चंद दिनों पहले लू से झुलसती दिल्ली अब बारिश के कारण बेहाल है। यह स्थिति इसीलिए बनी, क्योंकि कम समय में कहीं अधिक बरसात हो गई। इसके चलते जगह-जगह जलभराव होने से जनजीवन तो अस्त-व्यस्त हुआ ही, दिल्ली एयरपोर्ट के एक हिस्से की छत गिर जाने से एक व्यक्ति की जान भी चली गई। इस घटना को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया। इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी।

आवश्यकता तो उन कारणों का निवारण करने की है, जिनके चलते जगह-जगह जलभराव के साथ एयरपोर्ट पर हादसा हुआ। अत्यधिक बरसात के कारण जो स्थिति दिल्ली में बनी, वैसी देश-दुनिया के अन्य शहरों में भी रह-रहकर बनती ही रहती है। कुछ समय पहले आधारभूत ढांचे की दृष्टि से कहीं अधिक उन्नत शहर दुबई सामान्य से अधिक बरसात के चलते पानी-पानी हो गया था।

पिछले कुछ वर्षों में अपने देश में भी अत्यधिक बरसात के चलते बेहतर आधारभूत ढांचे वाले शहर भी गंभीर समस्याओं से घिरते रहे हैं। अब जब जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अप्रत्याशित बदलाव एक यथार्थ है, तब फिर यह समझा जाए कि इस बदलाव जनित समस्याओं पर राजनीतिक तू-तू मैं-मैं से किसी को कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के कारण भीषण गर्मी अथवा ठंड के चलते जो समस्याएं सामने आ रही हैं, उनका सामना आसान नहीं, लेकिन कम से कम ऐसे उपाय तो किए ही जा सकते हैं, जिससे अत्यधिक बरसात जनित समस्याओं से पार पाया जा सके। यह तभी संभव हो सकेगा, जब सरकारें दूरगामी उपायों पर ध्यान केंद्रित करेंगी और आम जनता भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए तैयार रहेगी।

जब भी कहीं आवश्यकता से अधिक बरसात हो जाती है तो आधारभूत ढांचे की पोल खुल जाती है। स्थिति यह है कि एक-दो वर्ष पहले किए गए निर्माण कार्यों की गुणवत्ता को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। इन सवालों को लेकर राजनीतिक दल एक-दूसरे को ऐसे घेरने लगते हैं, जैसे उनके दल द्वारा शासित राज्य सरकारों और उनकी एजेंसियों की ओर से कराए गए निर्माण कार्यों की गुणवत्ता उत्कृष्ट कोटि की साबित हो रही हो।

इस सच से मुंह मोड़ने का कोई मतलब नहीं कि चाहे राज्य सरकार की एजेंसियों की ओर से किए गए निर्माण कार्य हों या फिर केंद्र सरकार की एजेंसियों के, उनकी गुणवत्ता कसौटी पर खरी नहीं उतरती। अपने देश में जैसे नई बनी सड़कें रह-रहकर धंसती रहती हैं, वैसे ही नए बने पुल भी गिरते रहते हैं।

देश भर में सड़कों, पुलों, रेल-बस स्टेशनों, हवाई अड्डों आदि का निर्माण तो तेजी से हो रहा है, लेकिन क्या उनके निर्माण मानकों पर खतरे उतर पा रहे हैं? उचित यह होगा कि केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी यह देखें कि उनकी ओर से जिस भी आधारभूत ढांचे का निर्माण कराया जा रहा है, उसकी गुणवत्ता से कोई समझौता तो नहीं हो रहा है?