नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। जी-20 की प्रेसिडेंसी भारत को ऐसे समय मिली थी जब दुनिया के बड़े मुल्कों में खेमेबाजी और अंर्तद्धंद की स्थिति थी। लेकिन इस आयोजन ने दुनिया को बता दिया भारत का समय आ गया है। यही नहीं, भारत विकासशील देशों के हितों की आवाज के रूप में भी उभरा है। भारत ने जी-20 के मार्फत यह भी दिखा दिया कि वह किसी एक का पक्ष लेने के बजाय हर खेमे से समान नजदीकी रखना चाहता है। आंकड़े और विभिन्न मुद्दों पर बनी सहमति इस बात का प्रमाण हैं कि यह अब तक की सबसे सफल जी-20 बैठक रही है। सम्मेलन में शामिल वैश्विक नेताओं ने एक स्वर से माना कि भारत की नेतृत्व क्षमता अद्भुत है। जी-20 की अगली अध्यक्षता संभालने वाले ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा तो मानते हैं कि भारतीय नेतृत्व ने जो लकीर खींच दी है, उस तक पहुंचना बहुत बड़ी चुनौती होगी।

तुर्किये के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन भी भारत की सफलता से अचंभित हैं और उनके स्वर भी बदले हुए हैं। वह कहते हैं कि भारत ने बेहद सफल अध्यक्ष की भूमिका निभाई है। अगर भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनता है तो यह उनके लिए गर्व की बात होगी। जी-20 अध्यक्षता के चीफ कोआर्डिनेटर हर्षवर्धन श्रृंगला कहते हैं कि जिस तरह हमने शिखर सम्मेलन आयोजित किया, उसके हर पहलू में यह देखा गया। हमने ग्लोबल साउथ के उद्देश्यों को हासिल कर लिया है। नई दिल्ली घोषणा पत्र को स्वीकार किया जाना महत्वपूर्ण है और इसमें ग्लोबल साउथ की आवश्यकताओं व चिंताओं का जिक्र किया गया है।

दिल्ली में हुए जी20 सम्मेलन से जो हासिल हुआ है, उसमें वैश्विक कर्ज के मुद्दे पर गरीब देशों की परेशानियों को दूर करने के लिए विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में सुधार पर सहमति बनी। साथ ही अफ्रीकी संघ को जी20 में शामिल किया गया और कमजोर देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अधिक वित्तपोषण देने पर जोर दिया गया। सम्मेलन में वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में समावेशन बढ़ाने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी की अहमियत को भी स्वीकार किया गया। भारत को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ने वाले रेल और शिपिंग कॉरिडोर की अहमित भी बहुत है।

अफ्रीकन यूनियन को जोड़ खेला बड़ा दांव

भारत ने अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में जोड़ नया दांव खेला है। विदेश मंत्री जयशंकर ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एयू को स्थायी सदस्यता दिए जाने को जी 20 में भारत और पीएम मोदी की विशिष्ट छाप का प्रमाण बताते हुए कहा कि इंडोनेशिया में पिछले वर्ष अफ्रीकी संघ के तत्कालीन अध्यक्ष को प्रधानमंत्री मोदी ने सदस्यता दिलाने का भरोसा दिया था। जयशंकर ने कहा कि पीएम ने तब के एयू प्रमुख को यह भी कहा था कि यह मोदी की गारंटी है और आज अफ्रीकी संघ को जी 20 की स्थाई सदस्य बनाकर पीएम ने इस गारंटी को पूरा किया है।

भारत वैश्विक दक्षिण या विकासशील देशों विशेषकर अफ्रीकी महाद्वीप की चिंताओं, चुनौतियों और आकांक्षाओं को विश्व मंच पर मुखर रूप से उठाने में अग्रणी रहा है। मुंबई यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डा. रेणु मोदी जागरण प्राइम से कहती हैं कि अफ्रीकन यूनियन को शामिल करना भारत के लिहाज से बेहतर रहा। “इससे ग्लोबल साउथ में भारत की लीडरशिप मजबूत होगी। भारत ने संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ग्लोबल साउथ के मुद्दे उठाए भी हैं। प्रेसीडेंसी हासिल करने के बाद इस साल जनवरी में भारत ने वर्चुअल तरीके से वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट का आयोजन किया जिसमें लगभग 125 देशों ने हिस्सा लिया।

दिल्ली यूनिवर्सिटी में अफ्रीकन स्टडीज के प्रोफेसर और अफ्रीकाइंडियाडॉटओरजी के एडिटर सुरेश कुमार कहते हैं, “आतंकवाद, क्लाइमेट चेंज, पर्यावरण, फाइनेंस, ग्लोबल इकोनॉमी जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सभी देशों को साथ काम करना है। इसी संदर्भ में जब हम अफ्रीका की बात करते हैं साउथ अफ्रीका, नाइजीरिया, मिस्र की इकोनॉमी मजबूत है। भारत ने अफ्रीकन यूनियन को हर स्तर पर प्राथमिकता दी है। अफ्रीका के जी-20 में शामिल होने से उनकी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक हिस्सेदारी बढ़ेगी।”

डॉ. रेणु मोदी कहती हैं, “अफ्रीका ऐतिहासिक रूप से हमारा सहयोगी रहा है। भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने के लिए अफ्रीकी देशों के समर्थन की आवश्यकता होगी।” सुरेश कुमार भी कहते हैं, “अफ्रीका के साथ आने से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी मजबूत होगी। अटलांटिक महासागर में पोचिंग हो रही है। सुरक्षा के लिहाज से भी भारत-अफ्रीका की साझेदारी अहम है।” अफ़्रीकी संघ को जी-20 में लाने का श्रेय भारत को दिया जाएगा, और ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीका में भविष्य के शिखर सम्मेलनों से भारत की ग्लोबल साउथ पहल को आगे ले जाने की संभावना है।

सबसे सफल जी-20, 112 कार्यों को दिया गया अंतिम रूप

जी-20 शिखर सम्मेलन में 73 परिणाम और 39 संलग्न दस्तावेज सहित 112 कार्यों को अंतिम रूप दिया गया। इसके साथ ही भारत की अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन सबसे ज्यादा कार्योन्मुखी रहा। पिछले साल इंडोनेशिया में 50 कार्यों को अंतिम रूप दिया गया था। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी और कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने भारत की अध्यक्षता में जी20 शिखर सम्मेलन को सबसे प्रभावशाली सम्मेलन बताया है। उन्होंने कहा कि भारत की अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन में हमने प्रौद्योगिकी का उपयोग करके लोगों को सशक्त बनाने का संदेश दिया। जी-20 शिखर सम्मेलन समापन पर उन्होंने एक ट्वीट के जरिये कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की जी-20 की अध्यक्षता हाल के दिनों की सबसे निर्णायक अध्यक्षता मानी जाएगी। आईटी राज्य मंत्री ने कहा, ‘‘हमारा संदेश है कि हम बिना किसी संघर्ष के शांतिपूर्ण भविष्य के बारे में सोच सकते हैं और नवाचार, शासन-व्यवस्था में सुधार और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके लोगों को सशक्त बनाने के बारे में बात कर सकते हैं।’’

भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले वैश्विक टिप्पणीकारों ने इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर "भारत का क्षण" कहा था। यह दिलचस्प है, क्योंकि 2008 के बाद से जी-20 का आयोजन अलग-अलग देशों में बारी-बारी किया जाता रहा है। इसे मेजबान देश के लिए एक परिवर्तनकारी क्षण के रूप में नहीं देखा जा रहा है। इसका एक कारण नई दिल्ली द्वारा जी-20 की मेजबानी के लिए किया गया अभूतपूर्व प्रयास है, जिसे उसने अपनी तैयारियों को सुनिश्चित करने के लिए 2021 और 2022 में दो बार स्थगित कर दिया। दिल्ली में जी-20 ने "वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ" को अपने साथ लाने की भारतीय पहल के मामले में भी अपनी छाप छोड़ी है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि विकासशील दुनिया के 125 से अधिक देशों ने "फीडर कॉन्फ्रेंस" में अपनी चिंताओं को उठाया है।

दुनिया को शांति का संदेश

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा, 'मैं खास तौर पर प्रधानमंत्री मोदी को भारत की अध्यक्षता के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। मौजूदा वैश्विक हालात में शांति और अमन के लिए जो अधिकतम किया जाना चाहिए, वह भारत ने बतौर अध्यक्ष किया है। भारत ने अमन का संदेश पूरी दुनिया को दिया है।' उन्होंने कहा कि घोषणा पत्र रूस की कूटनीतिक जीत नहीं है।

द्विपक्षीय बातचीत

मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक समेत 10 से ज्यादा राष्ट्राध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय बातचीत की। ये G20 समिट जैसे प्लेटफॉर्म पर ही मुमकिन हो सकता है। ब्रिटेन से फ्री ट्रेड डील और अमेरिका से कई समझौतों पर बातचीत जल्द ही नतीजे पर पहुंचने की उम्मीद है।

भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा

भारत ने अमेरिका और कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ शनिवार को एक महत्वाकांक्षी भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे की घोषणा की। प्रधानमंत्री मोदी ने कनेक्टिविटी पहल को बढ़ावा देते हुए सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर जोर दिया। नए आर्थिक गलियारे को कई लोग चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के विकल्प के रूप में देखते हैं। भारत की मध्य एशिया से जमीनी कनेक्टिविटी की सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान का तोड़ मिल गया है। वह 1991 से इस प्रयास को रोकने की कोशिश कर रहा था। अरब देशों के साथ भागीदारी बढ़ी है, UAE और सऊदी सरकार भी भारत के साथ स्थायी कनेक्टिविटी बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। अमेरिका को उम्मीद है कि इस मेगा कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट से अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक स्थिरता आएगी और संबंध सामान्य हो सकेंगे। जी-20 में अफ्रीकन यूनियन के भागीदार बनने से चीन की अफ्रीकी देशों में दादागीरी को रोकने में सहायता मिलेगी।

रूस और यूक्रेन के मुद्दे को सही से किया हैंडल

भारत ने संयुक्त घोषणा पत्र में रूस या चीन का विरोध नहीं किया। साथ ही यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की आलोचना भी नहीं की गई। वेस्टर्न वर्ल्ड और वहां के मीडिया की भारत से शिकायत रही है कि वो रूस के खिलाफ न तो कोई बयान देता है और न यूएन में उसके खिलाफ वोटिंग करता है। इसके अलावा भारत ने रूस से काफी क्रूड ऑयल खरीदा और करोड़ों डॉलर बचाए। रूस को पेमेंट रुपए में किया गया। इंडियन डिप्लोमैट्स ने नई दिल्ली G20 समिट में इस मुद्दे को पब्लिकली नहीं उठाने दिया और इसी वजह से किसी तरह के मतभेद भी नहीं उभरे। हालांकि, ग्रेन डील से रूस के अलग होने के बाद फूड क्राइसिस बढ़ने का खतरा है और तब भारत को कोई स्टैंड जरूर लेना पड़ेगा।

सुधारों पर सहमत किया

वैश्विक दक्षिण की आवाज़ बनने के क्रम में भारत ने अफ्रीकी संघ को G20 के स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त किया। भारत ने विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे वैश्विक संस्थानों में बड़े सुधारों पर भी जोर दिया और देश इस पर सहमत हुए।

भारत की कूटनीति

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि पिछले अमेरिकी राष्ट्रपतियों की तरह जो बाइडन भी भारत को अमेरिका के करीब लाने की कोशिश करते दिखे। विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत ने संयुक्त घोषणा पत्र में रूस या चीन का विरोध नहीं किया। साथ ही यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की आलोचना भी नहीं की गई। बता दें कि यूक्रेन युद्ध के चलते जब दुनिया बंटी हुई है, ऐसे समय में भारत ने संयुक्त घोषणापत्र में सभी पक्षों को साधने का प्रयास किया। अमेरिकी मीडिया के अनुसार, जी20 की बैठक से दो बड़े देशों के नेताओं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की गैरमौजूदगी से सवाल उठे हैं कि क्या मौजूदा तनाव के माहौल में यह सम्मेलन कुछ असर पैदा कर सकता है या नहीं। पीएम मोदी ने दुनिया के सामने भारत की क्षमताओं को अच्छे से पेश किया। उन्होंने भारत को दुनिया की सबसे तेजी से विकास करती अर्थव्यवस्था और युवा कार्यशक्ति वाले देश के रूप में प्रस्तुत किया।

क्लाइमेट चेंज

कोयला तेल या प्राकृतिक गैस की तुलना में कहीं अधिक उत्सर्जन-गहन ईंधन है। 2021 में ईंधन दहन से वैश्विक उत्सर्जन का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा कोयले का है। G20 में आम सहमति बनाने के लिए कोयला राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील है। कोयला जलाने को व्यापक रूप से जलवायु परिवर्तन में एक प्रमुख योगदानकर्ता के साथ-साथ कुछ कैंसर और अस्थमा के कारण के रूप में स्वीकार किया जाता है। यह सस्ता, विश्वसनीय और उपलब्ध भी है। नतीजतन, कई देश कोयले को अपने ऊर्जा मिश्रण के लिए एक आवश्यक बुराई मानते हैं। जी20 वक्तव्य में हाइड्रोजन पर चर्चा की गई, लेकिन इसकी प्रमुखता जलवायु परिवर्तन से लड़ने में इसके महत्व से कहीं अधिक है। हाइड्रोजन एक महत्वपूर्ण डीकार्बोनाइजेशन तकनीक है जिसमें कई व्यवहार्य उपयोग के मामले हैं, जिनमें रिफाइनिंग क्षेत्र, उर्वरक, इस्पात निर्माण, शिपिंग, अंतर-मौसमी बिजली भंडारण और बहुत कुछ शामिल हैं। विश्व नेताओं को हाइड्रोजन और अन्य डीकार्बोनाइजेशन मार्गों के बारे में बात करने की जरूरत है।

चीन को कमजोर करना

जी-20 में शी जिनपिंग की विफलता सामने आई है। उनकी अनुपस्थिति को मोदी और बिडेन ने बखूबी निभाया। शी की उपेक्षा के कारण शिखर सम्मेलन ख़राब होने के बजाय, G20 उनके बिना ही चला। इकोनॉमिक कॉरिडोर पर सहमति बनना भी चीन की विफलता ही है।

मोदी की छवि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साबित कर दिया कि वह ग्लोबल साउथ में एक अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन रहे हैं और विकासशील दुनिया के भीतर शी का प्रतिकार कर रहे हैं। शी स्पष्ट रूप से चीन के अमेरिका विरोधी एजेंडे के समर्थन में विकासशील दुनिया को एकजुट करने की योजना बना रहे हैं। मोदी उत्तर-दक्षिण संबंधों का एक वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश कर रहे हैं जो वैश्विक शासन में विकासशील देशों की आवाज को बढ़ाने पर केंद्रित है। अफ्रीकन यूनियन को जी20 सदस्यता की मोदी की वकालत एक बुद्धिमान भूराजनीतिक सोच थी जिसने उनके कद को वैश्विक स्तर पर बढ़ाया है।