हर्ष वी. पंत। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जोरदार ऐतिहासिक जीत बहुत कुछ कहती है। यह दर्शाती है कि चुनाव में जिस कांटे की टक्कर का अनुमान लगाया गया, वैसा असल में कुछ नहीं था। ट्रंप ने 2020 के अपने प्रदर्शन को और बेहतर बनाया, जबकि डेमोक्रेट उम्मीदवार एवं उपराष्ट्रपति कमला हैरिस पिछले चुनाव में बाइडन के प्रदर्शन की बराबरी भी नहीं कर पाईं। ट्रंप ने जबरदस्त राजनीतिक वापसी करते हुए दूसरे कार्यकाल की राह सुनिश्चित की। ट्रंप के लिए व्हाइट हाउस के दरवाजे तभी खुलने लग गए थे, जब जार्जिया के उस किले को उन्होंने फिर से जीत लिया, जो 2020 में उन्होंने मामूली अंतर से गंवा दिया था। नार्थ कैरोलिना में उनकी जीत ने कमला हैरिस की हार की पटकथा लिख दी। पेंसिलवेनिया, एरिजोना, मिशिगन, विस्कान्सिन और नेवादा जैसे कड़े मुकाबले वाले राज्यों में भी हैरिस कुछ खास नहीं कर पाईं, जो उनकी जीत के लिहाज से बेहद अहम थे। अपनी 2016 की जीत के उलट इस बार ट्रंप पापुलर वोट्स के मामले में भी बाजी जीतने में सफल रहे। रिपब्लिकन पार्टी 1992 के बाद चुनाव में यह उपलब्धि दर्ज कर पाई है। स्वाभाविक रूप से ट्रंप ने जीत को शानदार करार देते हुए विजयी भाषण में समर्थकों से कहा, ‘अमेरिका ने एक अभूतपूर्व एवं दमदार जनादेश दिया है।’

चार साल पहले ट्रंप को बहुत असहज स्थितियों में वाशिंगटन से विदाई लेनी पड़ी थी। 1892 में ग्रोवर क्लीवलैंड के बाद वह पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जो चार साल के अंतराल के बाद फिर से चुनकर आए हैं। इस लिहाज से भी उन्होंने एक नया इतिहास रचा है। तमाम कानूनी मुश्किलों में फंसे और अपने पहले कार्यकाल में दो बार महाभियोग का सामना करने और करीब 40 प्रतिशत की रेटिंग से कम पर राष्ट्रपति पद से विदा होने वाले ट्रंप की वापसी किसी भी सूरत में कम करके नहीं आंकी जा सकती। यह बड़ी उपलब्धि है।

अमेरिकी इतिहास में यह एक बेहद असाधारण चुनाव था, जिसमें एक प्रत्याशी यानी ट्रंप पर दो बार जानलेवा हमले और एक आपराधिक ट्रायल भी देखने को मिला, जबकि डेमोक्रेट खेमे ने अंतिम दौर में बाइडन की जगह कमला हैरिस को प्रत्याशी बनाया। चुनाव अभियान में विमर्श एवं छींटाकशी का निम्नतम स्तर देखने को मिला और राजनीतिक ध्रुवीकरण चरम पर दिखा। इस परिदृश्य में भी रिपब्लिकन पार्टी बेहतरीन प्रदर्शन करने में कामयाब रही। उसने न केवल राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट्स को मात दी, बल्कि अमेरिकी सीनेट पर नियंत्रण के साथ ही प्रतिनिधि सभा में भी उसका दबदबा बने रहने के आसार हैं। इसका अर्थ होगा कि राष्ट्रपति ट्रंप के एजेंडे में कोई विधायी अवरोध भी नहीं आएगा।

ट्रंप की जीत बहुत व्यापक है और उनके सहारे दोनों सदनों में कई रिपब्लिकनों की नैया पार लगी है। उन्होंने अपने दम पर पार्टी की छवि और उसके सितारों को नए सिरे से गढ़ा है। इस चुनाव में दोनों खेमों का दांव इतना ऊंचा लगा था कि उन्होंने मतदाताओं को लामबंद करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। यही कारण है कि आधुनिक अमेरिकी इतिहास में यह सर्वाधिक मतदान वाला चुनाव रहा। इन चुनावों ने कई वर्जनाओं को भी तोड़ा है। जैसे माना जा रहा था कि हैरिस को महिलाओं का बड़ा समर्थन मिलेगा, लेकिन वास्तविक तस्वीर ऐसी नहीं दिखी। हालांकि एक्जिट पोल के अनुसार अधिकांश महिलाएं उनके पक्ष में रहीं, लेकिन वह 2020 में बाइडन को मिले महिलाओं के 57 प्रतिशत मतों की बराबरी भी नहीं कर पाईं। यह भी आश्चर्यजनक रहा कि अश्वेत, लैटिन और एशियाई समूहों में एक तिहाई अमेरिकी मतदाताओं ने ट्रंप के लिए वोट किया, जबकि श्वेत मतदाताओं के बीच उनके प्रति समर्थन में मामूली सी गिरावट आई।

यह मतदाताओं की पारंपरिक पसंद में परिवर्तन के साथ ही अमेरिकी जनसांख्यिकी से जुड़ी नई वास्तविकताओं से परिचित कराता है। इसके चलते हाल के वर्षों में अमेरिकी राजनीति की रंगत बदली है और दोनों पार्टियों के समर्थन आधार में भी यह प्रत्यक्ष दिख रहा है। जहां रिपब्लिकन पार्टी शारीरिक श्रम से संबंधित कामगारों और निम्न आय वाले मतदाताओं में पैठ बढ़ा रही है तो डेमोक्रेट्स शिक्षित युवाओं और उच्च आमदनी वाले वर्गों पर हद से ज्यादा निर्भर होती जा रही है। डेमोक्रेटिक पार्टी अब वैसी नहीं दिखती, जैसी उसकी पहचान रही है। इस चुनाव ने यह भी दर्शाया कि डेमोक्रेट्स ने अधिकांश अमेरिकियों की आवाज उठाना बंद कर दिया है और अपना दायरा बढ़ाने की उनके पास कोई योजना नहीं। कुल मिलाकर, वह हालीवुड सेलेब्रिटीज की ऐसी पार्टी बनकर रह गई, जिसका जनता से कोई जुड़ाव नहीं रहा। दूसरी ओर, ट्रंप का अभियान बहुत सुनियोजित रहा और उन्होंने बाइडन-हैरिस प्रशासन की कमियों को रेखांकित कर उन्हें बखूबी भुनाया।

ट्रंप ने बढ़ती महंगाई, दक्षिणी सीमा पर विदेशियों की बढ़ती आवक और वैश्विक अस्थिरता को मुद्दा बनाया। हैरिस ने बाइडन की असफलताओं से खुद को दूर रखने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो सकीं। आव्रजन, व्यापार, सांस्कृतिक मुद्दों एवं विदेश नीति पर भी हैरिस और ट्रंप के विचार विपरीत थे, जहां अमेरिकी मतदाताओं ने ट्रंप के पक्ष में अपना फैसला सुनाना पसंद किया। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने आर्थिक एवं सामरिक, दोनों मोर्चों पर विश्व के साथ अमेरिका की सक्रियता के समीकरण नाटकीय रूप से बदल दिए थे। हालिया एक्जिट पोल में भी यह झलका कि यूक्रेन और गाजा में चल रही लड़ाई के साथ-साथ व्यापक वैश्विक अस्थिरता के दौर में केवल चार प्रतिशत अमेरिकी मतदाता ही विदेश नीति को लेकर चिंतित थे। वैश्विक ढांचे के दृष्टिकोण से अमेरिका के अंतर्मुखी होने के गहरे निहितार्थ हैं। चूंकि इस मामले में भारत की स्थिति कहीं बेहतर है तो इसकी भरी-पूरी संभावनाएं हैं कि अमेरिकी रणनीतिक प्राथमिकताओं में परिवर्तन के साथ नई दिल्ली कहीं बेहतर तरीके से तालमेल बिठाने में सक्षम होगी। अमेरिका के साथ प्रगाढ़ साझेदारी समकालीन भारतीय विदेश नीति के मूल में है। भारत को भी अमेरिका की घरेलू राजनीति में आ रहे परिवर्तनों के अनुरूप खुद को ढालना होगा। कहीं व्यापक जनादेश के साथ 2024 में ट्रंप की विजय यही दर्शाती है कि 2016 में उनकी जीत कोई तुक्का नहीं थी। साथ ही यह शेष विश्व के साथ अमेरिका की सहभागिता में व्यापक बदलाव के सूत्रपात का भी संकेत है। ट्रंप की जीत अमेरिका के साथ-साथ विश्व पर भी असर डालेगी।

(लेखक नई दिल्ली स्थित आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष हैं)