सृजन पाल सिंह। दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में 14 भारत में हैं। हम सभी सर्दियों की दस्तक के साथ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और कई अन्य शहरों में प्रदूषण के बारे में समाचार सुनते हैं। इस दौरान शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआइ खतरनाक स्तर को लांघ जाता है। फिर बहस शुरू होती है। दोषारोपण होने लगता है। इसमें राजनीतिक दल बहुत मुखर होते हैं।

हर एक दल दूसरे को दोष देना लगता है। इस बहस के बीच कुछ तथ्यों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। जैसे भारत में वायु प्रदूषण से हर साल लगभग 23 लाख लोगों की मौत होती है। यह संख्या कोविड-19 से हुई कुल मौतों का चार गुना अधिक है। क्या इस स्थिति का कोई ठोस समाधान है जो जीवन की सुगमता के साधनों से समझौता किए बिना पर्यावरण को भी क्षति न पहुंचाए। हाइड्रोजन ईंधन के रूप में ऐसा एक समाधान हमारी पहुंच में दिख रहा है।

हाइड्रोजन ब्रह्मांड में सबसे हल्का तत्व है। प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बावजूद प्राप्ति के स्तर पर यह कुछ दुर्लभ भी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अधिकांश हाइड्रोजन पानी के एक प्रमुख भाग के रूप में मौजूद है। प्रत्येक पानी के अणु में आक्सीजन के एक परमाणु के साथ हाइड्रोजन के दो परमाणु होते हैं। यदि पानी को इलेक्ट्रोलिसिस नामक एक रासायनिक प्रक्रिया से गुजारा जाता है, जिसमें उसमें करंट प्रवाहित किया जाता है, तब पानी का अणु टूट जाता है और हाइड्रोजन ईंधन का उत्पादन संभव हो सकता है। हाइड्रोजन एक शून्य-उत्सर्जन ईंधन है। यानी उसे जलाने से कोई प्रदूषण नहीं होता।

ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए इसे आक्सीजन के साथ जलाया जाता है। ऐसा करने में सिर्फ जल वाष्प इंजन से बाहर निकलता है। हाइड्रोजन ईंधन को व्यापक स्तर पर उपयोग में लाने से पहले हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हाइड्रोजन ईंधन को उत्पन्न करने के लिए उपयोग की जाने वाली बिजली सौर और पवन ऊर्जा जैसे हरित नवीकरणीय स्रोतों से हो। इस प्रकार के हाइड्रोजन को ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है। इस प्रक्रिया के तहत कार्बन डाईआक्साइड या कोई अन्य हानिकारक कण नहीं बनता। साथ ही हवा की गुणवत्ता यानी एक्यूआइ को नुकसान नहीं पहुंचता।

भारतीय उद्योग जगत में भी ग्रीन हाइड्रोजन को व्यापक स्तर पर अपनाया जा रहा है। रिलायंस जैसी दिग्गज कंपनी इसमें अरबों रुपये का निवेश कर रही है। टाटा और महिंद्रा के साथ टोयोटा और कमिंस जैसी कंपनियां कारों और ट्रकों के लिए हाइड्रोजन इंजन विकसित करने पर तेजी से आगे बढ़ रही हैं। यह सिलसिला इसी प्रकार कायम रहा तो आप वर्ष 2030 तक प्रतिदिन एक हाइड्रोजन बस, एक हाइड्रोजन ट्रेन की सवारी करने और एक हाइड्रोजन ईंधन कार के मालिक होने की उम्मीद कर सकते हैं। इससे निकलने वाला पानी भी इतना साफ होगा कि उसका सेवन तक किया जा सकता है।

गत वर्ष नई दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाइड्रोजन ईंधन की राह पर चलने का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया था। भारतीय कंपनियां इस प्रक्रिया को सफल बनाने में विश्व का नेतृत्व भी कर रही हैं। प्राकृतिक गैस से भी हाइड्रोजन ईंधन बनाया जा सकता है। संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे पेट्रोलियम समृद्ध देश भी अब यही विकल्प अपना रहे हैं। हालांकि इस प्रक्रिया में हानिकारक कार्बन डाईआक्साइड निकलती है। इसीलिए इसे ‘ग्रे हाइड्रोजन’ कहा जाता है। भले ही कार्बन डाईआक्साइड को किसी टेक्नोलाजी से वायुमंडल में जाने से कुछ हद तक रोका जाए, तब भी यह पूरी तरह से स्वच्छ प्रक्रिया नहीं है। ऐसी किसी तकनीकी हस्तक्षेप की स्थिति में इसे ब्लू हाइड्रोजन ईंधन कहा जाता है।

कार्बन उत्सर्जन इस समय विश्व की प्रमुख समस्या है। विश्व के 24 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए परिवहन क्षेत्र को जिम्मेदार माना जाता है। दिल्ली जैसे शहर में तो यह आंकड़ा 30 प्रतिशत से ऊपर है। ग्रीन हाइड्रोजन वाहनों से हम इस प्रदूषण को शून्य कर देंगे। केवल इसी से दिल्ली की हवा प्रदूषण के गंभीर स्तर से मध्यम स्तर पर आ जाएगी। केवल इस पहल से सालाना 23 लाख लोगों की जान बचाने में मदद मिल सकती है और प्रत्येक भारतीय की औसत आयु लगभग 5.8 वर्ष बढ़ जाएगी।

इसके आर्थिक निहितार्थ भी कम महत्वपूर्ण नहीं। तेल और गैस का आयात हमारी आर्थिकी पर एक बड़ा बोझ है। भारत ने वर्ष 2022 में पेट्रोलियम आयात के लिए 12 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया। यह शिक्षा पर किए गए खर्च का 18 गुना या स्वास्थ्य देखभाल पर हमारे कुल खर्च का 14 गुना है। कल्पना करें कि जो धन हम तेल समृद्ध देशों को देने पर मजबूर हैं, उसे हम अपने विकास पर निवेश करें तो इसका प्रभाव कितना व्यापक होगा। साथ ही इससे हमारे स्थानीय उद्योगों का निर्माण भी होगा। हाइड्रोजन ईंधन की इस वैज्ञानिक क्रांति से बहुत सारी नौकरियां पैदा हो सकती हैं और हमें इन देशों पर निर्भर भी नहीं होना पड़ेगा। तेल समृद्ध कुछ देशों की नीतियां भी हमारे अनुकूल नहीं।

भारत का ग्रीन हाइड्रोजन मिशन बेहतर और शत प्रतिशत स्वच्छ है, लेकिन किसी भी महत्वाकांक्षी मिशन की तरह इसमें भी चुनौतियां हैं। पहला है कुशल इंजन का निर्माण और किफायती वाहन विकसित करना जो इस नए ईंधन पर चल सकें। हमारे घरेलू उद्योग इतने मजबूत हैं और हमारा बाजार इतना बड़ा है कि नए इंजन का उत्पादन तेज गति से हो सकता है। दूसरा, ऐसे इंजनों में सुरक्षा सुविधाएं सुनिश्चित करनी होंगी, क्योंकि हाइड्रोजन पेट्रोल या किसी अन्य पारंपरिक ईंधन की तुलना में अधिक विस्फोटक है। तीसरा मुद्दा यह है कि हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में सौर और पवन ऊर्जा में निवेश की आवश्यकता होगी।

यह पहलू ग्रीन हाइड्रोजन को ब्लू हाइड्रोजन की तुलना में महंगा बना देगा। भारत ने 2030 तक इस मोर्चे पर आठ लाख करोड़ रुपये के निवेश का लक्ष्य तय किया है। अकेले इस क्षेत्र में छह लाख से अधिक नौकरियां सृजित होंगी। हाइड्रोजन वाहनों एवं उनका सर्विस नेटवर्क बनाकर और अधिक निवेश के साथ ही रोजगार विस्तार होगा। यह सब एक बेहतर भविष्य की उम्मीद जगाता है, जहां हम न केवल स्वच्छ हवा सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे, बल्कि तेल की खरीद के खर्चे को बचाकर अर्थव्यवस्था को भी एक बड़ा सहारा देंगे।

(पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सलाहकार रहे लेखक कलाम सेंटर के सीईओ हैं)