भारत के तीन और रत्न, अपने कार्यों से देश पर छोड़ी गहरी छाप
भारत रत्न का अर्थ उन व्यक्तियों को सम्मानित करना होता है जिन्होंने किसी न किसी रूप में राष्ट्र की प्रगति में असाधारण योगदान दिया हो। भारत की कृषि नीतियों को आकार देने और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में चौधरी चरण सिंह की भूमिका इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के मानदंडों के साथ सहजता से मेल खाती है। निःसंदेह यही बात पीवी नरसिंह राव और एमएस स्वामीनाथन पर भी लागू होती है।
केसी त्यागी। भारत ने समय-समय पर ऐसे व्यक्तियों का उदय देखा है, जिनके योगदान ने देश की प्रगति पथ पर एक अमिट छाप छोड़ी है। ऐसे ही एक दिग्गज नेता थे चौधरी चरण सिंह, जिन्हें किसानों का मसीहा भी कहा गया। उनकी राजनीतिक विरासत उन्हें भारत रत्न सम्मान देने का हकदार बनाती है। चौधरी चरण सिंह के साथ एक और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव को भी भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा हुई। वह इस सम्मान के सच्चे हकदार थे, क्योंकि वह आर्थिक सुधारों के जनक और नायक थे। उन्होंने एक ऐसे समय देश की बागडोर संभाली थी, जब तमाम समस्याएं सिर उठाए खड़ी थीं।
उन्होंने अल्पमत सरकार के बाद भी उन सभी समस्याओं का कुशलता से सामना किया और उल्लेखनीय सफलता हासिल की। तमाम चुनौतियों के बाद भी वह देश को आर्थिक बदहाली से बाहर निकाल कर प्रगति के पथ पर ले आए। यह अफसोस की बात है कि संप्रग के शासन काल में वह भारत रत्न के हकदार नहीं समझे गए। किसानों के मसीहा चरण सिंह और आर्थिक सुधारों के प्रणेता नरसिंह राव के साथ डा. एमएस स्वामीनाथन भी भारत रत्न से नवाजे जाएंगे।
वह हरित क्रांति के जनक हैं। एक समय भारत में लगभग भुखमरी जैसे हालात थे और गेहूं, चावल, चीनी एवं दालें आदि वस्तुएं आयात करनी पड़ रही थीं। ऐसे कठिन समय में स्वामीनाथन ने कृषि क्रांति के जरिये कृषि क्षेत्र में एक स्वावलंबी भारत की आधारशिला रखी। आज हम गेहूं, चावल, चीनी आदि के सबसे बड़े निर्यातको में हैं और अपने देश के लगभग 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन की व्यवस्था कर रहे हैं। यदि यह स्थिति बन सकी तो इसमें स्वामीनाथन का बहुत बड़ा योगदान है। वह सच्चे अर्थों में भारत के रत्न हैं। चौधरी चरण सिंह, नरसिंह राव और एमएस स्वामीनाथन के योगदान में यह बात समान है कि इन तीनों ने अपनी-अपनी तरह से कमजोर तबकों का जीवन बदलने का काम किया। इन तीनों को भारत रत्न देने की मांग एक अर्से से हो रही थी। आखिरकार यह पूरी हुई।
चौधरी चरण सिंह किसान नेता इसीलिए कहलाए, क्योंकि उन्होंने सदैव किसानों की चिंता की और जब भी अवसर मिला, उनके हित में फैसले भी लिए। उनकी पहल से कृषि मूल्य आयोग की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य किसानों के लिए उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित करना था, जो एक अभूतपूर्व कदम था। उनकी नीतियों ने न केवल किसानों की तात्कालिक चिंताओं को दूर किया, बल्कि एक आत्मनिर्भर और सशक्त कृषक समुदाय की नींव रखी।
किसानों के हितों की रक्षा के लिए वह किसी भी सीमा तक जाने को तैयार रहते थे। 1957 में जब कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन नागपुर में आयोजित हुआ तो उसमें पंडित नेहरू ने सहकारी खेती को प्रोत्साहन देने का प्रस्ताव रखा। तब चरण सिंह उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री थे। उन्होंने प्रस्ताव का विरोध किया।
इससे पूर्व वह उत्तर प्रदेश में गोविंद बल्लभ पंत सरकार के राजस्व मंत्री के रूप में जमींदारी उन्मूलन कर काफी वाहवाही लूट चुके थे। चौधरी साहब ने बिंदुवार आधिकारिक प्रस्ताव का विरोध किया। वह भारतीय समाज की मानसिकता एवं कृषि भूमि के प्रति किसान के व्यक्तिगत लगाव पर धारा प्रवाह बोलते रहे। अधिवेशन में उपस्थित कार्यकर्ता करतल ध्वनि से उनका स्वागत करते रहे। उनके भाषण की समाप्ति के बाद उक्त प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया।
उस समय कांग्रेस में पंडित नेहरू की बात काटने की हिम्मत किसी में नहीं थी, लेकिन चरण सिंह ने ऐसा किया। वास्तव में वह कृषि और किसानों की स्थिति कहीं अच्छे से समझते थे। चौधरी चरण सिंह सामाजिक न्याय के भी प्रतीक थे। वह समतावादी सिद्धांतों में दृढ़विश्वास रखते थे। दलित और हाशिए पर मौजूद वर्गों के अधिकारों की वकालत करते थे।
जब वह गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक यानी नाबार्ड की स्थापना की। उन्हीं की पहल पर केंद्र सरकार ने एक विधेयक पारित किया, जिसमें यह प्रविधान था कि यदि तय समय में कोई चीनी मिल किसानों के पैसे का भुगतान नहीं करती तो सरकार के पास उस मिल के अधिग्रहण का अधिकार होगा, ताकि मिल चलाकर किसानों का बकाया दिया जा सके।
जैसे ही हम चौधरी चरण सिंह के जीवन और विरासत पर विचार करते हैं, यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका योगदान उनके राजनीतिक जीवन की सीमाओं से परे है। कृषि में उनकी दूरदर्शी नीतियां और सामाजिक न्याय के प्रति अटूट प्रतिबद्धता उन्हें एक उत्कृष्ट नेता की तरह पेश करते हैं।
जिस लचीलेपन और दृढ़संकल्प के साथ उन्होंने ग्रामीण और कृषि परिदृश्य से संबंधित मुद्दों को निपटाया, वह उनके राजनीतिक कौशल को दर्शाता है। देश के नेताओं के बीच चौधरी चरण सिंह एक ऐसे पथप्रदर्शक के रूप में खड़े दिखते हैं, जिनका योगदान पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद किया जाता है। उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करना उन मूल्यों को मान्यता देना है, जिनके लिए और विशेष रूप से किसान हित के लिए वह खड़े रहे।
भारत रत्न का अर्थ उन व्यक्तियों को सम्मानित करना होता है, जिन्होंने किसी न किसी रूप में राष्ट्र की प्रगति में असाधारण योगदान दिया हो। भारत की कृषि नीतियों को आकार देने और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में चौधरी चरण सिंह की भूमिका इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के मानदंडों के साथ सहजता से मेल खाती है। निःसंदेह यही बात पीवी नरसिंह राव और एमएस स्वामीनाथन पर भी लागू होती है। इन तीनों ने अपने कार्यों से देश पर गहरी छाप तो छोड़ी ही, एक ऐसी विरासत भी छोड़ गए, जो भावी पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करने वाली है।
(लेखक पूर्व सांसद एवं चौधरी चरण सिंह विचार मंच के अध्यक्ष हैं)