लॉकडाउन के भी हैं नुकसान, इसे खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं; सीखना होगा कोरोना संग जीना
इस बीमारी से लड़ने में सक्षम वायरस को विकसित करने के बारे में भी सोचा जाना चाहिए।
डॉ.नीलम महेंद्र। आज लगभग संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस के समक्ष घुटने टेके खड़ा है। अब तक इसका कोई सफल इलाज नहीं मिल पाया है। वैक्सीन बनाने की तैयारी के दावे तो भारत समेत दुनिया के कई देश कर रहे हैं, और उम्मीद तो यह भी जताई जा रही है कि जल्द इसे विकसित कर लिया जाएगा, लेकिन ठोस नतीजों का अभी इंतजार है। यह उम्मीद कायम है कि किसी न किसी देश के वैज्ञानिक जल्द ही दुनिया को इस महामारी पर अपनी विजय की सूचना देंगे।
कोरोना के शुरुआत में इससे बचाव ही इसका एक मात्र इलाज बताया गया और विश्व के अधिकांश प्रभावित देशों ने अपने यहां लॉकडाउन कर लिया। लेकिन जीवन रुकने नहीं, बल्कि चलने का नाम है तो लॉकडाउन में विश्व कब तक रहता। वैसे लॉकडाउन से कोरोना की रफ्तार कुछ कम जरूर हुई थी, लेकिन थमी नहीं थी और इसके अपने नुकसान थे जो गिरती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की आमदनी बंद हो जाने जैसे तमाम व्यावहारिक समस्याओं के रूप में सामने आने लगे। अब सरकारों के पास लॉकडाउन खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। जीवन चलाने के लिए जीवन को ही दांव पर लगा दिया गया।
इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक आशंका यह भी जाहिर की है कि शायद कोरोना का इलाज या उसकी वैक्सीन कभी नहीं आ पाए, इसलिए हमें इसके साथ ही जीना सीखना होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत जैसे विशाल आबादी वाले देशों को हर्ड इम्युनिटी यानी सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता के सिद्धांत को अपनाने की सलाह भी दी है, जिसका आधार यह है कि भारत जैसे देश की अधिकतर जनसंख्या युवा है जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है। इसलिए जब बड़ी आबादी में कोरोना से संक्रमण होगा तो उसमें वायरस के प्रतिरोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होगा।
वैसे हर्ड इम्युनिटी की बात करते समय हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस सिद्धांत के मूल में एक स्वस्थ शरीर होता है, जबकि आज की सच्चाई यह है कि भारत समेत विश्व के अधिकांश देशों के युवा आज आधुनिक जीवनशैली जनित रोगों की चपेट में हैं, कम उम्र में मधुमेह व उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं। फास्ट फूड, सिगरेट, तंबाकू, शराब और ड्रग्स के सेवन से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है। इसलिए भारत में यह सिद्धांत कितना सफल होगा यह तो वक्त ही बताएगा। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि शुरू में ब्रिटेन ने हर्ड इम्युनिटी का सिद्धांत ही अपनाया था, लेकिन बढ़ते संक्रमण और मौत के आंकड़ों ने दो सप्ताह से कम समय में उसे लॉकडाउन करने के लिए मजबूर कर दिया था।
जब यह बात सामने आने लगी है कि कोरोना वायरस एक प्राकृतिक वायरस ना होकर मानव निर्मित है, तो हमें भी अपनी पारंपरिक सोच से आगे बढ़कर सोचना होगा। वैसे तो विश्वभर में इसका इलाज खोजने के लिए विभिन प्रयोग चल रहे हैं, लेकिन यह कार्य इतना आसान नहीं है, क्योंकि आज तक सर्दी-जुकाम जैसे साधारण से प्राकृतिक वायरल इंफेक्शन का मुकम्मल इलाज नहीं खोजा जा सका है। वहीं स्माल पॉक्स, मिजील्स, चिकन पॉक्स जैसी वायरल बीमारियों की वैक्सीन बना ली गई है।
वैक्सीन भी रोग प्रतिरोधक क्षमता के सिद्धांत पर ही काम करती है जिसमें बीमारी के कुछ कमजोर कीटाणु स्वस्थ मानव शरीर में पहुंचाए जाते हैं। इसलिए वैक्सीनेशन के बाद बुखार आना स्वाभाविक लक्षण माना जाता है और वैक्सीन द्वारा मानव शरीर में पहुंचाई गई कीटाणुओं की अल्प मात्रा के खिलाफ लड़कर शरीर उस बीमारी से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेता है।
लेकिन कोरोना वायरस साधारण वायरस नहीं है और ना ही प्राकृतिक है, इसलिए ये साधारण दवाएं और सिद्धांत इसके इलाज में कारगर सिद्ध होंगे, इसमें संदेह है। तो जिस प्रकार लोहा ही लोहे को काटता है और जहर ही जहर को मारता है, कृत्रिम कोरोना वायरस का इलाज एक दूसरा कृत्रिम वायरस ही हो सकता है। जैसे कोरोना वायरस को लैब में तैयार किया गया है, ठीक वैसे ही एक ऐसा वायरस लैब में तैयार किया जाए जो कोरोना वायरस का तोड़ हो, जो उसे नष्ट कर दे। जीहां, यह संभव है।
मानव शरीर के हित में उपयोग में लाने के लिए काफी समय से वायरस की जेनेटिक इंजीनियरिंग की जा रही है।जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से ही कई पौधों के ऐसे बीज आज निर्मित किए जा चुके हैं जो पैदावार भी बढ़ाते हैं और जिनकी रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता इतनी अच्छी होती है कि वे संक्रमित नहीं होते। ऐसी फसल को जीएम फसल कहा जाता है। इसी तकनीक से वैक्सीन भी बनाई जा चुकी है। इस विधि का प्रयोग करके जो वैक्सीन तैयार की जाती है उसे रिकॉम्बीनेंट वैक्सीन कहते हैं। इस प्रकार जो पहली वैक्सीन तैयार की गई थी, वह हेपेटाइटिस बी के लिए थी जिसे 1986 में मंजूर किया गया था।
दरअसल वायरस और बैक्टीरिया प्रजाति को अभी तक अधिकतर बीमारी फैलने और मानव शरीर पर आक्रमण करने के लिए ही जाना जाता रहा है। पर सभी वायरस और बैक्टीरिया ऐसे नहीं होते। कुछ तो मानव के मित्र होते हैं और सैकड़ों की संख्या में मानव शरीर में मौजूद रहते हैं।और कुछ वायरस तो ऐसे होते हैं जो बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं इन्हें बैक्टेरियो फेज के नाम से जाना जाता है।
इसी प्रकार वायरस द्वारा कैंसर का इलाज खोजने की दिशा में भी वैज्ञानिकों ने उत्साहवर्धक नतीजे प्राप्त किए हैं जिसे जीन थेरेपी कहा जाता है। इसके द्वारा लाइलाज कहे जाने वाले कई आनुवांशिक रोगों का भी इलाज खोजा जा रहा है। वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के स्ट्रक्चर यानी उसके ढांचे का पता लगा लिया है।अब उन्हें ऐसा वायरस जो ह्यूमन फ्रेंडली यानी मानव के शरीर के अनुकूल हो, उसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से ऐसे गुण विकसित करने होंगे जो मानव शरीर को नुकसान पहुंचाए बिना शरीर में मौजूद कोरोना वायरस के संपर्क में आते ही उसे नष्ट कर दे।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)
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