नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। अप्रैल माह की शुरुआत हो चुकी है लेकिन अभी भी बारिश का दौर जारी है। फरवरी माह में मौसम में जहां गर्मी रिकॉर्ड बना रही थी तो मार्च के महीने में स्थिति कमोबेश पूरी तरह विपरीत है। मार्च माह और अप्रैल के शुरुआती दिन में बारिश थम नहीं रही है। दरअसल मार्च के महीने में हो रही मूसलाधार बारिश की वजह आम तौर पर जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ पश्चिमी विक्षोभ है। बेमौसम बारिश ने एक तरफ जहां फसलों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है तो स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें भी बढ़ाई है।

मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं कि गर्मियां शुरू होने के साथ ही पश्चिमी विक्षोभ काफी ऊंचाई से गुजरने लगते हैं। लेकिन इस साल मार्च अंत तक पश्चिमी विक्षोभ काफी नीचे से गुजर रहे हैं। इसके चलते पहाड़ों में बर्फबारी के साथ ही मैदानी इलाकोंमें बारिश और ओले पड़ रहे हैं। दरअसल इसे क्लाइमेट चेंज का प्रभाव देखा जा सकता है। क्लाइमेट चेंज के चलते अंटार्टिका में बर्फ तेजी से पिघल रही है। समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ रहा है साथ ही समुद्र की सतह पर गर्मी भी काफी तेजी से बढ़ रही है। इसको लेकर पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों में काफी चिंता है। आने वाले दिनों में क्लाइमेट चेंज के चलते एक्स्ट्रीम वैदर इवेंट बढ़ेंगे।

ये भी हैं कारण

मार्च में तापमान 1951 के बाद 12 वीं बार इतना ठंडा रहा है। हालांकि मार्च के शुरुआती दो हफ्ते गर्म रहे लेकिन बाद के हफ्तों में औसत तापमान सामान्य से 0.31 डिग्री सेल्सियस कम रहा। राजस्थान के ऊपर चक्रवाती सर्कुलेशन और ऊपरी क्षोभमंडल में पश्चिम की ओर से 120-200 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने वाली हवाएं और बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में एंटी-साइक्लोनिक सर्कुलेशन की वजह से नमी ने भी

भारती इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक पॉलिसी के शोध निदेशक डॉ. अंजल प्रकाश के अनुसार, बढ़ते वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन की वजह से तीव्र मौसमी घटनाओं की तीव्रता भी बढ़ रही है। भारी बारिश, आंधी और लू सब कुछ अधिक हो रहा है। गर्म होती दुनिया में पानी के भाप बनने की प्रक्रिया तेज हो गई है।

इसकी वजह से हवा में नमी भी अधिक बढ़ रही है और बरसात की घटनाएं बढ़ी हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण स्थानीय स्तर पर भी मौसमी सिस्टम बन रहे हैं। इस तरह के मौसमी सिस्टम की वजह से ही फसलों को नुकसान पहुंच रहा है।

2022 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) डेटा सेंटर देशभर हो रहीं ऐसी घटनाओं को पूरे साल ट्रैक करता रहा। इस दौरान पाया गया कि भारत में 365 दिन में मौसम से जुड़ी 314 अप्रत्याशित चरम मौसमी घटनाएं हुईं।

भारत मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक, मृत्युंजय महापात्र ने कहा कि अगर हम दशकीय परिवर्तन को देखें, तो पूरे देश के लिए कोई दीर्घकालिक परिवर्तन नहीं है, लेकिन अस्थायी परिवर्तनशीलता बनी हुई है। मौसम कभी बहुत शुष्क होता और कभी बहुत गीला। हालांकि कुल बारिश समान रहती है। भारी बारिश के दिनों की संख्या बढ़ रही है और हल्की से मध्यम बारिश के दिन घट रहे हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि यह जलवायु परिवर्तन का प्रभाव है।

मार्च में क्यों बिगड़ा मौसम

मौसम विभाग ने बताया है कि मार्च में बारिश होने का संबंध पश्चिमी विक्षोभ से है जो उत्तर-पश्चिम भारत में बारिश कराता है। आईएमडी के वैज्ञानिकों के मुताबिक इस महीने अब तक चार बार पश्चिमी विक्षोभ उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों को प्रभावित कर चुके हैं। यह ना खेती के लिए ठीक है ना ही लोगों की सेहत के लिए।

हिमालय की तलहटी में बढ़ी भारी बारिश की घटनाएं

वैज्ञानिकों ने पाया है कि ब्लैक कार्बन और धूल जैसे एरोसोल्स के कारण हिमालय क्षेत्र की तलहटी में भारी वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरेकेला, लीपज़िग इंस्टीट्यूट फॉर मीटीरोलॉजी (लिम), यूनिवर्सिटी ऑफ लीपजिंग, जर्मनी, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम के अध्ययन में यह बात सामने आई है। उन्होंने दिखाया कि पार्टिकुलेट एमिशन या कण उत्सर्जन, क्लाउड सिस्टम के भौतिक और गतिशील गुणों को बदल सकता है। इसके फलस्वरूप प्रदूषित शहरी क्षेत्रों में हवा के साथ वर्षा की घटनाओं में बढ़ोतरी होती है।

पश्चिमी विक्षोभ

पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यरेखा-क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली वह बाह्य- उष्णकटिबंधीय आंधी है जो सर्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भागों में अकस्मात बारिश ले आती है। यह बारिश मानसून की बरसात से भिन्न होती है। बाह्य-उष्णकटिबंधीय आंधियां विश्व में सब जगह होती हैं। इनमें नमी सामान्यतः ऊपरी वायुमंडल तक पहुंच जाती है, जबकि उष्णकटिबंधीय आंधियों में आर्द्रता निचले वायुमंडल में बनी रहती है। भारतीय महाद्वीप में जब ऐसी आंधी हिमालय तक जा पहुंचती है तो नमी कभी-कभी बरसात के रूप में बदल जाती है।

ये हैं अल-नीनो और ला-नीना

अल-नीनो प्रशांत महासागर के भूमध्य क्षेत्र की उस मौसमी घटना को कहते हैं, जिसमें पानी की सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है और हवा पूर्व की ओर बहने लगती है। यह न केवल समुद्र पर बल्कि वायुमंडल पर भी प्रभाव डालता है। इस घटना के चलते समुद्र का तापमान 4 से 5 डिग्री तक गर्म हो जाता है। ला नीना में पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र में सामान्य से कम वायुदाब की स्थिति बनती है। इसके कारण समुद्र का तापमान सामान्य से घट जाता है। आमतौर पर इन दोनों घटनाओं का असर 9 से 12 महीने तक रहता है, पर कभी-कभी यह स्थिति कई वर्षों तक बनी रह सकती है। दोनों घटनाएं दुनिया भर में बारिश, तूफान, बाढ़, सूखा जैसी घटनाओं को प्रभावित करती हैं। इनकी वजह से कहीं सामान्य से ज्यादा बारिश होती है तो कहीं सूखा पड़ता है, और कहीं तूफान आते हैं।

मच्छरों से फैलने वाले रोग बढ़े

जलवायु परिवर्तन के चलते संक्रामक रोग बढ़े हैं। पिछले 4 दशकों में संयुक्त वैश्विक प्रयासों से दुनिया में मलेरिया के मामले कम हुए हैं, लेकिन अन्य वेक्टर जनित बीमारियों, विशेष रूप से डेंगू से होने वाली मौतें बढ़ी हैं। जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य 2019 रिपोर्ट में द लैंसेट ने खुलासा किया था कि पिछले कुछ वर्षों में मच्छरों से होने वाले रोगों (मलेरिया और डेंगू) में वृद्धि हुई है। अध्ययनों से पता चलता है कि दक्षिण एशिया के ऊंचे पहाड़ों में ज्यादा बारिश और बढ़ते तापमान के चलते संक्रामक बीमारियां तेजी से फैली हैं। ज्यादा बारिश के चलते इन पहाड़ी इलाकों में मच्छरों को प्रजनन में मदद मिली है।

डॉक्टर रमेश धीमान बताते हैं कि जल जनित और वेक्टर जनित रोग पैदा करने वाले रोगजनक जलवायु के प्रति संवेदनशील होते हैं। मच्छरों, सैंड फ्लाई, खटमल जैसे बीमारी फैलाने वाले कीटों का विकास और अस्तित्व तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करता है। ये रोग वाहक मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी एन्सेफलाइटिस, कालाजार जैसी बीमारी बहुत तेजी से फैला सकते हैं। आने वाले समय में ये देखा जा सकता है कि कुछ इलाके जहां पर कोई विशेष संक्रामक बीमारी नहीं थी, जलवायु परिवर्तन के चलते अचानक से बीमारी फैलने लगे। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव एक समान नहीं होगा क्योंकि विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अलग-अलग विशेषताएं होती हैं।उदाहरण के लिए, भारत में हिमालयी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील है क्योंकि तापमान में वृद्धि के कारण ठंडे तापमान वाले क्षेत्र मलेरिया और डेंगू के लिए उपयुक्त हो गए हैं। देश का दक्षिणी भाग कम प्रभावित होने की संभावना है क्योंकि यह लगभग सभी 12 महीनों के लिए पहले से ही वेक्टर जनित रोगों के लिए जलवायु उपयुक्त है।

1901 के बाद सबसे अधिक गर्म रहा फरवरी महीना

मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, बीता फरवरी महीना वर्ष 1901 के बाद सबसे अधिक गर्म रहा। वहीं, मार्च में सात बार पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होने के कारण 37.6 मिलीमीटर वर्षा हुई, जो सामान्य (29.9 मिलीमीटर) से अधिक है, जबकि पिछले वर्ष 2022 में मार्च सबसे गर्म व 121 वर्षों में तीसरा सबसे सूखा मार्च का महीना था।

अप्रैल से चलेगी लू

मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, बंगाल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब और हरियाणा में इस बार अप्रैल में सामान्य से अधिक दिन लू चलेगी। अधिकतम तापमान सामान्य से 4.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होने पर लू चलती है।

लू कब चलती है?

जब मैदानी इलाकों में अधिकतम तापमान कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाए तो माना जाता है कि लू चल रही है। इस बार लू वाले दिनों की संख्या अधिक रहने की संभावना है।