उत्तर प्रदेश, आशुतोष शुक्ल। UP Chief Minister Yogi Adityanath: आएंगे..नहीं आएंगे। नहीं बुलाया तो क्या होगा और बुला लिया तो कहीं लेने के देने न पड़ जाएं। कहां रखा जाएगा उन्हें और कैसे होगी दूसरों की सुरक्षा। कितने लोग हैं आने वाले। सोशल मीडिया से लेकर घरों तक हफ्ते भर चली इस वैचारिक जुगाली के बीच नासिक से पहली ट्रेन 845 मजदूरों को लेकर रविवार तड़के लखनऊ पहुंच गई। महाराष्ट्र के भिवंडी से निकली दूसरी खेप रात एक बजे गोरखपुर पहुंची जबकि तीसरी गाड़ी महाराष्ट्र के ही बसई से चलकर सोमवार सुबह गोरखपुर पहुंचेगी। इन दोनों ट्रेनों से लगभग 2400 मजदूरों की घर वापसी होगी। कोरोना महामारी अपने साथ सफाई और कतार में लगने की संस्कृति भी लाई है लिहाजा ट्रेनों से हर उतरने वाला हर मुसाफिर शारीरिक दूरी का पालन कर रहा था।

गिरमिटिया शब्द देशीकरण है अंग्रेजी के एग्रीमेंट का : 1830 के दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूर अंग्रेजों के साथ लिखित समझौता करके मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी और गयाना आदि गए थे। वो दौर दूसरा था, वो सरकार दूसरी थी लेकिन, कम से कम इस मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों का भाग्य न बदला। अपनी निर्धनता के कारण वे तब भी अभिशप्त थे और गेहूं काटने व मकान बनाने के लिए धनी प्रदेशों में जाने को अब भी अभिशप्त हैं। आजादी के बाद से सरकारें इन प्रदेशों के बच्चों को वह तकनीकी और रोजगारपरक शिक्षा न दे सकीं जिसके लिए उन्हें अहमदाबाद, पुणो, नागपुर, हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई जाना पड़ता है। हां, यूपी सरकार के लिए यह पीठ ठोंकने वाली बात है कि उसने अपने ऐसे मजदूरों की घर वापसी सुनिश्चित कराई।

कोरोना ने पलायन का यह वह क्रूर सच दिखाया : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां तक कहा कि वह सभी को दूसरे राज्यों से वापस लाएंगे और उन्हें पैदल आने की जरूरत नहीं। यह सवाल लेकिन अपनी जगह है कि जिन राज्यों में इन मजदूरों ने वर्षो अपना पसीना बहाया, क्या वे इन्हें तीन महीने खाना नहीं खिला सकते थे। यदि उत्तर प्रदेश में इनके लिए नवोदय विद्यालय और अन्य सरकारी दफ्तर खाली कराए जा सकते हैं तो यह काम उन राज्यों में भी हो सकता था जहां उन्हें निर्ममतापूर्वक छोड़ दिया गया। कोरोना ने पलायन का यह वह क्रूर सच दिखाया है जो उसके जाने के बाद एक बड़े सामाजिक व राजनीतिक वैमनस्य का कारण बनेगा। व्यक्ति की तरह राज्य का भी अपना अभिमान होता है और क्या ही सुंदर बात हो यदि कोरोना के बाद दोनों राज्य अपने लोगों को आश्वस्त कर सकें कि रोजगार के लिए उन्हें बाहर नहीं जाना पड़ेगा। यह हो सके तो बुरे समय में पीठ दिखाने और भाषाई युद्ध छेड़ने वाले राज्यों को दिन में तारे दिखने लगेंगे।

कर्मचारियों-अधिकारियों ने अब तक कोरोना से लोहा लिया: फिलहाल तो उत्तर प्रदेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती बाहर से आने वाले पंद्रह लाख लोगों की स्वास्थ्य चिंता है। उनमें संक्रमण की जांच ही नहीं उनसे एकांतवास कराना भी कठिन होगा। यह मानना तो खामखयाली ही होगी कि इतनी बड़ी संख्या में कोई संक्रमित न हो। संक्रमित यदि अपने गांव पहुंच गया तो बड़ी परेशानी आनी तय है। इसलिए सरकारी अमले की कठिनाई अब शुरू हुई है। फिर भी भरोसा किया जा सकता है कि जिस जांबाजी से सरकार और उसके कर्मचारियों-अधिकारियों ने अब तक कोरोना से लोहा लिया है, इस समस्या से भी वे पार पा जाएंगे। राज्य सरकार को इस बात के लिए भी पूरे नंबर दिये जाने चाहिए कि राजस्व की सभी नहरें सूखी होने के बावजूद उसने अपने 16 लाख कर्मचारियों और 12 लाख पेंशनधारकों के बैंक खातों की रौनक लगातार दूसरे महीने बनाए रखी। सबको समय पर वेतन और पेंशन मिल गई। यहां यह बात भी ध्यान में रहनी चाहिए कि खजाना डायटिंग पर है लिहाजा उत्तर प्रदेश सरकार खर्चे घटाने के लिए अपने अधिकारियों के सरकारी दौरों में कमी करने की तैयारी कर चुकी है। सामान्य वार्षिक तबादले भी रोके जा सकते हैं।

चिकित्सा वैसे भी सबसे पवित्र काम माना गया है और डॉक्टरों के लिए सबके मन में सम्मान रहता है लेकिन, यह रविवार तो डॉक्टरों, नर्सो और उनके अन्य मेडिकल सहयोगियों के लिए यादगार हो गया। उन पर आकाश से फूल बरसाये गए। उत्तर प्रदेश में इसके पहले कांवड़ियों और कुंभ यात्रियों पर हेलीकाप्टरों से पुष्पवर्षा हो चुकी है परंतु डॉक्टरों के इस प्रकार के सम्मान का यह पहला अवसर था। इसका संदेश पूरे समाज में अच्छा गया।

[संपादक, उत्तर प्रदेश]