नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। ड्रग्स का कोई धर्म नहीं होता, कोई जाति नहीं होती, लेकिन यह समस्या भारतीय युवाओं को तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रही है। समस्या काफी बड़ी है। भारत के खिलाफ जंग में ड्रग्स को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। कई इंटेलिजेंस रिपोर्ट में इस साजिश का भंडाफोड़ हुआ है। साजिश युवा पीढ़ी को बर्बाद करने की है। इसके लिए गली-मुहल्लों की दुकानों से लेकर स्कूल-कॉलेजों तक ड्रग्स की सप्लाई की जा रही है। हाल में याबा ड्रग का चलन तेजी से बढ़ा है। देश में बीते 6 साल में इस ड्रग की जब्ती 235% बढ़ी है। इसके पीछे कई किरदार हैं- म्यांमार और बांग्लादेश के ड्रग्स तस्कर, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई, आतंकवादी संगठन आईएम, चीन और रोहिंग्या। भारत में घुसपैठ करने वाले रोहिंग्या अपने साथ बड़े पैमाने पर याबा ड्रग लेकर आते हैं। जागरण प्राइम ने इस बारे में विशेषज्ञों और अधिकारियों से बात की तो पूरा सीन कुछ इस तरह बना… इस ड्रग को बनाने के लिए कच्चे माल की सप्लाई चीन से होती है, म्यांमार और बांग्लादेश के सीमाई इलाकों में ड्रग बनाई जाती है, फिर रोहिंग्या घुसपैठियों के साथ उसे भारत भेजा जाता है। ड्रग्स बेचना और उस पैसे से भारत विरोधी कार्यों में लिप्त रहना, नारकोटिक्स बेचने का पूरा चैनल तैयार करना- यह सब आईएसआई और आईएम करते हैं। इनकी मदद से रोहिंग्या बड़े ड्रग स्मगलर बनते जा रहे हैं। भारत में इनकी घुसपैठ को विभिन्न जगहों पर डेमोग्राफी बदलने की साजिश के तौर पर भी देखा जा रहा है। जैसा कि विशेषज्ञ कहते हैं, रोहिंग्या की बढ़ती संख्या एक रेडिकल फोर्स तैयार कर रही है जो आने वाले समय में आतंकवाद का ब्रीडिंग ग्राउंड बन सकती है।

प्राइम के लेख सीमित समय के लिए ही फ्री हैं। इस लेख को पढ़ने के लिए लॉगइन करें।

रुकावट मुक्त अनुभव
बुकमार्क
लाइक