अंततः अमेरिकी जनता ने रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी एवं पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को फिर से राष्ट्रपति बनाना पसंद किया। ट्रंप ने आसानी से जीत हासिल कर एक नया इतिहास बनाया। वह लंबे समय बाद दूसरे ऐसे राष्ट्रपति बने, जिन्होंने एक बार चुनाव हारने के बाद जीत हासिल की। इतिहास रचने का अवसर डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार एवं उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के पास भी था। वह अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बन सकती थीं, लेकिन हिलेरी क्लिंटन की तरह वह भी नाकाम रहीं। हिलेरी को भी ट्रंप ने हराया था और कमला हैरिस को भी। यह साफ है कि राष्ट्रपति जो बाइडन की विरासत उन पर भारी पड़ी। यदि बाइडन कमजोर राष्ट्रपति साबित नहीं हुए होते और उन्होंने अर्थव्यवस्था को संभालने के साथ वैश्विक समस्याओं और विशेष रूप से यूक्रेन एवं गाजा युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई होती तो शायद कमला हैरिस की राह आसान होती।

कमला हैरिस को इसका भी नुकसान उठाना पड़ा कि डेमोक्रेटिक पार्टी ने शरणार्थियों और अवैध रूप से आए लोगों के प्रति उदार रवैया अपना रखा था। भारत एवं अफ्रीकी मूल की महिला होने के नाते वह महिलाओं और साथ ही विदेशी मूल के नागरिकों को उतना आकर्षित नहीं कर पाईं, जितना मानकर चला जा रहा था। यह भी उनकी पराजय का कारण बना। इस नतीजे पर पहुंचने के पर्याप्त कारण हैं कि वह अमेरिकी जनता की उस तरह नब्ज नहीं पकड़ सकीं, जैसी ट्रंप ने पकड़ी। ट्रंप एक मजबूत नेता की अपनी छवि उभारने, अमेरिका के साथ दुनिया की समस्याओं के समाधान में सक्षम साबित होने का संदेश देने के साथ यह भरोसा दिलाने में भी समर्थ रहे कि वह महंगाई से जूझती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की सामर्थ्य रखते हैं। इसमें उनकी व्यापारी वाली छवि भी सहायक बनी।

चूंकि रिपब्लिकन पार्टी का अमेरिकी संसद के दोनों सदनों में बहुमत होगा, इसलिए यह तय है कि ट्रंप अपने मनमाफिक खुलकर काम करेंगे, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह अप्रत्याशित फैसले करने वाले बड़बोले नेता हैं। वह किस मसले पर कब क्या कह और कर दें, इसका ठिकाना नहीं। वह जलवायु परिवर्तन को समस्या नहीं मानते और अमेरिका के आर्थिक हितों के आगे वैश्विक हितों की परवाह नहीं करते। वैसे उनके पहले कार्यकाल में विश्व अपेक्षाकृत स्थिर था और इसमें उनका भी योगदान था। ट्रंप का राष्ट्रपति बनना भारतीय हितों के लिए अच्छा माना जा रहा है और इसके पीछे कुछ ठोस कारण हैं। पिछले कार्यकाल में वह भारत के मित्र के रूप में उभरे थे, लेकिन इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि वह भारत की उच्च आयात शुल्क दर की शिकायत करते रहते हैं। उन्हें यह भी रास नहीं आता कि दोनों देशों के बीच व्यापार का पलड़ा भारत के पक्ष में झुका है। भारत को व्यापार नीति के साथ एच-वन बी वीजा पर उनके रवैये से भी सतर्क रहना होगा।