अधिक सप्लाई-कम डिमांड से जूझ रहा चीन, असंतुलन बढ़ा तो पूरे विश्व पर असर, पर ग्लोबल सप्लाई चेन में बदलाव से भारत को फायदा
चीन की अर्थव्यवस्था पिछले साल अक्टूबर में डिफ्लेशन में चली गई थी। इससे वहां असंतुलन बढ़ने की आशंका है जिसका कुछ असर विश्व अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है। डिफ्लेशन इन्फ्लेशन का उल्टा होता है। महंगाई के विपरीत इसमें वस्तुओं के दाम घटते हैं। डिफ्लेशन यह भी बताता है कि अर्थव्यवस्था में या तो मांग कम है या सप्लाई ज्यादा है। चीन अधिक सप्लाई से जूझ रहा है।
एस.के. सिंह, नई दिल्ली। वर्ष 2023 में तीन दशक की सबसे कम ग्रोथ (कोविड के तीन साल छोड़) दर्ज करने के बाद चीन की आर्थिक विकास दर 2024 में भी घटने की आशंका है। वैसे तो इस वर्ष भारत समेत पूरी ग्लोबल इकोनॉमी की रफ्तार कम होने के आसार हैं, लेकिन चीन की स्थिति औरों से अलग है। वहां प्रॉपर्टी मार्केट में कमजोरी बरकरार रहने, घरेलू और निर्यात मांग कमजोर होने, सरकार की तरफ से कम खर्च और कामकाजी उम्र वालों की संख्या घटने से स्थिति ज्यादा बिगड़ने का अंदेशा है। इन सबका नतीजा डिफ्लेशन है, जो नई चुनौती बनकर उभर रहा है। चीन की अर्थव्यवस्था पिछले साल अक्टूबर में डिफ्लेशन में चली गई थी। इससे वहां असंतुलन बढ़ने की आशंका है, जिसका कुछ असर विश्व अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है।