विजय क्रांति : दो साल पहले लद्दाख के गलवन कांड की याद को ताजा करते हुए इस महीने की नौ तारीख को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर की यांग्त्से सीमा चौकी पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच गंभीर टकराव हुआ। भारत के नियंत्रण वाले तवांग क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रयास करने वाले लगभग तीन सौ चीनी सैनिकों के एक दल और भारतीय सैनिकों के बीच हाल में जो यह हाथापाई हुई, उसे 2020 के गलवन कांड के बाद भारतीय और चीनी सेना के बीच टकराव की सबसे गंभीर घटना माना जा रहा है। चीनी सैनिकों को वापस धकेलने के बाद भारतीय सेना ने अपने एक संक्षिप्त बयान में बताया है कि इस मुठभेड़ में भारत के पांच जवान घायल हुए और स्थिति नियंत्रण में है।

भले ही इस बार सैन्य झड़प की हिंसा काफी हद तक सीमित रही, लेकिन भारत-चीन संबंधों को रसातल में पहुंचाने वाले गलवन कांड के बाद चीन की ओर से फिर इस तरह की कार्रवाई यही संकेत दे रही है कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इरादे नेक नहीं हैं। ऐसी आशंका इसलिए बलवती हो रही है, क्योंकि कोविड को लेकर घोर विफलता के कारण चीनी राष्ट्रपति और उनकी कम्युनिस्ट सरकार चीन में उठ रही जनाक्रोश की लहर से सहमे हुए हैं। ऐसे में, यही लगता है कि चीनी राष्ट्रपति, पार्टी प्रमुख और प्रधान सेनापति के सभी पदों पर विराजमान शी की सेना अपनी जनता का ध्यान बंटाने के लिए ही इस तरह की हरकतें कर रही है। ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि इस जनाक्रोश को ठंडा करने के लिए शी कभी भी भारत या ताइवान के साथ युद्ध के हालत पैदा कर सकते हैं। ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि शी दोनों देशों में से किसके साथ टक्कर लेना ज्यादा फायदेमंद मानते हैं?

चीनी मामलों के कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि ताइवान पर हमला करके चीन एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय टकराव में उलझ सकता है, जिसमें ताइवान पर पूरी तरह कब्जे का शी का सपना पूरा नहीं हो पाएगा। भारत के बारे में भी चीन को समझ आ गया है कि 1962 के बजाय आज का भारत करारा जवाबी हमला कर सकता है, जो चीन को बहुत महंगा पड़ेगा। इसके बाद विश्व विजय का उसका सपना ध्वस्त हो सकता है। जो भी हो, रावण और दुर्योधन सरीखी मानसिकता वाले तानाशाह शी चिनफिंग बदहवासी के आलम में किसी भी हद तक जा सकते हैं और तवांग प्रकरण इसकी ताजा मिसाल है, जिसने भारत को सचेत रहने का संकेत दे दिया है।

यह पहला अवसर नहीं जब अरुणाचल के यांग्त्से क्षेत्र में चीनी सैनिकों ने नियंत्रण रेखा को बदलने का प्रयास किया हो, लेकिन इस बार भारतीय क्षेत्र में घुसने का प्रयास करने वाले चीनी सैन्य दस्ते की संख्या तीन सौ से अधिक थी, जबकि अमूमन 20-25 चीनी सैनिकों की टुकड़ियां ही इस क्षेत्र में गश्त लगाने आती रही हैं। भारत और चीन की सेनाओं के बीच आपसी सहमति है कि गश्त करते समय दोनों पक्षों का कोई भी सैनिक अपने पास बंदूक, पिस्तौल या इस तरह का कोई घातक हथियार नहीं रखेगा। इस कारण ऐसी स्थिति में होने वाला टकराव एक दूसरे पर चिल्लाने, नारेबाजी और धक्कामुक्की तक ही सीमित रहता है। शायद यही कारण है कि तवांग में टकराव भी धक्कामुक्की और हाथापाई से आगे नहीं बढ़ा।

वहीं, जून 2020 में गलवन में चीनी सैनिकों ने निहत्थे रहने के नियम का पालन करने के बजाय पहले से तैयार कीलों की वेल्डिंग वाली लोहे की राड और बाड़ की तारों से लैस डंडों जैसे घातक हथियारों से भारतीय सैनिकों पर एकाएक हमला बोल दिया था। उस हमले में भारतीय कमांडर सहित 20 सैनिक बलिदान हो गए थे, लेकिन समय पर भारतीय सेना की नई कुमुक के पहुंच जाने से बाजी पलट गई। चीन सरकार ने गलवन में अपने हताहत सैनिकों पर पर साल भर चुप्पी साधे रखी और बाद में केवल चार सैनिकों के मरने की बात स्वीकारी। हालांकि, अमेरिका समेत कुछ देशों के चीन में सक्रिय खुफिया तंत्रों ने बाद में दावा किया कि इस मुठभेड़ में चीन के 42 सैनिक मारे गए थे। सैटेलाइट तस्वीरों से भी इस दावे की पुष्टि हुई।

तवांग में झड़प ने सिद्ध किया कि इस क्षेत्र में भारतीय सेना की तैयारी बहुत मजबूत है और हमारे सैनिक इस तरह की स्थिति से निपटने को पूरी तरह तैयार हैं। इससे पहले ऐसे समाचार आते रहे हैं कि चीन ने भारत के साथ लगने वाली अपनी करीब साढ़े तीन हजार किमी लंबी सीमा के साथ-साथ न केवल साल भर चालू रहने वाला सड़कों का तंत्र विकसित किया हुआ है, बल्कि राष्ट्रपति शी की व्यक्तिगत पहल पर इस सीमा के कई क्षेत्रों में 600 से अधिक ऐसे नए गांव बसा लिए हैं, जिनमें पक्के घरों से लेकर सड़क, बिजली, स्कूल और ब्राडबैंड इंटरनेट सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। इसके पीछे चीन की मंशा न केवल इस क्षेत्र में अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करना है, बल्कि इस इलाके पर अपना दावा मजबूत करने के लिए वहां स्थायी रूप से नागरिकों को बसाना भी है। सीमा पर गांवों को बसाने में राष्ट्रपति शी की व्यक्तिगत रुचि को इससे समझा जा सकता है कि पिछले साल अगस्त में अचानक तिब्बत यात्रा के दौरान उन्होंने अरुणाचल से लगने वाली सीमा की भी यात्रा की थी और इस तरह के एक गांव में भी गए थे, लेकिन सीमा पर उनकी इस यात्रा का असली उद्देश्य अपनी सैन्य तैयारियों का जायजा लेना था।

तवांग क्षेत्र में चीन की नई आक्रामक हरकत इस मायने में भी बहुत गंभीर है कि भारत सरकार चीन के साथ-साथ विश्व को स्पष्ट कर चुकी है कि चीन जब तक भारतीय सीमा पर तनाव कम नहीं करता और अपनी सेनाओं को पहले वाले स्थानों तक वापस नहीं ले जाता, तब तक उसके साथ दूसरे मामलों में सहयोग की कोई बात नहीं की जाएगी। चीन इससे परेशान है कि भारत अपनी इस नीति पर कायम है। तवांग में उसकी हरकत उसकी खिसियाहट भरी प्रतिक्रिया भी हो सकती है। इसमें नई दिल्ली के लिए निहित संदेश भी स्पष्ट है कि भारत को चीन के साथ युद्ध के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

(लेखक सेंटर फार हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट के चेयरमैन एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)