Atal Tunnel Rohtang: रोहतांग सुरंग की नींव में छेरिंग दोरजे के लिखे यह शब्द
जॉर्ज फर्नाडीज से जब वे मिलने गए तो जॉर्ज स्वयं प्रवेशद्वार तक लेने आए। उस दिन मुहर लगी थी लाहुल की अर्जी पर हिमाचल के एक छिटके हुए कोने की उम्मीद पर। यह मुहर भारत को घूरने वाले चीन की कुदृष्टि के विरुद्ध उठते भारत के आत्मसम्मान पर थी।
धर्मशाला, नवनीत शर्मा। पहले यह काम हो गया होता तो खर्च कम आता। अब तो खर्च बहुत आएगा, लेकिन करना तो होगा ही! करेंगे! आप एक बार रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीज से मिल लीजिए। ये शब्द 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहे थे। किसे कहे थे? पठानकोट से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक चमन लाल, वाजपेयी जी के मित्र तशी दावा, अभय सिंह ठाकुर के सामने। साथ में थे छेरिंग दोरजे, जो अब 86 साल के हैं। सुरंग की मांग करने वाला प्रार्थनापत्र छेरिंग दोरजे ने लिखा था।
बहरहाल, जॉर्ज फर्नाडीज से जब वे मिलने गए तो जॉर्ज स्वयं प्रवेशद्वार तक लेने आए। उस दिन मुहर लगी थी लाहुल की अर्जी पर, हिमाचल के एक छिटके हुए कोने की उम्मीद पर। यह मुहर भारत को घूरने वाले चीन की कुदृष्टि के विरुद्ध उठते भारत के आत्मसम्मान पर थी। शनिवार, तीन अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अटल टनल रोहतांग का लोकार्पण करेंगे तो लेह-लद्दाख के लिए हिमाचल के बाजू खुल जाएंगे। गंभीर बीमारी की स्थिति में उड़ान के इंतजार में प्रार्थनापत्र बन कर जीते आए लोग मुस्करा उठेंगे। सैन्य ताकत निर्बाध आ-जा सकेगी, छोटे उद्योगों के रास्ते के पत्थर हटने का विश्वास जगेगा और आलू व मटर को भी रास्ता मिलेगा। उससे पहले शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तीन महत्वपूर्ण पुलों का लोकार्पण भी करेंगे।
छेरिंग दोरजे। फाइल
कभी पंजाब का हिस्सा रहे लाहुल के लिए जनजातीय सलाहकार परिषद बनी। वर्ष 1955 में जवाहरलाल नेहरू मनाली आए तो लोगों ने सुरंग की मांग उठा दी। पंडित नेहरू ने कहा, अभी देश इस स्थिति में नहीं है कि हम सुरंग बनाएं, इतना अवश्य है कि रज्जु मार्ग का प्रबंध करते हैं। नेहरू के दिल्ली जाने के दस दिन बाद प्रधानमंत्री के आदेश पर रज्जु मार्ग विशेषज्ञ जापानी इंजीनियर जीप लेकर जायजा लेने लाहुल पहुंचा। लौटती बार कोठी के पास उसकी जीप गिर गई और उसने दम तोड़ दिया। मामला खटाई में पड़ गया।
उसके बाद इंदिरा गांधी के युग में ठाकुर देवी सिंह ने सुरंग की मांग रखी, लेकिन कुछ हो नहीं सका। वर्ष 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो लोगों में उम्मीद जगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रहे तशी दावा ने दो लोगों को याद किया। एक तो चमन लाल ही थे, दूसरे हमीरपुर के ठाकुर राम सिंह इतिहासकार, जिन्होंने हमीरपुर के नेरी में इतिहास संकलन समिति की स्थापना की। चमन लाल पांगी में भी छह माह का प्रवास कर चुके थे। तशी दावा की तरफ से चिट्ठी लिखी छेरिंग दोरजे ने। चमन लाल ने उन्हें दिल्ली आने को कह दिया।
तशी दावा, अभय सिंह ठाकुर और दोरजे दिल्ली गए तो ठाकुर राम सिंह झंडेवालान कार्यालय में ही थे। पूछा कि क्यों मिलना है। जब सुरंग का नाम लिया तो कहा कि कोई सभा-संस्था बनाओ। संस्था मुद्रित पते वाला पत्र हो, मुहर हो। इस तीन सदस्यीय दल ने सब तैयार कर लिया। संस्था वहीं बना दी, लाहुल एवं पांगी जनजातीय सेवा समिति। अध्यक्ष तशी दावा, सचिव छेरिंग दोरजे, अभय सिंह ठाकुर कोषाध्यक्ष और संरक्षक हुए चमन लाल। बताया गया कि लाहुल को सुरंग चाहिए सिर्फ इतने से काम नहीं चलेगा। कुछ और भी कहो।
छेरिंग दोरजे को याद है, मैं लेह होते हुए कारगिल जाता था। वहां जिलाधीश काचो गुलाम मोहम्मद के साथ मित्रता थी। वह कहता था कि पाकिस्तान बहुत पास है, एक दिन हड़प लेगा इस इलाके को, तुम होटल में छत पर न सोया करो, गोली लग सकती है। मुङो हमेशा लगता था कि चीन पाकिस्तान से कहीं बड़ा शत्रु है। मैंने प्रार्थना पत्र में सुरंग को पाकिस्तान और चीन के कोण से प्रमुखता दी। विषय में भी यही लिखा। उसके बाद लाहुल का नाम लिया।
वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध हो गया। सितंबर में तशी दावा फिर छेरिंग दोरजे को लेकर अटल जी से मिलने गए। मुलाकात आठ से दस मिनट की थी, लेकिन अटल जी ने कारगिल की कहानी पूछी और सुरंग पर बेहद गंभीर दिखे। उठते हुए उन्होंने फिर कहा, पाकिस्तान से तो निपट लेंगे, चीन को देखना जरूरी है। हर साल तशी दावा छेरिंग दोरजे के साथ जाते रहे। वर्ष 2002 में अटल जी ने लाहुल आकर घोषणा कर दी, लेकिन भूमि पूजन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2010 में किया। उसके बाद मोदी सरकार ने इसे प्राथमिकता में रखा।
तशी दावा के साथ मिल कर सपने को शब्द देने वाले छेरिंग दोरजे अत्यंत प्रसन्न हैं। अचानक ठिठकी हुई आवाज में कहते हैं, बहुत प्रसन्न हैं हम सब। अटल जी, तशी दावा और उन सबका आभार, जिनके कारण यह दिन आएगा। लेकिन अब पर्यटकों को चाहिए कि वह यहां जिम्मेदार पर्यटक की तरह आएं। घाटी को मैला करने के लिए नहीं। लाहुल से कार्यक्रम के लिए आमंत्रित हूं, लेकिन अवस्था ऐसी नहीं है। महामारी भी फैली हुई है। यहीं से इस कार्यक्रम को देखूंगा।-
छेरिंग दोरजे ने जो प्रार्थनापत्र लिखा, उससे वसीम बरेलवी याद आ गए :
कौन सी बात कहां, कैसे कही जाती है, ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है।
[हिमाचल प्रदेश, राज्य संपादक]