एस.के. सिंह, नई दिल्ली। भारत के टियर-2 शहर टेक्नोलॉजी के नए हब के रूप में उभर रहे हैं। पुणे, कोच्चि, भोपाल, चंडीगढ़, रायपुर, अहमदाबाद, जबलपुर, नागपुर, कोयंबटूर जैसे शहरों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और सॉफ्टवेयर एज ए सॉल्यूशन (SaaS) कंपनियां तेजी से खड़ी हो रही हैं। कारण यह है कि बेंगलुरु, हैदराबाद या चेन्नई जैसे शहरों की तुलना में टियर-2 शहरों में इन कंपनियों का ऑपरेशनल खर्च 40% तक कम होता है। कर्मचारियों के लिए रोज की भागदौड़ कम होती है सुकून भी रहता है। इसलिए महानगरों में काम करने वाले भी अपने मूल निवास के करीब इन शहरों में लौट रहे हैं। ऐसा नहीं कि भारत की सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले बेंगलुरु या हैदराबाद जैसे शहरों का आकर्षण खत्म हो गया है। युवा अब इन शहरों में बेहतर एक्सपोजर के लिए जाना चाहते हैं, उसके बाद उनकी कोशिश अपने मूल निवास की ओर लौटने की रहती है।

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नैस्कॉम-डेलॉय की अगस्त 2023 की रिपोर्ट के अनुसार भारत के टेक्नोलॉजी सेक्टर में अभी करीब 54 लाख लोग काम कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर सात शहरों बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, पुणे, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता में हैं। लेकिन दुनियाभर में कंपनियां लागत कम करने की कोशिश कर रही हैं। भारत के उभरते टियर-2 शहर उन्हें क्वालिटी काम के साथ कम लागत का विकल्प भी दे रहे हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास, हर तरह के स्किल की उपलब्धता और स्मार्ट सिटी जैसे सरकार के प्रयासों ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई है। बेहतर जीवन शैली इन शहरों में काम करने वालों के लिए इन्सेंटिव की तरह है।

रुपया कमाने से आसान डॉलर कमाना

SaaS एक्सेलरेटर उपेक्खा (Upekkha) के मैनेजिंग पार्टनर एम. त्यागराजन जागरण प्राइम से कहते हैं, “जहां तक उभरते शहरों की बात है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में यह ट्रेंड करीब एक साल से देखने को मिल रहा है, लेकिन सैस स्टार्टअप के मामले में ट्रेंड थोड़ा पुराना है। भारत में आईटी सर्विस सेगमेंट काफी मजबूत है। इन कंपनियों के लिए सैस सेक्टर में जाना बहुत आसान है। आप किसी भी टियर-2 शहर में चले जाइए, वहां आपको दर्जनों सैस कंपनियां मिल जाएंगी।”

वे कहते हैं, भारत में आईटी सेक्टर 30-40 साल पहले उभरना शुरू हुआ, उसके बाद अनेक बड़ी कंपनियां खड़ी हुई हैं। आईटी सर्विस क्षेत्र की कंपनियों से निकलकर लोग सैस कंपनियां बना रहे हैं। एक तो आईटी सर्विस कंपनियों में काम करने वालों को पता होता है कि ग्लोबल कंपनियों को क्या चाहिए। दूसरा, अभी जो स्टार्टअप का ट्रेंड आया है उसकी वजह से भी अनेक लोग नौकरी से निकलकर अपना स्टार्टअप खड़ा कर रहे हैं और विदेशी कंपनियों को अपनी सर्विस दे रहे हैं। वे कहते हैं, “आईटी सर्विस वालों को अच्छी तरह मालूम है कि रुपया कमाने की तुलना में डॉलर कमाना आसान है।”

टियर-2 शहरों के उभरने के कारण

हायरिंग सॉल्यूशन उपलब्ध कराने वाली इंदौर की कंपनी ‘रिकूटी’ की शुरूआत 2018 में जबलपुर से हुई थी, एक साल से यह इंदौर से ऑपरेट कर रही है। इसके दो सह-संस्थापक जबलपुर के और एक गुना के हैं। इनका आईटी इंडस्ट्री में 10-15 साल का अनुभव है। रिकूटी के सह-संस्थापक और सीईओ हार्दिक विश्वकर्मा बताते हैं, “हमने टियर-2 शहर में रहने का मन इसलिए बनाया ताकि मानसिक शांति रहे और यहां के टैलेंट का भी हम इस्तेमाल कर सकें। बेंगलुरु या चेन्नई जैसी जगहों में आने-जाने में काफी समय जाता है, इंदौर में ऐसा नहीं है।”

हार्दिक के अनुसार, “रिकूटी का क्लाइंट बेस मुख्य रूप से अमेरिका में है। हम वहां कंपनियों को हायरिंग सॉल्यूशन उपलब्ध कराते हैं। अमेरिका में हायरिंग में लगने वाला समय और उसकी लागत काफी ज्यादा होती है। एक व्यक्ति की भर्ती करने में औसतन 10,000 डॉलर का खर्च आता है और करीब 43 दिन लगते हैं। रिकूटी में हमने इन दोनों को लगभग 70% कम कर दिया है।” अभी करीब 10,000 कंपनियों ने रिकूटी पर साइन-अप किया है। इनमें ज्यादातर अमेरिकी कंपनियां हैं। उनके अलावा इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और भारत की कंपनियां भी हैं।

अहमदाबाद की सोशल मीडिया मार्केटिंग टूल कंपनी ‘सोशल पायलट’ ने 2014 में बिजनेस शुरू किया था। इसके सह-संस्थापक जिमित बागड़िया उससे पहले आईटी सर्विस कंपनी में थे। उन्होंने बताया, “मैं अहमदाबाद का रहने वाला हूं, इसलिए यहीं अपना वेंचर शुरू किया। लेकिन हमारे कस्टमर भारत के अलावा अमेरिका और यूरोप में भी हैं।” यशराज अग्रवाल बुक कीपिंग और अकाउंटिंग एप “जिम बुक्स” के संस्थापक और सीईओ हैं। आईटी क्षेत्र में कई साल काम करने के बाद उन्होंने 2018 में अपना वेंचर रायपुर से शुरू किया था क्योंकि रायपुर उनका होमटाउन है।

टियर-2 शहरों में अब टैलेंट की कमी नहीं

त्यागराजन कहते हैं, बड़े शहरों में तो टैलेंट आसानी से मिल जाता है, लेकिन छोटे शहरों में थोड़ी दिक्कत होती है। कंपनियों ने इसका समाधान निकाला है। वे कॉलेज से युवाओं की भर्ती करती हैं और उन्हें ट्रेनिंग देती है। इस तरह वे अपना टैलेंट पूल तैयार कर रही हैं। रेवेन्यू 10 मिलियन डॉलर को पार करने के बाद कंपनी को ज्यादा सीनियर लोगों की जरूरत पड़ती है, जो उन्हें छोटे शहरों में नहीं मिलते। तब वे बड़े शहरों से, या कई बार तो दुनिया के अलग-अलग कोनों से वाइस प्रेसिडेंट मार्केटिंग, वाइस प्रेसिडेंट सेल्स जैसे पदों पर भर्तियां करती हैं।

सोशल पायलट के जिमित कहते हैं, “कोविड के कारण लोगों को जोड़ने में दिक्कत आई थी, लेकिन उसके बाद रिमोट वर्किंग का चलन शुरू हुआ तो हम पूरे देश से लोग हायर करने लगे।” हालांकि रिकूटी को ऐसी परेशानी नहीं हुई क्योंकि हार्दिक के अनुसार, “खुद हायरिंग प्लेटफॉर्म होने के कारण टैलेंट हायरिंग में दिक्कत नहीं हुई।” जिम बुक्स के यशराज को भी शुरू में थोड़ी चुनौती आई थी लेकिन कोई खास परेशानी नहीं हुई।

परेशानी न होने का कारण नैसकॉम-डेलॉय की रिपोर्ट में स्पष्ट है। इसके मुताबिक, टेक्नोलॉजी क्षेत्र में 11-15% टैलेंट टियर 2/3 शहरों में हैं। इन शहरों का आकर्षण बढ़ने के साथ यह अनुपात भी बढ़ने की उम्मीद है। भारत के 60% ग्रेजुएट छोटे शहरों से ही आते हैं। इसलिए कंपनियों को वहां अलग-अलग विषयों की पृष्ठभूमि वाले युवा मिल जाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक भारत टैलेंट सरप्लस वाला एकमात्र देश होगा।

रिपोर्ट के अनुसार उभरते शहरों में कानपुर, लखनऊ, जयपुर, चंडीगढ़, नागपुर, नासिक, भोपाल, इंदौर, रांची, अहमदाबाद, रायपुर जैसे शहर शामिल हैं। दक्षिण में विशाखापत्तनम, विजयवाड़ा, तिरुपति, मैसूर, मेंगलुरु, कोच्चि, तिरुवनंतपुरम, कोयंबटूर, वारंगल और उत्तर पूर्व में गुवाहाटी है। सूची में कुल 26 शहर हैं जहां अलग-अलग तरह के टैलेंट पूल तैयार हो रहे हैं। मसलन, अहमदाबाद और जयपुर में कोर (जावा, डॉट नेट, एसक्यूएल, गणित, हार्डवेयर-नेटवर्किंग आदि) और डिजिटल स्किल (डेटा साइंस, क्लाउड, पाइथन, एप डेवलपमेंट, ब्लॉकचेन, आईओटी आदि) वाला टैलेंट है। मैसूर, मदुरै और नागपुर में युवा ब्लॉकचेन और साइबर सिक्युरिटी जैसी नई टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल कर रहे हैं।

इन जगहों पर जैसा एजुकेशन ईकोसिस्टम विकसित हुआ, उसी तरह का टैलेंट पूल तैयार हो रहा है। जयपुर, लखनऊ, नासिक, तिरुचिरापल्ली और भोपाल में वेब डेवलपमेंट में स्किल्ड लोग मिल जाएंगे तो कोविड-19 के बाद लखनऊ में बीपीएम सेगमेंट तेजी से उभरा है। टियर-2 शहरों में शिक्षा सुविधा बढ़ने के साथ उम्मीद है कि ये शहर आगे भी टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री को टैलेंट उपलब्ध कराते रहेंगे। जैसे, मैसूर में सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी का प्रशिक्षण देने वाले संस्थान हैं तो कोयंबटूर में सबसे ज्यादा साइंस और टेक्नोलॉजी ग्रेजुएट निकलते हैं। भोपाल, इंदौर, भुवनेश्वर, नागपुर, नासिक, तिरुचिरापल्ली और अहमदाबाद में हर साल 10 हजार से ज्यादा साइंस और टेक्नोलॉजी ग्रेजुएट निकल रहे हैं।

डिजिटल टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए अच्छी बात है कि भारत में डिजिटल टैलेंट पूल 2024 तक 26 लाख तक पहुंच जाने का अनुमान है। नैसकॉम-डेलॉय रिपोर्ट के मुताबिक, बीते चार वर्षों में देश में क्लाउड कंप्यूटिंग, एआई, बिग डेटा और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) में डिजिटल टैलेंट पूल 35% बढ़ा है।

कनेक्टिविटी, इंटरनेट सेवा बेहतर, किराया भी आधा

इस बदलाव में इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की भूमिका का पता इस बात से लगता है कि भारत के 242 स्पेशल इकोनॉमिक जोन (SEZ) में से 83, और 60 एसटीपीआई सेंटर में से 15 इन उभरते हब में हैं। इन शहरों में कनेक्टिविटी बेहतर हुई है और तेज इंटरनेट कोई समस्या नहीं रह गई। वैसे तो बीते पांच वर्षों में इन शहरों में किराया 60-80% बढ़ा है, फिर भी यह टियर-1 शहरों से 50% कम है।

जनवरी 2020 में टेक इंडस्ट्री के सात प्रमुख हब थे - बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, पुणे, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता। नैसकॉम-डेलॉय रिपोर्ट के अनुसार, इन जगहों पर बीते पांच वर्षों में रियल एस्टेट की लागत 60-80% और टैलेंट पर खर्च 30-40% बढ़ा है। इनकी तुलना में उभरते शहरों में टैलेंट पूल 25-30% सस्ता है। जगह का किराया भी लगभग 50% कम है। इसके अलावा, बड़े शहरों में प्रतिस्पर्धा के कारण एट्रिशन यानी नौकरी छोड़ने की दर 25-30% होती है, जिसका असर कंपनी के काम पर होता है। छोटे शहरों में प्रतिस्पर्धा कम होने की वजह से एट्रिशन रेट भी कम है।

बड़े शहरों में विस्तार के लिए रियल एस्टेट की उपलब्धता कम है, ट्रैफिक भी बहुत होता है। इसके विपरीत उभरते शहरों प्रमुख इलाकों के आसपास ही जगह मिल जाती है। इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के कारण आना-जाना भी सहूलियत भरा होता है। स्थापित शहरों में नए सेंटर स्थापित करने के लिए सरकार की तरफ से कोई इन्सेंटिव नहीं मिलता, जबकि उभरते शहरों में इन्सेंटिव मिलता है।

हर तरह के खर्च में बचत

हार्दिक कहते हैं, टियर-2 शहर में होने के कारण ऑपरेटिंग कास्ट में हम लगभग 40% बचा रहे हैं। सैलरी में भी फर्क होता है। कम खर्च के कारण हमें दूसरी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करने में भी फायदा मिलता है। जिमित के अनुसार, सामान्य तौर पर अहमदाबाद और बेंगलुरु की सर्विस कंपनी के सैलरी पैकेज में 30-40% का अंतर दिखेगा। हालांकि उनका दावा है कि “हमारी कंपनी गुजरात में सबसे अच्छी सैलरी देने वाली कंपनियों में एक है। हमारी सैलरी बेंगलुरु को मैच करती है।”

रायपुर के यशराज के मुताबिक, “यहां ऑपरेटिंग खर्च टियर-1 शहरों से कम तो रहता है, लेकिन सीनियर लीडरशिप को हम बेंगलुरु या मुंबई की कंपनियों के बराबर या उनसे ज्यादा पैसे दे रहे हैं। दूसरे शहर से बड़े पद पर लोग तभी आएंगे जब हम उन्हें अधिक पैकेज दें।” उनका कहना है कि पहले तीन-चार साल तक कम लागत का फायदा मिलता है। उसके बाद हेड ऑफ टेक्नोलॉजी, हेड ऑफ मार्केटिंग जैसे पदों पर सीनियर लोगों को रखने की जरूरत पड़ती है। उनमें काफी लोग बाहर के हैं। तब खर्च में कोई खास बचत नहीं होती है।

रीलोकेशनः वापस घर की ओर

जिमित कहते हैं, “करीब साल भर से देखने को मिल रहा है कि लोग रीलोकेट होना चाहते हैं। हम भी दूसरे शहरों से लोगों को अहमदाबाद बुलाते हैं। यहां रहने का खर्च टियर-1 शहरों से काफी कम है। इसलिए लोग भी यहां आना चाहते हैं।” हार्दिक भी कहते हैं, “अब तो बेंगलुरु से भी लोग हमारे पास इंदौर आना चाहते हैं। वे मौजूदा सैलरी पैकेज से कम पैसे पर भी आने के लिए तैयार होते हैं, क्योंकि यह उनके घर के करीब है।” यह ट्रेंड जूनियर और मिड लेवल पर अधिक है। यशराज के अनुसार, “शुरुआत में लोग रायपुर से दूसरे शहरों में जाना चाहते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है, अब दूसरे शहरों के लोग भी हमसे जुड़ रहे हैं।”

नैसकॉम-डेलॉय रिपोर्ट के मुताबिक उभरते शहरों में बिजनेस बाधित होने का जोखिम कम है। यहां उच्च शिक्षा के अच्छे संस्थान और अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं भी उपलब्ध हैं। यहां रहने का खर्च टियर-1 शहरों से 25-35% कम है। इन कारणों से यहां लोगों को बेहतर जीवन शैली मिल रही है।

निवेशकों को पहुंचने में लगेगा समय

नैसकॉम-डेलॉय की रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले साल 39% टेक स्टार्टअप टियर-2 शहरों में खुले और 13% फंडिंग उन्हें मिली। करीब 28% टेक्नोलॉजी स्टार्टअप उभरते शहरों में हैं। इनमें निवेश 2019 के बाद 2.4 गुना बढ़ा है। लेकिन निवेश के लिहाज से मौजूदा साल खराब है। टेक कंपनियों में निवेश पर नजर रखने वाली फर्म ट्रैक्सन टेक्नोलॉजीज की तरफ से जागरण प्राइम को दिए आंकड़ों के अनुसार देश के टियर-2 शहरों में 6893 एआई और सैस स्टार्टअप हैं, जिनमें से अभी 5516 सक्रिय (आंकड़े 23 अक्टूबर तक) हैं। AI और SaaS दोनों स्टार्टअप्स में 2022 में निवेश 2021 की तुलना में लगभग आधा रह गया था, लेकिन 2023 में यह गिरावट बहुत ज्यादा है (देखें ग्राफ)। वैसे, इस साल हर तरह के स्टार्टअप में निवेश कम हुआ है।

उपेक्खा के त्यागराजन कहते हैं, “आज के दौर में कोई भी शहर देखकर निवेश नहीं कर रहा है। कोविड के बाद एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है कि कौन सी कंपनी कहां की है, इसका कोई मतलब नहीं रह गया है।” निवेश में गिरावट की बात स्वीकार करते हुए वे कहते हैं, “यह सिर्फ छोटे शहरों के लिए नहीं बल्कि हर जगह ऐसा हुआ है, अमेरिका में भी। लेकिन शुरुआती चरण वाले एआई और सैस स्टार्टअप में निवेश कम नहीं हुआ बल्कि पिछले साल की तुलना में 5-10% बढ़ा ही है।”

सैस प्लेटफॉर्म सैसबूमि (SaaSBOOMi) की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में ग्लोबल स्तर पर सैस कंपनियों में निवेश में 20% गिरावट आई, लेकिन भारत में इनमें 7.4 अरब डॉलर का निवेश हुआ जो एक साल पहले की तुलना में 24% ज्यादा है।

जिमित के अनुसार, सूरत और वडोदरा के स्टार्टअप्स को वेंचर कैपिटल फंडिंग मिल रही है। वे कहते हैं, “हमारे सेगमेंट में वेंचर फंडिंग अभी खास नहीं है। हमारा बी2बी सेगमेंट है, बी2सी सेगमेंट में फंडिंग की ज्यादा जरूरत पड़ती है।” यशराज भी कहते हैं, “निवेश का माहौल अभी कमजोर है। बड़े निवेशक महानगर या टियर-1 के स्टार्टअप को तवज्जो देते हैं। रायपुर के चुनिंदा स्टार्टअप ही फंड जुटाने में सफल रहे। टियर-2 शहरों में सीड फंडिंग तो मिल जाती है, लेकिन सीरीज ए या बी की फंडिंग मुश्किल होती है। बड़े निवेशक टियर-2/3 शहरों में अभी रुचि नहीं ले रहे हैं।”

अमेरिकी वेंचर और पीई फर्म बेसेमर वेंचर्स पार्टनर्स के अनुसार वर्ष 2022 में निवेशकों ने भारतीय सैस कंपनियों में कुल करीब छह अरब डॉलर का निवेश किया। यह 2020 का 3.5 गुना और 2018 का आठ गुना है। हालांकि भू-राजनीतिक विवाद और ब्याज दरों में वृद्धि के कारण इस साल नई वेंचर फंडिंग में गिरावट आई है। इस साल सिर्फ 0.3 अरब डॉलर का निवेश इनमें हुआ है। इस साल कोई नया यूनिकॉर्न भी नहीं बना है।

छोटे शहरों में स्टार्टअप्स का भविष्य अच्छा

त्यागराजन के अनुसार, आमतौर पर स्टार्टअप्स को 'डिफॉल्ट डेड' लेकिन SaaS स्टार्टअप को 'डिफॉल्ट अलाइव' कहते हैं। कारण यह है कि सामान्य स्टार्टअप में सर्वाइवल रेट मुश्किल से 15% होता है, लेकिन सैसे स्टार्टअप का सर्वाइवल रेट बहुत ज्यादा है। इसलिए भविष्य बहुत उज्जवल है। अगर आप टियर-2 शहर में सैस स्टार्टअप शुरू करते हैं तो आपका खर्च बहुत कम हो जाता है। छोटे शहरों वाली कंपनियां ज्यादा प्रॉफिटेबल हैं।

जिमित के अनुसार, “फ्यूचर काफी अच्छा दिखता है। लोग परिवार के साथ रहना चाहते हैं। अहमदाबाद में टैलेंट पूल काफी है। यहां अनेक बड़ी कंपनियां आ गई हैं जिससे मजबूत ईकोसिस्टम बन रहा है। लोगों को अगर अहमदाबाद में काम मिलता है तो वे यहीं रहना पसंद करते हैं। उनमें टियर-1 शहरों का आकर्षण कम हुआ है। बेंगलुरु या दूसरे टियर-1 शहरों में लोग जाते तो हैं, लेकिन सिर्फ कुछ समय तक एक्सपोजर हासिल करने के लिए। कुछ दिनों के बाद वे वापस आना चाहते हैं।”

उज्जवल भविष्य की बात करते हुए हार्दिक कहते हैं, “हम भले ही छोटे शहर में हों, लेकिन हम विश्व स्तर पर अपने क्लाइंट को सर्विस दे रहे हैं।” यशराज के अनुसार, “भविष्य अच्छा है, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं। जैसे फंड की समस्या। बेंगलुरु या अन्य टियर-1 शहर की तुलना में यहां एक्स्पोजर भी कम मिलता है। फिर भी मुझे लगता है कि आने वाले समय में इन शहरों में संख्या और क्वालिटी दोनों लिहाज से काफी ग्रोथ देखने को मिलेगी।”

भविष्य को लेकर विभिन्न संस्थाओं के अलग अनुमान हैं। वेरिफाइड मार्केट रिसर्च डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में ग्लोबल AI-SaaS मार्केट 73.8 अरब डॉलर का था। यह 2022 से 2030 तक सालाना 37% की दर से बढ़ेगा और 2030 में इसके 1547.5 अरब डॉलर का हो जाने का अनुमान है। सैसबूमि (SaaSBOOMi) की रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक भारत का सैस ईकोसिस्टम करीब 10 गुना बढ़कर 500 अरब डॉलर का हो जाएगा।

नैसकॉम-डेलॉय की रिपोर्ट में बताया गया है कि उभरते शहरों में 7,000 से ज्यादा स्टार्टअप हैं। 2014 से 2018 के दौरान डीपटेक समेत कई सेगमेंट में इनकी संख्या 50% बढ़ी है। 2025 तक इनकी संख्या 2.2 गुना बढ़ने का अनुमान है। टियर-2 शहरों में डीपटेक एआई स्टार्टअप की संख्या भी 2019 के 13% से बढ़कर 2021 में 26% हो गई। वित्त वर्ष 2017-18 में भारत की जीडीपी में टेक्नोलॉजी सेक्टर का योगदान 7.9% था, इसके 2023 में 10% हो जाने का अनुमान है। इस सेक्टर का रेवेन्यू 2021-22 में 227 अरब डॉलर था और अनुमान है कि 2022-23 में यह 245 अरब डॉलर हो गया।

नए उद्यमियों को सलाह

त्यागराजन ग्लोबल सोच की सलाह देते हुए कहते हैं, “ग्लोबल मार्केट में ग्रोथ की दर काफी अधिक होती है। अगर आपको सॉफ्टवेयर बनाना आता है, अगर अपने भारत के किसी कस्टमर के लिए सॉफ्टवेयर बनाया है तो उसे दूसरे देशों में भी बेच सकते हैं। जो लोग ग्लोबल सोचते हैं वही जल्दी आगे बढ़ते हैं, उन्हें मुनाफा भी ज्यादा मिलता है।”

उनका कहना है, स्टार्टअप शुरू करने से पहले हमें यह देखना चाहिए कि कस्टमर को किस तरह का सॉफ्टवेयर चाहिए। आईटी सर्विसेज ओर सैस में अंतर यह होता है कि आईटी सर्विस में कस्टमर ने आपसे जो कहा आपने वह बना दिया। लेकिन सैस ऐसा प्रोडक्ट है जिसे बनाने के लिए थोड़ी इमैजिनेशन चाहिए। इसे बनाने के लिए इंजीनियर तो चाहिए ही, मार्केटिंग और सेल्स भी जरूरी होता है।