बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडालों पर हमलों की घटनाएं यही बताती हैं कि वहां अंतरिम सरकार के गठन के दो माह बाद भी स्थितियां सामान्य होने का नाम नहीं ले रही हैं। यह निराशाजनक है कि नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर लगाम लगाने में बुरी तरह नाकाम है। यह नाकामी इसलिए अधिक चिंतित करती है, क्योंकि अंतरिम सरकार कट्टरपंथी संगठनों की ओर से हिंदुओं को धमकाने और उनके पूजा स्थलों को निशाना बनाए जाने की घटनाओं से भली तरह अवगत है।

अब इस नतीजे पर पहुंचने के पर्याप्त कारण हैं कि मोहम्मद यूनुस की सरकार कट्टरपंथी संगठनों पर लगाम लगाने की इच्छुक ही नहीं। ऐसे नतीजे पर पहुंचने का एक बड़ा कारण यह है कि मोहम्मद यूनुस ने सत्ता संभालते ही एक ओर जहां अतिवादी संगठनों को पाबंदियों से मुक्त करना शुरू कर दिया, वहीं दूसरी ओर कई घोषित आतंकियों को जेल से रिहा करना भी प्रारंभ कर दिया। वास्तव में इसी कारण इस्लामिक कट्टरपंथियों का दुस्साहस इतना बढ़ा कि वे हिंदू मंदिरों में जाकर जिहादी तराने गाने लगे। बांग्लादेश सरकार के रवैये को देखते हुए भारत के लिए केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि वह इस पड़ोसी देश में हिंदुओं के समक्ष उभरे खतरे को अस्वीकार्य बताए। आवश्यकता इसकी भी है कि वह बांग्लादेश पर इसके लिए दबाव बनाए कि अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाले तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए।

बांग्लादेश पर दबाव बनाने के लिए आवश्यक हो तो भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सहयोग और समर्थन लेना चाहिए। यदि मोहम्मद यूनुस सरकार के ढुलमुल रवैये के चलते बांग्लादेश में कट्टरपंथी और जिहादी तत्व बेलगाम होते हैं तो इसके दुष्परिणाम केवल वहां के हिंदुओं को ही नहीं भुगतने पड़ेंगे, बल्कि इन तत्वों के कारण भारत की सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा होगा। यह देखना दयनीय है कि बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न का सिलसिला कायम रहने पर भारत सरकार और हिंदू संगठन तो चिंता व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन विरोधी राजनीतिक दल मौन साधे हुए हैं।

ऐसे में विजयदश्मी पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस कथन पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना समय की मांग है कि हिंदुओं को बांटने और भारत को कमजोर करने की कोशिश हो रही है। उनके अनुसार यह कोशिश इसलिए भी हो रही है ताकि भारत की प्रगति को रोका जा सके। हिंदू समाज की एकता को तोड़ने के लिए जो विभाजनकारी राजनीति हो रही है, उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। यह विभाजनकारी राजनीति खुद को सेक्युलर बताने वाले दल ही अधिक कर रहे हैं। क्या इससे शर्मनाक और कुछ हो सकता है कि ऐसे दलों के नेता उन हिंदू संगठनों पर तंज कस रहे हैं, जो बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। इससे यही पता चलता है कि अपने देश में सेक्युलरिज्म कितना विषैला और विकृत हो चुका है।