नई दिल्ली, संदीप राजवाड़े। 

समुद्री तट से सटे राज्यों में हर साल आने वाले चक्रवात से फसलों को नुकसान पहुंच रहा है। हाल में ही आए मिचौंग तूफान के बाद हो रही बारिश से तमिलनाडू के साथ आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में फसल उत्पादन भी बड़े स्तर पर प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। मिचौंग के पहले 2016 में इसी सीजन में आए वरदा से ही फसलों को बड़ा नुकसान हुआ था। इसके कारण इन प्रभावित राज्यों में फसल खासकर धान की खेती प्रभावित हुई कमोबेश ऐसा हश्र हर तूफान के आने के बाद हो रहा है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार हर साल समुद्र तट से लगे राज्यों में चार से छह चक्रवात आते हैं। पिछले आठ सालों के दौरान 2016 में आए वरदा और 2021 में आए जवाद चक्रवात के बाद यह तीसरा मौका है कि जब मिचौंग साइक्लोन दिसंबर माह में आया है। इससे यहां देरी से बोए गए धान की फसल बर्बाद हुई है। प्राकृतिक आपदा की मार के साथ इन प्रभावित राज्यों के समुद्री तट से लगे एरिया में किराए पर खेत लेकर खेती करने वाले किसानों (कृषक मजदूरों) को सरकारी बीमा का लाभ भी नहीं मिल पाएगा, क्योंकि खेत उनके नाम नहीं है।

आईग्रेन इंडिया के अनुसार समुद्री तट से लगे चक्रवात से प्रभावित राज्यों में चावल की खेती बड़े पैमाने पर होती है। केंद्र सरकार के अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022-23 में आंध्र प्रदेश में 49.86 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ। इसी तरह तेलंगाना में 88.87 लाख टन, तमिलनाडू में 25.13 लाख टन और कर्नाटक में 31.63 लाख टन चावल का उत्पादन रहा। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार धान की फसल तैयार होने अंतिम समय में मिचौंग से आए तूफान- बारिश से तमिलनाडू, आंध्र और तेलंगाना में देरी से बुवाई किए गए धान पर असर पड़ेगा। जहां फसल खेतों में लगी है या कटकर रखी हुई थी, वहां ही नुकसान ज्यादा हुआ है। शुरूआती आकलन के अनुसार राज्य के धान उत्पादन पर 10 से 12 फीसदी असर हो सकता है।

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि, इन सबके बीच राहत की खबर यह है कि धान की पैदावार अन्य कई राज्यों में अच्छी हुई है। इससे भारत की खाद्य सुरक्षा पर फर्क नहीं पड़ेगा। मिचौंग तूफान से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के समुद्री तट से लगे उन इलाकों में जहां, धान की बुवाई देरी से हुई थी और कटाई भी 15 नवंबर के बाद शुरू होती है और दिसंबर तक चलती है, वहां ज्यादा असर पड़ेगा। इससे इन राज्यों के धान उत्पादन में 10-12 फीसदी की कमी आ सकती है। इसके अलावा आंध्र, तेलंगाना में केला और कर्नाटक में टमाटर, तुवर की पैदावार प्रभावित होगी।

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की राज्य सरकार के व किसान संगठनों के साथ काम करने वाले हैदराबाद के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि प्रभावित क्षेत्रों के किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या खेतों में खड़ी फसल या कटे हुए धान को पानी से बाहर निकालना है। अभी भी खेतों में पानी भरा हुआ है और यहां रुक-रुक कर लगातार बारिश हो रही है। यहां इस तूफान से हुए नुकसान का अभी पूरा आकलन नहीं किया जा सका है।

यह जरूर कहा जा रहा है कि तमिलनाडु, आंध्र और कर्नाटक में धान उत्पादन प्रभावित होने के बाद भी देश में कुल धान प्रोडक्शन में खास फर्क नहीं होगा। प्रभावित राज्यों के कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि तेलंगाना में बड़ी संख्या में किसानों को नुकसान होगा, क्योंकि वहां उन्हें फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा। इसके अलावा कटाई के बाद खेतों में सूखने को रखी फसल बारिश में डूबने या खराब होने का नुकसान फसल बीमा योजना में कवर नहीं होता है। आंध्र प्रदेश के समुद्र तट से लगे आठ से दस जिलों में मिचौंग के कारण फसल प्रभावित हुई है।

दिसंबर में चक्रवात आने से खरीफ फसलों को नुकसान

भारत में पिछले कुछ सालों के दौरान एक के बाद एक बड़े चक्रवात आए हैं। 2016 में दिसंबर में आया वरदा चक्रवात जिसका असर तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में बड़े पैमाने पर था। इसका खेती- फसल में बड़ा असर पड़ा था। मई 2019 में फेनी चक्रवात ने ओड़िशा के समुद्री तट से लगे एरिया में प्रभाव दिखाया था। मई 2020 में आए अम्फान चक्रवात का प्रभाव बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र समेत पश्चिम बंगाल में रहा। मई 2021 में आए ताउते तूफान से गुजरात, केरल, कर्नाटक, गोवा औऱ महाराष्ट्र ज्यादा प्रभावित हुए। इसके अलावा 2021 में जवाद भी दिसंबर के शुरुआती हफ्ते में आया था, जिसका असर ओड़िशा, आंध्र, अंडमान- निकोबार, तमिलनाडु में नुकसान हुआ। मई 2022 में आए असानी चक्रवात का असर आंध्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, ओड़िशा में रहा। अक्टूबर 2022 में आए सितारंग चक्रवात ने असम, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में अपना असर दिखाया था। 14 दिसंबर 2022 में आए मैंडोस चक्रवात ने तमिलनाडु और अंडमान निकोबार को प्रभावित किया था। इस साल 15 जून आए बिपर्जाय चक्रवात ने गुजरात से प्रवेश करते हुए उससे लगे राज्यों में असर दिखाया था।

हैदराबाद के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और कृषि वैज्ञानिक डॉ. जीवी रमंजनेयुलु ने बताया कि भारत में हर साल चार से छह चक्रवात आते ही हैं, इनकी संख्या किसी साल इससे भी ज्यादा होती है। भारत में पिछले कुछ सालों के दौरान आए चक्रवात में अधिकतर मई-जून के महीनों के दौरान आते हैं, जब समुद्र में दबाव के कारण चक्रवात बनता है। इस दौरान खरीफ या रबी की फसल नहीं लगी होती है, पैदावार पर बड़ा असर नहीं होता है। भारत में दिसंबर माह में 2016 में आए वरदा और 2021 में जवाद चक्रवात के कारण समुद्री तट से लगे दक्षिण के राज्यों में खेती पर बड़ा असर रहा है। इस बार भी मिचौंग दिसंबर के पहले हफ्ते में आया, इससे वहां लगी धान, केले की फसल को नुकसान हुआ है।

मिचौंग प्रभावित राज्यों में 50 लाख हेक्टेयर से ज्यादा हिस्से में धान की खेती

विशेषज्ञों के अनुसार इस वर्ष तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और ओडिशा में 50 लाख हेक्टेयर से ज्यादा के हिस्से में धान की खेती की गई। यहां 10-15 फीसदी धान का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। आंध्र के समुद्री तट से लगे पूर्वी गोदावरी, पश्चिम गोदावरी, काकीनाडा, कृष्णा, बापटला, कोनसीमा, नेल्लोर, प्रकाशम जिलों में इसका असर ज्यादा दिखाई दिया है। इसी तरह तेलंगाना के भद्राद्री कोठागुडेम, मुलुगु, हनमकोंडा, वारंगल, जनगांव, महबुबाबाद, सूर्यापेट, करीमनगर, पेद्दापल्ली, नलगोंडा, जनगांव, यदाद्री, भूपालपल्ली और नगर कुर्नूल जिलों में बारिश- तूफान से खेती प्रभावित हुई है। इसके अलावा तमिलनाडु और कर्नाटक के क्षेत्र में धान के साथ केला, टमाटर की फसल बड़ी मात्रा में प्रभावित हुई है। तमिलनाडु व कर्नाटक में तुवर की फसल भी इस तूफान से झड़ गई है। फसल खराब होने से इसकी पैदावार पर असर पड़ेगा और इसके कारण कीमत बढ़ने की आशंका है।

आंध्र- तेलंगाना में ज्यादा प्रभाव, खेतों से पानी निकालना बड़ी समस्या- कृषि वैज्ञानिक डॉ. रमंजनेयुलु

हैदराबाद के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और कृषि वैज्ञानिक डॉ. जीवी रमंजनेयुलु ने बताया कि अभी भी प्रभावित राज्यों में कुछ जगह धान की हार्वेस्टिंग हो रही है, इस तूफान से वहां बहुत नुकसान हुआ है। इसके बाद कुछ क्षेत्र में हो रही बारिश ने समस्या और बढ़ा दी है। आंध्र प्रदेश में अभी अधिकतर धान की फसलें खेतों में ही हैं, आधे से कम की कटाई हुई है, ऐसे में वहां चावल उत्पादन प्रभावित होगा। इसके बाद केला के फसलों को बड़े पैमाने पर असर हुआ है। तमिलनाडू समेत प्रभावित राज्यों में रुक-रुककर बारिश हो रही है। मैंने वहां जमीनी स्तर की जानकारी ली है और प्रभावित क्षेत्रों के किसानों से बात की तो उन्होंने बताया कि खेतों में पानी भरा हुआ। धान की फसल तैयार हो गई है, लेकिन खेतों में जो लगी हुई है या काटकर वहीं सूखने के लिए रखी गई थी, वह पूरी तरह से पानी में डूब गई हैं। केले के फसल आंधी-तूफान के कारण गिर गिए और फिर पानी से सड़ रहे हैं।

डॉ. रमंजनेयुलु का कहना है कि आंध्र प्रदेश में खरीफ फसल अधिकतर फसलें तैयार हो गईं है, उनकी कटाई हो गईं है। लेकिन, वे फसलें जिन्हें देरी से बुवाई किया गया था, वे ही प्रभावित हुईं है। इसके अलावा रबी की जो फसलें जल्दी लगाई गईं थी, मतलब अगस्त- सितंबर के आसपास जो फसलें लगाई हैं थी, उन्हें ही इससे ज्यादा नुकसान हुआ है। कुछ फसलें ऐसी भी हैं, जिसे मैनुअल तरीके से कटाई के बाद खेतों में रखी गई फसलें पूरी तरह से डूब गई हैं। समुद्री तट से लगे अधिकतर क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण खेतों में पानी में भरा है। पानी निकालने की व्यवस्था आम किसान नहीं कर सकता है। वैसे भी पानी कहां निकालेंगे, वहां तो हर जगह पानी ही भरा हुआ है। इससे वहां कुल उत्पादन में से 10-12 फीसदी धान की फसल खराब हो जाएगी। जहां तक देश में खाद्य सुरक्षा की उपलब्धता की बात है तो वहां तो इसका असर नहीं होगा। अन्य राज्यों में धान के उत्पादन होने से यह भरपाई हो जाएगी। आंध्र के प्रभावित क्षेत्र के किसान की आय पर प्रभावित होगी। अब जिन किसानों की तरफ से बीमा नहीं कराया गया है, उन्हें तो नुकसान उठाना होगा। आंध्र प्रदेश में 40 फीसदी किसान खेत किराए पर लेकर खेती करती हैं, ऐसे में वे न तो किसी लोन के पात्र हो पाते हैं न तो उन्हें फसल बीमा की सुविधा मिल पाती है। धान के अलावा आंध्र में केला की करीबन एक लाख हेक्टेयर में खेती की जाती है, इसमें से 40-50 फीसदी फसल का नुकसान हुआ होगा।

उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ और ओडिशा में भी मिचौंग के कारण बारिश हुई है, वहां भी थोड़ा- बहुत नुकसान हुआ होगा। अब कटाई के बाद भी धान कई किसान नहीं बेच पाए होंगे, वे ही प्रभावित होंगे। इसके अलावा आंध्र प्रदेश के अलावा तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में भी फसलों को बड़ा नुकसान हुआ होगा। सबसे ज्यादा बुरी स्थिति तमिलनाडु में हुई है। कर्नाटक के साथ आंध्र प्रदेश में टमाटर की खेती भी इस चक्रवात से प्रभावित हुआ होगा, यहां बड़ी मात्रा में इसकी पैदावार होती है।

फसल की क्वालिटी पर असर, देरी से बुवाई वालों को ज्यादा नुकसान- कृषि वैज्ञानिक देविंदर शर्मा

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक देविंदर शर्मा ने बताया कि मिचौंग के कारण प्रभावित राज्यों में खेतों में पानी भर गया है। ये बहुत बड़ी परेशानी है। मैंने आंध्र प्रदेश के प्रभावित किसानों व कृषि वैज्ञानिक साथियों से बात की है, उनका कहना है कि फसल बर्बाद हुई है। अब कितनी हुई है, इसका अभी तो आकलन नहीं हो पाया है। वहां हालात खराब हैं। प्रभावित राज्यों के समुद्री तट से लगे एरिया में इसका ज्यादा प्रभाव दिखाई दिया है, अब साइक्लोन से राज्य की पूरी फसल तो तबाह नहीं हुई है, वह बच गया है। किसी एक जिले में पूरी फसल साफ हो गई है, ऐसी तो जानकारी नहीं मिली है। कुछ जगहों में जरूर खेतों में फसल खड़ी हुई हैं, ऐसे क्षेत्र में पानी भर गया है। उनका कहना है कि अगर पानी के यूं ही खेतों में भरे रहने से खड़ी फसल पर बड़ा असर हो रहा है और वहां के किसानों की यह बड़ी चिंता है।

आंध्र प्रदेश - तेलंगाना में देरी से बुवाई करने वाले फसलों में इसका नुकसान ज्यादा होगा। इस साइक्लोन के कारण फसलों की क्वालिटी पर असर पड़ेगा। अनाज में कालापन आएगा। वहां हुई बारिश की वजह से फसलो में नमी आ जाती है, इससे कटाई के बाद भी सूखाने में समस्या होती है। कर्नाटक जैसे राज्य में कुछ किसानों ने बताया कि तुवर दाल के लिए बारिश तो अच्छी थी लेकिन इस तूफान से फसल पूरी तरह से झड़ गई है। इसका असर जरूर इन प्रभावित राज्यों में होने वाले धान की पैदावार पर पड़ेगा। अब आकलन के बाद कितना नुकसान हुआ है, वह देखने होगा।

समुद्री तट के क्षेत्रों में ज्यादा नुकसान, बाकी राज्य में कटाई हो गई- राइस एक्सपोर्टर राजेश जैन

दिल्ली के राइस के एक्सपोर्टर राजेश जैन पहाड़िया ने बताया कि देश के अधिकतर राज्यों में धान की फसल की कटाई हो गई है, मिलों में उसकी डिलीवरी भी हो गई है। नंवबर तक धान उत्पादन वाले अधिकतर राज्यों में कटाई हो जाती है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की बात करें तो मेरी जानकारी के अनुसार आंध्र में अधिकतर जगह कटाई हो चुकी है, लेकिन तेलंगाना में समुद्री तट से लगे क्षेत्र में धान की कटाई नहीं हुई है। वहां 15 नंवबर के आसपास कटाई शुरू होती है जो 15 दिसंबर के आसपास तक चलती है। ईस्ट गोदावरी में सबसे ज्यादा इस मिचौंग चक्रवात का असर दिखाई दिया है।

उन्होंने बताया कि इस तूफान से मेरे आकलन के अनुसार प्रभावित राज्यों के धान उत्पादन में कम से कम पांच से सात फीसदी का असर पड़ेगा, इसमें भी समुद्री तट से लगे वाले एरिया में खेती वाले क्षेत्रों में ज्यादा होगा। अधिक से अधिक 10 फीसदी धान का उत्पादन प्रभावित होगा। इसके अलावा बारिश से दाना पीला पड़ जाएगा। अभी भी उन एरिया में बारिश हो रही है, ऐसे में उत्पादन प्रभावित तो होगा ही। ओडिशा में तूफान आते आते धीरे हो गया था, इसलिए वहां बहुत बड़ा असर नहीं होगा। अगर जिन- जिन जगहों में कटाई हो गई होगी, वहां फसल सेफ है।

फसल पर 10-15% असर, देश के कुल उत्पादन पर फर्क नहीं - आईग्रेन डायरेक्टर चौहान

आईग्रेन इंडिया के डायरेक्टर राहुल चौहान ने बताया कि मिचौंग तूफान से आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना में ज्यादा फसल प्रभावित होगी। यहां धान के उत्पादन में 10 से 15 फीसदी असर होगा। वैसे भी साइक्लोन के कारण पिछले कुछ सालों से लगातार खरीफ की फसल ज्यादा प्रभावित हो रही है। अभी जो नुकसान हुआ है, उसका आकलन तो नहीं आया होगा। इन प्रभावित क्षेत्रों में जहां फसल खेत में लगी हुई है, कट चुका है या खुले में रखा हुआ है, वहां भी पानी से नुकसान होगा। कई जगह पानी में रहने से सड़ने के साथ अंकुरित हो जाएगा। चावल का रंग बदलेगा, उस पर पीलापन या कालापन आ जाएगा। भारत के कुल धान उत्पादन पर इसका बहुत असर तो नहीं दिखाई देगा, अभी कई राज्यों में अच्छी पैदावार हुई है। वहां समय से कटाई हो गई है।

किराए में खेत लेकर खेती करने वाले किसानों को भी बीमा में शामिल करने की मांग

कृषि वैज्ञानिक डॉ. जीवी रमंजनेयुलु का कहना है कि चक्रवात और प्राकृतिक आपदाओं से देश के किसान प्रभावित होते हैं। उनका उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है। अब इन आपदाओं को देखते हुए केंद्र सरकार को फसल किसान बीमा की योजना का दायरा बढ़ाना होगा। सिर्फ खेत में ही लगे फसल के नुकसान को इसमें शामिल न किया जाए बल्कि कटाई के बाद भी अगर चक्रवात या बारिश-तूफान से नुकसान होता है तो उनका बीमा कवर होना चाहिए। इसके अलावा किराए पर खेत लेकर खेती करने वाले कई किसान देश में मौजूद हैं, उन्हें भी इस योजनाओं में शामिल किया जाए। इसे लेकर संगठन की तरफ से लगातार मांग की जाती रही है। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक देविंदर शर्मा का कहना है कि चाहे रबी की फसल हो या खरीफ की, बेमौसम तूफान- बारिश से सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को ही होता है। उनकी बड़ी पूंजी खेती में लग जाती है। इस नुकसान की भरपाई के लिए योजना बनाई जानी चाहिए।