बजट से आगे की चुनौती: योजनाओं को तेजी से अमल में लाने पर देना होगा अधिक ध्यान
भले ही बजट को शेयर बाजार की तात्कालिक सलामी न मिली हो लेकिन यह बजट 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने की राह प्रशस्त करता है। बजट में बहुत अच्छी पहल की गई हैं लेकिन उनकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि उन पर अमल कैसे होता है। उम्मीद है कि मोदी सरकार अपनी योजनाओं को तेजी से अमल में लाने के मोर्चे पर अधिक ध्यान देगी।
जीएन वाजपेयी। केंद्रीय बजट एक प्रकार से फरवरी में आए अंतरिम बजट का ही विस्तार है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसमें कृषि उत्पादकता एवं उसका उत्थान, कौशल एवं रोजगार, समावेशन एवं सामाजिक न्याय, विनिर्माण एवं सेवा, शहरी विकास, ऊर्जा सुरक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर, इनोवेशन और अगली पीढ़ी के आर्थिक सुधारों की राह पर बढ़ने जैसी नौ प्राथमिकताओं का उल्लेख किया।
कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों के लिए करीब 1.52 लाख करोड़ रुपये के आवंटन से खेती-किसानी की दशा-दिशा सुधरने की आस बढ़ी है। विभिन्न फसलों की प्रस्तावित 109 किस्मों से भी उत्पादकता में बढ़ोतरी की उम्मीद है। ये किस्में जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ रही प्रतिकूल मौसमी परिघटनाओं के विरुद्ध कवच का काम करेंगी।
दलहन-तिलहन को प्राथमिकता, डिजिटल क्राप सर्वे के अतिरिक्त किसान उत्पादक संघों यानी एफपीओ एवं भंडारण और आपूर्ति शृंखला पर ध्यान देने जैसे उपाय उपज को पहुंचने वाले नुकसान को घटाने एवं कीमतों में स्थायित्व सुनिश्चित करेंगे। ग्रामीण विकास के लिए 2.66 लाख करोड़ की बड़ी राशि आवंटित की गई है।
बड़े पैमाने पर आल-वेदर रोड का निर्माण, तीन करोड़ ग्रामीण आवासों का निर्माण, विकास की मुख्यधारा में महिलाओं को शामिल करने के साथ ही आदिवासी क्षेत्र आर्थिकी के निर्माण जैसी पहल वंचित वर्गों के जीवन एवं आजीविका पर दूरगामी एवं दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ेगी।
रोजगार की चुनौती का समाधान करने के लिए इंटर्नशिप से लेकर भत्ते के माध्यम से नियोक्ताओं को अतिरिक्त भर्तियों पर प्रोत्साहन जैसी पहल से अच्छे परिणामों की अपेक्षा है।
कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने से जहां युवाओं को रोजगार की दृष्टि से प्रशिक्षित होने में सहायता मिलेगी, वहीं उद्योगों के लिए कुशल कर्मियों की आपूर्ति हो सकेगी। भारत में विकास की विद्यमान संभावनाओं को भुनाने में कामकाजी आबादी में महिलाओं की अपेक्षाकृत कम भागीदारी एक अवरोध मानी जाती रही है, जिसे दूर करने के लिए सरकार प्रयासरत है।
कार्यशील आबादी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए कामकाजी महिलाओं के लिए हास्टल और ऐसी अन्य सुविधाएं क्रांतिकारी सिद्ध हो सकती हैं। शहरों में काम करने वालों के लिए डोरमेट्री जैसी आवासीय पहल भी उपयोगी सिद्ध होगी। रोजगार के मोर्चे पर पर्यटन को भी प्राथमिकता दी गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के पर्यटन केंद्र विकसित करने से बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन संभव है, क्योंकि इसमें कुशल एवं अकुशल, दोनों प्रकार के लोग चाहिए। साथ ही सैर-सपाटे पर केंद्रित एक आर्थिक-व्यवस्था भी खड़ी हो सकेगी।
रोजगार के लिहाज से बेहद अहम एमएसएमई क्षेत्र को भी सरकार ने अपनी वरीयता सूची में रखा है। उनके लिए वित्तीय पहुंच से लेकर तकनीकी सहायता एवं नियमन में सहूलियत जैसे उपाय किए गए हैं। देश के 100 शहरों में ‘इन्वेस्टमेंट रेडी इंडस्ट्रियल पार्कों’ से भी विनिर्माण क्षेत्र को बड़ा संबल मिलने की उम्मीद है। इसी साल ऐसे 12 पार्क विकसित करने का लक्ष्य महत्वाकांक्षी है। यदि एक बार ऐसा हो गया तो भविष्य को लेकर भरोसा बढ़ जाएगा। इसी तरह क्रिटिकल मिनरल मिशन से दुर्लभ तत्वों की उपलब्धता बढ़ेगी, जो नए दौर की आर्थिक गतिविधियों के लिए बेहद आवश्यक हैं।
शहरी आवास के लिए 10 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय आवंटन से सिरे चढ़ने वाली योजना उन करोड़ों लोगों के लिए बड़ी राहत का सबब होगी, जो दयनीय परिस्थितियों में रहने को विवश हैं। हमारे शहर आर्थिक वृद्धि के इंजन हैं और रचनात्मक विकास गतिविधियों के जरिये ही उन्हें गति देकर कायाकल्प संभव है।
सोलर पैनल पर आधारित मुफ्त घर बिजली योजना भी बाजी पलटने वाली सिद्ध हो सकती है। ऊर्जा सुरक्षा के मोर्चे पर ट्रांसमिशन पाथवेज, माड्यूलर न्यूक्लियर प्लांट और एडवांस्ड अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल थर्मल प्लांट भी सराहनीय पहल रहीं। इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए 11 लाख करोड़ से अधिक का आवंटन भी विकास को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता दर्शाता है।
बेहतर बुनियादी ढांचा न केवल सुगमता बढ़ाने से लेकर ढुलाई जैसी कई लागतों को घटाता है, बल्कि उद्योगों को लिए एक अनुकूल परिवेश का निर्माण भी करता है। वित्तीय क्षेत्र में उठाए गए विभिन्न कदम भी भविष्य के साथ कदमताल का प्रयास दिखते हैं। बिहार में एक्सप्रेसवे, औद्योगिक एवं लाजिस्टिक हब जैसी विभिन्न विकास योजनाओं के लिए 26,000 करोड़ रुपये का पैकेज भी समय की मांग के अनुरूप ही है, क्योंकि इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता कि बिहार आज भी सबसे पिछड़े और न्यूनतम जीडीपी प्रति व्यक्ति वाले राज्यों में से एक है।
इसी तरह आंध्र प्रदेश को विभिन्न संस्थानों के माध्यम से 15,000 करोड़ रुपये की मदद को भी आवश्यक ही कहा जाएगा, क्योंकि इस राज्य को अमरावती के रूप में अपनी नई राजधानी विकसित करनी है। ध्यान रहे कि इस राज्य के विभाजन के समय केंद्र सरकार के स्तर पर उससे कुछ वादे किए गए थे। ऐसे कदम भले ही गठबंधन की राजनीति की मजबूरियां कहे जाएं, लेकिन इससे भारतीय संघ एवं राज्यों के बीच भरोसे का पुल और मजबूत होगा।
वित्त मंत्री ने भूमि एवं श्रम से जुड़े सुधारों पर आगे बढ़ने के साथ ही प्रत्यक्ष करों के मोर्चे पर समीक्षा की बात भी कही है। अर्थव्यवस्था लंबे समय से ऐसे सुधारों की बाट जोह रही है। एंजेल टैक्स को समाप्त करके सरकार ने उचित ही किया। राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने में भी सरकार सफल रही है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर अभी और ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
यही बात वृद्धि को धार देने वाले अन्य तमाम क्षेत्रों पर भी लागू होती है। प्रतिभूति लेनदेन को लेकर पूंजीगत लाभ कर में कुछ बढ़ोतरी को लेकर असहजता सामने आ रही है, लेकिन इस कवायद में सभी प्रकार की परिसंपत्तियों के लिए पूंजीगत लाभ कर को एक स्तर पर लाने का प्रयास दिखता है।
भले ही बजट को शेयर बाजार की तात्कालिक सलामी न मिली हो, लेकिन यह बजट 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने की राह प्रशस्त करता है। बजट में बहुत अच्छी पहल की गई हैं, लेकिन उनकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि उन पर अमल कैसे होता है। उम्मीद है कि मोदी सरकार अपनी सक्षमता एवं योजनाओं को तेजी से अमल में लाने के मोर्चे पर अर्जित प्रतिष्ठा की कसौटी पर खरी उतरेगी।
(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं)