मनोबल का अर्थ है- मन का बल या मानसिक बल। एक शारीरिक बल होता है, दूसरा मानसिक बल होता है। शारीरिक बल की सीमा होती है, लेकिन मानसिक बल की कोई सीमा नहीं होती, इसीलिए इसे मनोबल कहा जाता है। जिस प्रकार मन असीमित होता है, अनंत दिशाओं की यात्रा करता है, उसी प्रकार मानसिक बल को किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता। मन से पहले विचार पैदा होता है और विचार से संपूर्ण जीवन प्रभावित होता है। विचार और मन एक साथ ही मनुष्य की कार्यशैली को प्रभावित करते हैं। जैसा मन, वैसा विचार और ठीक उसी प्रकार मनुष्य का चरित्र। कहते हैं- मन अनंत दिशाओं में घूमता रहता है। एक क्षण में यहां, दूसरे क्षण में हजारों मील दूर। ऐसा इसलिए, क्योंकि मन भाव है, पदार्थ नहीं है। पदार्थ गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होता है। भाव पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसीलिए विज्ञान भी मानता है कि विचार एक सेकंड में पृथ्वी की तीन परिक्रमा कर सकता है। प्राचीनकाल में हमारे संत अपने मनोबल और विचार के द्वारा अंतरिक्ष की यात्रा करते थे। आज तो विज्ञान दूसरे ग्रहों पर अपना अंतरिक्षयान भेजकर दूरी नापता है, लेकिन हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों व संतों ने पृथ्वी से ग्रहों की दूरी की चर्चा पुराणों में कर दी थी। इसलिए मन और विचार भाव रूप में हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।

कहते हैं- जैसा मन, वैसा तन। मनुष्य का मन और विचार जैसा होता है, वैसा ही उसका जीवन बन जाता है। हमारे संतों का यह भी कहना है कि 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' इसलिए सब कुछ मन पर निर्भर करता है। जो व्यक्ति पहले मन में किसी समस्या पर विजय प्राप्त करता है, वह व्यक्ति व्यावहारिक रूप में भी सफल होता है। जो छात्र परीक्षा में उत्ताम अंक पाना चाहता है, वह पहले मन में उत्ताम अंक पाने का संकल्प करता है। फिर वह परीक्षा में उत्ताम अंक प्राप्त कर लेता है, लेकिन जो बच्चा पहले ही हार जाता है, वह सोच लेता है कि मुझसे यह विषय नहीं होगा, यह भारी विषय है, यह मेरी समझ में नहीं आता, मैं अवश्य ही परीक्षा में फेल हो जाऊंगा, तो ऐसे बच्चे परीक्षा में फेल हो जाते हैं। इसके विपरीत जिन बच्चों का मनोबल बुलंद रहता है, वे निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करते हैं।

[आचार्य सुदर्शन महाराज]