राष्ट्रीय एकता और अखंडता को चुनौती, उच्चतम न्यायालय को स्वतः संज्ञान लेकर करनी चाहिए सुनवाई
राष्ट्रीय एकता अखंडता और संप्रभुता को चुनौती असहनीय अपराध है। यह संविधान का भी उल्लंघन है। यह सब जानते हुए भी द्रमुक सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा ने राष्ट्रीय संप्रभुता पर हमला किया है। उन्होंने भारत माता के प्रति श्रद्धा को भी चुनौती दी है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को अपशब्द कहे हैं। भारत के अस्तित्व से इन्कार किया कि भारत राष्ट्र ही नहीं है।
हृदयनारायण दीक्षित। राष्ट्रीय एकता, अखंडता और संप्रभुता को चुनौती असहनीय अपराध है। यह संविधान का भी उल्लंघन है। यह सब जानते हुए भी द्रमुक सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा ने राष्ट्रीय संप्रभुता पर हमला किया है। उन्होंने भारत माता के प्रति श्रद्धा को भी चुनौती दी है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को अपशब्द कहे हैं। भारत के अस्तित्व से इन्कार किया कि भारत राष्ट्र ही नहीं है। यह एक उपमहाद्वीप है। इसके भीतर तमिल और मलयालम जैसे देश हैं। इसके पहले द्रमुक नेता उदयनिधि ने सनातन धर्म को डेंगू, मलेरिया आदि कहा था। राजा के बोल पहली बार नहीं बिगड़े। उदयनिधि वाले विवाद के बीच उन्होंने सनातन धर्म की तुलना एचआइवी और कुष्ठ जैसी बीमारियों से की। उन्होंने तमिलनाडु को अलग देश बनाने के लिए आंदोलन की धमकी दी थी। राष्ट्र और संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियां उड़ाने, श्रीराम और भारत माता को अपमानित करने जैसे कृत्य संविधान का अपमान है। संविधान की मूल प्रति में श्रीराम का चित्र है। श्रीराम के प्रति श्रद्धा काल्पनिक नहीं है। यह सांस्कृतिक है और संवैधानिक भी है। उन्होंने सांसद के रूप में ली गई शपथ का उल्लंघन किया है। राष्ट्र क्षुब्ध है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी विख्यात पुस्तक 'डिस्कवरी आफ इंडिया' में 'भारत माता' के संदर्भ में लिखा है-मैं सभाओं में जाता हूं। उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम। भीड़ 'भारत माता की जय' बोलती है। मैं पूछता हूं, यह 'भारत माता' कौन हैं?' एक व्यक्ति कहता है, 'यह भारत की पवित्र धरती।' मैं कहता हूं, 'आप ठीक सोचते हैं। यही भारत माता हैं, किंतु भारत माता इससे भी ज्यादा हैं। ये पर्वत, नदियां, वन, हम, आप, सब भारत माता हैं।' पंडित नेहरू से लेकर नरेन्द्र मोदी तक पूरा देश भारत माता के प्रति श्रद्धालु है। इन्हीं भारत माता की आराधना राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' में की गई है। देश की धरती को माता कहना वैदिक काल से भी पुराना है। वंदे मातरम् स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्र जागरण का बीज मंत्र रहा है। ए. राजा की तरह मुस्लिम लीग ने भी भारत माता का विरोध किया। संविधान के मूल कर्तव्यों के अनुसार, 'संविधान और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रगान का आदर करें। राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले आदर्शों का पालन करें। आगे लिखा है कि, 'राष्ट्रीय संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें।' जबकि यहां संप्रभुता और अखंडता को ही दुत्कारा जा रहा है।
भारत के भीतर कई देश नहीं हैं। भारत अमेरिक जैसा नहीं, जो राज्यों के परस्पर अनुबंध से अस्तित्व में आया था। भारत राज्यों के समझौते का परिणाम भी नहीं है। राज्य भारतीय संविधान का परिणाम हैं। राष्ट्र राज्य राज्यों के आकार में परिवर्तन के लिए अधिकृत है। यहां का संघीय ढांचा अमेरिकी संघीय ढांचे से भिन्न है। राज्यों को देश कहना संविधान का उल्लंघन है, मगर ए. राजा राज्यों को राष्ट्र बता रहे हैं। स्वाधीनता संग्राम और उसके बाद भी कुछ वामपंथी तत्वों ने भारत को राष्ट्र नहीं माना। कुछ लिबरल तत्वों ने राष्ट्र बनाने का श्रेय अंग्रेजों को दिया था। गांधी जी ने प्रतिवाद में कहा, 'भारत अंग्रेजी सत्ता के पहले भी राष्ट्र था।' ऋग्वेद में सप्तसिंधु का उल्लेख है। मैकडनल और कीथ ने भी इस भूभाग को¨ देश बताया है। पुसालकर ने भी नदी नामों के आधार पर प्राचीन देश की रूपरेखा बनाई है। उन्होंने अफगानिस्तान, पंजाब, अंशतः सिंध, पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश सिंध और कश्मीर एवं सरयू तक का पूर्वी भारत इस देश में शामिल बताया है। भारत एक विशेष संस्कृति के कारण एक राष्ट्र था और है। यह दुनिया का प्राचीनतम राष्ट्र है।
भाषा और संस्कृति की बात करें तो सर्वोच्च न्यायालय ने संतोष बनाम मानव संसाधन मंत्रालय (1994) मामले में स्पष्ट किया कि सामासिक संस्कृति का आधार संस्कृत भाषा और साहित्य है। न्यायालय की टिप्पणी है, 'यद्यपि इस देश के लोगों में अनेक भिन्नताएं हैं। वे गर्व करते हैं कि वे एक सामान्य विरासत के सहभागी हैं। वह विरासत संस्कृत की है।' उल्लेखनीय है कि संविधान निर्माताओं ने हिंदी को राजभाषा बनाया था। गांधी जी गुजराती और अंग्रेजी के जानकार थे। उन्होंने लिखा है कि, 'मेरी हिंदी कमजोर है, लेकिन मैं हिंदी को राजभाषा बनाने का समर्थक हूं।' तमिल, मलयालम, उड़िया आदि भाषाएं भारत का गौरव हैं। सभी भारतीय भाषाओं में संप्रेषण की शक्ति है। भाषा को लेकर विवाद नहीं होने चाहिए, लेकिन ए. राजा ने सारी हदें तोड़ दी हैं। राजा के बयान के एक दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और तमिलनाडु सरकार में मंत्री उदयनिधि को अनुचित बयानों के लिए फटकार लगाई थी। इस लिहाज से ए. राजा ने कोर्ट का भी अपमान किया।
सनातन पर काल का प्रभाव नहीं पड़ता। सत्य सनातन है। ब्रह्मांड सनातन है। प्राकृतिक नियम सनातन हैं। सनातनता शाश्वत गुण है। जिस तत्व पर समय का प्रभाव पड़ता है वह शाश्वत नहीं है और सनातन भी नहीं। उसमें सुधार की संभावनाएं बनी रहती हैं। सत्य और शिव पर काल का प्रभाव नहीं पड़ता। भारतीय समाज के उत्कृष्ट तत्व सनातन निरंतरता से आए हैं, लेकिन रोग पुराना है। तमिलनाडु के रामास्वामी नायकर ने द्रमुक की स्थापना की। रामास्वामी से लोहिया की मुलाकात हुई। लोहिया ने उनसे राष्ट्र विरोधी रुझानों को छोड़ने की बात कही। लोहिया ने कहा, 'वह शूद्रों और गरीबों के हित में आंदोलन के समर्थक हैं, लेकिन वे उत्तर भारत का विरोध, द्रविड़ स्थान की मांग, हिंदी विरोध, गांधी जी की तस्वीर जलाना एवं ब्राह्मणों के प्रति हिंसा का त्याग करें।' भाषा के बारे में लोहिया ने कहा कि मैं उनसे तमिल में बोलूं और वह मुझे हिंदी में जवाब दें। इन सब बातों का कोई लाभ नहीं हुआ।
लोकसभा चुनाव आसन्न हैं। कांग्रेस सहित कई दलों ने आइएनडीआइए नाम का मोर्चा बनाया है। कांग्रेस को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वह राजा के बयानों के साथ है? क्या वह सनातन के विरुद्ध है? क्या वह राष्ट्रीय एकता, अखंडता और संप्रुभता को चुनौती देने वाले राजा के साथ है? इस स्पष्टीकरण की प्रतीक्षा है। वैसे राहुल गांधी ने भी कुछ समय पहले राजा की ही तर्ज पर भारत को देश नहीं, बल्कि 'राज्यों का संघ' बताया था। ऐसे बयान शूल की तरह चुभते हैं। उच्चतम न्यायालय इस मामले का स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई करे तो स्वागतयोग्य होगा।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)