नई लोकसभा के गठन के बाद संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने जो कुछ कहा, उससे मोदी सरकार के एजेंडे की ही झलक मिली। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि ऐसे अवसरों पर राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार की रूपरेखा को ही रेखांकित करता है।

भले ही प्रधानमंत्री मोदी गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हों, लेकिन राष्ट्रपति के अभिभाषण से यही स्पष्ट होता है कि यह सरकार पहले की तरह ही कार्य करेगी और उन कामों को पूरा करने पर विशेष ध्यान देगी, जिनका उल्लेख प्रधानमंत्री पिछले कुछ समय से लगातार करते आ रहे हैं।

इस सबके बाद भी वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि अपने तीसरे कार्यकाल में उन्हें संसद के भीतर और बाहर विपक्ष के तीखे तेवरों का सामना करना पड़ेगा। इसका एक बड़ा कारण उसके संख्याबल में वृद्धि होना है।

संख्याबल में वृद्धि के चलते विपक्ष को जहां लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल हुआ है, वहीं दूसरी ओर उसका मनोबल भी बढ़ा है। बीते तीन-चार दिनों में संसद में जो कुछ हुआ, उससे विपक्ष के बढ़े हुए मनोबल का ही पता चलता है।

विपक्ष का उत्साहित होना स्वाभाविक है, लेकिन उचित यह होगा कि वह विरोध के लिए विरोध वाले रवैये का परित्याग करे। इसके स्थान पर उसे रचनात्मक विरोध का परिचय देना चाहिए। दुर्भाग्य से फिलहाल इसके आसार कम ही हैं और इसका संकेत राष्ट्रपति के अभिभाषण के कुछ बिंदुओं पर विपक्षी नेताओं की अनावश्यक आपत्ति से मिलता है।

यह कोई नई-अनोखी या गोपनीय बात नहीं कि राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार की ओर से तैयार किया जाता है। आखिर ऐसे में यह कहने का क्या मतलब कि उनका अभिभाषण तो सरकारी भाषण है। ऐसा तो होता ही है।

यह आश्चर्यजनक है कि विपक्ष ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के उन बिंदुओं पर भी हंगामा किया, जिनका कोई औचित्य नहीं था। जब राष्ट्रपति ने प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होने की समस्या पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ठोस उपाय करने की जरूरत जताई तो विपक्ष को यह रास नहीं आया।

क्या यह एक तथ्य नहीं कि बीते पांच वर्षों में केंद्रीय स्तर के साथ ही राज्य स्तर की भी अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक हुए हैं? विपक्ष तब भी आपे से बाहर होता हुआ दिखा, जब राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में आपातकाल के काले कारनामों को याद किया। आखिर विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस आपातकाल के जिक्र मात्र से क्यों भड़क जा रही है?

कांग्रेस नेता आपातकाल का उल्लेख भर किए जाने से जिस तरह बिदक रहे हैं, उससे तो वे यही साबित कर रहे हैं कि आपातकाल का स्मरण किया जाना क्यों आवश्यक है। यह हैरानी ही नहीं, चिंता का भी विषय है कि कांग्रेस को आपातकाल के स्मरण पर भी आपत्ति है। बेहतर होगा कि सरकार का विरोध करते समय विपक्ष तनिक तार्किक रवैया अपनाए।