डा. जयंतीलाल भंडारी: वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने हाल में राज्यसभा में कहा कि चीन के साथ व्यापार घाटा भारत के लिए चुनौती बना हुआ है। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2004-05 में भारत और चीन के बीच 1.48 अरब डालर का व्यापार घाटा था, लेकिन वित्त वर्ष 2013-14 में यह बढ़कर 36.21 अरब डालर तक पहुंच गया। इस प्रकार इसमें करीब 2346 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इन वर्षों में चीन से आयात भी बढ़कर दस गुना से अधिक हो गया। स्थिति यह रही कि इन वर्षों में पूरा देश चीन में निर्मित घटिया चीनी उत्पादों से भर गया और भारत लगातार बहुत कुछ चीनी सामानों पर निर्भर होता गया। यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में चीन से आयात और व्यापार घाटा कम करने के लगातार प्रयास किए गए हैं, लेकिन वे नाकाफी साबित हो रहे हैं। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान भारत और चीन के बीच 44.33 अरब डालर का व्यापार घाटा था, यह वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान बढ़कर 73.31 अरब डालर पर पहुंच गया। सीमा पर तनाव के बावजूद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय करोबार में 43.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

उल्लेखनीय है कि, वित्त वर्ष 2014-15 से स्वदेशी उत्पादों को हरसंभव तरीके से प्रोत्साहित करके चीन से आयात घटाने के प्रयास हो रहे हैं। इस कड़ी में वर्ष 2019 और 2020 में चीन से तनाव के कारण भारत के प्रति चीन की आक्रामकता और विस्तारवादी नीति सामने आने के बाद से स्थानीय उत्पादों के उपयोग की लहर देश भर में बढ़ती हुई दिखाई दी है। देश भर में चीनी सामान के जोरदार बहिष्कार और सरकार द्वारा टिक-टाक सहित विभिन्न चीनी एप पर प्रतिबंध, चीनी सामानों के आयात पर नियंत्रण के लिए कई सामानों पर शुल्क वृद्धि, सरकारी विभागों में चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्थानीय उत्पादों के उपयोग की प्रवृत्ति को लगातार प्रोत्साहन दिए जाने से चीन के सामानों की भारत में मांग में तुलनात्मक कमी दिखाई दी है।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बार-बार स्थानीय अर्थव्यवस्था का समर्थन करने और वोकल फार लोकल मुहिम के प्रसार ने भी दीपावली और अन्य त्योहारों पर स्थानीय उत्पादों की खरीदारी को पहले की तुलना में अधिक समर्थन मिलते हुए दिखाई दिया है, फिर भी चीन से त्योहारी उत्पादों का भारत में आयात बढ़ा है। परिणामस्वरूप सितंबर से नवंबर 2022 के त्योहारी महीनों में देश के बाजारों में चीन का प्रभुत्व दिखाई दिया है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार इस साल अगस्त में चीन से एलईडी लाइट और लैंप का 72 लाख डालर मूल्य का आयात किया गया, जबकि पिछले साल अगस्त में इनका आयात मूल्य करीब 42 लाख डालर था। इस वर्ष अगस्त में चीन से 19.7 लाख डालर मूल्य के गिफ्ट आइटम का आयात किया गया, जबकि पिछले वर्ष अगस्त में चीन से 81 हजार डालर मूल्य के गिफ्ट आइटम मंगाए गए थे।

कारोबारियों के अनुसार अधिक कीमत चुकाने में सक्षम मध्यम वर्ग के लोग खरीदारी में स्थानीय स्वदेशी वस्तुओं को प्राथमिकता दे रहे थे, जबकि निम्न आय वर्ग के लोग सस्ती चीनी वस्तुओं को प्राथमिकता दे रहे थे। इससे साफ है कि त्योहारी खरीदारी में चीन के वर्चस्व को तोड़ने की चुनौती बनी हुई है। इस बीच आत्मनिर्भर भारत अभियान में मैन्यूफैक्चरिंग के तहत 24 सेक्टरों को प्राथमिकता के साथ तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। चीन से आयात किए जाने वाले रसायन और अन्य कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले दो वर्ष में सरकार ने उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआइ) स्कीम के तहत 14 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया है। देश के कुछ उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं।

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पीएलआइ स्कीम की सफलता के कारण ही इस साल अप्रैल-अगस्त के दौरान फार्मा उत्पादों के आयात में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 40 प्रतिशत की कमी आई है और निर्यात में पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के मुकाबले करीब 3.47 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पहले देश में लगभग सारे स्मार्टफोन चीन से मंगाए जाते थे, क्योंकि मोबाइल हैंडसेट के सिर्फ दो प्लांट थे, लेकिन अब देश में 200 कंपनियां मोबाइल हैंडसेट निर्माण में सक्रिय हैं।

नि:संदेह चीन से व्यापार घाटा देश की बड़ी आर्थिक चुनौती है। खासतौर से एक ऐसे समय में जब चीन सीमा पर आक्रामकता दिखा रहा है। ऐसे में हम रणनीतिक रूप से आगे बढ़कर चीन से बढ़ते आयात और व्यापार घाटे के परिदृश्य को काफी हद तक बदल सकते हैं। स्थानीय बाजारों में चीनी उत्पादों को टक्कर देने एवं चीन से व्यापार घाटा और कम करने के लिए हमें उद्योग-कारोबार क्षेत्र की कमजोरियों को दूर करना होगा। भारत को इलेक्ट्रानिक एवं केमिकल मैन्यूफैक्चरिंग क्षमताएं बढ़ानी होंगी। देश के सार्वजनिक उपक्रमों में भी मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देना होगा। हम देश में मेक इन इंडिया अभियान को आगे बढ़ाकर लोकल प्रोडक्ट को ग्लोबल बना सकते हैं। सरकार को स्वदेशी उत्पादों को चीनी उत्पादों से प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए कुछ सूक्ष्म आर्थिक सुधारों को लागू करने के साथ उद्यमशीलता को बढ़ावा देना होगा। इससे और अधिक कारोबारी आगे आएंगे और वे आयातित चीनी वस्तुओं, कच्चे माल के स्थानीय विकल्प प्रस्तुत करेंगे। उम्मीद करें कि भारत द्वारा वर्ष 2023 में जी-20 की अध्यक्षता के बीच ऐसे रणनीतिक प्रयत्न किए जाएंगे, जिनसे भारत दुनिया के नए आपूर्ति केंद्र और मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगा। ऐसा होने से ही चीन पर हमारी निर्भरता कम हो सकेगी।

(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)