गौरव वल्लभ। भारत अभूतपूर्व औद्योगिक कायापलट के दौर से गुजर रहा है। परिवर्तन की यह बयार देश के आर्थिक विकास और सामाजिक लोकाचार को परिभाषित करेगी। करीब 24.7 लाख उद्यमियों के इस विशाल परिवार ने वित्त वर्ष 23 में 8.8 ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर के विस्मयकारी लेनदेन के स्तर को छुआ। मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु में संघर्ष करने वाले बड़े व्यवसायों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे पैमाने के उद्यमों तक व्यवसाय पारंपरिक प्रतिमानों को फिर से परिभाषित कर रहे हैं और आर्थिक समावेशिता को बढ़ावा दे रहे हैं। उद्यम की यह लहर केवल एक सांख्यिकीय घटना नहीं, बल्कि नवाचार और महत्वाकांक्षा की अदम्य भावना का प्रतिबिंब है, जो भारतीय समाज के हर तबके में व्याप्त है। फिर भी विडंबना यह है कि जैसे-जैसे ये उद्यमी देश को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं, वे हमलों का सामना कर रहे हैं।

आलोचना वह कसौटी है, जिसमें विचारों का परीक्षण और परिशोधन किया जाता है। रचनात्मक आलोचना प्रतिस्पर्धा एवं नवाचार को बढ़ावा देते हुए जवाबदेही सुनिश्चित करती है। यह विकास के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करती है। उद्यमियों को अपने मानकों को बढ़ाने और मूल्य प्रदान करने के लिए प्रेरित करती है। आलोचनात्मक मूल्यांकन से प्रेरित स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बेहतर उत्पादों, सेवाओं और अंततः अधिक मजबूत अर्थव्यवस्था की ओर ले जा सकती है। हालांकि आलोचना जब स्वस्थ और भली मंशा ने से न की जाए तो वह केवल नकारात्मकता को बढ़ाती है। अफसोस की बात है कि हमारे सार्वजनिक विमर्श में कुछ तबकों द्वारा अक्सर ऐसा किया जाने लगा है। वेल्थ क्रिएटर्र यानी संपदा सृजन करने वालों को अनावश्यक रूप से निशाने पर लिया जा रहा है। उद्यमियों को अपनी राजनीतिक लड़ाई का मोहरा बनाया जा रहा है। इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर इस विमर्श को आगे बढ़ाने का मंच बन रहे हैं।

नवाचार और कड़ी मेहनत के माध्यम से अर्जित सफलता का जश्न मनाने के लिए सामाजिक आख्यान को बदलने की आवश्यकता इस समय कहीं अधिक महसूस हो रही है। आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए उद्यमशीलता के प्रयासों का समर्थन करने वाली संस्कृति को अपनाना महत्वपूर्ण है। हमारे पाठ्यक्रम में व्यापक उद्यमिता शिक्षा की अनुपस्थिति के कारण कई लोग व्यावसायिक उपक्रमों की चुनौतियों और योगदानों को पूरी तरह से नहीं समझ पाते हैं। एक उद्यमी तमाम मुश्किल पड़ावों को पार कर सफलता के गंतव्य तक पहुंचता है। युवा उद्यमियों का ही उदाहरण लें तो कभी-कभी योग्यता के आधार पर मूल्यांकन करने के बजाय उनकी उम्र के कारण उन्हें खारिज कर दिया जाता है। इसी तरह, धार्मिक और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह विशिष्ट पृष्ठभूमि के चलते भी उद्यमियों को भेदभाव झेलना पड़ सकता है। जबकि लैंगिक पूर्वाग्रह महिला उद्यमियों के लिए एक बाधा बनी हुई है, जिन्हें अपने लिए मुकाम बनाने में और परिश्रम करना पड़ता है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में कारोबारी हस्तांतरण को भाई-भतीजावाद के आरोप झेलने पड़ते हैं, जबकि ऐसा करते हुए विरासत और संचित ज्ञान के महत्व को अनदेखा कर दिया जाता है।

अनुचित आलोचना के प्रभाव बहुत गहरे और दूरगामी होते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर ही देखें तो इससे कारोबारी प्रवर्तकों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ता है, क्योंकि उन्हें सार्वजनिक रूप से बदनामी झेलनी पड़ती है। यह उनके कर्मचारियों तक फैलता है, जिससे उनका मनोबल गिरता है और उत्पादकता घटती है। नवाचार को हतोत्साहित करना एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। जब जोखिम लेने वालों को सामाजिक रूप से दंडित किया जाता है तो यह रचनात्मकता और प्रगति को रोकता है। नकारात्मकता से भरे माहौल में निवेशकों का विश्वास कम हो सकता है। घरेलू और विदेशी दोनों तरह की पूंजी स्थिर और अनुकूल परिस्थितियों को प्राथमिकता देती है। अनुचित आलोचना अस्थिरता को बढ़ाकर निवेशक बिरादरी का भरोसा तोड़ती है, जो आर्थिक विकास की गति को कुंद करता है। केवल व्यक्तिगत विफलताओं पर ध्यान केंद्रित करने से उन प्रणालीगत मुद्दों की अनदेखी होती है, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह पहचानना आवश्यक है कि उद्यमी नीतियों, बाजार की ताकतों और सामाजिक मानदंडों के एक बड़े ढांचे के भीतर काम करते हैं। प्रणालीगत चुनौतियों का समाधान करने से अधिक टिकाऊ और समावेशी विकास हो सकता है।

आर्थिक विकास को गति देने में उद्यमशीलता की अपरिहार्य भूमिका को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने पारंपरिक समाजवादी-उन्मुख नीतियों से धीरे-धीरे अधिक बाजार-हितैषी रणनीतियों की ओर रुख किया है। यह महत्वपूर्ण नीति परिवर्तन व्यवसायों के फलने-फूलने के लिए अधिक अनुकूल वातावरण बनाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उद्यमियों को सशक्त बनाने, नवाचार को प्रोत्साहित करने और भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में अधिक गहराई से जोड़ने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। जैसे स्टार्टअप इंडिया योजना कर रियायतों, नियमों को सरल बनाने और वित्तीय संसाधनों तक पहुंच को सुविधाजनक बनाकर एक अनुकूल तंत्र के निर्माण में सहायक बनी है। इसी तरह मुद्रा योजना योजना सूक्ष्म और लघु उद्यमों को महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिससे विविध सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति अपनी उद्यमशीलता की आकांक्षाओं को साकार कर सकते हैं।

राष्ट्रीय उद्यमिता पुरस्कार असाधारण योगदान को मान्यता और सम्मान देकर और नवाचार एवं उत्कृष्टता की राष्ट्रव्यापी संस्कृति को बढ़ावा देकर इस एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं। इन प्रयासों के बावजूद उद्यमियों को अनुचित आलोचना से बचाने के लिए सुरक्षात्मक उपायों की आवश्यकता है। इसके साथ ही जवाबदेही भी बनाए रखनी है। जवाबदेही को संतुलित करना सबसे महत्वपूर्ण है। उद्यमियों को नैतिक प्रथाओं, पारदर्शिता और सामाजिक प्रभाव के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। साथ ही, वे आर्थिक विकास और राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान के लिए मान्यता एवं सम्मान के हकदार हैं। खुले संवाद को प्रोत्साहित करना, वित्तीय साक्षरता बढ़ाना और उद्यमिता शिक्षा को अकादमिक पाठ्यक्रम में शामिल करना समझ के स्तर पर बनी खाई को पाटने में मददगार हो सकते हैं। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, नवाचार का जश्न मनाने वाली और उद्यमशीलता की यात्रा का सम्मान करने वाली संस्कृति को बढ़ावा देना अनिवार्य है। हम उद्यमियों के मूल्यों की सराहना करने के लिए सामाजिक आख्यानों को बदलकर अधिक समावेशी और गतिशील अर्थव्यवस्था बना सकते हैं। सरकार, मीडिया, शैक्षणिक संस्थानों और समाज का सामूहिक प्रयास एक ऐसा माहौल बनाने के लिए आवश्यक है, जहां आलोचना प्रगति में बाधा बनने के बजाय सुधार के साधन के रूप में काम करे।

(लेखक एक्सएलआरआइ, जमशेदपुर में वित्त के प्रोफेसर एवं भाजपा नेता हैं)