अरविंद कुमार मिश्रा: एक समय था, जब मिट्टी से बनी अनेक वस्तुओं के लिए लोग कुम्हारों पर निर्भर थे। धीरे-धीरे मिट्टी के बर्तनों की जगह स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों ने ले ली। कुम्हारों के जिन परिवारों को गांव में ही रोजगार मिला था, उनके बच्चे आजीविका के लिए शहर पलायन कर गए। यही हाल बढ़ई, लोहार आदि का हुआ। 21वीं सदी भले ही प्रगति की नई चकाचौंध लेकर आई हो, लेकिन देश की आत्मनिर्भरता की धुरी रहे शिल्पकारों और कारीगरों को इसका दंश झेलना पड़ा।

भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार रहे इस वर्ग की प्रधानमंत्री मोदी ने सुध ली है। स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से उन्होंने पीएम विश्वकर्मा योजना शुरू करने की घोषणा की। इस घोषणा के 48 घंटे के भीतर केंद्रीय कैबिनेट ने योजना को मंजूरी दे दी। 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती के मौके पर पीएम के हाथों शुभारंभ के साथ यह योजना क्रियान्वयन के स्तर आ गई है।

पीएम विश्वकर्मा योजना के अंतर्गत ग्रामीण एवं शहरी भारत के 18 पारंपरिक व्यवसायों को नया जीवन दिया जाएगा। इनमें कुम्हार, बढ़ई, लोहार, सुनार, दर्जी, मोची, नाई, मूर्तिकार आदि के साथ नाव बनाने वाले कारीगर भी शामिल हैं। ये वे उद्यम हैं जो एक विशेष तरह के हुनर और भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित रहे हैं। सदियों से यह कारीगरी पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रही है। विश्वकर्मा योजना के अंतर्गत 30 लाख परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। इसके लिए 13 हजार करोड़ रुपये आवंटित हुए हैं। प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति को आर्थिक सहायता मिलेगी।

नागरिक सेवा केंद्रों के जरिये कारीगरों और शिल्पकारों का पंजीयन होगा। उन्हें पीएम विश्वकर्मा प्रमाण पत्र और एक पहचान पत्र दिया जाएगा। पीएम विश्वकर्मा योजना के तीन प्रमुख आयाम हैं। पहला, आर्थिक सहयोग। दूसरा, कौशल एवं दक्षता संवर्धन तथा तीसरा विपणन व्यवस्था। इस योजना के तहत पहली किस्त में एक लाख रुपये का कर्ज दिया जाएगा, जिसे 18 महीने के भीतर चुकाना होगा। यदि यह कर्ज चुका दिया गया तो दूसरी किस्त में दो लाख रुपये का लोन दिया जाएगा। इसे 30 किस्तों में चुकाना होगा।

पारंपरिक स्वरोजगार वालों के लिए जरूरी उपकरण, उत्पादों के रखरखाव, कच्चे माल की उपलब्धता और डिजिटल भुगतान की कमी बड़ा संकट रही है। विश्वकर्मा योजना से मिलने वाले आर्थिक प्रोत्साहन से ऐसे लोग अपने व्यवसाय को संस्थागत रूप दे सकेंगे। योजना के हितग्राहियों की पहचान ग्राम पंचायत, जिला और राज्य स्तर पर होगी। प्रशिक्षण अवधि में लोग 500 रुपये प्रतिदिन मानदेय के हकदार होंगे। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें 15 हजार रुपये तक के आधुनिक उपकरण दिए जाएंगे। प्रशिक्षण के दौरान 12 अलग-अलग भाषाओं में उपलब्ध कराई जाने वाली टूलकिट में आधुनिक प्रौद्योगिकी और बाजार की जानकारी मिलेगी।

शिल्पकारों और दस्तकारों के सिमटने की एक बड़ी वजह उनके उत्पादों की कमजोर विपणन व्यवस्था रही। विश्वकर्मा योजना कारीगरों और शिल्पकारों के लिए टिकाऊ बाजार और विपणन तंत्र मुहैया कराने पर जोर देती है। हुनर हाट, हस्तशिल्प एवं उपहार मेलों के साथ एक जिला-एक उत्पाद योजना भी उनके उत्पादों को नया जीवन देगी। यदि उन्हें ओपेन नेटवर्क डेवलपमेंट कार्पोरेशन जैसे देसी ई-कामर्स मंच पर जगह मिलती है तो वे बाजार की प्रतिस्पर्धा में भी खड़े हो सकेंगे। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही जीरो डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट योजना से स्थानीय उत्पादों की संबद्धता इन कारीगरों के उत्पादों की गुणवत्ता भी बढ़ाएगी, जिसके समग्र लाभ देखने को मिलेंगे।

कुछ वर्ष पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा शुरू विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना से 1.40 लाख शिल्पियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। मध्य प्रदेश सरकार चमड़ा उद्योग से जुड़े कारीगरों के लिए नेशनल फुटवियर डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट के साथ भागीदारी करने जा रही है। केंद्र सरकार पीएम विश्वकर्मा योजना के माध्यम से विनिर्माण गतिविधियों से संबद्ध एक बड़े वर्ग को एमएसएमई से जोड़ना चाहती है।

देश के पारंपरिक उद्योगों को प्रोत्साहन का सीधा असर घरेलू विनिर्माण पर पड़ेगा। स्थानीय स्वरोजगार खत्म होने का सबसे अधिक लाभ चीन जैसे देशों को हुआ, जिसकी वस्तुओं से हमारे बाजार पट गए। विश्वकर्मा योजना स्थानीय कौशल को नई ऊर्जा देकर स्वदेशी उत्पादों की आपूर्ति और खपत बढ़ाएगी। मेक इन इंडिया से लेकर वोकल फार लोकल जैसे अभियान का मूल उद्देश्य यही रहा है। आधुनिक प्रौद्योगिकी की वजह से देश की श्रमबल संरचना में तेजी से बदलाव हो रहा है। ऐसे में तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य घरेलू उत्पादन बढ़ाने से ही संभव है।

पीएम विश्वकर्मा योजना में शामिल व्यवसाय मुख्य रूप से अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग द्वारा संचालित हैं। इस योजना से श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ेगी। स्वरोजगार पर आधारित एक बड़े वर्ग तक प्रौद्योगिकी लाभ पहुंचने से कुटीर उद्योग की औद्योगिक उत्पादन में हिस्सेदारी बढ़ती है। आर्थिक विषमता दूर करने के साथ यह सामाजिक समरसता को भी मजबूती देगी।

अब तक आर्थिक प्रोत्साहन चयनित उद्योगों के लिए ही आरक्षित माने जाते थे। पहली बार सरकार पुश्तैनी कारोबार के लिए समग्र आर्थिक प्रोत्साहन लेकर आई है। इसी कड़ी में रेहड़ी-पटरी वालों के लिए छह हजार करोड़ रुपये प्रदान किए जा चुके हैं। हर घर शौचालय, पीएम आवास योजना, उज्ज्वला, हर घर नल जल योजना से लेकर जनधन का वास्तविक लाभार्थी कमजोर वर्ग ही रहा है। उज्जवला योजना के 45 प्रतिशत लाभार्थी दलित और आदिवासी हैं। स्पष्ट है कि इस तबके का आर्थिक सशक्तीकरण उन्हें सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी सशक्त बनाएगा।

(लेखक लोक नीति विश्लेषक हैं)