गिरीश्वर मिश्र : जुलाई 2020 में आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने देश में औपचारिक शिक्षा की चुनौतियों और संभावनाओं का आकलन करते हुए समर्थ भारत के निर्माण के लिए एक प्रभावी शैक्षणिक ढांचे का खाका प्रस्तुत किया। पिछले तीन वर्षों में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा एवं शोध के लिए सरकार के संज्ञान में जो भी आया उसे इस नीति के क्रियान्वयन का हिस्सा बनाया गया है। समग्र शिक्षा अभियान की अवधि को 2025-26 तक बढ़ा दिया गया। इसे नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन का माध्यम बनाया गया है।

आठ अप्रैल, 2021 को सार्थक (स्टूडेंट्स एंड टीचर्स होलिस्टिक एडवांसमेंट थ्रू क्वालिटी एजुकेशन) नाम से वृहद कार्ययोजना पेश की गई, जो अब एक मार्गदर्शिका की भूमिका में है। किसी भी राज्य की विद्यालयी शिक्षा से जुड़ी आधिकारिक वेबसाइट पर इसके आलोक में बनाई जा रही योजनाओं का ब्योरा देखा जा सकता है। इसका उपयोग नीति के तहत किए जा रहे कार्यों की उपलब्धि मापने के लिए भी किया जा रहा है।

इस शिक्षा नीति की एक प्रमुख संस्तुति आधारभूत साक्षरता और गणितीय योग्यता का संवर्धन करना भी है। इस दिशा में पहल करते हुए पांच जुलाई, 2021 को ‘निुपण भारत अभियान’ शुरू किया गया, जिसका लक्ष्य है कि 2026-27 के बीच कक्षा तीन तक के बच्चे पढ़ने और गिनने की आधारभूत क्षमता में दक्ष हो जाएं। शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की एक मुख्य एजेंसी एनसीईआरटी ने इस दिशा में पहल करते हुए जुलाई, 2021 में विद्या प्रवेश नाम का खेल आधारित माड्यूल बनाया।

एनसीईआरटी द्वारा आधारभूत स्तर के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा भी प्रस्तुत की जा चुकी है। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की विद्यालयी शिक्षा के लिए भी राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा का एक मसौदा चर्चा और फीडबैक के लिए आ चुका है। एनसीईआरटी ने सेवारत अध्यापकों के पेशेवर विकास के लिए संचालित निष्ठा कार्यक्रम को भी नीति के अनुसार संशोधित किया है। लगभग हर तीन महीने पर कोई न कोई योजना आरंभ हो रही है। इनमें विद्याजंलि और पीएम श्री योजना प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। शिक्षा मंत्रालय 2020 के बाद जिस किसी भी कार्यक्रम और योजना को आरंभ कर रहा है उसे शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की शक्ल में प्रस्तुत कर रहा है।

उच्च शिक्षा के स्तर पर किसी केंद्रीकृत सुधार की जगह विश्वविद्यालय और राज्य सरकारों के स्तर पर सुधार के कुछ प्रयास हो रहे हैं। अधिकांश विश्वविद्यालयों की वेबसाइटों पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की कार्ययोजना का ब्योरा देखा जा सकता है। ये कार्ययोजनाएं शिक्षा नीति से सूत्रों को पहचानती हैं और उनके क्रियान्वयन का चरणबद्ध प्रस्ताव प्रस्तुत करती हैं। इनमें पाठ्यचर्या और शिक्षण प्रक्रिया में सुधार और आकलन की लचीली पद्धति का उल्लेख किया जाता है। एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट के विकास को बड़े पैमाने पर लागू किया गया है। हर विश्वविद्यालय शिक्षा नीति के अंतर्गत नए अध्ययन कार्यक्रमों को आरंभ करने की योजना बनाने में अग्रसर हो रहा है। यूजीसी द्वारा उत्साह पोर्टल आरंभ कर नीति क्रियान्वयन की निगरानी का भी प्रयास है।

इसके लिए बहुअनुशासनात्मकता, डिजिटल संसाधनों का अधिकाधिक प्रयोग, कौशल विकास, शोध, नवाचार, उद्यमिता और भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा के अवसरों को लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों की कार्ययोजना की निगरानी और उन्हें सहयोग देने का प्रयास जारी है। इस नीति के क्रियान्वयन का सकारात्मक परिणाम यह भी है कि उच्च शिक्षा परिसरों में भारतीय ज्ञान परंपरा और भारतीय भाषाएं अब एक अहम घटक की तरह पहचानी जा रही हैं, किंतु अभी यह काम रस्मी तौर पर हड़बड़ी में ही हो रहा है।

विद्यालय स्तर पर नीति के प्रभाव में आवंटित वित्त का प्रस्तुतीकरण और समायोजन नए वर्गों में हो रहा है, लेकिन कुछ आधारभूत समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। विद्यालयों में सीखने के कुछ संसाधन जरूर उपलब्ध हो रहे हैं, परंतु सीखने-सिखाने की संस्कृति में कोई बदलाव नहीं हो रहा है। यदि सरकारी तंत्र को छोड़ दिया जाए तो यह नीति सरकारी विद्यालयों पर जनता में भरोसा विकसित करने की दिशा में कोई खास प्रभाव छोड़ती नजर नहीं आ रही है। उच्च शिक्षा में कोविड के बाद से सत्र अनियमितता की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा के आधार पर स्नातक और परास्नातक में प्रवेश विलंब से हो रहा है। उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के परीक्षा परिणामों की घोषणा और स्नातक में प्रवेश की अवधि में लगभग तीन माह का अंतराल हो रहा है।

उच्च शिक्षा के स्तर पर बहुअनुशासनात्मकता और सुनम्य व्यवस्था के बीच शिक्षण-अधिगम सुदृढ़ होने के बजाय ‘शार्टकट’ अपनाता नजर आ रहा है। संप्रति, शिक्षा केंद्रों की बदहाली के अनेक आयाम हैं जिन पर गौर करना जरूरी है। आज विद्यार्थियों के लिए वे विकर्षण का केंद्र बन रहे हैं और विद्यार्थी साधन जुटाकर विदेश का रुख कर रहे हैं। तमाम सामान्य या उससे नीचे की संस्थाएं भी नैक से उच्च और उच्चतर ग्रेड का प्रमाणपत्र पाकर आगे बढ़ रही हैं। आम आदमी निरुपाय और भ्रमित हो रहा है। उच्च शिक्षा के अध्यापक नई शब्दावली और प्रस्तुति के बीच ऐसे उलझे हैं कि वे क्या और कैसे पढ़ाएं में नवाचार के बजाय पुरानी पाठ्यचर्या पर नए कवर चढ़ाकर आगे बढ़ रहे हैं।

उद्यमिता विकास के नाम पर उच्च शिक्षा संस्थानों और उद्यम आधारित अधिगम स्थलों के बीच तालमेल का अभाव है। विद्या के परिसर में ज्ञान की संस्कृति की जगह जोड़-तोड़ की राजनीति और गैर-अकादमिक आकांक्षाओं को साकार करने पर अधिक जोर दिया जाने लगा है। कुछ विशेष-स्वायत्त शैक्षिक संस्थाओं को छोड़ दें तो अन्य संस्थाएं उदासीनता, हस्तक्षेप और अव्यवस्था से ग्रस्त होकर समझौते करने के लिए विवश हैं। सरकारी व्यवस्था जहां अनेक कमियों से जकड़ कर अनुत्पादक बनी हुई है, वहीं निजी शिक्षा अनियंत्रित होकर बेहद महंगी हुई जा रही है। गुणवत्ता और मानक के स्तर की चिंता आकड़ों में फंस रही है। यदि नई शिक्षा नीति को अपेक्षित रूप से सिरे चढ़ाना है तो शैक्षिक व्यवस्था में आधारभूत बदलाव लाना ही होगा। तभी उसकी साख बचेगी।

(लेखक पूर्व कुलपति और शिक्षाविद् हैं)