गिरीश्वर मिश्र। देश आज अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। हम यह उत्सव बना रहे हैं तो इसके पीछे अनेक समर्पित नेताओं, किसानों और युवाओं की निष्ठा है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नि:स्वार्थ रूप से लोकतंत्र की भावना को अपने खून-पसीने से सींचा था और अनेक युवा क्रांतिवीरों ने प्राणों की आहुति दी थी। वे भिन्न-भिन्न पंथों, जातियों, क्षेत्रों और भाषाओं का प्रतिनिधित्व करते थे, किंतु सब एक देश की भावना के प्रति समर्पित थे।

स्वाधीनता दिवस उन सभी का स्मरण करते हुए नमन करने का भी अवसर है। हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने एक सशक्त लोकतंत्र की नींव रखी। ऐसे में यह संयोग मात्र नहीं है कि भारत में लोकतंत्र न केवल सुरक्षित एवं समृद्ध हुआ है, बल्कि वह निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। यह तथ्य आज की तारीख में विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि पड़ोसी देश एक-एक कर लोकतंत्र से विमुख हो रहे हैं। वहां अराजकता के चलते घोर राजनीतिक अस्थिरता का माहौल पनप रहा है। बांग्लादेश की घटनाएं बता रही हैं कि वहां किस तरह चुनी हुई सरकार और प्रधानमंत्री को अपदस्थ कर दिया गया।

आज अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर चहुंओर उथल-पुथल है। इंग्लैंड, अमेरिका और फ्रांस में भी असंतोष की भावनाएं उबल रही हैं। इस दृष्टि से यह बड़ी बात है कि भारी विविधताओं और वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत न केवल लोकतंत्र को संभालने में सफल रहा, बल्कि यहां यह और सुदृढ़ हुआ है। इसके दम पर भारत एक समर्थ अर्थव्यवस्था के साथ विकसित देश बनने की तैयारी कर रहा है। यदि आपातकाल के दुर्भाग्यपूर्ण दौर को छोड़ दें तो जनतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकारें ही भारत में सत्ता संभालती रहीं।

फिर चाहे वह चाहे अकेली पार्टी की सरकार हो या मिली-जुली। जनता ने सबका स्वागत किया और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत किया। आपसी समझदारी और भरोसे के साथ देश की यात्रा चलती रही। यह आगे और सुगमता से और तीव्र गति से चले, इसकी चेष्टा सबको करनी चाहिए। आज देश अंतरिक्ष विज्ञान जैसे ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में प्रगति कर रहा है तो साथ ही स्वावलंबन की ओर भी अग्रसर है। समाज के हाशिए पर स्थित लोगों तक सुविधाएं पहुंचाने का कार्य सफलतापूर्वक पूरा किया गया है। इस सबके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि सब कुछ ठीक है।

पंद्रह अगस्त, 1947 के दिन भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली और यहां तक पहुंचने के पहले कई नेताओं को शासन चलाने का अभ्यास मिला। नौकरशाही, कानून-व्यवस्था, शिक्षा-व्यवस्था और लोकतांत्रिक रीति-नीति का अच्छा-बुरा जो ढांचा अंग्रेजों ने औपनिवेशिक भारत के लिए बनाया था, वह रेडीमेड तैयार था। उसे ही स्वतंत्र भारत के लिए आधार बनाया गया। अंग्रेजी चाल-ढाल वाला साहबी ठाट-बाट, शौक और रुतबे की छवि मन में बसी हुई थी।

इसका परिणाम यह हुआ कि जनता और लोकतंत्र का विचार कम और राजसी प्रतीकों और ताम-झाम को बनाए रखने के उपाय अधिक किए जाते रहे। इनमें स्वराज और जनसेवा का विचार पृष्ठभूमि में खोता चला गया। यह कड़वी सच्चाई है कि जन-सेवा से जिन्होंने राजनीति में प्रवेश लिया, वे शीघ्र ही उसे भूल गए और आंखें मूंद कर सिर्फ धन-संपदा कमाने में जुट गए। राजनीति एक व्यवसाय या धंधा बनता गया, जिससे बहुत कुछ अर्जित किया जा सकता था।

अनेक नेताओं की संपदा जिस तरह तीव्र गति से बढ़ी, वह अकल्पनीय है। उनमें आय से अधिक संपत्ति के मामले आम हैं। चाहे कुछ पकड़े गए हों या नहीं। राजनीति का व्यापारीकरण भी होता गया। वोट पाने, समर्थन जुटाने और अपनी बात चलाने के लिए सौदेबाजी सामान्य सी बात हो गई। अधिकांश दलों और नेताओं के लिए विचारधारा का कोई मूल्य-महत्व नहीं रह गया है। आम चुनावों में सैकड़ों करोड़ की जब्ती होती है और जो पकड़ में नहीं आता, उसकी तो बात ही नहीं।

चूंकि अपराध सिद्ध करना लगभग असंभव सा कानूनी खेल है अतः तमाम नेता जमानत लेकर राजनीति में सक्रिय रहते हैं। एक किस्म के दायित्वहीन नेताओं की भीड़ जमा होती जा रही है, जिन्हें देश, समाज और संस्कृति किसी की भी चिंता नहीं है। वे सिर्फ अपने, अपने परिवार और अपनी पार्टी का ही भला देखते हैं। भ्रष्टाचार अब एक स्वाभाविक आचरण होता जा रहा है और हर आदमी उसे जीने के लिए बाध्य हो रहा है।

बीते दिनों ऐसा बहुत कुछ हुआ, जो देश के लिए शर्मनाक है। बिहार में एक पखवाड़े के भीतर कई छोटे-बड़े नवनिर्मित से लेकर निर्माणाधीन कई पुल ध्वस्त होकर जलमग्न हो गए। रेल की कई दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें जान-माल की बड़ी क्षति हुई। दिल्ली में कोचिंग सेंटर में जलभराव से विद्यार्थियों की मृत्यु हो गई। लाखों छात्र नीट और नेट की परीक्षा की गड़बड़ियों से राष्ट्रीय स्तर पर त्रस्त हुए।

हाथरस में एक आध्यात्मिक गुरु के पास पहुंची भीड़ कुछ इस तरह अनियंत्रित हुई कि सौ से अधिक लोगों को ‘मुक्तिदायी गुरुचरणरज’ लेने में अपनी जान से ही हाथ धोना पड़ा। पहाड़ों पर पहले जंगल की आग ने बहुत बड़ा हरित क्षेत्र स्वाहा किया और अब तीव्र वर्षा सड़क और घर सबको तहस-नहस कर रही है। तिस पर सरकार जनता को यह ‘ज्ञान’ देती रहती है कि इन सब मामलों में उचित कार्रवाई हो रही है, रपट का इंतजार है, न्याय अवश्य होगा और किसी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। चूंकि जनता की स्मृति कमजोर होती है और नई-नई समस्याएं हाजिर होती रहती हैं, लिहाजा पुरानी घटनाओं का असर उत्तरोत्तर कम होता जाता है।

संसदीय कार्यवाही के सजीव प्रसारण से सभी को पता चलता है कि कौन क्या बोल रहा है? यह समझना अवश्य आसान हो जाता है कि वह ऐसा क्यों बोल रहा है? आम लोग भी समझदार हो रहे हैं और लोकतंत्र का आशय समझने लगे हैं। आज आवश्यकता है कि अपने छोटे-छोटे घरौंदों की सीमाओं को पहचानें।

स्वाधीनता दिवस के अवसर को सुयोग बनाने की जरूरत है, ताकि देश आगे बढ़ सके। देश सुरक्षित और समृद्ध होगा तभी सभी का भविष्य सुधरेगा। भविष्य हमारा है, मगर तभी जब हम अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए नए भारत के निर्माण में समुचित सहयोग करेंगे। हमें स्वतंत्रता की महत्ता समझनी होगी और इस पर ध्यान देना होगा कि हमने बीते वर्षों में जो कुछ अर्जित किया है, उससे अधिक पाने के हकदार हैं।

(लेखक पूर्व कुलपति हैं)