जागरण संपादकीय: भारत के रत्न का स्मरण, देश ने महान सपूत को खो दिया
आज जब भारत 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है तो हम ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करके ही दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं। मुझे आशा है कि रतन टाटा का विजन देश की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और भारत वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के लिए अपनी पहचान मजबूत करेगा। उनकी महानता बोर्डरूम या सहयोगियों की मदद करने तक ही सीमित नहीं थी।
नरेन्द्र मोदी। आज रतन टाटा जी के निधन को एक महीना हो रहा है। पिछले माह आज के ही दिन जब मुझे उनके गुजरने की खबर मिली, तब मैं आसियान समिट के लिए निकलने की तैयारी में था। उनके चले जाने की वेदना अब भी मन में है। इस पीड़ा को भुला पाना आसान नहीं। भारत ने अपने एक महान सपूत..एक अमूल्य रत्न को खो दिया। आज भी शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक लोग उनकी कमी महसूस कर रहे हैं। हम सबका यह दुख साझा है। चाहे कोई उद्योगपति हो या उभरता हुआ उद्यमी या प्रोफेशनल, हर किसी को उनके निधन से दुख हुआ। पर्यावरण रक्षा और समाज सेवा से जुड़े लोग भी उनके निधन से दुखी हैं। यह दुख हम सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में महसूस कर रहे हैं।
युवाओं के लिए रतन टाटा प्रेरणास्रोत थे। उनका व्यक्तित्व हमें याद दिलाता है कि कोई सपना, कोई लक्ष्य ऐसा नहीं जिसे प्राप्त न किया जा सके। उन्होंने सबको सिखाया कि विनम्र स्वभाव से दूसरों की मदद करते हुए भी सफलता पाई जा सकती है। वह भारतीय उद्यमशीलता की बेहतरीन परंपराओं के प्रतीक और विश्वसनीयता, उत्कृष्टता सेवा जैसे मूल्यों के अडिग प्रतिनिधि थे। उनके नेतृत्व में टाटा समूह दुनिया भर में सम्मान, ईमानदारी और विश्वसनीयता का प्रतीक बनकर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। इसके बावजूद उन्होंने अपनी उपलब्धियों को पूरी विनम्रता और सहजता से स्वीकार किया।
दूसरों के सपनों का खुलकर समर्थन करना और उन्हें पूरा करने में सहयोग करना, उनके सबसे शानदार गुणों में से एक था। हाल के वर्षों में वह भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का मार्गदर्शन करने और भविष्य की संभावनाओं से भरे उद्यमों में निवेश करने के लिए जाने गए। उन्होंने युवा आंत्रप्रेन्योर की आशाओं और आकांक्षाओं को समझा, साथ ही भारत के भविष्य को आकार देने की उनकी क्षमता को पहचाना। भारत के युवाओं के प्रयासों का समर्थन करके उन्होंने नए सपने देखने वाली नई पीढ़ी को जोखिम लेने और सीमाओं से परे जाने का हौसला दिया। उनके इस कदम ने इनोवेशन और आंत्रप्रेन्योरशिप की संस्कृति विकसित करने में बड़ी मदद की। आने वाले दशकों में हम इसका सकारात्मक प्रभाव जरूर देखेंगे। उन्होंने हमेशा बेहतरीन क्वालिटी के उत्पाद और सर्विस पर जोर दिया तथा भारतीय उद्यमों को ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करने का रास्ता दिखाया।
आज जब भारत 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तो हम ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करके ही दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं। मुझे आशा है कि रतन टाटा का विजन देश की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और भारत वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के लिए अपनी पहचान मजबूत करेगा। उनकी महानता बोर्डरूम या सहयोगियों की मदद करने तक ही सीमित नहीं थी। उनके मन में जीव-जंतुओं के प्रति भी करुणा थी। जानवरों के प्रति उनका गहरा प्रेम जगजाहिर था। वह पशुओं के कल्याण पर केंद्रित हर प्रयास को बढ़ावा देते थे। वह अक्सर अपने डाग्स की तस्वीरें साझा करते थे, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। मुझे याद है, जब लोग उन्हें आखिरी विदाई देने के लिए उमड़ रहे थे तो उनका डाग ‘गोवा’ भी वहां नम आंखों के साथ पहुंचा था। उनका जीवन इसकी याद दिलाता है कि लीडरशिप का आकलन केवल उपलब्धियों से ही नहीं, बल्कि सबसे कमजोर लोगों की देखभाल करने की क्षमता से भी किया जाता है। उन्होंने हमेशा देश-प्रथम की भावना को सर्वोपरि रखा। 26/11 के आतंकी हमलों के बाद उनके द्वारा ताज होटल को पूरी तत्परता के साथ फिर से खोलना, राष्ट्र के एकजुट होकर उठ खड़े होने का प्रतीक था। उनके इस कदम ने बड़ा संदेश दिया कि भारत रुकेगा नहीं...भारत निडर है और आतंक के सामने झुकने से इन्कार करता है। मुझे पिछले कुछ दशकों में उन्हें बेहद करीब से जानने का सौभाग्य मिला। हमने गुजरात में साथ मिलकर काम किया। वहां उनकी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इनमें कई परियोजनाओं को लेकर वह बेहद भावुक थे। जब मैं केंद्र सरकार में आया तो हमारी बातचीत जारी रही और वह राष्ट्र निर्माण के प्रयासों में प्रतिबद्ध भागीदार बने रहे।
स्वच्छ भारत मिशन के प्रति रतन टाटा का उत्साह विशेष रूप से मेरे दिल को छू गया था। वह इस जन आंदोलन के मुखर समर्थक थे। वह यह समझते थे कि स्वच्छता और स्वस्थ आदतें भारत की प्रगति की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण हैं। अक्टूबर की शुरुआत में स्वच्छ भारत मिशन की दसवीं वर्षगांठ के लिए उनका वीडियो संदेश मुझे अब भी याद है। यह वीडियो संदेश एक तरह से उनकी अंतिम सार्वजनिक उपस्थितियों में से एक है। कैंसर के खिलाफ लड़ाई एक और ऐसा लक्ष्य था, जो उनके दिल के करीब था। मुझे दो साल पहले असम का वह कार्यक्रम याद आता है, जहां हमने संयुक्त रूप से कैंसर अस्पताल का उद्घाटन किया था। तब उन्होंने कहा था कि वह जीवन के आखिरी वर्ष हेल्थ सेक्टर को समर्पित करना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवा एवं कैंसर संबंधी देखभाल को सुलभ और किफायती बनाने के उनके प्रयास प्रमाण हैं कि वह बीमारियों से जूझ रहे लोगों के प्रति कितनी गहरी संवेदना रखते थे।
मैं रतन टाटा जी को एक विद्वान के रूप में भी याद करता हूं। वह अक्सर मुझे विभिन्न मुद्दों पर लिखा करते थे, चाहे वे शासन से जुड़े मामले हों, किसी काम की सराहना हो या फिर चुनाव में जीत के बधाई संदेश। कुछ सप्ताह पहले मैं स्पेन के राष्ट्रपति पेड्रो सांचेज के साथ वडोदरा में था। हमने संयुक्त रूप से एक विमान फैक्ट्री का उद्घाटन किया। इसमें सी-295 विमान बनाए जाएंगे। रतन टाटा ने ही इस पर काम शुरू किया था। उस समय मुझे उनकी बहुत कमी महसूस हुई। आज जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो उस समाज को भी याद रखना है, जिसकी उन्होंने कल्पना की थी, जहां व्यापार अच्छे कार्यों के लिए एक शक्ति के रूप में काम करे, जहां प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता को महत्व दिया जाए और जहां प्रगति का आकलन सभी के कल्याण एवं खुशी के आधार पर किया जाए। रतन टाटा उन जिंदगियों और सपनों में जीवित हैं, जिन्हें उन्होंने सहारा दिया और जिनके सपनों को साकार किया। भारत को एक बेहतर, सहृदय और उम्मीदों से भरी भूमि बनाने के लिए आने वाली पीढ़ियां उनकी सदैव आभारी रहेंगी।