जागरण संपादकीय: लैंगिक समानता की दिशा में सही कदम, बजट में नारी उत्थान की झलक, लेकिन चुनौती क्रियान्वयन के मोर्चे पर
वित्त मंत्री ने बजट में कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास स्थापित करने का प्रविधान करके कार्यबल में महिलाओं की अहम भूमिका को मान्यता दी। इन छात्रावासों का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षित एवं अनुकूल परिवेश प्रदान करना है जिससे वे सुविधा और सुरक्षा से समझौता किए बगैर कार्य कर सकें। इसके साथ ही कामकाजी माताओं के लिए पेशेवर और व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाने के लिए क्रेच की घोषणा की।
ऋतु सारस्वत। नारी सशक्तीकरण को लेकर प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए सरकार ने हालिया बजट में लड़कियों एवं महिलाओं को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं के लिए तीन लाख करोड़ रुपये आवंटित किए। इस राशि का उपयोग महिलाओं के कौशल विकास कार्यक्रम, स्वयं-सहायता समूहों के लिए बाजार तक पहुंच को सक्षम बनाने और उन्हें विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार देने में होगा।
इन कदमों से कामकाजी आबादी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में मदद मिलेगी। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार शिक्षा और कौशल विकास तक बढ़ती पहुंच के चलते महिला श्रमशक्ति भागीदारी दर 2017-18 में 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 37 प्रतिशत हो गई। वित्त वर्ष 2024-25 में ‘लैंगिक बजट’ पर सरकार का खर्च अब तक व्यय की जाने वाली राशि में सर्वाधिक होगा। अब यह सरकार के कुल व्यय का 6.5 प्रतिशत हो चुका है। पिछले दो दशकों का यह औसत 4.8 रहा है।
भारत में लैंगिक बजट वित्त वर्ष 2005-06 में यह सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया कि विकास के लाभ से आधी आबादी वंचित न रहने पाए। अन्य अनेक देशों ने भी कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए लैंगिक दृष्टि से संवेदनशील बजट बनाने शुरू किए हैं। वैश्विक स्तर पर ऐसे बजट बनाने की शुरुआत 1984 में आस्ट्रेलिया ने की, जिसका अनुसरण कई देशों ने किया।
किसी भी देश के लिए लैंगिक समानता के सभी आयामों तक पहुंच बनाने के लिए जितना अधिक महत्वपूर्ण लैंगिक दृष्टि से संवेदनशील बजट बनाना होता है, उतना ही आवश्यक लैंगिक समानता पर दृष्टि रखने के लिए व्यापक प्रणालियों को विकसित करना भी। सक्षम प्रणालियों के बिना देश लैंगिक समानता कानूनों और नीतियों को लागू करने के लिए संसाधनों का आवंटन और व्यय नहीं कर सकते।
2013 में मोरक्को के वित्त मंत्रालय ने लैंगिक दृष्टि से संवेदनशील बजट के लिए उत्कृष्टता केंद्र की शुरुआत की, जो सांसदों को जानकारी प्रदान करता है कि स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक नीतियां लैंगिक समानता की दिशा में कैसे काम कर रही हैं? आस्ट्रिया वैश्विक स्तर पर उन देशों में अग्रणी है, जिसने संविधान में लैंगिक समानता को शामिल किया।
अपने देश में 2005-06 में लैंगिक बजट की शुरुआत के बाद मार्च 2007 में वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने ‘जेंडर बजट सेल’ स्थापित किया। इसी क्रम में 2013 में लैंगिक रूप से संवेदनशील बजट को संस्थागत करने की दिशा में एक विस्तृत निर्देशिका जारी की गई।
लैंगिक समानता की बाधाओं से निपटने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न घटकों पर काम किया जा रहा है। चूंकि लैंगिक समानता के सभी घटक अंतर्संबंधित हैं इसलिए किसी एक की अवहेलना दूसरे क्षेत्र को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। इसी कारण सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक सशक्तीकरण के विभिन्न आयामों पर समान रूप से ध्यान दिया गया है।
दुनिया भर में हुए शोध यह स्पष्ट करते हैं कि वित्तीय स्वतंत्रता नारी सशक्तीकरण की अपरिहार्य शर्त है। वित्तीय स्वतंत्रता के मार्ग में सबसे बड़ा व्यवधान ‘प्रणालीगत पूर्वाग्रह और धारणा संबंधी’ चुनौतियां हैं, जो अक्सर वित्तपोषण करने की क्षमता सीमित कर देती हैं। समाज में परंपरागत भूमिकाएं भी महिलाओं की आत्मनिर्भरता के मार्ग को दुष्कर कर देती हैं। वित्तीय स्वावलंबन के दो आयाम हैं।
पहला, किसी रोजगार में संलग्न होना और दूसरा, स्वरोजगार। इन दोनों ही क्षेत्रों की अपनी-अपनी मुश्किलें हैं। शहरी क्षेत्र में रोजगार में संलग्न महिलाओं के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा सुरक्षित और किफायती आवास है। इससे भी अधिक चुनौतीपूर्ण स्थिति कामकाजी माताओं की है। ‘वुमेन इन इंडिया इंक एचआर मैनेजर्स सर्वे’ के अनुसार 34 प्रतिशत महिलाएं कार्यजीवन में असंतुलन के कारण नौकरी छोड़ देती हैं।
केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री ने कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास स्थापित करने का प्रविधान करके कार्यबल में महिलाओं की अहम भूमिका को मान्यता दी है। इन छात्रावासों का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षित एवं अनुकूल परिवेश प्रदान करना है, जिससे वे सुविधा और सुरक्षा से समझौता किए बगैर कार्य कर सकें। इसके साथ ही कामकाजी माताओं के लिए पेशेवर और व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाने के लिए क्रेच की घोषणा यह स्पष्ट करती है कि सरकार का लक्ष्य महिलाओं को कार्यबल में शामिल करने का है, जिससे वे सशक्त बन सकें।
इस बार बजट में उन महिलाओं की ओर भी विशेष ध्यान दिया गया है, जो उद्यम स्थापित करना चाहती हैं। एमएसएमई क्षेत्र में सबसे ज्यादा महिलाएं हैं, जो बिना किसी गारंटी के ऋण पाने के लिए संघर्ष करती हैं। इन महिलाओं के लिए मुद्रा ऋण की ऊपरी सीमा को दोगुना करके 20 लाख किया जाना उत्साहवर्धक है। आर्थिक सशक्तीकरण महिलाओं की बाजारों और संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करता है और उनकी क्रयशक्ति बढ़ाता है।
आत्मनिर्भर महिलाएं घर एवं बाहर, दोनों ही जगह निर्णय लेने की क्षमता रखती हैं। वित्तीय स्वतंत्रता घरेलू हिंसा से मुक्ति का मार्ग भी है। बजट 2024-25 की घोषणाएं लैंगिक समानता और नारी सशक्तीकरण के प्रति सरकार की संवेदनशीलता को तो स्पष्ट कर रही हैं, पर उनकी असल चुनौती क्रियान्वयन के मोर्चे पर है।
महिलाओं को कौशल प्रदान करने या उनके स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने की ज्यादातर पहल नेक इरादों से शुरू होकर बाद में अपनी गति को प्राप्त हो जाती है, इसलिए धन आवंटित करना ही पर्याप्त नहीं। इसके साथ एक ऐसे तंत्र को भी स्थापित करने की आवश्यकता है, जो यह सुनिश्चित करे कि लाभार्थियों को बिना किसी बाधा के बजट में प्रस्तावित वित्तीय सुविधाएं प्राप्त हों।
(लेखिका समाजशास्त्री हैं)