हर्ष वी. पंत : इस समय अंतरराष्ट्रीय ढांचा बहुत तेजी से बदल रहा है। इससे अनिश्चितता भी बढ़ रही है। इस बढ़ती अनिश्चितता में विभिन्न देशों के बीच नई-नई साझेदारियां और नए-नए मंच आकार ले रहे हैं। इसमें भारत विश्व के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। आज दुनिया का लगभग हर छोटा-बड़ा देश भारत के साथ साझेदारी करना चाहता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यस्त कार्यक्रम से भी इसका अनुमान लगता है कि दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष भारत के साथ अपने संबंधों को नया आयाम प्रदान करता चाहते हैं।

इसी कड़ी में अमेरिका के ऐतिहासिक रूप से सफल राजकीय दौरे के बाद प्रधानमंत्री मोदी इसी सप्ताह के अंत में फ्रांस दौरे पर जा रहे हैं। दो कारणों से इस दौरे की महत्ता और बढ़ गई है। एक तो मोदी को फ्रांस ने अपने राष्ट्रीय दिवस-बास्टील डे के अवसर पर आमंत्रित किया है। ऐसा आमंत्रण विरले ही राष्ट्राध्यक्षों को मिलता है और दूसरा यही कि यह द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी की रजत जयंती वर्ष में आयोजित हो रहा है।

भारत और फ्रांस के संबंध अतीत से ही मधुर रहे हैं। कश्मीर मुद्दे से लेकर परमाणु शक्ति जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादित एवं विभाजित विषयों पर भी फ्रांस भारत के रुख का समर्थन करता रहा। वीटो शक्तिसंपन्न देशों में फ्रांस ही वह पहला देश था जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया। पिछली सदी के अंतिम दशक में दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी ने गति पकड़ी। परमाणु परीक्षणों के बाद जब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने भारत को प्रतिबंधों से लाद दिया, तब उस दौर में भी फ्रांस भारत के प्रति अपेक्षाकृत नरम बना रहा।

भारत-फ्रांस रिश्तों की सबसे अच्छी बात यह रही है कि दोनों देशों ने इस मित्रता को 21वीं सदी के अनुरूप ढालने में तत्परता दिखाई है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों का कई वैश्विक मुद्दों पर एक जैसा दृष्टिकोण इसकी पुष्टि करता है। दोनों ही नेता किसी भी साझेदारी में रणनीतिक स्वायत्तता को खासी महत्ता देते हैं। नाटो का सदस्य देश होने के बावजूद फ्रांस ने रूस को लेकर बहुत व्यावहारिक रुख दिखाया। भारत का रवैया भी ऐसा ही रहा। भारत की किसी भी महत्वपूर्ण पहल पर फ्रांस का अक्सर अविलंब मिलने वाला समर्थन भी द्विपक्षीय साझेदारी की मजबूती को दर्शाता है। रिश्तों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी का गर्मजोशी भरा रवैया भी फ्रांस के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने में बड़ा सहायक सिद्ध हुआ।

फ्रांस भारत का एक अहम रक्षा साझेदार है और पीएम मोदी के आगामी फ्रांस दौरे में इस साझेदारी को नया विस्तार मिलने की उम्मीद है। दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत को यह विचार करने पर विवश किया है कि किसी एक देश पर अतिशय सामरिक निर्भरता उचित नहीं। इसलिए भारत विभिन्न देशों के साथ सामरिक साझेदारी बढ़ाने के साथ ही रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसमें फ्रांस जैसे देश बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं जो न केवल अत्याधुनिक अचूक रक्षा उपकरण प्रदान करने के लिए तत्पर हैं, बल्कि उन्हें उनकी तकनीक साझा कर भारत में उनके उत्पादन को प्रोत्साहन देने में भी कोई संकोच नहीं।

द्विपक्षीय सामरिक साझेदारी को और गहराई प्रदान करने की दिशा में प्रधानमंत्री के इस दौरे पर फ्रांस के साथ 24 से 30 राफेल-एम (मरीन) विमानों और तीन स्कार्पीन पनडुब्बियों के सौदे पर सहमति बनने की उम्मीद है। अमेरिका के सुपर हार्नेट से कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद राफेल-एम भारतीय नौसेना की पसंद बने हैं तो इसके पीछे भी कुछ तार्किक वजह हैं। नि:संदेह, अमेरिकी सुपर हार्नेट बहुत सक्षम विमान है, लेकिन राफेल चूंकि पहले से ही भारतीय सैन्य प्रणाली का हिस्सा बन चुके हैं तो उस शृंखला के विमानों की कंपैटिबिलिटी, प्रशिक्षण और रखरखाव अपेक्षाकृत आसान होगा। साथ ही अमेरिकी तकनीक की तुलना में फ्रांसीसी उपकरण भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में भी कहीं अधिक सक्षम हैं तो इस सौदे को हमारी नौसेना के लिए उपयुक्त कहा जाएगा।

आइएनएस विक्रांत पर इन विमानों की तैनाती भारतीय नौसैन्य बेड़े की मारक क्षमताओं को बढ़ाएगी तो स्कार्पीन पनडुब्बियां हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत को सशक्त बनाएंगी। हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारत और फ्रांस की साझा चिंता का मोर्चा है। इस क्षेत्र में दोनों देशों के हितों को देखते हुए वे अलग-अलग मंचों पर साझेदारी भी बढ़ा रहे हैं। जहां फ्रांस, आस्ट्रेलिया और भारत के साथ मिलकर एक मोर्चा मजबूत कर रहा है तो अरब सागर में अपने हितों को देखते हुए फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात और भारत की तिकड़ी अपना रंग जमा रही है। फ्रांस यात्रा से लौटते हुए पीएम मोदी के संयुक्त अरब अमीरात जाने के भी गहरे निहितार्थ हैं।

प्रधानमंत्री मोदी फ्रांसीसी उद्योग जगत के दिग्गजों से मिलेंगे और उनसे भारत की विकास गाथा साझा करते हुए उसका हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित भी करेंगे। फ्रांस की कई कंपनियां पहले से ही भारत में सक्रिय हैं, जिनका दायरा आने वाले समय में और बढ़ता हुआ दिख सकता है। पिछले कुछ समय से भारत ने विभिन्न पक्षों के साथ मुक्त व्यापार समझौता यानी एफटीए पर बात आगे बढ़ाई है। इसमें यूरोपीय संघ यानी ईयू को भी एक संभावित साझेदार के रूप में देखा जा रहा है। चूंकि फ्रांस ईयू का एक अहम खिलाड़ी है तो संभव है कि मोदी के दौरे के समय एफटीए के मुद्दे पर भी बात आगे बढ़े। सौर गठबंधन, जलवायु परिवर्तन से निपटने और आतंकवाद के विरुद्ध अभियान को तेज करने जैसे मुद्दों पर पहले से चली आ रही सहमति को इस दौरे पर और विस्तार मिल सकता है।

फ्रांस भारतीय छात्रों के लिए वीजा का दायरा भी बढ़ा सकता है। दरअसल, आस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में भारी संख्या में पढ़ने के लिए जा रहे भारतीय छात्रों से मिलने वाला लाभ उठाने में अब यूरोपीय देश भी पीछे नहीं रहना चाहते। कुल मिलाकर, पीएम मोदी का यह रिश्ता अगर रणनीतिक साझेदारी की रजत जयंती मनाने के जश्न का अवसर बनेगा तो इसमें दोनों देशों के आगामी 25 वर्षों के रिश्तों की रूपरेखा भी तैयार होगी।

(लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में विदेश नीति प्रभाग के उपाध्यक्ष हैं)