जागरण संपादकीय: मुसलमानों को फिर से डराने की साजिश, वक्फ बिल को लेकर बनाया जा रहा माहौल
अंग्रेजों ने अपनी बांटो और राज करो की नीति के तहत जिन्ना आदि मुस्लिम नेताओं से साठगांठ कर 1930 में मुसलमान वक्फ एक्ट (रेट्रोस्पेक्टिव) यानी पहले की वक्फ संपत्तियों और व्यवस्था पर भी लागू होने वाला कानून बना दिया। आजादी के बाद वक्फ एक्ट में 1954 से लेकर 2013 तक कई बार संशोधन हुए लेकिन वे सभी मुख्य रूप से मुसलमान वक्फ एक्ट 1930 की कापी-पेस्ट ही रहे।
मुख्तार अब्बास नकवी। वक्फ संशोधन बिल, 2024 को लेकर एक बार फिर भारत में सौ साल पहले के खिलाफत आंदोलन जैसा माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। वक्फ और खिलाफत आंदोलन का चोली-दामन का साथ था। हम वक्फ और खिलाफत आंदोलन के घटनाक्रम को एक साथ जोड़कर देखेंगे तो समझ सकेंगे।
इसकी शुरुआत 1895 में ब्रिटिश राज की एक न्यायिक कमेटी के कुछ निर्णयों के चलते हुई, जिसमें कहा गया था कि वर्तमान वक्फ सिस्टम सर्वाधिक बुरा और हानिकारक है। यह टिप्पणी ब्रिटिश हुकूमत के अंतर्गत भारत सहित कई देशों में प्रचलित वक्फ व्यवस्था पर थी।
अन्य देशों ने इसे स्वीकार कर सुधार का रास्ता चुना, लेकिन भारत में मुस्लिम कट्टरपंथियों से सौदा करने के इरादे से अंग्रेज सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। अंग्रेजों की योजना से इसे मुद्दा बनाकर कुछ कट्टरपंथी जमातों ने इस्लाम की रक्षा के नाम पर मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में विरोध शुरू कर दिया।
प्रथम विश्व युद्ध (वर्ष 1914-18) के बाद आटोमन साम्राज्य और उसकी स्वघोषित इस्लामी खलीफा व्यवस्था के खात्मे से परेशान तुर्किये के लोगों द्वारा ‘तुर्किये गणराज्य’ की स्थापना को कुछ इस्लामी कट्टरपंथी जमातों ने अंग्रेजों की साजिश और इस्लाम पर हमला प्रचारित कर अंतरराष्ट्रीय इस्लाम बचाओ अभियान शुरू कर दिया।
इसका अन्य देशों में तो कोई खास असर नहीं हुआ, पर भारत में यह काफी असरदार दिखा। तब तक जिन्ना इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के बंबई से सदस्य चुने जा चुके थे, जिसे ब्रिटिश हुकूमत में विधायी अधिकार थे। जिन्ना ने अंग्रेजों से साठगांठ कर काउंसिल में ‘मुसलमान वक्फ वैलिडेटिंग बिल, 1913’ पास करा लिया, जिसका विस्तार और अधिक शक्तियों के साथ 1923 में ‘मुसलमान वक्फ एक्ट’ के रूप में हुआ।
इस तरह अंग्रेजों ने सोची-समझी साजिश के तहत जिन्ना और मुस्लिम लीग को सांप्रदायिक सियासत का कानूनी हथियार थमा दिया। इसमें कहा गया कि कोई भी मुसलमान अपने परिवार, बच्चों, आश्रितों के आंशिक या पूर्ण समर्थन के लिए वक्फ बना सकता है। यह वक्फ व्यवस्था को निरंकुश बनाने के साथ रजवाड़ों, रियासतों, नवाबों के दान के नाम पर अथाह संपत्तियों को वक्फ का सुरक्षा कवच पहनाकर बचाने और मालिकाना हक कायम रखने की मंशा से प्रभावित था।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद वक्फ मुद्दे को और धारदार बनाने के लिए मुस्लिम लीग और अन्य कट्टरपंथी नेताओं ने भारत में 1919 में खिलाफत कमेटी बनाई, जिसका कांग्रेस ने भी समर्थन किया। महात्मा गांधी का सोच था कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में हिंदू-मुसलमान एकजुट होकर लड़ेंगे तो स्वतंत्रता संग्राम को ताकत मिलेगी, पर खिलाफत आंदोलन का मकसद भारत की आजादी के बजाय देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिये अलग मुल्क की मांग को हवा देने का था।
अंग्रेजों ने अपनी बांटो और राज करो की नीति के तहत जिन्ना आदि मुस्लिम नेताओं से साठगांठ कर 1930 में मुसलमान वक्फ एक्ट (रेट्रोस्पेक्टिव) यानी पहले की वक्फ संपत्तियों और व्यवस्था पर भी लागू होने वाला कानून बना दिया। आजादी के बाद वक्फ एक्ट में 1954 से लेकर 2013 तक कई बार संशोधन हुए, लेकिन वे सभी मुख्य रूप से मुसलमान वक्फ एक्ट, 1930 की कापी-पेस्ट ही रहे।
बंटवारे के वक्त भारत से जो मुसलमान पाकिस्तान गए, वे जिस जमीन-जायदाद पर ठहरे, आज उन संपत्तियों के मालिक हैं। जो लोग पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़कर भारत आए, वे आज भी न मालिक और न किराएदार बन पाए, बल्कि ‘अवैध कब्जेदार’ बनकर रह गए। वे वक्फ बोर्डों के शोषण का शिकार होते रहते हैं।
वे भी इस वक्फ सिस्टम के बड़े हितधारक हैं। उन्हें भी मानवीय न्याय मिलना चाहिए। इन्हीं पहलुओं के मद्देनजर 1954 के वक्फ एक्ट में बोर्ड के सदस्य बनने के लिए सिर्फ मुसलमान होना अनिवार्य नहीं था, मगर 2012-13 में संशोधन कर ‘मात्र मुस्लिम’ कर दिया गया। आज वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर कुछ लोग वैसे ही भय-भ्रम का माहौल बना रहे हैं, जैसा खिलाफत आंदोलन के नाम पर इस्लाम बचाओ मुहिम के नाम पर किया गया था।
खिलाफत आंदोलन का भारतीय मुसलमानों से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था। उस आंदोलन की मांग थी कि तुर्किये खिलाफत सुरक्षित रहे, तुर्किये के धार्मिक स्थल सुरक्षित हों, तुर्किये की सीमाएं प्रथम विश्व युद्ध से पहले वाली बहाल हों। इन तीनों मांगों में भारत, भारतीय मुसलमानों का कहीं भी हित नहीं था, लेकिन खिलाफत आंदोलन के जरिये इस्लाम के नाम पर मुसलमानों को बरगलाकर जिन्ना एंड कंपनी ने अपने निहित और सियासी स्वार्थ साधे।
आज फिर देश में वैसा ही माहौल खड़ा करने की कोशिश हो रही है। इसमें जाकिर नाइक जैसे कुछ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रकारी बहुत सक्रिय हैं, जो वक्फ सिस्टम में अहम सुधारों से डरे हुए हैं। उन्हें भी मालूम है कि वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 किसी मस्जिद, दरगाह, इमामबाड़े, धार्मिक स्थलों या इस्लामी कर्तव्यों के लिए न खतरा है, न रोड़ा है, बल्कि इसका उद्देश्य देश में वक्फ सिस्टम को सशक्त, पारदर्शी, प्रभावी और सामाजिक सशक्तीकरण का संवैधानिक सुरक्षा कवच प्रदान करना है।
हां, उन लोगों के लिए जरूर चिंता की बात हो सकती है, जो वक्फ संपत्तियों को अपनी निजी जागीर और परिवार की प्रापर्टी मान बैठे हैं। शायद वे वक्फ संपत्तियों द्वारा समाज के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक सशक्तीकरण के लिए सदुपयोग के विचार से विचलित हैं। इसीलिए एक बार फिर वक्फ के नाम पर देश के मुस्लिम समुदाय को डराने की साजिश कर रहे हैं। इनसे मुस्लिम समुदाय को सावधान रहना होगा।
(लेखक पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं)