से भारत का आयात बढ़ा है। अगस्त में रूस से आयात सात महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया था, लेकिन सऊदी अरब और मध्य पूर्व के अन्य देशों के दाम बढ़ाने के कारण भारत ने सितंबर में रूस से आयात बढ़ा दिया।

ऑयल प्राइस डॉट कॉम के अनुसार पिछले महीने रूस से प्रतिदिन 15.5 लाख बैरल कच्चा तेल आयात किया गया। यह अगस्त की तुलना में 16% ज्यादा है। भारत ने जून में रूस से प्रतिदिन औसतन 22 लाख बैरल और जुलाई में 15 लाख बैरल कच्चा तेल आयात किया था। सितंबर में रूस से आयात बढ़ा है तो सऊदी अरब से आयात में 10% गिरावट का अनुमान है। वहां से प्रतिदिन औसतन 6.76 लाख बैरल कच्चा तेल आयात किया गया। रूस इस समय भारत को अपने प्रमुख उराल ग्रेड का कच्चा तेल 80 डॉलर प्रति बैरल के दम पर बेच रहा है। मध्य पूर्व के देशों की तुलना में उराल ग्रेड के कच्चे तेल की कीमत 10 डॉलर प्रति बैरल कम है।

महंगा क्रूड घाटा बढ़ाएगा

भारत के कुल आयात में लगभग एक चौथाई हिस्सा कच्चे तेल का होता है। जून तिमाही में रूस से आयात होने वाले कच्चे तेल की औसत कीमत 66 डॉलर प्रति बैरल थी जो अब 80 डॉलर तक पहुंच गई है। बार्कलेज रिसर्च का आकलन है कि कच्चा तेल 10 डॉलर महंगा होता है तो चालू खाते का घाटा 0.35% बढ़ने की आशंका रहती है। इसके अलावा, जीडीपी विकास दर भी 0.10-0.15% घट सकती है।

एचडीएफसी बैंक का अनुमान है कि सितंबर तिमाही में चालू खाते का घाटा जीडीपी के 2.2 प्रतिशत से 2.4% तक हो सकता है। आईडीएफसी बैंक का आकलन है कि अगर मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में कच्चे तेल की औसत कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल रहती है तो पूरे साल में चालू खाते का घाटा जीडीपी का 2.5 का प्रतिशत होगा। वित्त वर्ष 2022-23 में चालू खाते का घाटा 67 अरब डॉलर यानी जीडीपी का 2% था। रेटिंग एजेंसी इक्रा का अनुमान है कि मौजूदा वित्त वर्ष में यह 73 से 75 अरब डॉलर यानी जीडीपी का 2.1% तक पहुंच सकता है।

रुपया सस्ता हुआ तो आयात महंगा होगा

भारत निर्यात से ज्यादा आयात करता है, इसलिए यह हमेशा व्यापार घाटे में रहता है। वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार 2022-23 में भारत ने 450.95 अरब डॉलर का निर्यात किया, जबकि आयात 714.04 अरब डॉलर का था। इसी तरह 2011-22 में 422 अरब डॉलर के निर्यात की तुलना में 613.05 अरब डॉलर का आयात हुआ।

चालू खाते के घाटे में व्यापार घाटा का बड़ा हिस्सा होता है। क्रूड इंपोर्ट बिल बढ़ने पर व्यापार घाटा और आखिरकार चालू खाते का घाटा बढ़ेगा। इससे रुपये पर दबाव भी बढ़ेगा, यानी डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत घटेगी। रिजर्व बैंक ने डॉलर का नवीनतम एक्सचेंज रेट 83.05 रुपये (29 सितंबर) तय किया है। कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि निकट भविष्य में यह 84 रुपये तक जा सकता है। ऐसा हुआ तो कच्चे तेल के अलावा सोना, सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक गुड्स जैसी महंगी वस्तुओं के आयात का खर्च और बढ़ जाएगा। मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल से अगस्त तक कुल आयात बिल में क्रूड का हिस्सा 25.12%, इलेक्ट्रॉनिक्स का 13% और सोने का 6.7% रहा है। यह दुष्चक्र चालू खाता के घाटे को और बढ़ाएगा।