अवधेश कुमार। महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव के पहले राजनीतिक परिदृश्य ऐसा है, जिसकी कल्पना हाल के लोकसभा चुनाव के बाद नहीं की जा रही थी। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस सहित उसके घटक दलों के स्वर में उत्साह और आत्मविश्वास की गूंज थी। ऐसा लगता था कि उन्होंने लड़ाई में जबरदस्त जीत हासिल की और भाजपा पराभव की ओर है।

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के नतीजों ने माहौल बदल दिया। यदि महाराष्ट्र और झारखंड में आईएनडीआईए में सीट बंटवारे को लेकर जो कुछ हुआ, उसी को आधार बनाएं तो पता चल जाएगा कि स्थिति कितनी बदली हुई है। एक ओर भाजपा ने आत्मविश्वास और परिपक्वता से सहयोगी दलों के साथ सीटों का तालमेल किया और दोनों राज्यों में आपसी विरोध नहीं दिखा।

दूसरी ओर महाराष्ट्र और झारखंड में आईएनडीआईए के बीच सीटों को लेकर जिस तरह की खींचतान तथा सार्वजनिक बयानबाजी हुई, उससे तथाकथित एकजुटता की वास्तविकता सामने आई। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी के नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी ही नहीं करते रहे, अपने हिसाब से प्रत्याशी उतारने की घोषणा भी करते रहे।

यह कहना ठीक नहीं होगा कि भाजपा नेतृत्व वाले राजग में सीटों को लेकर समस्याएं नहीं। मूल बात है कि आप इसे हैंडल कैसे करते हैं। महायुति में देवेंद्र फडणवीस, अजीत पवार और एकनाथ शिंदे में से किसी ने सीटों के बंटवारे को लेकर असंतोष प्रकट नहीं किया। भाजपा ने महाराष्ट्र में आरंभिक 99 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, जहां दूसरे का दावा नहीं था।

झारखंड में भी उसने शांति से सीटों का बंटवारा कर लिया और स्वयं 68 सीटों पर लड़ते हुए आजसू को 10, जदयू को दो एवं लोजपा को एक सीट दी। लोजपा का प्रदेश में जनाधार नहीं है और जद-यू भी ऐसी स्थिति में नहीं कि साथ न लेने पर भाजपा को क्षति पहुंचा दे। बावजूद इसके गठबंधन में एका बनाए रखने के लिए भाजपा ने ऐसा किया। दोनों गठबंधनों के बीच का यह गुणात्मक चरित्र चुनाव परिणाम पर प्रभाव नहीं डालेगा, यह मानना व्यावहारिक नहीं।

महाराष्ट्र का अंकगणित देखें तो 2019 के विधानसभा चुनाव परिणामों का अब इसलिए महत्व नहीं, क्योंकि शिवसेना और राकांपा दोनों टूट चुकी हैं। यद्यपि भाजपा और कांग्रेस में टूट नहीं हुई है, लेकिन साथी दलों से इन्हें तब प्राप्त मतों का अनुमान लगाना संभव नहीं। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में 48 में से राजग को केवल 18 तथा महाविकास अघाड़ी को 30 सीटें प्राप्त हुईं।

भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र दूसरा बड़ा धक्का था, जिसने लोकसभा में उसके अंकगणित को बहुमत से पीछे किया। झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पार्टी के साथ परिवार बंट गया है। पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन और भाभी सीता सोरेन भाजपा के साथ हैं। झामुमो की लोकप्रियता नीचे है।

हरियाणा में जीतते-जीतते हारना और जम्मू कश्मीर में बुरे प्रदर्शन के कारण कांग्रेस के अंदर निराशा है। इसके साथ आईएनडीआईए घटकों के बीच संदेश गया है कि कांग्रेस की हैसियत अपनी बदौलत सफलता पाने की नहीं है। जम्मू कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव की प्रवृत्तियां बदलती दिखाई दी हैं।

महाराष्ट्र में भाजपा के लिए दलितों के बीच विस्तृत पैठ बनाना कठिन रहा है, क्योंकि यह प्रदेश दलित आंदोलन का केंद्र है, जिसके निशाने पर हिंदुत्व और भाजपा रही है। लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार संविधान और आरक्षण खत्म कर देगी का प्रचार दलितों और पिछड़ों के एक वर्ग तक पहुंचा।

उसने आईएनडीआईए के पक्ष में मत दिया, लेकिन हरियाणा के दलितों के बड़े वर्ग ने भाजपा के पक्ष में जाकर जता दिया कि वह इस गलत प्रचार के झांसे में नहीं आने वाला। हरियाणा सरकार गठित होने के बाद नायब सिंह सैनी सरकार ने अनुसूचित जाति आरक्षण में उपवर्गीकरण को लागू कर दिया, जिसका लाभ दलितों के अंदर वंचित वर्ग को मिलेगा।

हरियाणा में विधानसभा चुनाव के समय देखा गया कि भाजपा उम्मीदवारों और संगठनों में तो तालमेल था, लेकिन राज्य सरकार को लेकर संगठन परिवार के अंदर असंतोष और नाराजगी थी। इसके बाद भी राहुल गांधी ने जिस तरह हिंदुत्व पर कटाक्ष किए और अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का उपहास उड़ाया, उसकी प्रतिक्रिया हुई।

वास्तव में लोकसभा चुनाव में जहां भी भाजपा का प्रदर्शन कमजोर रहा, वहां यह भाव व्याप्त हो रहा है कि यद्यपि भाजपा संगठन और सरकारों ने हमारी अनेक अपेक्षाएं पूरी नहीं की, किंतु देश के समक्ष खतरे को देखते हुए उसके विरोधियों के साथ जाना आत्मघाती होगा। हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव प्रक्रिया के बीच लेबनान में हिजबुल्ला सरगना के मारे जाने के बाद देश के कुछ हिस्सों में किए गए आक्रामक प्रदर्शनों से डर पैदा हुआ।

फिर जगह-जगह सिर तन से जुदा के नारे ने इसे और बढ़ाया। कई जगह दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर हमले और हिंसा देखने को मिली। झारखंड में घुसपैठ, कट्टरपंथ, मतांतरण और लव जिहाद की घटनाओं ने लोगों के मन पर असर डाला है।

इसके पहले महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के दौरान भी हमले हुए तथा औरंगाबाद से मुंबई तक ओवैसी की पार्टी के मार्च ने भी हलचल पैदा की। हरियाणा की जनता ने स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस द्वारा उठाए गए मुद्दे किसान आंदोलन, अग्निवीर, संविधान, आरक्षण और दलितों, पिछड़ों तथा अल्पसंख्यकों पर खतरे की बात से मतदाता सहमत नहीं।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)