हास्य-व्यंग्य : आखिरकार हमने चीन को पछाड़ ही दिया
आबादी में चीन को पछाड़ने के समाचार को जब हमारे गांव के लड्डन चाचा ने अखबार में पढ़ा तो उन्होंने अपनी छाती ऐसे तान ली जैसे 1962 के युद्ध का बदला हमारे देश ने चीन को जनसंख्या में पछाड़कर सूद समेत वसूल कर लिया हो।
रंगनाथ द्विवेदी : आखिरकार जनसंख्या बढ़ने और बढ़ाने के मामले में चीन हम भारतीयों से चारों खाने चित हो ही गया। हम इसे यूं भी कह सकते हैं कि हमने जनसंख्या वृद्धि के मामले में चीन को उसकी नानी याद दिला दी। आबादी में चीन को पछाड़ने के समाचार को जब हमारे गांव के लड्डन चाचा ने अखबार में पढ़ा तो उन्होंने अपनी छाती ऐसे तान ली, जैसे 1962 के युद्ध का बदला हमारे देश ने चीन को जनसंख्या में पछाड़कर सूद समेत वसूल कर लिया हो। लड्डन चाचा केवल इसी एक कारण से गर्व नहीं कर रहे थे। दरअसल चीन को जनसंख्या के इस मामले में पराजित करने में उनका भी एक योगदान है। लड्डन चाचा के 11 बच्चे और 20 नाती-पोते हैं।
पहले तो लड्डन चाचा बस अपनी मूंछ को हल्के से सहला कर छोड़ देते थे, लेकिन आज वह अपनी मूंछ को ऐसे ऐंठ रहे थे कि जैसे अगर कोई चीनी नागरिक उन्हें मिल जाता तो उसे वह उसके दो-चार बाल उखाड़ कर गिफ्ट में दे देते और कहते कि वह इसे ताबीज बनाकर पहनना शुरू कर दे, नहीं तो हमारे देश की जनसंख्या उनके देश के राशन कार्ड पर कब्जा कर लेगी। वैसे साठ वर्ष की उम्र में भी लड्डन चाचा की शारीरिक बनावट किसी ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहलवान की तरह है। अभी भी वह बात-बात में जब अपनी ठसक पर आ जाते हैं तो कहते हैं कि 'बेटा इस उम्र में भी मैं किसी की कलाई पकड़ लूं तो क्या मजाल है कि तुम्हारे जैसे आधा दर्जन आदमी मिल कर भी मेरे मजबूत हाथों से उसकी कलाई छुड़ा लें।'
लड्डन चाचा यह सब जिस चाय की दुकान पर बैठकर कह रहे थे, वह ऐसी-वैसी नहीं थी। वह दुकान अगर 60 प्रतिशत अपने अच्छी चाय की वजह से चलती है तो 40 प्रतिशत लड्डन चाचा की लच्छेदार बातों की वजह से। लोग लड्डन चाचा को सुनने के लिए चाय पीने के लिए चले आते हैं। आज मैं भी कई दिनों के बाद उस चाय की दुकान पर चाय पीने के लिए आया था। लड्डन चाचा को लाइव सुनने का सुख मुझे अपने पत्रकार होने के सुख से ज्यादा अच्छा लगता है। एक तरह से लड्डन चाचा इस चाय की दुकान की लाइव डिबेट के स्टार एंकर हैं। उन्होंने मेरी तरफ देख कर अपनी मूंछ को सात-आठ बार ऐंठा। मैं उनके मूंछ को इस तरह से ऐंठने के मंतव्य को भलीभांति समझ गया। दरअसल वह अपनी मूंछ को इस तरह से ऐंठ कर मुझे यह जताना चाह रहे थे कि मूंछ का होना कितना आवश्यक है। उनके कथनानुसार कम से कम इतनी मूंछें तो अवश्य ही होनी चाहिए जिसे कि वह किसी इमरजेंसी में कुछ देर तक ऐंठ सके।
वैसे 1962 से लेकर अब तक हमने केवल चीन की हेकड़ी ही सुनी थी, लेकिन आज उसकी हेकड़ी को हमारे देश की जनसंख्या ने ढीली कर दी। मुझे भी अब लड्डन चाचा की तरह मूंछ के न होने का पछतावा हो रहा था। जब हमने लड्डन चाचा को समझाया कि जनसंख्या बढ़ना कोई अच्छी बात नहीं तो उन्होंने कहा कि अगर ऐसा है तो सरकार को सबसे पहले उसे टेलीविजन पर परिवार नियोजन के ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगा देनी चाहिए, जिसे खूबसूरत हीरो-हीरोइनें कर रही हों।
उन्होंने विस्तार से समझाया कि हमारे देश की जनसंख्या वृद्धि में पति-पत्नियों के साथ ही टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले परिवार नियोजन के विज्ञापनों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। उनकी मानें तो परिवार नियोजन के साधनों को बनाने वाली तमाम कंपनियों ने अपना विज्ञापन इतने खूबसूरत हीरो-हीरोइनों से करवाया कि उसे देख कर हमारे देश के तमाम पति और पत्नियां यह समझ ही नहीं पाईं कि उन्हें यह विज्ञापन देश की जनसंख्या बढ़ाने के लिए दिखाया जा रहा है कि घटाने के लिए। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज हमारे देश की जनसंख्या चीन की जनसंख्या से ज्यादा हो गई है।