रणनीतिक साझेदारी का अहम कदम, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कारिडोर पर सहमति मील का पत्थर होगी सिद्ध
भारत पश्चिम एशिया के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को नए सिरे से ऊर्जा देने में लगा है। यूएई के साथ व्यापार समझौता इसका बड़ा उदाहरण है जो भविष्य में खाड़ी के अन्य देशों के साथ व्यापारिक वार्ताओं में आधार बनेगा। यूएई के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी अनुबंध ने वैश्विक व्यापार तंत्र में भारत की स्थिति मजबूत करने के साथ ही दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी को सशक्त बनाया है।
विवेक देवराय आदित्य सिन्हा: उतार-चढ़ाव भरे और जटिल होते वैश्विक ढांचे में पश्चिम एशिया के साथ भारत की बढ़िया सक्रियता-सहभागिता किसी मास्टरस्ट्रोक से कम नहीं। हालिया जी-20 शिखर सम्मेलन में पश्चिम एशिया (मध्य पूर्व) के साथ इस साझेदारी को नया आयाम मिला, जिसमें यूरोप की कड़ी भी साथ जुड़ गई। सम्मेलन में भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कारिडोर यानी आइएमईसी पर बनी सहमति समग्र विकास के पथ पर एक मील का पत्थर सिद्ध होगी। इस पहल का उद्देश्य भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच व्यापार, आर्थिक रिश्तों और रणनीतिक साझेदारी को मजबूत बनाना है। अपनी प्रकृति को देखते हुए यह चीन की प्रतिस्पर्धी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के लिए चुनौती बनने में सक्षम है। इस प्रस्तावित कारिडोर में ऊर्जा, तकनीक, विनिर्माण जैसे क्षेत्रों पर मुख्य रूप से जोर दिया जाएगा। इसके पीछे एक उद्देश्य यह भी है कि शक्ति का संतुलन एक ही स्थान पर केंद्रित न हो और सभी साझेदार देशों को इसका बराबर लाभ मिले। यही कारण है कि जी-20 शेरपा इस परियोजना की संभावनाओं को लेकर खासे उत्साहित दिखे।
आइएमईसी के माध्मय से रेलवे लाइन, हाइड्रोजन पाइपलाइन और आप्टिकल फाइबर केबल का बहुआयामी नेटवर्क विकसित किया जाएगा। इसमें पूर्वी कारिडोर जहां पश्चिम एशिया को भारत से जोड़ेगा तो वहीं उत्तरी कारिडोर पश्चिम एशिया को यूरोप से जोड़ेगा। यह इन क्षेत्रों में कनेक्टिविटी के लिहाज से बहुत क्रांतिकारी पहल होगी। भारत, संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई, सऊदी अरब, जार्डन, इजरायल और यूरोपीय देशों जैसे सदस्यों के बीच जुड़ाव की दृष्टि से देखें तो यह परियोजना रणनीतिक महत्व की भी नजर आती है। असल में यह वही प्राचीन व्यापारिक मार्ग है जो सदियों से वस्तुओं के व्यापार से लेकर संस्कृति एवं ज्ञान के आदान-प्रदान का माध्यम रहा है।
भारत पहले से ही पश्चिम एशिया के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को नए सिरे से ऊर्जा देने में लगा है। यूएई के साथ व्यापार समझौता इसका बड़ा उदाहरण है, जो भविष्य में खाड़ी के अन्य देशों के साथ व्यापारिक वार्ताओं में आधार बनेगा। यूएई के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी अनुबंध ने वैश्विक व्यापार तंत्र में भारत की स्थिति मजबूत करने के साथ ही दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी को सशक्त बनाया है। इसकी सफलता से ही भारत खाड़ी सहयोग परिषद यानी जीसीसी के छह देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की संभावनाएं तलाशने पर तत्परता से काम कर रहा है। इन वार्ताओं से जुड़े अधिकारियों को उम्मीद है कि जल्द ही सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। इससे खाड़ी क्षेत्र में भारत के व्यापारिक रिश्ते प्रगाढ़ होने के साथ आर्थिक साझेदारी को भी गति मिलेगी।
खाड़ी सहयोग परिषद और भारत के बीच केवल व्यापारिक ही नहीं, बल्कि गहन रणनीतिक रिश्ते भी विकसित हुए हैं। विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में भारत ने इस क्षेत्र के साथ अपने रिश्तों की डोर को नए सिरे से जोड़कर उसे और मजबूत किया है। अपने पूर्ववर्तियों के उलट प्रधानमंत्री मोदी अहम आर्थिक, सामरिक और ऊर्जा समझौतों के जरिये जीसीसी देशों को साधने में सफल हुए। प्रधानमंत्री के दौरों के साथ ही जीसीसी के उच्च अधिकारियों की निरंतर आवाजाही ने दर्शाया कि दोनों पक्ष इन संबंधों को कितना महत्व देते हैं। दोनों पक्षों के बीच यह साझेदारी श्रमशक्ति और रेमिटेंस के कहीं आगे बढ़कर बुनियादी ढांचा विकास, तकनीक साझेदारी और यहां तक कि साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने तक बढ़ती गई। भारत के दृष्टिकोण से यह बहुत महत्वपूर्ण रहा कि उसने इन देशों के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा समझौते किए हैं जो देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए बहुत आवश्यक हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत-जीसीसी रिश्तों में रणनीतिक गहराई का एक उल्लेखनीय पहलू यह भी रहा कि इन रिश्तों के बावजूद भारत ने गजब का भू-राजनीतिक संतुलन भी साधे रखा। एक प्रमुख ऊर्जा आपूर्तिकर्ता ईरान के साथ रिश्तों के बावजूद भारत ने न केवल जीसीसी के साथ अपने रिश्तों को बनाए रखा, बल्कि उनके साथ अपनी सक्रियता को गति प्रदान की। सऊदी अरब और यूएई जैसे ईरान के पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी देश भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी की दिशा में आगे बढ़े। यह दर्शाता है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने कितनी कूटनीतिक कुशलता से जटिल वैश्विक क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता के मसले को सुलझाते हुए क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत किया। यह उस विश्वास और रणनीतिक गठजोड़ का द्योतक है जो जीसीसी देशों के साथ भारत की सक्रियता का प्रतीक बनकर उभरता है।
इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक कूटनीतिक और लोगों के लोगों से संपर्क ने भी साझेदारी को नया क्षितिज प्रदान किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने समय-समय पर जीसीसी देशों का दौरा किया। उनके दौरे पर अक्सर बड़े आयोजन भी हुए। ऐसे आयोजनों के माध्यम से इन देशों में भारतवंशी समुदाय की महत्ता रेखांकित हुई। संगीत, सिनेमा और योग आदि की संयुक्त भारतीय संस्कृति की शक्ति के माध्यम से मिले कूटनीतिक लाभ से भी रिश्ते बहुआयामी बने। ऐसे में ये रिश्ते केवल आर्थिक आवश्यकता न बनकर, परस्पर सम्मान, साझा मूल्यों और रणनीतिक साम्यता से ओतप्रोत हो गए।
यह एक गुणात्मक परिवर्तन है, जो सुनिश्चित करता है कि भारत-जीसीसी संबंध कहीं अधिक लचीले, विविधतापूर्ण और दूरगामी एवं दीर्घकालिक सहयोग की दिशा में अग्रसर हैं। अब प्रस्तावित गलियारे से यह साझेदारी और लाभदायक होगी। यह मानने में कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में दुनिया के इस छोर के साथ यह बहुआयामी सक्रियता न केवल भारत की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम सिद्ध हो रही है, बल्कि भारत के वैश्विक कद को भी बढ़ाने वाली है। यह जटिल भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों को साधने में भारत की क्षमता को पुष्ट करती है। अब इसने केवल जरूरत या एक दूसरे के काम आने वाले नहीं दोस्ती नहीं, बल्कि परस्पर सम्मान और साझा रणनीतिक लक्ष्यों पर केंद्रित साझेदारी का आकार ले लिया है।
(देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और सिन्हा परिषद में ओएसडी (अनुसंधान) हैं। ये लेखकों के निजी विचार हैं)