Coronavirus India Challenges: चुनौतियों से निपटने की राह पर सरकार के कदम, अपनाई रैपिड टेस्टिंग की प्रक्रिया
कोविड-19 की चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार ने मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए मानव जीवन की कीमत को प्राथमिकता देते हुए आर्थिक हितों के प्रश्नों को दूसरी वरीयता पर रखा।
नई दिल्ली [शिवानंद द्विवेदी] । आज कोरोना का संकट पूरी दुनिया में व्याप्त हो चुका है। फिलहाल ऐसा माना जा रहा है भारत में कोविड-19 का खतरा सामुदायिक स्तर पर नहीं फैला है। विगत 14 अप्रैल की संध्या नौ बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2,29,426 लोगों में कोविड-19 के 2,44,893 सैंपल टेस्ट हुए हैं जिसमें 10,307 पॉजिटिव केस मिले हैं। इस आंकड़े के आधार पर देखें तो भारत में कुल टेस्ट के लगभग 4.2 फीसद लोग पॉजिटिव पाए गए हैं। तुलनात्मक रूप से इटली, अमेरिका, स्पेन और जर्मनी जैसे देशों में कुल टेस्ट में पॉजिटिव मामलों का औसत भी भारत के पॉजिटिव मामलों से काफी अधिक है। फौरी तौर पर यह भारत के लिए एक राहत पहुंचाने वाला तथ्य है। पहले की तुलना में भारत में रैपिड टेस्टिंग से अधिक से अधिक सेंपल टेस्ट किए जा सकें, इस दिशा में सरकार कदम बढ़ा चुकी है।
लॉकडाउन के समक्ष चुनौतियां
सामुदायिक स्तर पर इसका फैलाव न हो इसे ध्यान में रखते हुए 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संपूर्ण लॉकडाउन का निर्णय लिया गया। यह निर्णय जब लिया गया तब देश के सामने परस्पर विरोधाभाषी दो चुनौतियां थीं। एक ओर मानव समाज की रक्षा की चुनौती, वहीं दूसरी ओर आर्थिक हितों को बचाए रखने की चुनौती। बेशक दोनों ही चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं, किंतु मोदी सरकार ने मानव जीवन की कीमत को प्राथमिकता देते हुए आर्थिक हितों के प्रश्नों को दूसरी वरीयता पर रखा। यह उनके मानवतावादी दृष्टिकोण को परिलक्षित करने वाला है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश मानव समाज की रक्षा को द्वितीय वरीयता पर रखकर अपने आर्थिक हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
बेहतर हालात में भारत
भविष्य इस निर्णय का मूल्यांकन कुछ इस तरह करेगा कि जब वैश्वीकरण की प्रतिस्पर्धा और विकास की अंधी-दौड़ में मानव जीवन का महत्व दूसरी वरीयता पर खिसकने लगे थे, तब भारत ने अपने सभी हितों को छोड़ते हुए मानव जीवन की बड़ी कीमत चुकाई थी। दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत में अगर स्थिति विकसित देशों की तुलना में बेहतर है तो इसके पीछे मोदी सरकार का यह मानवीय दृष्टिकोण अहम कारक है।
तब्लीगी जमात का बवंडर
इस साहसिक नीति पर आगे बढ़ने के बाद जब लग रहा था कि स्थितियां संभलने की तरफ जा रही हैं, उसी दौरान दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज में हुए मजहबी जलसे का बवंडर खड़ा हो गया। देश-विदेश के हजारों तब्लीगी जमाती निजामुद्दीन मरकज में जलसा करके देश के कोने-कोने में फैल गए। पड़ताल में जहां-जहां से जमाती खोजे गए, उनमें बड़ी संख्या कोरोना पॉजिटिव वाले जमातियों की थी। फिर अचानक कोरोना पॉजिटिव मामलों में बढ़ोतरी होने लगी।
सहयोग के बजाए पुलिस पर हमलावर
इस आपदा काल में मानव समाज की रक्षा के लिए मोदी सरकार द्वारा नीतिगत स्तर पर किए गए एक बड़े बलिदान पर पलीता लगाने का काम तब्लीगी जमात ने कर दिया था। इससे भी अधिक आश्चर्य और निराशा की स्थिति तो इसके बाद पैदा हुई जब जमात में शामिल लोग मेडिकल जांच में सहयोग करने के बजाय पुलिस और चिकित्सकों पर हमलावर होने लगे। स्थिति ऐसी बन गई कि पुलिस को पकड़ने के लिए छापेमारी करनी पड़ रही है और अभी भी सैकड़ों जमाती सामने नहीं आ रहे हैं और वे कहीं न कहीं छिपे हुए हैं। सवाल है कि आखिर जमाती ऐसा क्यों कर रहे हैं?
मजदूरों के पलायन से उपजा संकट
यह रोचक है कि पहले से कोरोना महामारी की चुनौतियों से जूझ रही मोदी सरकार के सामने जैसे ही तब्लीगी जमात से निपटने की चुनौती आती है, देश का प्रमुख राष्ट्रीय दल कांग्रेस भी धीरे-धीरे सरकार पर हमलावर रुख अख्तियार करने लगता है। यह सच है कि सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद लॉकडाउन के शुरुआती दो दिनों में व्यापक संख्या में मजदूरों के पलायन की स्थिति पैदा हुई। हालांकि जल्द ही सरकार ने पलायन से उपजे संकट को भी काबू में करने में सफलता प्राप्त की। मजदूरों, किसानों, महिलाओं और गरीब तबके के लिए सरकार ने अपना खजाना खोलते हुए एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये के आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की। जनधन खातों में डीबीटी के माध्यम से राहत के तौर पर मदद राशि भेजने की घोषणा की गई और उसे अंजाम भी दिया गया। चिकित्सा उपकरण से जुड़ी वस्तुओं की उपलब्धता एक तय समय में ही संभव हो सकती थी, जिसे सरकार ने किया भी है। इन सब बिंदुओं की अनदेखी करके कांग्रेस का विरोध किन बिंदुओं पर था?
संभवत: कांग्रेस यह इंतजार कर रही थी कि सरकार के सामने चुनौतियों का दबाव बढ़े और उन्हें हमलावर होने का अवसर मिले। एक लोकप्रिय सरकार के सामने अस्थिरता की स्थिति किन-किन हथकंडों से पैदा की जा सकती है, उसको लेकर अमेरिकी राजनीति विज्ञानी जेन शार्प ने 198 बिंदु बताए हैं। उन तरीकों को दिल्ली में हाल ही में प्रयोग के तौर पर आजमाया भी गया है। अब कोविड-19 की चुनौती के दौर में तब्लीगी जमात द्वारा अवज्ञा करके, चिकित्सकों के साथ असहयोग जताकर, भीड़ में छिपकर तथा चिकित्सकों की टीम पर हमला करके आजमाया जा रहा है। इससे उपजी अस्थिरता का राजनीतिक लाभ लेने से बचने के बजाय कांग्रेस उसे सरकार पर हमले के अवसर के रूप में ले रही है। इस कठिन दौर में सभी राजनीतिक दलों को इससे बचना चाहिए।
विकसित देश कोविड-19 महामारी से उबरने का रास्ता नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसे में भारत ने मानव जीवन को प्राथमिकता देते हुए इसकी चुनौतियों से निपटने की राह निकाली है।
[लेखक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर रिसर्च फेलो हैं]