अंग्रेजों के जमाने की आपराधिक न्याय प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करने और न्याय व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए तीन नए आपराधिक कानूनों पर अमल की तैयारी के बीच विरोध के स्वर उभरने पर हैरानी नहीं। अपने देश में सदैव ऐसा ही होता है। पिछले कुछ समय से ऐसा कुछ ज्यादा ही होने लगा है। सुधार के हर कदम का विरोध किया जाता है। कई बार तो उस कदम के गुण-दोष का संज्ञान लिए बिना। ऐसा विरोध के लिए विरोध की राजनीति के तहत किया जाता है। इस पर आश्चर्य नहीं कि जहां बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक जुलाई से लागू होने वाले नए आपराधिक कानूनों के खिलाफ प्रधानमंत्री को पत्र लिख दिया है, वहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी अपनी आपत्ति दर्ज करा दी है।

विपक्षी दलों के कुछ और नेताओं ने भी इन नए आपराधिक कानूनों को लागू किए जाने का विरोध करना शुरू कर दिया है। कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गए हैं। विरोध के लिए वही घिसे-पिटे तर्क दिए जा रहे हैं, जैसे यह कि नए कानूनों को लागू करने के पहले पूरी तैयारी नहीं की गई है। स्पष्ट है कि यह तर्क देने वाले जानबूझकर इसकी अनदेखी कर रहे हैं कि इन कानूनों को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद से लाखों पुलिस कर्मियों समेत जेल, फोरेंसिक, न्यायिक और अभियोजन अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त अन्य आवश्यक कदम भी उठाए गए हैं।

इससे इन्कार नहीं कि तीनों नए आपराधिक कानूनों को लागू करने के क्रम में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन ऐसा तो हर नई व्यवस्था पर अमल करते समय होता है। जितना बड़ा बदलाव होता है, चुनौतियां भी उतनी ही अधिक होती हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि चुनौतियों से बचने के लिए पुरानी और कष्टकारी व्यवस्था को बनाए रखा जाए। कोई भी इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि अंग्रेजी सत्ता की ओर से बनाए गए आपराधिक कानून न्याय देने में सहायक नहीं बन रहे। छोटे-छोटे मामलों में भी न्याय पाने में आवश्यकता से अधिक समय और संसाधन खपाना पड़ता है।

नए आपराधिक कानूनों को लागू करने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, उनमें से कुछ का तो अनुमान लगाया जा रहा है, लेकिन कुछ ऐसी चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं, जिनके बारे में अभी किसी को आभास न हो। ऐसे में सरकार को आवश्यक परिवर्तन और संशोधन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए, ताकि लोगों को समय पर सुगम तरीके से न्याय मिल सके। इन नए आपराधिक कानूनों को लागू करने का मूल उद्देश्य भी यही है। नए आपराधिक कानूनों के लागू करने के क्रम में यह प्राथमिकता के आधार पर देखना होगा कि वे न्यायिक तंत्र के साथ पुलिस की कार्यप्रणाली और उसकी छवि को सुधारने में सक्षम होते हैं या नहीं?