सवालों से घिरी हुई प्रशासनिक सेवा: पूजा खेडकर प्रकरण से लेना होगा सबक
जा खेडकर ओबीसी समुदाय से आती हैं लेकिन आठ लाख रुपये से अधिक वार्षिक आय वाले तो क्रीमीलेयर के दायरे में आते हैं। ऐसे लोग आरक्षण के हकदार नहीं होते। इससे स्पष्ट होता है कि उन्हें ओबीसी प्रमाण पत्र गलत तरीके से दिया गया। इसके अलावा उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा ओबीसी कोटे के साथ-साथ दिव्यांग उम्मीदवार के रूप में दी।
प्रेमपाल शर्मा। प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर प्रकरण ने देश की प्रशासनिक सेवा की कई संस्थाओं के कारनामों को एक साथ उजागर कर दिया है। पूजा खेडकर अभी लालबहादुर शास्त्री अकादमी, मसूरी में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं। उनकी यह ट्रेनिंग अगले साल जुलाई में पूरी होगी।
इस दौरान उन्हें फील्ड ट्रेनिंग के लिए असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में पुणे भेजा गया। वहां जाते ही उन्होंने सभी नियम-कायदे और नैतिकता को ताक पर रख ऐसे-ऐसे काम किए, जो देश की पूरी प्रशासनिक सेवा के लिए कलंक कहे जा सकते हैं।
उन्होंने वहां जाते ही लाल बत्ती लगी सरकारी गाड़ी, एक अलग आफिस, घर और चपरासी इत्यादि की मांग की। यहां तक कि अपनी निजी आडी गाड़ी पर खुद ही अवैध रूप से लाल बत्ती भी लगवा ली, जबकि उस गाड़ी के खिलाफ यातायात नियमों के उल्लंघन के दर्जन भर मामले दर्ज हैं और जुर्माना तक बकाया है।
बीते दिनों उसे जब्त कर लिया गया। आईएएस अधिकारी बनने के बाद उन पर ऐसा नशा छाया कि पुणे में तैनात एक अन्य अफसर के कार्यालय से जबरन उनका नाम हटाकर अपनी नेम प्लेट लगा दीं।
हालांकि इस प्रकरण के सामने आना एक मायने में सही साबित हुआ है। इस प्रकरण से न जाने कितने ज्वलंत प्रश्न खुलकर सामने आ गए हैं। पहला सवाल तो यही है कि पूजा खेडकर को ओबीसी सर्टिफिकेट कैसे मिल गया? जब उनकी खुद की संपत्ति 17 करोड़ रुपये दर्ज है। उनके पिता भी एक पूर्व अधिकारी होने के साथ-साथ राजनीति में कदम बढ़ा रहे हैं। उन्होंने हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में अपनी संपत्ति 40 करोड़ रुपये और आय 43 लाख रुपये वार्षिक दिखाई है।
यह ठीक है कि पूजा खेडकर ओबीसी समुदाय से आती हैं, लेकिन आठ लाख रुपये से अधिक वार्षिक आय वाले तो क्रीमीलेयर के दायरे में आते हैं। ऐसे लोग आरक्षण के हकदार नहीं होते। इससे स्पष्ट होता है कि उन्हें ओबीसी प्रमाण पत्र गलत तरीके से दिया गया। इसके अलावा उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा ओबीसी कोटे के साथ-साथ दिव्यांग उम्मीदवार के रूप में दी। ऐसे किसी सर्टिफिकेट के मामले में सत्यापन के लिए विशेष मेडिकल परीक्षा होती है, परंतु यूपीएससी द्वारा कई बार बुलाने पर भी वह इसके लिए नहीं गईं।
हर बार एक नया बहाना बनाती रहीं, फिर उन्होंने खुद को दिव्यांग साबित करने के लिए एक निजी क्लीनिक से प्रमाण पत्र बनवाकर पेश कर दिया। यह मामला यूपीएससी की तरफ से कोर्ट में भी गया, लेकिन इसके बावजूद निजी क्लीनिक वाला उनका प्रमाण पत्र मान्य हो गया। आखिर यह कैसे स्वीकार हो गया? सवाल है कि यह किसके दबाव में किया गया? ओबीसी और दिव्यांगता के वर्ग में उनकी रैंक 841 थी।
यानी उनसे ऊपर अन्य मेधावी और सक्षम उम्मीदवार थे, जिनकी कीमत पर उन्हें जगह मिली। इस प्रकार यह ओबीसी वर्ग के दूसरे छात्रों और दिव्यांगों की हकमारी का मामला भी है। निश्चित रूप से यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए ओबीसी के पैमाने से लेकर उन सभी मानकों की भी अनदेखी है, जिनका उल्लंघन करते हुए वह आईएएस बन गईं। ऐसे लोग मेरिट की कीमत पर लगातार जगह बना रहे हैं।
इस प्रकरण में एक बात साफ नजर आ रही है कि बिना राजनीतिक और प्रशासनिक साठगांठ के पूजा खेडकर यहां तक नहीं पहुंच सकती थीं। आईएएस बनने के लोभ में वह वक्त से पहले भटक गईं और उन सुविधाओं की मांग करने लगीं, जो प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए ज्यादातर अफसर करते हैं। आखिर उनके जैसे अधिकारी जनता की सेवा कैसे करेंगे? वह ऐसी अकेली अधिकारी नहीं हैं। उनसे पहले इस सूची में कई नाम दर्ज हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के तमाम मामले दर्ज हैं।
चाहे अभी जेल में बंद आईएएस पूजा सिंघल हों या मध्य प्रदेश के आईएएस दंपती। दरअसल नौकरशाही का कोई विभाग इससे अछूता नहीं है। अगर हाल का उदाहरण लें तो तीन वर्ष पहले जिस आइपीएस अधिकारी ने यूपीएससी की एथिक्स यानी नैतिकता के प्रश्नपत्र में सबसे ज्यादा नंबर पाए थे, उसके अगले वर्ष की परीक्षा में उसे नकल करते पकड़ा गया। इससे जाहिर होता है कि भारत जैसे विशाल देश को एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था देने वाले इस स्टील फ्रेम में बहुत तेजी से गिरावट आ रही है।
हमारी सभ्यता सदियों पुरानी है। इसकी समृद्धि का गुणगान इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इसके बावजूद समाज के विभाजन ने इसे इतना जर्जर कर दिया कि हम हजारों साल तक कभी मुगलों तो कभी अंग्रेजों के गुलाम बने रहे। दुख की बात है कि जाति, पंथ और क्षेत्र के नाम पर लगभग वैसा ही विभाजन आज हमारी प्रशासनिक सेवाओं में प्रवेश कर चुका है।
राजनीति और नौकरशाही का गठजोड़ इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। इससे छुटकारा पाने के लिए देश की नौकरशाही के मौजूदा रूप यानी उसकी भर्ती से लेकर ट्रेनिंग और सुविधाओं में तुरंत सुधार करना होगा। नौकरी की सुरक्षा और सुविधाएं ही बार-बार पूजा खेडकर जैसे अधिकारियों को जन्म देती हैं। यदि देश को कोई सही संदेश देना है तो पूजा खेडकर के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
प्रशिक्षण अवधि के दौरान बर्खास्त करने में कोई सेवा नियम आड़े नहीं आता। इसके साथ ही सरकार ने पूजा खेडकर पर लगे आरोपों की जांच के लिए जो समिति बनाई है, उसका यह दायित्व भी बनता है कि उनके मेडिकल सर्टिफिकेट से लेकर ओबीसी सर्टिफिकेट देने के मामलों की जांच करे, क्योंकि यह प्रकरण यूपीएससी और कार्मिक मंत्रालय के साथ-साथ देश की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था की साख का भी है।
(लेखक भारत सरकार में संयुक्त सचिव रहे हैं)