जागरण संपादकीय: जहरीली हवा का बढ़ता प्रकोप, अनदेखी नहीं की जानी चाहिए
दिल्ली-एनसीआर में स्वच्छ वायु के लिए एकीकृत सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के उपयोग और हिस्सेदारी को बढ़ाने पैदल चलने साइकिल चलाने और नागरिक के नाते यथासंभव हमें भी निजी वाहन का कम प्रयोग करना चाहिए। बिजली संयंत्रों के लिए बेहतर उत्सर्जन मानक रखने की जरूरत है। पराली जलाने पर भारी जुर्माने के साथ ही पराली को खाद में तब्दील करने की किफायती योजना बनानी होगी।
डा. ब्रजेश कुमार तिवारी। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली-एनसीआर में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 350 के ऊपर चल रहा है, जो बेहद खराब हवा की श्रेणी को दर्शाता है। इससे दिल्ली-एनसीआर की हवा में पीएम 2.5 यानी प्रदूषित कणों का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित सीमा से 50 गुना अधिक खतरनाक हो गया। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल तकरीबन 70 लाख लोगों की अकाल मौत की वजह वायु प्रदूषण है और भारत में इसका सबसे अधिक खतरा है। दिल्ली-एनसीआर के साथ देश का एक बड़ा हिस्सा गंभीर किस्म के वायु प्रदूषण से ग्रस्त रहने लगा है। कारण यह है कि जिन कारणों से दिल्ली-एनसीआर प्रदूषण की चपेट में आता है, वही कारण उत्तर भारत के एक बड़े इलाकों में भी दिखने लगे हैं। जो पराली पहले पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जलती थी, वह अब यूपी-बिहार के गांवों में भी जलने लगी है। यदि दिल्ली को प्रदूषण से मुक्त करने में सफलता नहीं मिली तो फिर देश को भी नहीं मिल सकेगी। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि वायु प्रदूषण के शिकार शहरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
बोस्टन कालेज की ग्लोबल आब्जर्वेटरी आन पाल्यूशन की रिपोर्ट के मुताबिक केवल 2019 में ही भारत में वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या 16 लाख रही। देखा जाए तो वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन, धूल और मौसम के पैटर्न जैसे कारकों का मिश्रण दिल्ली और देश के दूसरे बड़े शहरों को प्रदूषित करता है। बड़े शहरों में तो इन प्रदूषण स्रोतों का एक बड़ा हिस्सा पूरे वर्ष मौजूद रहता है। दुर्भाग्यवश केवल सर्दियों के दौरान ही हम सभी को अहसास होता है कि हवा प्रदूषित है। फिलहाल जो प्रदूषण है, उसमें पराली का योगदान बहुत कम है। विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) द्वारा दिल्ली में वायु प्रदूषण के एक नए प्री-दिवाली और प्री-विंटर विश्लेषण के अनुसार यहां वाहनों को वायु प्रदूषण का मुख्य स्रोत बताया गया है। साल दर साल बढ़ती जा रही वाहनों की संख्या के चलते अकेले परिवहन क्षेत्र से प्रदूषकों का उत्सर्जन लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
वर्ष 1991 और 2011 के बीच दिल्ली का आकार लगभग दोगुना हो गया। इस विस्तार के साथ क्षेत्र की जनसांख्यिकीय संरचना में बदलाव आया, शहरी परिवारों की संख्या तीन गुनी हो गई। जबकि ग्रामीण परिवारों की संख्या आधी से भी कम रह गई। अनुमान है कि वर्ष 2028 तक दिल्ली सबसे अधिक आबादी वाले शहरी समूह के रूप में टोक्यो को पीछे छोड़ देगी। उद्योगीकरण, शहरीकरण और निजी वाहनों में वृद्धि से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ा है। 1985 में दिल्ली योजना बोर्ड सहित एनसीआर की स्थापना हुई, जिसका प्राथमिक उद्देश्य दिल्ली और इसके बाहरी शहरी केंद्रों में कुशल एवं संगठित विकास करना था। साथ ही भीड़भाड़ को कम करने के लिए 100-300 किमी के दायरे में स्थित कुछ शहरों को ‘काउंटर मैग्नेट’ के रूप में स्थापित करना था, परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ।
यह वाकई चिंताजनक है कि दिल्ली शहर नियमित रूप से ‘दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों’ की सूची में शीर्ष पर है। दिल्ली की स्थिति को समझने के लिए शहर की सीमाओं से परे ब्लूप्रिंट का विस्तार करना और इसके चारों ओर विकसित होने वाले जटिल पारिस्थितिकी तंत्र को पहचानना महत्वपूर्ण है। दिल्ली-एनसीआर में स्वच्छ वायु के लिए एकीकृत सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के उपयोग और हिस्सेदारी को बढ़ाने, पैदल चलने, साइकिल चलाने और नागरिक के नाते यथासंभव हमें भी निजी वाहन का कम प्रयोग करना चाहिए। बिजली संयंत्रों के लिए बेहतर उत्सर्जन मानक रखने की जरूरत है। पराली जलाने पर भारी जुर्माने के साथ ही पराली को खाद में तब्दील करने की किफायती योजना बनानी होगी। स्माग टावर और स्प्रिंकलर पूरे साल चालू रखने की जरूरत है। ठोस ईंधन के उपयोग को कम एवं समाप्त करने के लिए भारत में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों पर कर में ज्यादा कटौती की जरूरत है। इससे हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन उपभोक्ताओं के लिए अधिक किफायती हो जाएंगे, जिससे वायु गुणवत्ता सुधरेगी। दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में ऐसे विकास को बढ़ावा देने की जरूरत है, जो प्रदूषण को न बढ़ाए। सेवा उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, होटल, बैंकिंग, मीडिया और पर्यटन क्षेत्र को समय की मांग के साथ नए आयाम देने की जरूरत है। दिल्ली जैसे बड़ी आबादी वाले शहरों में आबादी के प्रबंधन के लिए विश्व स्तर पर हमारे पास विभिन्न दृष्टिकोण मौजूद हैं, जिनमें पेरिस जैसे शहर शामिल हैं। बढ़ती शहरी आबादी के साथ बड़े क्षेत्रों में परस्पर आर्थिक निर्भरता का विस्तार ‘काउंटर मैग्नेट’ शहरों के जरिये होना चाहिए। दिल्ली और इस जैसे शहरों को उचित आर्थिक विकास योजना की आवश्यकता है, जो न्यायसंगत और टिकाऊ दोनों हो। विकास एवं पर्यावरण की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र, औद्योगिक निकायों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को एक मंच पर एक साथ आना होगा।
हमें समझना होगा कि पर्यावरण किसी सरकार या पार्टी का मुद्दा नहीं, अपितु हम सभी एवं आने वाली पीढ़ियों के जीवन से जुड़ा है। हमें समय से 25 वर्ष आगे का मास्टर प्लान बनाना होगा। महत्वाकांक्षी योजनाओं और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के बीच एक बड़े अंतर को पाटना होगा। दिल्ली को एक विश्वस्तरीय शहर में बदलने और इसे एक समावेशी, रोजगारपरक और रहने योग्य वैश्विक शहर बनाना होगा, क्योंकि यह देश की राजधानी के साथ ही देश का दिल भी है। यदि दिल की हालत नहीं सुधरी तो फिर शरीर की कैसे सुधरेगी? ध्यान रहे कि हमारे प्रमुख शहरों का प्रदूषण से ग्रस्त बने रहना देश की बदनामी का भी कारण बनता है।
(लेखक जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं)